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पिकासो की पेटिंग या दस बिटकॉइन्स (Bitcoin) या... किसी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी स्टार्टअप को खरीदने के लिए कितनी कीमत चुकानी होगी? हम इन तीनों को एक जैसा मान रहे हैं क्योंकि यह भी माना जा सकता है कि किसी डील की कीमत कितनी है, यह उसका खरीदार तय करता है. ठीक वैसे ही जैसे सुंदरता कितनी है, यह उसे देखने वाला तय करता है. कीमत, और सुंदरता, दोनों अस्थिर और विवादास्पद विषय हो सकते हैं.
फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी स्टार्टअप 'भारतपे' इस महीने खबरों में रही-अच्छी और बुरी, दोनों वजहों से. पहले हमें खबर मिली कि वह 4 बिलियन डॉलर के वैल्यूएशन के साथ 150 मिलियन डॉलर जुटाने की जुगत में है. इससे पहले वह 2.85 बिलियन डॉलर के वैल्यूएशन के साथ 270 मिलियन डॉलर जुटा चुकी थी.
फिर हमें मालूम चला कि उसके को-फाउंडर और एक सीरियल इंटरप्रेन्योर अश्नीर ग्रोवर कोटक महिंद्रा बैंक के साथ गुत्थम-गुत्था हैं. इसकी वजह टेक स्टार्टअप नाइका (एफएसएन ई-कॉमर्स) से जुड़ा कोई आईपीओ (इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग) था जिसमें उनकी निवेश की ख्वाहिश अधूरी रह गई थी. अब खबर मिली है कि भारतपे के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने अश्नीर को वॉलंटरी लॉन्ग लीव यानी लंबी छुट्टी पर जाने को कह दिया है (वॉलंटरी लीव आम तौर पर सरकारी अधिकारियों को दी जाती है, जब उनकी छानबीन की जा रही होती है, या जब उन्हें किनारे लगाना होता है.)
बिल्कुल, यह सब अश्नीर पर एकदम सटीक बैठता है जिन पर अपने स्टार्टअप में टॉक्सिक वर्क कल्चर को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता है. अश्नीर शार्क टैंक टेलीविजन सीरिज के भारतीय संस्करण के शार्क जजों में से एक हैं. यह टीवी सीरिज इंटरप्रेन्योर्स के लिए बॉक्सिंग रिंग जैसी है.
इस तमाशे से क्या हासिल होता है? भले ही सोप ओपेरा जज्बाती उतार चढ़ाव से भरे होते हैं लेकिन चुटकियों में दौलत कमाने की होड़ में जिस एक शब्द के कारण लोगों का सामाजिक व्यवहार प्रभावित होता है, वह शब्द है, यूनिकॉर्न. यूनिकॉर्न का मतलब है, ऐसे स्टार्टअप्स जिनकी वैल्यू एक बिलियन डॉलर से ज्यादा है. इस तमाशे में अगर इंटरप्रेन्योर्स सिंड्रेला हैं तो उनका प्रिंस चार्मिंग हवा में चेक लहराता हुआ वेंचर कैपिटलिस्ट है जो मधुर शब्दों में कहता है- आपकी कीमत एक बिलियन डॉलर है प्रियवर.
शायद किसी को हेर्गे की टिनटिन कॉमिक बुक का वह टाइटिल याद हो- द सीक्रेट ऑफ द यूनिकॉर्न. यह एक दूसरी दुनिया की कहानी हुआ करती थी, लेकिन आज की दुनिया के यूनिकॉर्न, यानी एक सींग वाले काल्पनिक प्राणी ऐसे वेंचर कैपिटलिस्ट्स और इंटरप्रेन्योर्स हैं जोकि फाइनेंशियल चार्ट्स में उछाल का दावा करते हैं.
बड़े वैल्यूएशन के साथ छोटे चेक साइन करने वाले वेंचर कैपिटलिस्ट्स नौजवानों की बड़ी और स्मार्ट टीम्स बनाते हैं. ये नौजवान स्टॉक मार्केट में कामयाबी की पताका फहराने के लिए खून पसीना बहाते हैं. कुछ को बढ़त मिल जाती है और वे दूसरों के लिए मिसाल बन जाते हैं. बाकी के नाकाम हो जाते हैं. लेकिन फिर भी बहुत से अधर में लटकते रहते हैं. जिनकी वैल्यूएशन वैसे ही डांवाडोल रहती है, जैसे क्रिप्टोकरंसियां और पिकासो की पेंटिंग्स. यूनिकॉर्न बाहर निकल जाते हैं, त्रिशंकु वहीं अटके रह जाते हैं.
यूरोपीय कॉमिक्स से अब हम हिंदू माइथोलॉजी की तरफ बढ़ते हैं. यहां स्वर्ग के मार्ग में लटके राजा त्रिशंकु का पौराणिक संदर्भ लिया जा सकता है. दांव लगाने और यूनिकॉर्न बनाने की प्रक्रिया में क्या बिखरा और टूटा पड़ा है- इसे 21वीं शताब्दी की महाभारत के अंतिम दृश्यों में देखा जा सकता है. शायद दुर्योधन की तरह अश्नीर ग्रोवर. अशिष्टताएं, अस्थिरता और तबाह हुए सपने. क्या युधिष्ठिर इस विनाशकारी जीत का जश्न मना रहे हैं.
कथा-कहानियों को छोड़िए. इस ओपेरा में नाइका और पेटीएम की तरफ नजर फेरिए. नाइका को उसके 1,125 रुपए प्रति शेयर के आईपीओ के लगभग 80% प्रीमियम पर लिस्ट किया गया था, और इस तरह पहली बार में इसकी कीमत 13 बिलियन डॉलर के करीब थी. यह अभी भी उस स्तर पर कायम है.
इससे अलग, मोबाइल वेलेट्स में चहेता पेटीएम (वन97 कम्यूनिकेशंस) को याद कीजिए. इसे राष्ट्रीय तवज्जो तब मिली जब प्रधानमंत्री ने 2016 में हाई वैल्यू करंसी नोटों का एक झटके में डीवैल्यूएशन कर दिया. पिछले साल पेटीएम 2,150 रुपए प्रति शेयर की कीमत पर 9% छूट के साथ बाजार में दाखिल हुआ और तब से 1,000 रुपए के स्तर तक गिर चुका है- यह उसके आईपीओ की कीमत के आधे से भी कम है जिसका वैल्यूएशन 20 बिलियन डॉलर किया गया था (मैं बताना चाहूंगा कि जब इसके शेयर गिरे तो मैंने मुट्ठी भर की खरीद की. अगर मैंने गलती की है तो मैं इनवेस्टर वॉरन बफेट को याद कर लूंगा).
पेटीएम की गिरावट पर एक हेडलाइन थी, “मार्केट ही बादशाह होता है.”
लेकिन गहरी बात यह है कि किस तरह वेंचर कैपिटलिस्ट्स अपने खुद के फायदे के लिए यूनिकॉर्न वैल्यूएशन का इस्तेमाल करते हैं. हाई वैल्यूएशन से स्टार्टअप के कर्मचारी ज्यादा से ज्यादा मेहनत करते हैं. चूंकि वैल्यूएशन सिर्फ पेपर पर लिखे नंबर होते हैं और यह नंबर तभी बरकरार रहते हैं जब राजस्व और/या मुनाफा वेंचर कैपिटलिस्ट के हाइप से मेल खाए. लेकिन जब यह शोर शराबा थमता है तो हाथ खून से और जमीन धूल से सने होते हैं.
कई साल पहले एक मीडिया स्टार्टअप ने वैल्यूएशन के खेल की तुलना "रूसी गुड़िया पोंजी" से करते हुए एक दिलचस्प स्टोरी चलाई थी. मैंने सेंट पीटर्सबर्ग से खुद इन गुड़ियों को खरीदा था. ये रंगीन गुड़ियां अपने भीतर छोटी गुड़ियों को एक-एक करके छिपाए रखती हैं. मुझे यह तुलना बहुत पसंद आई थी.
लंबी नहीं, छोटी कहानी यह है कि वेंचर कैपिटलिस्ट फंड के हाई वैल्यूएशन वैसे ही हैं, जैसे बड़ी गुड़ियों ने छोटी गुड़ियों को अपने भीतर छिपाया हुआ है. हाई वैल्यूएशन को देखकर इन स्टार्टअप्स में लोग निवेश करते हैं, और वेंचर कैपिटलिस्ट्स का इनीशियल कैपिटल रिकवर होता है और उसका जोखिम कम हो जाता है.
आखिरकार, यह उसकी किस्मत या गुस्ताखियों से तय होता है. आप नाइका हो सकते हैं या पेटीएम- या छोटे वेंचर्स की तरह मात खा सकते हैं.
पुरानी शैली की कमाई और मुनाफे का इस खेल से दूर-दूर तक वास्ता नहीं. लेकिन वेंचर कैपिटलिस्ट इससे निकल जाते हैं क्योंकि वे भविष्य की हाई टेक कंपनियां बना रहे होते हैं. या वे ऐसा दावा करते हैं. लेकिन जैसा कि हमने फ्लिपकार्ट और पेटीएम के मामले में देखा है. ये हाई टेक इनवेंशंस कम, और 140 करोड़ की आबादी वाले मार्केट के युवा उपभोक्ताओं की उम्मीदों पर दांव लगाने वाली कंपनियां ज्यादा हैं.
तो फिर इनकी इतनी ऊंची कीमत क्यों लगाई जानी चाहिए? इसका जवाब तलाशना मुश्किल है. पिकासों का आर्ट और स्टार्टअप का वैल्यूएशन एक सरीखा है. आर्ट की डील हो या डील का आर्ट हो, वह कैसा किया जाएगा, इसे ज्यूरी ही तय करेगा.
कोई स्टार्टअप एस्ट्रिक्स की तरह रोमन साम्राज्य को टक्कर दे सकता है या टिनटिन की तरह काल्पनिक यूनिकॉर्न की तलाश कर सकता है, और यह उसके पूरे विवरण पर निर्भर करता है, और यह ‘मार्केट के मूड’ के भरोसे है.
(लेखक सीनियर पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @madversity है. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 23 Jan 2022,06:37 PM IST