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Arvind Kejriwal arrest: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की घोषणाओं के तुरंत बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गिरफ्तार कर लिया. यह सिर्फ बीजेपी का एक गलत कदम नहीं है बल्कि वास्तव में एक गड़बड़ चाल है. यह सिर्फ इस बात तक सीमित नहीं है कि इससे आम आदमी पार्टी (AAP) को सहानुभूति बटोरने का मौका मिलेगा. यह चुनावी गतिशीलता के जटिल ताने-बने की गहराई की पड़ताल करता है, खासकर दिल्ली के धड़कते दिल के भीतर की.
केजरीवाल की हिरासत से बीजेपी को कुछ पल के लिए सांत्वना मिल सकती है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि AAP सुप्रीमो केजरीवाल, हेमंत सोरेन की राह पर नहीं चलेंगे. उनका संकल्प दृढ़ है और उनकी भावना अदम्य है. वह ईडी या केंद्र सरकार की ताकत के आगे नहीं झुकेंगे. इसके बजाय, वह दिल्ली की हलचल भरी सड़कों से लेकर पंजाब के हरे-भरे मैदानों तक, जोश-ओ-खरोश से और कानून के रास्ते से, अपनी सेना को इकट्ठा करके एक जबरदस्त जवाबी हमला करने के लिए तैयार हैं.
हां, यह सही है कि बीजेपी इस मौके का फायदा उठाकर भ्रष्टाचार की कहानी गढ़ सकती है, जिसका लक्ष्य आम आदमी पार्टी को अपने जाल में फंसाना है, लेकिन सार्वजनिक चर्चा का पैमाना केजरीवाल के पक्ष में जा सकता है. आगामी लोकसभा चुनाव बीजेपी की इस हाइपोथीसिस का परीक्षण करेंगे- हाइपोथीसिस यह है कि केजरीवाल को कैद करना बीजेपी के प्रतिद्वंद्वियों के लिए एक निर्णायक झटका होगा. फिर भी, यह मानना दरअसल केजरीवाल ब्रांड की राजनीति के लचीलेपन और रणनीतिक कौशल को कम आंकना है.
केजरीवाल वैसी वापसी करने के लिए तैयार हैं, जिसकी शायद बीजेपी को उम्मीद नहीं है. वे राजनीतिक कलाबाजी में पासा पलट देंगे, जो राजनीकित युद्ध के मैदान को फिर से परिभाषित कर सकता है. केजरीवाल की गिरफ्तारी, AAP को डराने के बजाय, एक चुनावी परीक्षा बन सकती है, अलग-अलग ताकतों को एकजुट कर सकती है और एक ऐसे मोर्चे को मजबूत कर सकती है जो बीजेपी के नैरेटिव को ऐसी चुनौती दे सके जैसा पहले न मिला हो.
चुनावी सरगर्मियों के बीच अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने की बीजेपी की चाल केवल एक गलत निर्णय नहीं है, यह AAP की लचीलापन और केजरीवाल के नेतृत्व की चुंबकीय शक्ति को कम करके आंकना भी है.
'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन के अंगारों से जन्मी AAP पुराने नेताओं की राजनीतिक साजिशों से थके हुए आम लोगों के लिए एक मिसाल के रूप में खड़ी है. यह एक ऐसी पार्टी है जो आम आदमी की अखंडता की चाहत को दोहराती है, जो कि JMM या कांग्रेस जैसी पार्टियों के गढ़े हुए नैरेटिव के बिल्कुल विपरीत है.
बीजेपी को अब AAP के नैरेटिव का मुकाबला करने की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, खासकर केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद. इस घटना पर केंद्रित AAP की रणनीति, एक इमोशनल नैरेटिव तैयार करती है जो मतदाताओं के साथ गहराई से जुड़ सकता है.
एक तरफ AAP पर बीजेपी भ्रष्टाचार का आरोप लगा सकती है. तो दूसरी तरफ केजरीवाल की गिरफ्तारी AAP को यह सुनहरा मौका दे रही है कि वह भावनात्मक संदेश की शक्ति का उपयोग करे. यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां केजरीवाल का करिश्मा हावी है. इस भावनात्मक रणनीति में जनमत के पैमाने को पलटने और AAP के पक्ष में नैरेटिव को फिर से परिभाषित करने की क्षमता है.
और आखिर में, बीजेपी जो AAP को भ्रष्ट के रूप में चित्रित कर रही है, उसमें जनता के साथ केजरीवाल के सूक्ष्म भावनात्मक संबंध और रणनीतिक समझ को नजरअंदाज किया गया है. जैसे-जैसे राजनीतिक गाथा बढ़ रही है, AAP की दृढ़ता और अपील को कम आंकना बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण भूल हो सकती है. यह भूल आगामी चुनावी लड़ाई की रूपरेखा को फिर से परिभाषित कर सकती है.
दिल्ली का राजनीतिक परिदृश्य एक दिलचस्प घटना का गवाह है. यहां दो ऐसे नेता हैं जो कद्दावर हैं और एक साथ यहां सह-अस्तित्व है उनका- अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी. दिल्लीवासी चुनावी क्षेत्र के आधार पर AAP और बीजेपी के बीच झूलते रहते हैं.
दिल्ली के मतदाताओं ने एक अलग पैटर्न रखा है: विधानसभा चुनावों में AAP और केजरीवाल का समर्थन करना जबकि लोकसभा चुनावों में मोदी की बीजेपी की जमकर वोट देना. यहां के वोटरों में यह सूक्ष्म द्वंद्व ही राजनीतिक निष्ठा में एक बड़े बदलाव की संभावना को उजागर करता है, खासकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केजरीवाल की हालिया गिरफ्तारी के मद्देनजर.
अब परिस्थिती ऐसी बन गयी है कि AAP के लिए इस निष्ठा बदलने वाले वोटरों को अपने पाले में करने का एक उपयुक्त अवसर है. एक लक्षित दृष्टिकोण और एक इमोशनल अपील के साथ, AAP पारंपरिक पार्टी लाइनों से परे जाकर और अस्थायी वोटों को अपने पक्ष में एकजुट करके, दिल्ली भर में वोटरों को अपने पाले में ला सकती है.
चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण इस ट्रेंड को और पुख्ता करता है. पिछले कुछ वर्षों में, मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण वर्ग केजरीवाल की AAP और मोदी की बीजेपी के बीच झूलता रहा है- लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वोट शेयर में उतार-चढ़ाव से यह स्पष्ट है. लगभग 15-20% मतदाताओं का यह हिस्सा है जो एक बार AAP को वोट देता है तो दूसरी बार बीजेपी को. यह वर्ग एक दुर्जेय ताकत का प्रतिनिधित्व करता है जिसे AAP संभावित रूप से अपने पक्ष में मजबूत कर सकती है.
इसके अलावा, AAP और कांग्रेस के बीच गठबंधन से भी लाभ होगा. इन पार्टियों का संयुक्त वोट शेयर बीजेपी से आगे नहीं तो, उसे टक्कर देने की ओर अग्रसर है. यह संख्यात्मक लाभ भगवा पार्टी के लिए चुनौतियों को बढ़ा देता है, जिससे उसे आगामी चुनावी लड़ाई में नुकसान होगा.
संक्षेप में, AAP की इस मौके को भुनाने, इमोशनल अपील के माध्यम से फ्लोटिंग वोट को अपने पाले में लाने और अपने गठबंधन की ताकत का लाभ उठाने की क्षमता दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित कर सकती है. आगामी लोकसभा चुनाव में यह संभावित रूप से निर्णायक चुनावी जीत का मार्ग प्रशस्त कर सकती है.
जैसे-जैसे 2024 का आम चुनाव नजदीक आया, एक उल्लेखनीय राजनीतिक संगम देखने को मिला. कांग्रेस और AAP ने एक गठबंधन बनाया है, यह एक ऐसा मेल है जो भारतीय राजनीति के इतिहास में बहुत कुछ कहता है. यह गठबंधन महज एक साझेदारी नहीं है; यह एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक है जो दिल्ली और पंजाब के चुनावी परिदृश्य को फिर से परिभाषित कर सकता है, जहां AAP की जबरदस्त वृद्धि ने कांग्रेस के गढ़ को नष्ट कर दिया है.
इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन से ही AAP की उत्पत्ति हुई. यह आंदोलन तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस के कथित कुकर्मों के खिलाफ एक आह्वाहन था. फिर भी भाग्य ने ऐसा मोड़ लिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने इस गठबंधन को तैयार किया है. यह एक ऐसा गठबंधन है जो केजरीवाल की हालिया गिरफ्तारी से और मजबूत हो सकता है.
अब आप तस्वीर देखिए. वरिष्ठ कांग्रेस नेता और दिवंगत शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित कभी केजरीवाल के मुखर आलोचक थे और गठबंधन के विरोधी थे. वे भी ईडी की छापेमारी के दौरान केजरीवाल के आवास पर जाते दिखे. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली जैसे अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति ने एकता का संदेश दिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी आज केजरीवाल के परिवार से मिलने के लिए तैयार हैं. केजरीवाल और गांधी हमेशा से कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं, इसलिए एकता का संदेश बहुत स्पष्ट है.
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी एक उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है. यह कांग्रेस के भीतर आंतरिक असंतोष को शांत कर सकती है और गठबंधन के आसपास स्थानीय नेतृत्व और कैडर को एकजुट कर सकती है. यह नई एकजुटता दिल्ली, गुजरात, हरियाणा और उससे आगे गठबंधन के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, संभावित रूप से राजनीतिक गतिशीलता के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है जो आगामी चुनावों में शक्ति संतुलन को बदल सकती है. मंच तैयार है, और इस गठबंधन के निहितार्थों पर बारीकी से नजर रखी जाएगी क्योंकि राष्ट्र एक निर्णायक चुनावी मुकाबले की ओर बढ़ रहा है.
(लेखक सेंट जेवियर्स कॉलेज (ऑटोनॉमस), कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं और एक स्तंभकार हैं. उनका X हैंडल @sayantan_gh पर है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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Published: 22 Mar 2024,12:27 PM IST