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जेल से सरकार या नया नेतृत्व, अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से AAP के सामने अहम 6 सवाल

Arvind Kejriwal Arrest: आम आदमी पार्टी के अंदर हालिया उथल-पुथल के बीच नेतृत्व का मुद्दा एक गंभीर चिंता के रूप में उभर कर सामने आया है.

सायंतन घोष
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से AAP के लिए 6 सवाल और संभावित हालात</p></div>
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अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से AAP के लिए 6 सवाल और संभावित हालात

फोटो- क्विंट हिंदी

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राजनीतिक उथल-पुथल के तूफान के बीच, आम आदमी पार्टी (AAP) उथल-पुथल भरे समुद्र से गुजर रही है. कथित शराब घोटाले में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से AAP की पतवार हिल रही है. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, पार्टी नेतृत्व के गहरे संकट से जूझ रही है. पार्टी के भीतर विरोधाभासी भावनाएं गूंज रही हैं.

कुछ लोग वकालत कर रहे हैं कि केजरीवाल तिहाड़ जेल से ही दिल्ली का शासन चलाए, जो व्यावहारिक और नैतिक दुविधाओं से भरा हुआ है. एक मुख्यमंत्री के कर्तव्यों को जेल की सलाखों के पीछे से मैनेज करना शासन के सार और नैतिक अखंडता को चुनौती देता है.

अनिश्चितता के बीच राजनीतिक गलियारों में सवाल गूंज रहे हैं. ट्रायल के दौरान AAP के लिए आगे क्या रास्ता है? इस ऊहापोह में ये इंतजार हो रहा है कि दिल्ली के नेतृत्व की किस्मत में क्या लिखा है?

अरविंद केजरीवाल का सीएम पद पर बने रहना

आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बने रहने का समर्थन करती है. फिर भी, यह नजरिया न्यायपालिका की सहमति पर निर्भर करता है. इसके अभाव में उपराज्यपाल हस्तक्षेप कर सकते हैं, जो सरकार गिरने की वजह बन सकती है. ये एक ऐसी घटना हो सकती है जिससे आम आदमी पार्टी के भीतर हलचल मच सकती है, यह अशांति और अनिश्चितता पैदा कर सकती है.

कानूनी तौर पर सजा सुनाए जाने तक केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं.

बहरहाल, ऐसे हालात की व्यावहारिकता और नैतिकता पर सवाल खड़े होते हैं. जेल में रहना (यहां तक ​​कि एक विचाराधीन कैदी के लिए भी) जेल के कड़े प्रोटोकॉल का पालन करना अनिवार्य होता है, जो कि बाहरी दुनिया के साथ संवाद और कागजातों की हैंडलिंग में समस्या बनकर सामने आता है. इस तरह की चीजें मुख्यमंत्री कार्यालय के गोपनीय कामों से समझौता हो सकती है.

स्पष्ट न्यायिक निर्देशों और खास प्रावधानों के बिना, केजरीवाल का सलाखों के पीछे से सरकार चलाना अविश्वसनीय लगता है.

राष्ट्रपति शासन की संभावना

दिल्ली के राजनीतिक मैदान में आम आदमी पार्टी को जटिल हालात का सामना करना पड़ रहा है. राष्ट्रपति शासन की संभावना को एक रणनीतिक पैंतरेबाजी के रूप में देखा जा सकता है, जो संभावित रूप से पार्टी के लिए जनता का समर्थन जुटाएगा.

हालांकि, यह कदम जोखिमों के साथ आता है, खासकर अगर बीजेपी लोकसभा में अपनी स्थिति मजबूत करती है, जिससे केजरीवाल की गैरमौजूदगी के दौरान AAP को कमजोर करने के लिए एक केंद्रित प्रयास किया जा सके.

आर्टिकल 239AA के तहत, अगर राज्य मशीनरी अपने कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहती है, तो दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) के पास राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार है. यह कानूनी मार्ग आम तौर पर उन स्थितियों के लिए आरक्षित है जहां शासन विफल हो जाता है.

अगर केजरीवाल सलाखों के पीछे से मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो एलजी संवैधानिक संकट का हवाला देकर दिल्ली की अनूठी प्रशासनिक व्यवस्था को देखते हुए इस तरह के कठोर कदम उठा सकते हैं. इसके साथ ही, बीजेपी ने ईडी की हिरासत में रहते हुए केजरीवाल की ओर से सीएम के कामकाज करने को लेकर एलजी के पास शिकायत दर्ज कराई है.

सुनीता केजरीवाल संभावित मुख्यमंत्री?

दिल्ली के उभरते राजनीतिक ड्रामा की कहानी बिहार के अतीत की याद दिलाते हुए एक परिचित मोड़ लेती है. लालू प्रसाद यादव की सजा के कारण एक बार उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुईं, जिसने एक मिसाल कायम की और जिसकी गूंज आज भी सत्ता के गलियारों में सुनाई देती है.

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के साथ हवा में अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया है. साथ ही सुनीता केजरीवाल के राष्ट्र के नाम मार्मिक संबोधन और कैद से अपने पति के दिल को छू लेने वाले शब्दों के पाठ ने अटकलों को और हवा दे दी है. बुधवार को उन्होंने एक बार फिर जनता से बात की और जेल में अरविंद की स्थिति बताई और कहा कि वह 28 मार्च को अदालत के सामने शराब घोटाले के पैसे का खुलासा करेंगे और उनकी गिरफ्तारी का कारण बताएंगे.

दिल्ली की गलियारों में सुनीता केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद पर आने की संभावना गूंज रही है. आम आदमी पार्टी लंबे समय से वंशवादी राजनीति के खिलाफ बोलने के लिए जानी जाती है. अगर वह पारिवारिक उत्तराधिकार अपनाती है तो उसकी छवि खराब होने का खतरा है. इस तरह का बदलाव पार्टी की विरासत पर भाई-भतीजावाद की छाया डाल सकता है. इसे उन प्रथाओं के साथ जोड़ सकता है जिनका उसने मुखर विरोध किया है.

इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के भीतर समर्पित नेताओं की एक पूरी फौज उभरी है, जिनकी पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता अटूट है. सुनीता केजरीवाल को दिल्ली के शासन के शीर्ष पर बैठाना अनजाने में इन दिग्गजों के बीच कलह के बीज बो सकता है, और वो भी ऐसे समय में जब एकता की सबसे ज्यादा जरूरत है और असुरक्षा का माहौल पैदा हो सकता है.

इस नाजुक क्षण में, जब केजरीवाल अपनी कानूनी लड़ाई का सामना कर रहे हैं और पार्टी का नेतृत्व बिखरा हुआ है, आंतरिक कलह का खतरा मंडरा रहा है. सतर्क और रणनीतिक तौर पर बीजेपी, आप के भीतर किसी भी दरार का फायदा उठाने के लिए तैयार है. पार्टी का अगला कदम या तो इसकी नींव को मजबूत कर सकता है या टूट को आमंत्रित कर सकता है. यह एक ऐसा निर्णय होगा जो दिल्ली की राजनीतिक नियति को नया आकार देने की क्षमता रखता है.

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नेतृत्व के विकल्प

आम आदमी पार्टी के अंदर हालिया उथल-पुथल के बीच नेतृत्व का मुद्दा एक गंभीर चिंता के रूप में उभर कर सामने आया है. मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल को लेकर अनिश्चितता के साथ, पार्टी को भीतर से स्थिरता और निरंतरता खोजने की अनिवार्यता का सामना करना पड़ रहा है. आतिशी जैसे नेताओं को मुख्यमंत्री की भूमिका में संभावित प्रोमोशन आम आदमी पार्टी के लिए आशा की किरण जगा सकती है.

शिक्षा सुधार में अपने योगदान के लिए मशहूर पार्टी की एक प्रमुख हस्ती आतिशी उन प्रगतिशील आदर्शों का प्रतीक हैं जिनका समर्थन AAP करती है. कैद के दौरान भी मनीष सिसोदिया का समर्थन उन्हें काफी राजनीतिक वजन देगा और एक एकजुट मोर्चे का संकेत देगा. इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज सीएम की दौड़ में एक और अहम दावेदार हैं.

वैकल्पिक रूप से अगर AAP सीधे मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं करने का विकल्प चुनती है, तो उपमुख्यमंत्री की भूमिका, हालांकि संवैधानिक रूप से परिभाषित नहीं है लेकिन पार्टी के नेतृत्व की गहराई को मजबूती से पेश करने का मौका है.

आतिशी और सौरभ भारद्वाज सरकार में निरंतरता सुनिश्चित करते हुए संयुक्त रूप से जिम्मेदारियां संभाल सकते हैं. उनकी संयुक्त विशेषज्ञता और प्रतिबद्धता इस चुनौतीपूर्ण समय में AAP का मार्गदर्शन कर सकती है.

इस तरह के कदम न केवल शासन की गति को बनाए रखेगा बल्कि वंशवादी राजनीति के खिलाफ AAP की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करेगा. इससे स्पष्ट संदेश जाएगा कि पार्टी में शीर्ष नेतृत्व से परे सक्षम लोग शामिल हैं, जो लगन से जनता की सेवा करने के लिए तैयार हैं.

गोपाल राय बनेंगे सीएम? 

गोपाल राय का टॉप पर पहुंचना AAP के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. गोपाल राय अपने संगठनात्मक कौशल के जरिए अपने अलग-अलग गुटों को एकजुट कर सकते हैं. पारंपरिक मंत्रियों के उलट, गोपाल राय की पहचान केवल उनके पर्यावरण पोर्टफोलियो से परिभाषित नहीं होती है; बल्कि, यह केजरीवाल और सिसौदिया के साथ उनकी निकटता, उनके बोलने की स्किल और छात्र और ट्रेड यूनियन राजनीति में उनकी समझ से बनती है.

आम आदमी पार्टी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता गहरी है, जो उनके संस्थापक सदस्य के दर्जे और दिल्ली इकाई के ऑर्गेनाइजर के रूप में उनकी भूमिका को बताती है. गोपाल राय पार्टी के स्वभाव या कहें चरित्र का प्रतीक हैं और संगठनात्मक जटिलताओं को बुनियादी स्तर पर समझते हैं. उनका जमीनी स्तर से जुड़ाव सिर्फ परिचय तक ही सीमित नहीं है; यह बेहतर शासन के लिए लोगों के संघर्षों और आकांक्षाओं से भी झलकता है.

गोपाल राय को चुनने से AAP को रणनीतिक रूप से मजबूत किया जा सकता है, जिससे राजनीति में इसकी प्रासंगिकता और जीवंतता सुनिश्चित हो सकती है. यह पार्टी के मूल्यों के अनुरूप एक नए नेतृत्व युग की शुरुआत करते हुए निरंतरता और स्थिरता का वादा करता है. गोपाल राय के साथ AAP को सिर्फ एक नेता ही नहीं मिलता बल्कि पार्टी अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य की क्षमता का झलक भी पाती है.

आंतरिक असहमति की संभावना

पार्टी को आंतरिक असंतोष और बाहरी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. उदाहरण के लिए, शराब घोटाले के आरोपों के बीच लंदन में राघव चड्ढा की हालिया गतिविधियों ने पार्टी की एकता को लेकर अटकलें तेज कर दी हैं. कथित शराब घोटाले में वह एकमात्र नेता हैं जिन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. चड्ढा की गिरफ्तारी न होने की स्थिति पार्टी के अंदर प्रभावशाली नेताओं के नेतृत्व में संभावित विभाजन की अफवाहों को कम करने में बहुत कम मदद करती है. ऐसे नेतृत्व के स्थिरता पर प्रश्नचिह्न बना हुआ है.

ये अफवाहें निराधार हो सकती हैं. हालांकि, भारतीय राजनीति के मौजूदा हालात टूट और विवाद अक्सर इतने स्पष्ट होते हैं कि थोड़ी सी अफवाह भी पार्टी के सदस्यों और बाहरी लोगों दोनों के बीच असुरक्षा के बीज बो सकती है. यह कमजोरी पार्टी के अंदर मामलों की नाजुक स्थिति को बताती है.

इस उथल-पुथल के बीच, विपक्षी दलों को अस्थिर करने की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ऐतिहासिक रणनीति पर विचार करना महत्वपूर्ण है, जैसा कि शिवसेना और एनसीपी के साथ देखा गया है. यह पैटर्न बताता है कि AAP की एकजुटता के लिए खतरे पूरी तरह से आंतरिक नहीं हो सकते हैं.

इन चुनौतियों को देखते हुए AAP के लिए ये स्पष्ट है कि मजबूत उत्तराधिकार के लिए योजना बनाए.

पार्टी का अस्तित्व एक केंद्रीकृत नेतृत्व संरचना (centralised leadership structure) पर निर्भर करता है जो आंतरिक कलह और बाहरी आक्रामकता दोनों के दबावों का सामना कर सकता है. केजरीवाल की संभावित कैद एक जोड़ने की शक्ति के रूप में काम कर सकती है, लेकिन सिर्फ तभी जब पार्टी को तूफान से बाहर निकालने के लिए कोई स्पष्ट, आधिकारिक व्यक्ति तैयार हो.

इन चुनौतियों के प्रति आम आदमी पार्टी की प्रतिक्रिया न केवल उसके भविष्य को आकार देगी बल्कि मतदाताओं को प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच शासन करने की उसकी क्षमता का संकेत भी देगी. पार्टी को इन मुद्दों को तेजी से और निर्णायक रूप से संबोधित करना चाहिए, लचीलेपन और निरंतरता की एक कहानी तैयार करनी चाहिए जो उसके आधार और व्यापक जनता के साथ गूंजती हो. बिखरे हुए नेतृत्व का समय बीत चुका है; आप का अगला कदम भारत के राजनीतिक क्षेत्र में उसकी दिशा तय करेगी.

[लेखक सेंट जेवियर्स कॉलेज (स्वायत्त), कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं और एक स्तंभकार हैं (वह @sayantan_gh हैंडल से ट्वीट करते हैं) यह एक ओपीनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.]

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