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बालाकोट एरियल स्ट्राइक के दो साल पूरे होने के एक दिन पहले भारत और पाकिस्तान के मिलिट्री ऑपरेशंस के डायरेक्टर जनरल्स ने एक संयुक्त बयान जारी किया है और कहा है कि दोनों देश ‘नियंत्रण रेखा (एलओसी) और दूसरे सेक्टर्स में सभी समझौतों और युद्ध विराम का पालन करेंगे.’ यह समझौता 24/25 फरवरी की रात से लागू हुआ है.
जम्मू और कश्मीर में एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) पर युद्ध विराम बहुत महत्वपूर्ण है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. इससे दोनों देशों के उन लोगों को राहत मिलेगी जोकि एलओसी और आईबी के आस-पास रहते हैं.
अब इस बयान को लेकर एक समझ यह है कि मोदी सरकार सितंबर 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के प्रति अपने सख्त रवैये से कुछ नरम पड़ रही है. वह सख्त रवैया जोकि 14 फरवरी, 2016 को पुलवामा आतंकी हमले के बाद और कड़ा हो गया था, जैसा कि बालाकोट एरियल स्ट्राइक में भी नजर आया था.
बयान के अलावा पाकिस्तान के नेशनल सिक्योरिटी डिविजन के चीफ मोइद यूसुफ ने जो खुशी जाहिर की है, वह कुछ गर्व से भरी है. उन्होंने संयुक्त बयान को पाकिस्तान की ‘बड़ी जीत’ बताया है. वैसे मोइद को हम भारत के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल का काउंटरपार्ट नहीं कह सकते. लेकिन व्यावहारिक तौर से ऐसा माना जा सकता है.
डीजीएमओ के बयान में एक वाक्य है जोकि पाकिस्तान के लिए मोदी की नरमी की आशंका को दर्शाता है. यह इस तरह है- ‘सीमा पर पारस्परिक रूप से लाभदायक और स्थायी शांति हासिल करने के हित में दोनों डीजीएमओ इस बात पर सहमत हुए हैं कि एक दूसरे के अहम मुद्दों और चिंताओं को हल करेंगे जो शांति को भंग और हिंसा को भड़का सकती हैं.’ इस वाक्य में ‘अहम मुद्दों’ खास है.
पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर विवाद के सिलसिले में हमेशा इन शब्दों का इस्तेमाल किया है. वह सालों से यह कहता रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू और कश्मीर ही अहम मुद्दा है. जम्मू और कश्मीर के लिए तो यह कोड वर्ड बन गया है. पाकिस्तानी मामलों के भारतीय राजनयिक इस कोड वर्ड को बखूबी जानते हैं. भारत में पाकिस्तानी मामलों के विशेषज्ञों को भी इन शब्दों के मायने समझने चाहिए.
इस तरह संयुक्त बयान में इन शब्दों को शामिल करना, भारत के नजरिए से एकदम अलग है. इसके पहले के शब्द, ‘सीमा पर पारस्परिक रूप से लाभदायक और स्थायी शांति हासिल करने के हित में’ और ‘एक दूसरे’ में रियायत का कोई स्पष्ट कारण नहीं पता चलता. तो, पाकिस्तान घुसपैठ और आतंकवाद को खत्म करे, भारत की इस चिंता को जाहिर करने के लिए दूसरे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, या यूं कहें कि दूसरे शब्दों का इस्तेमाल करना जरूरी था.
मोइद यूसुफ की टिप्पणियों और साफ तौर से भारतीय इस्टैबलिशमेंट के जरिए लीक हुए एकाउंट के बाद यह संयुक्त बयान सामने आया है. यूसुफ ने पाकिस्तान के कुछ पत्रकारों को बताया था कि संयुक्त बयान परदे के पीछे पाकिस्तानी कोशिशों का नतीजा है. हालांकि बाद में उन्होंने ट्विट करके इस बात का खंडन कर दिया.
एक शीर्ष भारतीय पत्रकार के एकाउंट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परदे के पीछे डोवाल और यूसुफ एक दूसरे से सीधे और बिचौलियों के जरिए बातचीत कर रहे हैं. वे एक दूसरे के सीधे संपर्क में भी हैं. इससे यह भी पता चलता है कि संयुक्त बयान दो सेनाओं नहीं, दो सरकारों की बातचीत का नतीजा है. इसलिए इसका अर्थ सिर्फ दो सेनाओं के लिहाज से मायने नहीं रखता. बल्कि द्विपक्षीय संबंधों से ताल्लुक रखता है.
यह सब तब हुआ है जब देश बालाकोट एरियल स्ट्राइक की दूसरी वर्षगांठ मना रहा है. बालाकोट हमले को भारत का निर्णायक कदम माना जाता है जो उसने पाकिस्तानी आतंक को काबू में करने के लिए उठाया था. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाक नीति के लिहाज से मील का एक पत्थर भी है.
बालाकोट हमले के बाद से भारत इस बात पर जोर देता रहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंक फैलाना नहीं छोड़ेगा, द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी. ऐसी उम्मीद नहीं है, कि मोदी सरकार अपना रुख बदलेगी. बेशक अगर ऐसा किया गया तो यह गलत होगा, खासकर बालाकोट हमले के बाद निवारक हमले यानी ‘प्रि-एम्पशन’ के सिद्धांत के बाद.
इसीलिए सरकार को यह साफ करना चाहिए कि वह बालाकोट हमले के बाद अपने परंपरागत रुख में बदलाव पर कायम है. इस मसले पर भारत के परंपरागत दृष्टिकोण में बदलाव, और मोदी के हाल के बदलावों पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
भारत का परंपरागत नजरिया यह था कि पाकिस्तान के आतंकी हमले के बाद द्विपक्षीय संवाद को खत्म कर दिया जाए. इस बात पर जोर दिया जाए कि जब तक पाकिस्तान आतंक का दामन नहीं छोड़ेगा तब तक कोई बातचीत नहीं होगी. हालांकि पहले की सरकारों, और शुरुआत में मोदी ने भी इस सिद्धांत का पूरी तरह पालन नहीं किया.
दोनों देश जब एक दूसरे की तरफ पीठ किए बैठे थे, तब भी बातचीत की पहल की गई. 2008 में मुंबई आतंकी हमले के बाद भी. दिसंबर 2015 में मोदी नवाज शरीफ से मिलने लाहौर तक पहुंच गए, और जनवरी 2016 में पठानकोट हमले के बाद भी इस रिश्ते को निभाने की कोशिश की गई. यहां तक कि पठानकोट एयरबेस में एक आईएसआई अधिकारी सहित पाकिस्तानी जांच एजेंसी को जाने की मंजूरी तक दी गई.
हां, सितंबर 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद पहली बार मोदी की सोच में बदलाव आया. उन्होंने द्विपक्षीय संबंध को कायम रखने के विचार को किनारे रखा और उसकी बजाय सर्जिकल स्ट्राइक का सहारा लिया.
बालाकोट के बाद पाकिस्तान ने जो प्रतिक्रिया दी, उससे साफ था कि भारत उसके आतंकी हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा. न ही वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के इस अनुरोध को मानेगा कि उसे धैर्य धरना चाहिए. भारत ने संकेत दिया कि अगर परमाणु हथियारों से लैस दो देशों के बीच गतिरोध बढ़ता है तो इसके लिए भारत नहीं, पाकिस्तान का आतंकवादी रवैया जिम्मेदार होगा. इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह जरूरी है कि वह पाकिस्तान पर आतंकवाद बंद करने का दबाव बनाए.
तत्कालीन विदेश सचिव विजय गोखले के शब्दों पर उस समय ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. उन्होंने कहा था कि अगर भारत को पाकिस्तान की तरफ से किसी बड़े आतंकी हमले की तैयारी की जानकारी मिलती है तो उसे भी अपने हितों की रक्षा के लिए बड़ा कदम उठाने का हक है.
भारत ने साफ कर दिया था कि वह प्रि-एमप्शन की पॉलिसी का इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में भारत की जनता स्वाभाविक रूप से मोदी सरकार से यह अपेक्षा करेगी कि वह उस सिद्धांत के अनुरूप कदम उठाए.
बालाकोट हमले और मोदी की नीतियों से अब तक यही महसूस होता रहा है कि भारत अब अपने पहले के रवैये से तंग आ चुका है. 1990 से लेकर 2016 तक हमारा रवैया यही था- ‘बातचीत-आतंकी हमला-बातचीत में रुकावट-विराम काल-फिर से बातचीत’. बालाकोट ने इस चक्र को रोक दिया. इसके साथ मोदी की वह उम्मीद भी खत्म हुई कि पाकिस्तान भारत के प्रति अपनी दुश्मनी को भुला देगा. 2014 में अपने शपथ ग्रहण में नवाज शरीफ को बुलाने और फिर लाहौर यात्रा से लगता था कि पहले के प्रधानमंत्रियों की ही तरह वह भी ऐसी ही उम्मीद जगाए बैठे थे.
अब क्या मोदी की वह उम्मीद फिर से जागी है? पाकिस्तान के आतंकी रुख और उससे संवाद पर नया रुख क्या है? भारत की जनता को आश्वस्त करने के लिए यह स्पष्ट करना जरूरी है.
(लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पश्चिम) रह चुके हैं. वह @VivekKatju पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विट न इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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