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Bilkis Bano: माफी में कोर्ट के नजरिए का ख्याल रखा गया? सरकार को साफ करना चाहिए

जस्टिस गोविंद माथुर लिखते हैं कि क्यों बिलकिस बानो केस में गुनहगारों को माफ करना विचित्र और दुखद है.

जस्टिस गोविंद माथुर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Bilkis Bano: माफी में कोर्ट के नजरिए का ख्याल रखा गया? सरकार को साफ करना चाहिए</p></div>
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Bilkis Bano: माफी में कोर्ट के नजरिए का ख्याल रखा गया? सरकार को साफ करना चाहिए

फोटो- पीटीआई

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माफीनामा नीति के तहत गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप (Bilkis Bano Gangrape) और 7 लोगों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा पाए 11 दोषियों को रिहा कर दिया है.

बिलकिस बानो का मामला भारतीय इतिहास के दर्दनाक अध्यायों में से एक है. साल 2002 में गुजरात में दंगाइयों से बचने के लिए जब 5 महीने की गर्भवती बिलकिस बानो छिपने की कोशिश कर रही थी, तब उनके साथ रेप किया गया. दंगाइयों से बचने के लिए बिलकिस के साथ 17 लोग छिपकर जान बचाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सभी मारे गए. सिर्फ बिलकिस बानो ही उनमें जिंदा बच पाई थी.

यह सच में बहुत अजीब और दुखद है कि गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को सरकार ने माफी देने का विकल्प चुना. माफीनामा सामान्य तौर पर इस तरह के गुनाहों में नहीं दी जाती है.

निष्पक्षता और बिना सेलेक्टिव हुए माफीनामा देना मानव अधिकार का हिस्सा है लेकिन यहां मामला अलग था और दरिंदगी सामने थी.

अब तक हम लोग क्या जानते हैं?

गुजरात सरकार के अनुसार सभी 11 व्यक्तियों ने 15 साल की सजा पूरी कर ली है और इसलिए वे रियायत के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं. भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 432 के तहत इस मामले में गुजरात सरकार को किसी अपराधी की सजा में छूट देने का कानूनी अधिकार मिला हुआ है.

हालांकि, छूट के लिए मामलों को देखते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना चाहिए. इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं-

  • अपराध किस तरह का है और इसका समाज पर कैसा असर है?

  • अपराध फिर से करने की आशंका और सजायाफ्ता अपराधी का फिर से आपराधिक गतिविधि में शामिल होने की आशंका है या नहीं.

  • ऐसे अपराधियों को जेल के भीतर रखे जाने के पीछे का मकसद

इन पहलुओं के अलावा सरकार से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे पीड़ितों के परिवार और समाज पर फैसले की प्रतिक्रिया और उससे स्थापित मिसाल को ध्यान में रखे. जो कमिटी सरकार को रियायत देने या नहीं देने की सिफारिश करती है, उसमें प्रशासन और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं. सजा में छूट देने की सिफारिश करने से पहले कमिटी को ऊपर बताए गए सभी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए.

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस मामले में कमिटी को अदालत की पीठासीन अधिकारी की राय को भी ध्यान में रखना था, जिन्होंने उन 11 दोषियों की सजा को रिकॉर्ड किया था. यह भारतीय दंड संहिता सेक्शन 432(2) के सबसेक्शन के तहत कानूनी तौर पर जरूरी है. इन दो धाराओं के तहत ही किसी अपराधी को सजा से छूट का प्रावधान किया गया है.

यूनियन ऑफ इंडिया यानि भारत सरकार बनाम श्रीहरण केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्शन 432(2) के तहत जो प्रावधान है वो एक दम अनिवार्य है और किसी को सजा में माफी देने के फैसले में उस कोर्ट के प्रीजाइडिंग ऑफिसर की राय को जरूर ध्यान में रखना चाहिए.

पीठासीन जज की राय लेना बहुत जरूरी है क्योंकि यह ही सरकार को सही फैसला लेने में मदद करेगा कि क्या सजा से छूट मिलनी चाहिए या नहीं.

गुजरात के मामले में क्या इन सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है या नहीं यह अभी तक साफ नहीं है. कुछ अपुष्ट और गैर आधिकारिक स्रोतों से जानकारी मिल रही है कि जिस पीठासीन अधिकारी ने सजा को रिकॉर्ड किया था उनसे कोई राय नहीं ली गई है.

अगर यह सही है तो सरकार को अपना रुख निश्चित तौर पर साफ करना चाहिए कि क्या सेक्शन 432 (2) का इस फैसले में पालन हुआ है या नहीं.

अगर प्रावधानों का पालन किया भी गया है तब भी यह उचित होगा कि प्रीजाइडिंग ऑफिसर यानि पीठासीन अधिकारी की राय को पब्लिक डोमेन यानि सबके सामने लाया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक कानूनी राय है. यह वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी की सलाह होती है, जिन्हें इसके सभी पक्षों पर विचार विमर्श करके ही कोई राय देनी होती है.

इसलिए, अगर कोर्ट ने माफी देने के बारे में अपनी राय रखी तो लोगों को यह जानने का अधिकार है कि आखिर किन वजहों से और क्या हालात रहे जो ऐसे फैसले किए गए हैं. अगर कोर्ट ने निगेटिव राय दी है तो असहमति के पीछे का तर्क क्या है वो भी जानना जरूरी है, और यह जरूरी है कि सरकार ने दोनों ही पक्षों का रिकॉर्ड रखा होगा और इसे सामने लाया जाना चाहिए. यह इसलिए भी जरूरी है कि देश की जनता संतुष्ट हो सके कि माफी का जो फैसला लिया गया है वो निष्पक्ष है और सेलेक्टिव नहीं है.

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क्यों गुजरात सरकार का तथ्यों को बताना जरूरी है

दरअसल जिस संदेहास्पद हालात में ये छूट दी गई है ऐसे में यह सही होगा कि गुजरात सरकार इससे जुड़े सभी तथ्यों को सामने लाए . सजायाफ्ता अपराधियों ने जो आवेदन दिए हैं उनकी पूरी प्रक्रिया के बारे में जनता को बताया जाना चाहिए.

कानून के शासन में जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए सरकार को ऐसा फैसला लेने के बारे में सभी वजहों का खुलासा करना चाहिए. आखिर वो कैसे देखते हैं इनको..क्या ये फिर से अपराधी नहीं होंगे या फिर इनके अपराध करने की भविष्य में कोई आशंका नहीं है और पीड़ितों पर इसका क्या असर होगा ..साथ ही इससे क्या मिसाल बनेगा?

इसके अलावा यहां यह भी प्रासंगिक है कि गुजरात सरकार ने दोषियों को छूट देते समय कहा कि पीड़ितों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाए. इससे यह पता चलता है कि सरकार के मन में खुद भी दोषियों की रिहाई के बाद पीड़ितों की सुरक्षा को लेकर संदेह है.

सुधार के लिए माफी जरूरी, लेकिन ...

आपराधिक न्याय प्रणाली में मुजरिमों में सुधार के लिए कई बार माफीनामा इसका एक जरूरी पहलू है. यह उन अपराधियों के लिए है, जिन्होंने कभी आपराधिक हरकतें की लेकिन जेल की सजा काटते वक्त अपना व्यवहार संतोषजनक स्तर तक सुधारा.

हत्या समेत बहुत से मामलों में सजा से माफी जरूरी है और लेकिन फिर भी उन अपराधियों के लिए रियायत का प्रावधान नहीं किया जा सकता, जिनके गुनाह का असर समाज पर पड़े और वो भयानक हो. बलात्कार एक ऐसा ही अपराध है.

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