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आपने शायद अपने स्कूली दिनों में बाबा भारती की कहानी ‘हार-जीत‘ जरूर पढ़ी होगी. उस कहानी का निचोड़ ये है कि संत सरीखे बाबा भारती के पास सुल्तान नाम का एक बेहद जानदार घोड़ा है. उस घोड़े को खड़ग सिंह नाम का डाकू हड़पना चाहता है.
बाबा भारती दिन रात उस घोड़े की पहरेदारी करने लगते हैं. एक दिन बाबा भारती उस घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहे होते हैं, तो सड़क किनारे कराहते एक अपाहिज पर उनकी नजर पड़ती है. वो अपाहिज बाबा भारती से उसके गांव तक पहुंचा देने की गुहार करता है. बाबा भारती तुरंत उस अपाहिज को घोड़े की पीठ पर अपने पीछे बैठा लेते हैं.
जैसे ही वो आगे बढ़ते हैं, अपाहिज शख्स उन्हें झटका देता है. लगाम बाबा भारती के हाथों से छूट जाती है. भय और आश्चर्य से उनकी चीख से निकल जाती है, जब उनकी नजर उस शख्स पर पड़ती है, जो तनकर उनके घोड़े सुल्तान की पीठ पर पर सवार था. वो अपाहिज कोई और नहीं, वही डाकू खड़ग सिंह था, जो उनका घोड़ा हड़पना चाहता था.
डाकू उनका घोड़ा लेकर सरपट भागने ही वाला था कि बाबा भारती ने आवाज देकर उसे रुकने को कहा. डाकू को लगा कि बाबा उसे घोड़ा वापस करने को कहेंगे, लेकिन बाबा भारती ने उससे कहा- ‘ये घोड़ा तो अब तुमने ले ही लिया तो इसे ले जाओ. मेरी एक ही प्रार्थना है कि इस घटना का किसी से जिक्र मत करना.
लोगों को इस घटना का पता चलेगा तो दीन-दुखियों पर विश्वास नहीं करेंगे और किसी की मदद नहीं करेंगे. ‘बाबा भारती की चिंता सिर्फ इतनी थी कि एक अपाहिज के इस धोखे के बारे में दुनिया न जाने, ताकि ऐसे मजबूर लोगों से किसी का भरोसा न उठे.
केजरीवाल से इस कहानी का कोई रिश्ता दिखता है आपको? हां, है. केजरीवाल ने भी अपने फैसलों, अपनी हरकतों और अपने माफीनामों से लाखों लोगों की उन उम्मीदों की हत्या की है, जो उन्हें केजरीवाल में दिखी थी. जिन्होंने उनमें एक ‘आदर्श नेता’ की छवि देखी थी. अब जब कोई केजरीवाल कभी किसी रामलीला मैदान या जंतर-मंतर पर धरना देकर देश की राजनीति को बदलने का ऐलान करेगा, तो जनता उस पर आसानी से यकीन नहीं करेगी.
रही केजरीवाल की बात तो अब वो किसी नेता पर घपले-घोटाले का आरोप लगाने की हिम्मत नहीं करेंगे और अगर करेंगे तो रिपोर्टर को पूछने का हक होगा कि क्या गारंटी है कि कल आप माफी नहीं मांग लेंगे? केजरीवाल के माफीनामों के बाद यही सवाल उमर अब्दुल्ला ने तंज कसते पूछा है कि माफी मांगकर वो अदालती चक्कर से तो बच जाएंगे, लेकिन किस कीमत पर? लोग क्या कहेंगे जब अगली बार वो किसी पर आरोप लगाएंगे? कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा है कि केजरीवाल को अपना नाम बदलकर ‘माफीवाल’ कर लेना चाहिए.
इस वक्त केजरीवाल एंड पार्टी पर मानहानि के करीब तीन दर्जन मुकदमे देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे हैं. केजरीवाल अब माफी मांग-मांग कर सभी मामलों को खत्म कराना चाहते हैं.
उनके राइट हैंड और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कह दिया है कि ‘हम अब उन सबसे माफी मांगना चाहते हैं, जिनका दिल दुखाया है. हमारे पास बहुत से जरुरी काम हैं और हम अदालतों का चक्कर लगाकर वक्त बर्बाद नहीं करना चाहते हैं.'
तभी तो अपने माफीनामों की वजह से इन दिनों केजरीवाल सोशल मीडिया और वाट्सअप के चुटकुलों के सबसे वायरल किरदार बने गए हैं. एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्विटर पर चिढ़ाते हुए लिखा- अरविंद जी, मेरी सलाह माने तो एक लिस्ट बना लीजिए, बारी-बारी से सबसे माफी मांगने में आसानी होगी या फिर, एक माफ़ीनामा तैयार करवा लीजिए: “To whosoever it may concern”.
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केजरीवाल सबके सामने सिर झुकाकर माफी क्यों मांग रहे हैं, ये समझने से पहले जरा याद कीजिए उस दौर को. जंतर-मंतर और रामलीला मैदान से चलने वाले अन्ना आंदोलन और फिर आम आदमी पार्टी बनने-बनाने के दौर को. धरना, प्रदर्शन और अनशन के उस दौर को. दर्जनों लाउडस्पीकरों से गूंजने वाली केजरीवाल की तकरीरों को और दस -बीस पन्नों के दस्तावेजों के साथ दर्जनों कैमरों के सामने होने वाले उनके संवाददाता सम्मेलनों को.
उनके इसी बागी और विद्रोही तेवर ने उनके पीछे लाखों लोगों की भीड़ खड़ी कर दी. उसी भीड़ की उम्मीदों के रथ पर सवार होकर केजरीवाल पहले अधूरे जनादेश के साथ, और फिर पूरे जनादेश के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गए. खुद को सियासत की तस्वीर बदलने की ख्वाहिश रखने वाले क्रांतिकारी नेता के तौर पर पेश करके दिल्ली में 67 सीटें हासिल कर ली.
उस ‘क्रांतिकारी नेता‘ की छवि तो बीते दिनों में कई बार दरकी है, लेकिन इस बार जब केजरीवाल ने पंजाब के विक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांग ली तो लगा कि सुनियोजित ढंग से गढ़ी गई उस छवि के पीछे ‘छद्म ‘ भी है. छद्म न होता तो आंदोलनकारी केजरीवाल 2011 से चलकर 2018 में यूं दाखिल न होते.
जिन्हें चीख -चीख कर भ्रष्ट कहते रहे, उन सबसे अब आउट ऑफ कोर्ट डील करने में जुटे हैं. सबको लिख-लिखकर दे रहे हैं कि हमसे भूल हो गई, हमको माफी दे दो.
ये वही केजरीवाल हैं, जो अपनी महत्वाकांक्षाओं के घोड़े पर सवार होकर पंजाब में सरपट दौड़ते वक्त मजीठिया के लिए भीड़ से नारे लगवाते थे - ड्रग का डीलर कौन ? आवाज आती थी- मजीठिया...मजीठिया. पंजाब की रैलियों में मजीठिया के नोटिस के पन्ने को लहराते हुए कहते थे- ‘मजीठिया साहब, आपके इन पर्चों से हम डरने वाले नहीं हैं‘.
फिर उनकी ललकार गूंजती थी- ‘अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया पंजाब में ड्रग बेचता है और मजीठिया अतंर्राष्टीय ड्रग माफिया का एजेंट है. हम सरकार में आने के बाद इसको छोड़ेंगे नहीं.' भीड़ तालियां बजाती थी. केजरीवाल गदगद होते थे.
दिल्ली में भी सरकार बनने के बाद शीला दीक्षित समेत कईयों सजा दिलाने के दावे किए गए थे, क्या हुआ, हम देख ही रहे हैं. जिसे एक महीने के भीतर जेल भेजने वाले थे, उसे माफीनामा भेजकर कह रहे हैं कि हमने आप पर गलत आरोप लगाकर गलती की है. माफ कर दीजिए. आखिर ये नौबत आई क्यों?
मजीठिया मामले के जानकारों के मुताबिक अमृतसर की अदालत में उस केस की दनादन तारीखें पड़ रही थी. एक-दो तारीखों में केजरीवाल खुद भी गए थे लेकिन कोर्ट के रुख और मजीठिया के वकीलों की मुस्तैदी को देखकर लग रहा था कि फैसला जल्द ही आ जाएगा.
हैरान करने वाली बात ये रही कि खुद को लोकतात्रिक और पारदर्शी कहने वाले केजरीवाल ने न तो पंजाब के विधायकों से मशविरा किया, न ही अपने सांसद संजय सिंह से, जो उनके साथ मुकदमे में वादी हैं.
संजय सिंह एसटीएफ की जांच का हवाला देते हुए अब भी अपने आरोपों पर डटे हैं, लेकिन उनके हाईकमान केजरीवाल ने उन्हें भरोसे में लिए बगैर सिर झुकाकर सरेंडर कर दिया है. खुद को सबसे बड़ा योद्धा मानने वाले केजरीवाल अब एकतरफा युद्द विराम का ऐलान कर अपनी छावनी में लौटना चाहते हैं.
अगर आप गूगल पर केजरीवाल के आरोप, केजरीवाल के बयान, भ्रष्टाचार के खिलाफ केजरीवाल जैसे की वर्ड से सर्च करें तो केजरीवाल के सैकड़ों बयान आपको मिल जाएंगे. इन बयानों और हमलों की जद में पीएम मोदी समेत दर्जनों नेता और उद्योगपति आते रहे हैं.
तर्क ये दिया जा रहा है कि दिल्ली की जनता के लिए बहुत काम करने है इसलिए कोर्ट-कचहरी से मुक्ति चाहिए. बात सिर्फ इतनी नहीं है. एक तो केजरीवाल एंड कंपनी को मुकदमों में हारने का डर है, दूसरी अपनी पार्टी के भविष्य की चिंता.
इसके लिए उन्हें चाहे चोला बदलना पड़े, चाहे सियासत बदलनी पड़े, चाहे अपनी पार्टी के खाते से किसी गुप्ता नामधारी धंधेबाज फंडजुटाऊ को राज्यसभा भेजना पड़े, चाहे दुश्मनों के सामने नतमस्तक होकर माफी मांगनी पड़े, सब करने को तैयार हैं. समझौते के सलीब पर जन आकाक्षांओं की उम्मीदों को टांग देने वाले केजरीवाल के लिए गालिब का एक शेर याद आ रहा है-"जब तवक्को ही उठ गई ग़ालिब, क्यों किसी से गिला करे कोई".
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(अजीत अंजुम जाने-माने जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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Published: 20 Mar 2018,12:56 PM IST