advertisement
अब तक, पेगासस (Pegasus) जासूसी कांड पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया थी "पेगासस, यह क्या होता है?" लेकिन फिर सोमवार को सरकार के स्टैंड में नाटकीय परिवर्तन देखने को मिला. CPI(M) के सांसद वी. शिवदासन ने पूछा- "क्या सरकार ने NSO ग्रुप ऑफ टेक्नोलॉजीज (पेगासस स्पाइवेयर बनाने वाली कंपनी) के साथ कोई लेनदेन किया था? इसके जवाब में रक्षा मंत्रालय ने बताया कि "रक्षा मंत्रालय का NSO ग्रुप ऑफ टेक्नोलॉजीज के साथ कोई लेन-देन नहीं हुआ है”
ध्यान दें, सवाल पूछा गया था कि क्या "सरकार" ने कोई लेन-देन किया था, जबकि उत्तर में बताया गया किया कि "रक्षा मंत्रालय" ने कोई लेनदेन नहीं किया था.
कम से कम भी कहें तो मंत्रालय की प्रतिक्रिया अजीब है या यह भी हो सकता है कि (और यह हमेशा संभव है) सवाल का जवाब देने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को नहीं पता था कि NSO ग्रुप ऑफ टेक्नोलॉजीज क्या था और उसने उस बहाने का सहारा नहीं लिया जिसमें सरकार अब तक कह रही थी कि यह मुद्दा कई जनहित याचिकाओं के कारण अदालत में है. आप हमारी नौकरशाही में अज्ञानता और अक्षमता से इंकार न करें.
पेगासस सॉफ्टवेयर की मदद से जासूसी की खबर संसद के मानसून सत्र के शुरू होने से एक दिन पहले आई थी. खुद पेगासस के निशाने पर रहे सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री, अश्विनी वैष्णव, ने सदन में कहा कि भारत में कई ‘चेक एंड बैलेंस’ मौजूद हैं और “हमारे देश में ऐसी प्रक्रियाएँ यह सुनिश्चित करने के लिए अच्छी तरह से स्थापित हैं कि गैरकानूनी सर्विलांस नहीं हो सके.”
चूंकि कोई स्पष्ट नियम नहीं बताया गया है, इसलिए हम मानते हैं कि आतंकवादियों और ज्ञात अपराधियों का ऑथराइज्ड सर्विलांस होता होगा. लेकिन आईबी का बहुत सारा काम "राजनीतिक जासूसी" या विपक्ष की जासूसी से जुड़ा होता है.इसके लपेटे में कई बिसनेसमैन, पत्रकार,जज और वकील भी आ जाते हैं. यह सब काम पूरी तरह से ऑफिशियल रिकॉर्ड से बाहर होता है और इसे कहीं भी साबित करना मुश्किल होगा.
NSO ग्रुप स्वयं स्वीकार करती है कि वह केवल सरकारों के साथ लेनदेन करती है.हम जानते हैं कि अगर भारत में कोई इस सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रहा है, तो वह सरकारी एजेंसी या सरकार की ओर से काम करने वाला कोई व्यक्ति ही हो सकता है.
हम यह भी जानते हैं कि कम से कम रक्षा मंत्रालय ने खुद को बाहर कर दिया है . सेना का सिग्नल इंटेलिजेंस डायरेक्टरेट, जो कि डिफेन्स इंटेलिजेंस एजेंसी का हिस्सा है, कुछ सबसे परिष्कृत जासूसी उपकरणों का दावा करता है. लेकिन इसका काम विशेष रूप से भारत के विदेशी सैन्य विरोधियों को निशाना बनाना है.
इसलिए, हमारे पास ये एजेंसियां बचती हैं जो कथित रूप से दिए गए ऑथराइजेशन के अनुसार काम करती हैं - IB, ED, CBI और NCB.
अभी तक जारी संभावित टारगेट लिस्ट से "पेगासस जासूसी के पीछे कौन है",का कुछ संकेत मिलता है.ऐसा लगता है कि मुख्य रूप से पत्रकारों को निशाना बनाया गया है जिनमें कई ऐसे न्यूज वेबसाइट के लिए लिखते हैं जो सरकार के लिए दोस्ताना नहीं हैं, कुछ ऐसे न्यूज वेबसाइट से जुड़े हैं हैं जो सरकार के विरोधी भी नहीं है, और कई रक्षा मामलों से जुड़े संवाददाता, खोजी पत्रकार और कश्मीरी पत्रकार हैं.
नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-आईएम) के इसाक-मुइवा गुट के शीर्ष नेताओं सहित असम, मणिपुर और नागालैंड के राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को टारगेट बनाकर पूर्वोत्तर पर भी पैनी नजर है.इसके अलावा कश्मीर के नेता भी जाहिर तौर पर टारगेट लिस्ट में है. लिस्ट में कुछ तमिल राजनेता और कार्यकर्ता भी हैं.यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इनमें से अधिकतर टॉप रैंकिंग के चेहरे नहीं हैं, जो संभवतः IB द्वारा "कवर" किए जाते हैं.
टारगेट लिस्ट में शामिल संवैधानिक अधिकारियों में पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ,सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस अरुण मिश्रा (जो अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं और सरकार के करीबी माने जाते हैं), सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी( जिन्होंने भारतीय के पूर्व CJI रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था),सुप्रीम कोर्ट के दो रजिस्ट्रार और संवेदनशील मामलों को संभालने वाले कई वकील शामिल हैं.
फिर लिस्ट में एल्गार परिषद मामले से जुड़े आरोपी हैं,जिनके कंप्यूटर में सबूत प्लांट किये होने की आशंका है.साथ ही पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) के डीपी चौहान, अखिल भारतीय अंबेडकर महासभा के अशोक भारती, रेलवे यूनियन के नेता शिव गोपाल मिश्रा, लेबर राइट एक्टिविस्ट अंजनी कुमार और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जगदीप छोकर जैसे रैंडम कार्यकर्ताओं का नंबर भी टारगेट लिस्ट में है.
कारोबारियों की सूची में अनिल अंबानी, उनके सहयोगी टोनी जेसुदासन और डसॉल्ट एविएशन, बोइंग, साब और फ्रांसीसी एनर्जी फर्म ‘EDF’ के भारत प्रमुख शामिल हैं.
बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के वर्तमान प्रमुख, जेट एयरवेज के नरेश गोयल, स्पाइसजेट के अध्यक्ष अजय सिंह, एस्सार के प्रशांत रुइया और कुछ अन्य बिजनेसमैनों और लॉबिस्टों को शामिल करना और भी विचित्र है.
इस तरह के टारगेट लिस्ट के साथ, यह विश्वास करना मुश्किल है कि मौजूदा एजेंसियों में से कोई भी - IB, ED, CBI ,NCB या दूसरे इस ऑपरेशन को संभाल रहे थे.लिस्ट को देख कर ऐसा लगता है जैसे कई केंद्रीय,राज्य और अन्य एजेंसियों के लिस्ट को जोड़कर एक बड़ा टारगेट लिस्ट बनाया गया है.
इसमें वर्तमान सरकार के नजरों में खटकने वाले लोग भी हैं - PUCL एक्टिविस्ट, लेफ्ट की ओर झुके पत्रकार, कश्मीरी एक्टिविस्ट या NSCN (IM) से जुड़े लोग.लेकिन इन सब के अलावा टारगेट लिस्ट में कई रैंडम फिगर भी हैं.
लिस्ट से पता चलता है कि यह सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों द्वारा चलाया जाने वाली पूरी तरह से एक बिना रिकॉर्ड वाली जासूसी थी. ये लोग न केवल लॉ एंड आर्डर बल्कि प्रशासन के क्षेत्र से भी संबंधित थे और राफेल सौदा ,वर्मा और अस्थाना से जुड़े सीबीआई विवाद से को संभाल रहे थे. इसके साथ-साथ समान रूप से कर्नाटक,नागालैंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों से लेकर केंद्र तक,सभी स्तरों के राजनीति से संबंधित थे.
जासूसी के पीछे कौन है? यह पता लगाने के लिए किसी जीनियस के दिमाग की जरुरत नहीं है कि ये सारी बातें सरकार में बैठे किस शख्स की ओर इशारा कर रही हैं.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में विशिष्ट फेलो हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के अपने हैं. इसमें क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 11 Aug 2021,08:41 PM IST