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उक्त दोनों बातें बिहार के सीएम और डिप्टी सीएम की ओर से ऐसे मौके पर आ रही हैं, जब छपरा जिले के मशरक थाना क्षेत्र में जहरीली शराब की जद में आकर मरने वालों की संख्या 60 से भी अधिक हो चुकी है, जिसके अभी और बढ़ने के आसार हैं. सूबे के मुखिया अभी ठीक और बे-ठीक के बीच झूल रहे हैं, तो नेता प्रतिपक्ष रहते हुए शराबबंदी पर हमलावर तेजस्वी यादव अब बिहार की गुजरात से तुलना कर रहे हैं, लेकिन इस जिम्मेदारी को लेने से दोनों ही जन कतरा रहे हैं कि जब सूबे में 'शराबबंदी' लागू है तो फिर जहरीली शराब की जद में आकर लोग मर कैसे रहे?
क्या इन त्रासद मौतों को नरसंहार न कहा जाए? क्या सूबे में होने वाली मौतें सरकार की जिद और आगे बढ़ते हुए सनक का नतीजा नहीं? क्या सरकार हत्यारी नहीं? क्या सिर्फ स्थानीय थानेदार और चौकीदार की बर्खास्तगी भर से शराब का सिंडिकेट टूटेगा? तिस पर से उनका ऐसा कहना कि जो पिएगा, वो मरेगा- को असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा न कहें तो फिर क्या कहें? इसके साथ ही इस बात को भी समझने की जरूरत है कि आखिर शराबबंदी वाले राज्य में जहरीली शराब आ कहां से रही? कौन निर्माता है और कौन उपभोक्ता? जेबें किसकी भर रहीं और जान किसकी जा रही?
अब इस बात को तो राज्य के लगभग सभी जानते हैं कि शराबबंदी के बावजूद लोगों को जहां-तहां शराब मिल जा रही. आबकारी विभाग रोज छापेमारियां करता रहता है. छिटपुट धर-पकड़ भी होती है लेकिन वो नाकाफी साबित हो रही है. होम डिलीवरी जैसे टर्म यहां आमफ़हम शब्द बन गए हैं. शराबबंदी के बरक्स शराब सप्लाई का समानांतर नेटवर्क खड़ा हो गया है सो अलग. सूबे में शराबबंदी के बावजूद लोगों द्वारा शराब के सेवन और उससे जुड़ते अपराध पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना केन्द्र के पूर्व चेयरपर्सन प्रोफेसर पुष्पेन्द्र सिंह क्विंट से बातचीत में कहते हैं
शराब और उससे जुड़ते अपराध के सिंडिकेट पर वे आगे कहते हैं, "जब किसी एक चीज को आप बुराई मानते हुए दबाने की कोशिश करते हैं, तो समाज और राज्य में नए तरह के निहित स्वार्थ पैदा होते हैं. बिहार में भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ है. चूंकि राज्य ने शराब को खुले में बेचना और पीना क्रिमिनलाइज कर दिया तो एक नए तरह का नेटवर्क तैयार हो गया है. कोई शराब बना रहा है तो कोई पहुंचा रहा है, और पकड़ में आने पर सारे लोग अपराधी हो जाएंगे, और यह नहीं कहा जा सकता कि एक अच्छा है और दूसरा बुरा. इसके अलावा नीतीश जी को ये सोचना बंद करना चाहिए कि शराबबंदी कर दिए तो कहीं शराब मिलेगी ही नहीं? कोई पिएगा ही नहीं?"
शराबबंदी के बावजूद जहां-तहां जहरीली शराब की जद में आकर मरने वालों के सवाल पर सूबे का विपक्ष जरूर हमलावर है. मशरक के शराबकांड को वे नरसंहार करार दे रहे. बीते रोज इसी मसले विपक्ष ने विधानसभा से राजभवन तक मार्च भी निकाला. राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने के बाद राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा, "सरकार इस मामले को लेकर बेहद असंवेदनशील है. यह तो नरसंहार है. जब जनसंख्या नियंत्रण जैसे सवालों पर सीएम जन जागरण की बात करते हैं तो शराबबंदी या नशाबंदी के लिए कोई अभियान क्यों नहीं चला रहे?
वहीं बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने सीएम नीतीश कुमार के बयान- जो पिएगा, वो मरेगा को बेहद असंवेदनशील करार देते हुए नैतिकता के आधार पर इस्तीफा तक मांग लिया. उन्होंने बीते रोज विधानसभा परिसर में प्रेस को ब्रीफ करते हुए कहा, "सरकार मौतों के आंकड़े छिपा रही है. इस पूरे शराबकांड में तो स्थानीय थाना के ही संलिप्तता की बात सामने आ रही कि थाने से जब्त स्प्रिट से बनी जहरीली शराब ही सैकड़ों जिदगियों को लील गई. सरकार इस जिम्मेदारी से पीछे नहीं भाग सकती. गृह विभाग भी मुख्यमंत्री के ही जिम्मे है."
सुविधाजनक चुप्पी और हाल के दिनों में हमलावर विपक्ष के इतर सीएम के स्टेटमेंट- 'पिएगा तो मरेगा ही' पर सरकार में शामिल भाकपा (माले) के राज्य सचिव कुणाल क्विंट से बातचीत में कहते हैं, हमलोग इस तरह के बयान को उचित नहीं मानते. मशरक का शराबकांड बहुत बड़ा हादसा है. यह बहुत बड़ा अपराध है. नरसंहार है. इस पूरे मामले को देखने के लिए हमारे दल की टीम भी मौके पर गई थी. हमारी टीम का भी यह कहना है कि इस हादसे में मारे गए तमाम लोग बेहद गरीबी में गुजर-बसर करते हैं. परिवार उजड़ गए. हमने तो इस पूरे मामले में मांग की है कि लोगों को मुआवजा मिले."
तो वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता आनंद माधव हालिया शराबकांड और उसके बाद सीएम की ओर से की जा रही बयानबाजी पर क्विंट से बातचीत में कहा, "मौत चाहे जैसे भी हो तो हमारी संवेदनाएं उनके साथ हैं लेकिन पूरे प्रकरण को देखते हुए हम पाते हैं कि जहरीली शराब की चपेट में आकर तो उन राज्यों में भी लोग मरे हैं. जहां शराबबंदी नहीं है. लोग फिर भी देसी दारू पीने का जोखिम उठा रहे हैं और कई बार मामला गड़बड़ा जाता है. हमारी पार्टी का यही कहना है कि शराबबंदी को लागू करने में और मजबूती की आवश्यकता है. उसके साथ ही सामाजिक जागरूकता की जिम्मेवारी हमारी भी बनती है."
सूबे के भीतर लागू शराबबंदी के कानून और सीएम नीतीश कुमार की बयानबाजी पर राजनीतिक विश्लेषक महेन्द्र सुमन क्विंट से बातचीत में कहते हैं,
अंत में 'सुशासन बाबू' से यही पूछना है कि जब आप शराबबंदी के नाम पर पूरे प्रदेश में वोट बटोरने की कोशिशें करते नहीं थकते तो जहरीली शराब से होने वाली मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या राज्य शक्ति यह कहकर पल्ला झाड़ सकती है कि फलां चीज वैध है और अवैध, तो लोग खुद ही समझ लें? क्या लोगों के जान की हिफाजत करना उनकी जिम्मेदारी नहीं?
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