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1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की स्थापना हुई, उस समय अंग्रेजी हुकूमत थी .सवर्णों में छटपटाहट थी कि देर सवेर जब भी देश स्वतंत्र हो, पुनः सनातन या काल्पनिक सतयुग के काल में पहुंच सके. अंग्रेज निशाने पर न होकर मुसलमान हुए. भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से मुसलमान को ही निशाने पर रख करके हिन्दुओं में एकता पैदा करने योजना बनाई. अंग्रेज मुट्ठी भर थे और ईसाइयत से कोई विशेष खतरा भी नहीं था और इसलिए सोच समझकर ऐसा शत्रु चुना जो आम हिन्दुओ को समझाने में आसानी हो और कुछ हद तक खतरा भी हो.
हिन्दू राष्ट्र , हिंदुत्व एवं हिन्दू एकता को तभी साधा जा सकता था, जब कोई भय दिखाया जाए . आरएसएस के लिए राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना प्रमुखता नहीं थी, बल्कि धार्मिक एवं सामाजिक सत्ता की प्राप्ति थी. आज भी राजनीतिक संप्रभुता से ज्यादा धार्मिक एवं सामजिक संप्रभुता को महत्व देते हैं. यही कारण था कि वे अंग्रेजों के खिलाफ ना हुए, बल्कि उनका साथ दिया .यह बड़ी दूर की सोच थी कि एक बार धार्मिक और सामाजिक सत्ता मिल जाए तो राजनीतिक सत्ता स्वतः ही हासिल हो जायेगी.
आरएसएस, जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी और संघ के सैकड़ों प्रकोष्ठ किसी भी अभियान की शुरुआत और अंत हिन्दू एकता से करते हैं. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए माध्यम का चुनना भी बहुत जरूरी है. मुस्लिम शासक और उनकी आबादी का खतरा बार-बार दिखा करके हिन्दुओं को इकठ्ठा करने का प्रयास करते रहे. मुस्लिम शासकों को क्रूर आक्रान्ता , लुटेरा बताते रहे. दलितों को भी जोड़ने के लिए राम ने सबरी के बेर खाए को याद दिलाने से कभी चूकते नहीं .भगवान बाल्मीकि को भी दलित बताते रहते हैं.
बाकि धर्म जन्म लेते और मरते रहे, लेकिन हिन्दू धर्म शाश्वत रहा है. हिन्दू धर्म जावा, सुमात्रा , बर्मा, थाईलैंड , श्रीलंका , सिंध तक फैला हुआ था, लेकिन जब से हिन्दू साम्राज्य का पतन हुआ , धर्म भी कमजोर पड़ा .मौर्या काल को हिन्दू साम्राज्य मानते हैं, जबकि इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है.
दशको से झूठ , प्रचार , पाखंड , षड्यंत्र के प्रयास से 2104 में सफल हो गए .देश की एक बड़ी आबादी इनके प्रचार में उलझ गयी. सत्ता में आते ही बड़ी बड़ी बातें की और उनसे होते हुए हिन्दू गौरव, हिन्दू राष्ट्र बताने से चुके नहीं कभी.
इस पर सवाल भी उठाया गया तो एक रटा रटाया जवाब है कि पहले सब ठीक था पर मुसलमान शासकों ने छूआछूत की बीमारी हिन्दू धर्म में पैदा कर दी.यह भी याद दिलाने से नहीं भूलते कि गांधी जी शाखा में गए वहां जात देखा ही नहीं, बल्कि सब हिन्दू ही थे . बात-बात पर जाति के अस्त्तित्व को नकारना और सबको हिन्दू ही कहना सही है.
2014 में सत्ता में आने के लिए जो वायदे किये सब धाराशायी होते गए. काला धन नहीं आया , पंद्रह लाख रुपये लोगों के खाते में जमा नहीं हुए. दो करोड़ रोजगार देने की बात सपना ही रहा . भ्रष्टाचार घटने के बजाय कई गुना बढ़ गया, किसान आंदोलन गले में फांस बन गया .कोरोना महामारी में लाखों लोग दवा अस्पताल, ऑक्सीजन के अभाव में मर गये .
नरेंद्र मोदी जी भले विकास में फिसड्डी हों और कभी सच न बोलें, लेकिन एक अद्भुत विलक्षण प्रतिभा है कि झूठ को सच से ज्यादा ताकतवर तरीके से प्रस्तुत करते हैं. वो जानते हैं की जमीन खिसक गयी है, तभी उन्होंने मंत्री मंडल में 27 पिछड़े नेताओं को स्थान ही नहीं दिया, बल्कि इतना प्रचारित कर दिया की सभी मंत्रियों की जाति लोगों को कंठस्थ हो गयी हैं .स्वयं मीडिया के द्वारा और पार्टी और संघ के माध्यम से रात-दिन प्रचार करना- पाल , बघेल, कुर्मी, पासी या जिनकी जो जातियां है बार-बार बताना.
जो सौ वर्ष तक कहते रहे की सभी हिन्दू हैं,अब सभी जातियों में बंट गए तो हिन्दू कौन बचा ? मेडिकल शिक्षा में आरक्षण का भी प्रचार इसी तर्ज पर शुरू कर दिया है और ऐसा लगता है कि देश में सबकुछ जाति के आधार पर ही शासन-प्रशासन और संशाधन का बंटवारा हो रहा है. कमंडल ने जमीन तैयार किया कि मंडल हिन्दू समाज का बंटवारा कर रहा है. अब खुद ही मंडल का पेटेंट कराने में रात –दिन लग गए हैं. तथाकथित सवर्ण के हाथ सत्ता में रहने के लिए मुसलमान के खिलाफ जहरीला प्रचार करते रहना है .जाति के आधार पर नेता और संगठन खड़ा कर दिए और यही इनका वास्तविक चरित्र है.
जब सत्ता और संसाधन पर कब्जा करना हो ,तो कभी मुसलमान को तो कभी ईसाई को सामने खड़ा करके हिन्दू एकता की आगाज करते हैं. जब सत्ता और संसाधन में दलित और पिछड़े भागीदारी माँगे तो हिन्दू एकता खतरे में और कहते है कि जातिवाद बढ़ रहा है- हिंदुओं को बाटा जा रहा है.
सत्ता कब्जा करने के लिए हिन्दू एकता और जहां दलित -पिछड़ों को उसमे से देना हो तो जातिवाद और एकता खतरे में. 3 दशक में आरएसएस 3 बार मैदान में उतरा, पहला जब वी पी सिंह की सरकार ने मंडल लागू करने की घोषणा की , दूसरा जब अर्जुन सिंह ने पिछड़ों को उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया और तीसरा अन्ना आंदोलन को चलाया. खिसकती सत्ता को देख मंत्री बनाया और उनके जाति का प्रचार ज्यादा किया . वास्तविकता है कि हिन्दू कोई नही है जब जाति में बटे हैं. अपनी सुविधा अनुसार हिन्दू एकता की परिभाषा गढ़ते हैं.
(लेखक पूर्व आईआरएस व पूर्व लोकसभा सदस्य रह चुके है.वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. यह एक ओपिनियन पीस है.यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं और क्विंट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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