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देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इच्छा जाहिर की थी कि अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां देश की सभी नदियों और पहाड़ों पर छिड़क दी जायें, ताकि वो इनके बहाने जिन्दा रहें. ये वो दौर था जब सूचनाओं की गति इतनी तेज न थी, अखबार और रेडियो ही एकमात्र माध्यम थे. फिर भी, पुराने लोगों को आज भी ये याद है.
पता नहीं, अटल जी ने अपनी अस्थियों को लेकर ऐसी कोई इच्छा जाहिर की थी या नहीं, लेकिन बीजेपी इसे लेकर ज्यादा संजीदा है. शायद ये पहली बार होगा जब किसी नेता की अस्थियां इतनी जगह विसर्जित की जायेंगी.
जिस तरह से श्रद्धांजलि सभाएं, अस्थि विसर्जन और उनके नाम पर नयी-नयी योजनाओं की घोषणाओं की तैयारियां चल रही हैं, उनसे एक बात तो साफ है कि बीजेपी इस अस्थि विसर्जन को एक मेगा इवेंट बनाने जा रही है, जिसमें उसे महारथ भी हासिल है. चूंकि, सामने 2019 का चुनाव है, इसलिए वह चूकना भी नहीं चाहती.
यूपी में रहने वाले भी कम ही लोगों को मालूम होगा कि यहां इतनी नदियां बहती हैं. लेकिन योगी सरकार ने लिस्ट तैयार की है, प्रदेश के कुल 75 जिलों में गंगा से लेकर हिंडन तक 42 नदियां हैं. सोनभद्र की कान्हा हो या फिर बस्ती की मनोरमा नदी, तकरीबन 18 ऐसी नदियां हैं जो सिर्फ एक ही जिले तक सीमित हैं.
थोड़ा अजीब तो लग रहा है लेकिन मामला वाजपेयी जी का है, जो नदियों की दशा को लेकर चिन्तित रहते थे. सभी नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में सोच रहे थे ताकि उनका अस्तित्व बचा रहे. पर ये समझ से परे है कि आखिर एक ही नदी में कई बार विसर्जन का क्या मतलब है?
यहां मामला राजनीति का है, जहां राज पाने के लिए धर्म और कर्म की हर वो नीति अपनायी जाती है जिनमें सिर्फ मुनाफा ही नजर आये. ऐसे में बीजेपी अगर गंगा में 9, यमुना में 18,गोमती में 12, घाघरा में 13, हिंडन में तीन, यानि 42 नदियों में 145 बार अस्थि विसर्जन करती है तो कोई हैरानी की बात नहीं है.
हालिया उपचुनावों में हार के बाद डैमेज कंट्रोल के लिए बीजेपी की ओर से खेला जा रहा हर दांव उल्टा पड़ रहा है. एससी-एसटी एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ खड़ा होना ज्यादा ही नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि इस फैसले से दलितों के नजदीक आने की उम्मीद तो कम है, हां सवर्ण जरूर नाराज होने लगे हैं.
यही नहीं, पिछड़ी जातियों की गणित भी गड़बड़ा रही है. ऐसे बुरे वक्त में वाजपेयी की अस्थियों को बीजेपी चुनावी भभूत के रूप में देख रही है. कम से कम वाजपेयी जी का ब्रह्मण चेहरा सामने लाकर सवर्णों को दूर जाने के रोकने की कोशिश तो हो ही सकती है.
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दूसरी तरफ इस बार 2014 वाली बात नही है. मोदी की सुनामी गंगा में बाढ़ के बाद लगातार कम होते जल की तरह दिख रही है. वहीं बीजेपी के खिलाफ सभी पार्टियां एक साथ मिलकर ताल ठोकने की रणनीति बना रही हैं. गोरखपुर से कैराना तक उपचुनावों में गठबंधन का ट्रेलर सबने देखा है.
एसपी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया का कहना है कि वाजपेयी जी ऐसे नेता थे जिनका विपक्ष भी सम्मान करता था लेकिन आज की बीजेपी सिर्फ पैकेजिंग और मार्केटिंग का बिजनेस कर रही है. अपने नेता की अस्थियों के बदले वोट की राजनीति में जुट गयी है. वाजपेयी जी की मौत को कितना ज्यादा से ज्यादा बेचा जा सकता है, उसका हर फार्मूला तलाशा जा रहा है.
बीजेपी वाजपेयी से जुड़ी हर वो चीज इस्तेमाल करने की तैयारी में लगी है जिससे उसका थोड़ा भी फायदा हो सकता है. अस्थि विसर्जन के कार्यक्रम को वृहद और प्रभावी बनाने के लिए सूबे के मंत्रियों और पदाधिकारियों की जिम्मेदारी सौंपी गयी है.
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Published: 22 Aug 2018,02:38 PM IST