गुजरात 2002 दंगों (Gujrat Riots 2002) के दौरान बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के साथ जिन 11 दोषियों ने गैंगरेप किया था, उन्हें गुजरात सरकार की ओर से 2022 में रिहा कर दिया गया था. इन सभी दोषियों को गुजरात सरकार (Gujrat Government) की स्वतंत्रता दिवस पर माफी योजना के तहत रिहाई मिली थी. जेल के बाहर दोषियों का फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया गया था. इस रिहाई को चुनौती देने के लिए बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट ने इस रिहाई को रद्द कर दिया.
बिलकिस बानो के साथ क्या हुआ था ?
27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस को आग के हवाले कर दिया गया. जिसमें 59 कारसेवक जिंदा जल गए. इसके बाद पूरे गुजरात में ये आग धधकने लगी और राज्य दंगों की जद में आ गया. इसी के बाद 3 मार्च 2002 को दाहोद जिले से बिलकिस बानो का परिवार सुरक्षित जगह की तलाश में एक ट्रक में सवार होकर निकला था. लेकिन राधिकापुर में उस ट्रक को घेर लिया गया.
इसमें सवार 14 लोगों को मिनटों में मौत के घाट उतार दिया गया. जिसमें बिलकिस बानो के परिवार वाले भी शामिल थे. इसी ट्रक में बिलकिस बानो भी सवार थीं. उस वक्त उनकी उम्र 21 साल थी और वो पांच महीने की गर्भवती थीं. इसके अलावा उनकी गोद में करीब 3 साल की बेटी भी थी.
गोधरा का बदला लेने और धर्म रक्षा के नाम पर भीड़ ने बिलकिस की 3 साल की बेटी को उनके सामने ही पटक-पटक कर मार डाला. इसके बाद बिलकिस बानो का एक के बाद एक 11 लोगों ने गैंगरेप किया और उसे मरा समझकर छोड़ गए.
उन्होंने वारदात के बाद बताया था कि,
जब मुझे होश आया तो मैं लाशों के बीच पड़ी थी. मैं एकदम नंगी थी. मेरे चारों तरफ परिवार के लोगों की लाशें बिखरी पड़ी थीं. पहले तो मैं डर गई. मैंने चारों तरफ देखा. मैं कोई कपड़ा खोज रही थी ताकि कुछ पहन सकूं. आखिर में मुझे अपना पेटीकोट मिल गया. मैंने उसी से अपना बदन ढका और पास के पहाड़ों में जाकर छुप गई.
बिलकिस बानो: रिपोर्ट लिखवाने के लिए दर-दर भटकती रहीं
बिलकिस बानो भले ही पढ़ी लिखी नहीं थीं लेकिन बहुत हिम्मती थीं. वारदात के बाद शिकायत लेकर वो स्थानीय पुलिस स्टेशन गईं लेकिन वहां पुलिस ने एफआईआर लिखने में आनाकानी की. जैसे-तैसे मामला दर्ज हुआ तो पुलिस ने मजिस्ट्रेट के सामने कह दिया कि, बिलकिस बानो के बयानों में फर्क है. जिसके बाद मजिस्ट्रेट ने केस बंद कर दिया.
लेकिन बिलकिस बानो ने हार नहीं मानी. इसके बाद वो मानव अधिकार आयोग के पास पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट में केस भी फाइल किया. जिसके बाद सर्वोच्च अदालत ने 2003 में मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिये.
केस तो दर्ज हो गया लेकिन अब बिलकिस बानो को जान का खतरा बढ़ गया. रेप सर्वाइवर होने के बावजूद वो खुद अपराधियों की तरह जीवन बिताने को मजबूर हो गईं. खतरे को भांपते हुए उन्होंने अगले दो सालों में 20 घर बदले ताकि किसी को पता ना मिल सके. क्योंकि उनको धमकियां दी जा रही थीं. इसके बाद बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से ट्रांसफर करने की अर्जी डाली.
उनका कहना था कि गुजरात के अधिकारी सही से जांच नहीं कर रहे हैं. इसके बाद 2004 में केस मुंबई ट्रांसफर कर दिया और 2008 में सीबीआई अदालत ने 18 आरोपियों में से 11 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और जिन अधिकारियों और डॉक्टर को सबूतों से छेड़छाड़ का दोषी पाया गया उन्हें जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया. आजीवन कारावास पाने वाले 11 दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील की लेकिन 2017 में हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा.
बिलकिस बानो जिस इंसाफ की तलाश में निकली थीं उन्हें वो कुछ हद तक हासिल हो चुका था. इसके बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया कि बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, एक घर और एक नौकरी दी जाये.
रिहाई के बाद दोषियों का फूलमालाओं से स्वागत
बिलकिस बानो के रेपिस्ट राधेश्याम शाही, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीवभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया के परिवार वालों ने उनका फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया.
जेल से रिहा होने के बाद एक दोषी ने कहा कि, आज हम जेल छूटे तो परिवार वालों में खुशी का माहौल था. जेल में रहने के दौरान हमने असहनीय कष्ट और अपमान सहा है. हमने अपने कई दोस्त और रिश्तेदार खोए हैं.
सभी दोषी एक छोटे से गांव सिंगोर के रहने वाले हैं. एक और दोषी शैलेष भट्ट ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि, हम राजनीति का शिकार हुए हैं.
बिलकिस बानो के पति का डर
रेप के दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल पटेल ने कहा कि,
हमने इस हादसे में अपना सबकुछ गंवा दिया था अब इस फैसले से डर और बढ़ गया है. हमें अभी तक कोई सुरक्षा नहीं मिली है और हम जगहें बदल-बदल कर रह रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने कहा कि, इस फैसले के बारे में हमें ना कोई जानकारी दी गई और ना ही हमसे पूछा गया. इसके अलावा बिलकिस बानो के पति ने कहा कि, हमें मुआवजा जरूर मिला है. लेकिन ना घर दिया गया और ना ही नौकरी.
कलेक्टर की अध्यक्षता वाली टीम ने लिया फैसला
पंचमहल कलेक्टर सुजल मायात्रा की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने इन दोषियों को छोड़ने की सिफारिश सरकार से की थी. कलेक्टर का कहना था कि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा में माफी पर गौर करने को कहा था. जिसके बाद गुजरात सरकार ने एक कमेटी का गठन किया. जिसने सर्वसम्मति से बिलकिस गैंगरेप के दोषियों को छोड़ने का फैसला किया. ये सिफारश फिर सरकार को भेजी गई और सरकार ने सभी 11 दोषियों को रिहा करवा दिया.
किस नियम के तहत हुई रिहाई?
दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने CRPC की धारा 432 और 433 के तहत सजा माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. गुजरात हाईकोर्ट ने ये कहते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया था कि इस बारे में फैसला महाराष्ट्र सरकार कर सकती है.
इसके बाद शाह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उसने अपनी याचिका में कहा कि वो बिना किसी छूट के 15 साल से ज्यादा लंबे समय से जेल में बंद है.
जिसके बाद इसी साल 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार ही कर सकती है.
जिसके बाद गुजरात सरकार ने कलेक्टर की अध्यक्षता में उपरोक्त कमेटी का गठन किया था.
केंद्र ने रिहाई के लिए क्या गाइडलाइंस दी थी
इस साल जून में, 'आजादी का अमृत महोत्सव' के अवसर पर दोषी कैदियों के लिए एक विशेष रिहाई नीति का प्रस्ताव करते हुए, केंद्र ने राज्यों को दिशानिर्देश जारी किए थे. इसमें कहा गया था कि रेप के दोषियों को इस नीति के तहत रिहाई नहीं दी जानी है. लेकिन टेक्निकल रूप से इस मामले में ये नियम लागू नहीं होते क्योंकि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार 1992 की अपनी नीति का पालन करते हुए दोषियों में से एक की माफी याचिका पर विचार किया.
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