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सरकार का काम धंधा करना नहीं है (गवर्नेमेंट हैज नो बिजनेस टू बी इन बिजनेस). इस कहावत को अमल में लाते हुए मोदी सरकार ने 2015 में रणनीतिक विनिवेश को अपना सिद्धांत बनाया था. यह उस मंत्र के अनुरूप था, जिसे प्रधानमंत्री ने बहुत हाजिरजबावी से उछाला था- ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन.’
बीएसएनएल टेलीकॉम सेवाएं देने का कारोबार करता है. लेकिन इस क्षेत्र में उसका हिस्सा बहुत छोटा है, और उसकी सेवा की गुणवत्ता भी ऐसी नहीं है, जिसके बारे में कुछ लिखा जा सके. वह लंबे समय से नुकसान में चल रहा है, और लगभग हमेशा से सबसे ज्यादा घाटे में रहने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में से एक है. इसलिए सरकार के लिए उपयुक्त मौका है कि उससे जल्द से जल्द छुटकारा पा ले- या तो उसका निजीकरण करके, या फिर उसे बंद करके- ठीक एयर इंडिया की तरह.
बीएसएनएल के अलावा सरकार की निजीकरण की पहल भी रुकी हुई दिख रही है. क्या 'न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन' की नीति ख़त्म हो गई है?
अब तक के तीन रिवाइवल पैकेज पर नजर दौड़ाते हैं.
सरकार ने हाल ही में 7 जून 2023 को 89,047 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ बीएसएनएल के लिए तीसरे रिवाइवल पैकेज को मंजूरी दी. पहला पैकेज साढ़े तीन साल पहले 23 अक्टूबर 2019 को 69,000 करोड़ रुपये के लिए मंजूर किया गया था. 1,64,000 करोड़ रुपये के दूसरे पैकेज को एक साल से भी कम समय, पहले 27 जुलाई 2022 को मंजूरी दी गई थी.
पहला रिवाइवल पैकेज दिए जाने से एक साल पहले 2018-19 में बीएसएनएल का राजस्व 19,321 करोड़ रुपये था. 2021-22 में बीएसएनएल का राजस्व गिरकर 19,053 करोड़ रुपये हो गया. 2022-23 में भी राजस्व 20,699 करोड़ रुपये ही रहा. तो, रिवाइवल के तीन वर्षों के बावजूद बीएसएनएल का राजस्व जस का तस रहा.
2019 से पहले निजी टेलीकॉम ऑपरेटर भी एजीआर के बोझ के कारण भारी नुकसान उठा रहे थे. उनमें से दो ऑपरेटर अब मुनाफा कमा रहे हैं. बाजार में उनकी दो-तिहाई से अधिक हिस्सेदारी है. दूसरी ओर, इक्विटी और अनुदान के बड़े निवेश के बावजूद बीएसएनएल भारी घाटे में चल रहा है. 2021-22 में इसका शुद्ध घाटा 6,982 करोड़ रुपये था, जो 2022-23 में बढ़कर 8,161 करोड़ रुपये हो गया है.
बीएसएनएल वायरलेस, वायरलाइन और ब्रॉडबैंड तीनों क्षेत्रों में बाजार हिस्सेदारी लगातार गंवा रहा है.
मार्च 2019 में बीएसएनएल के पास 9.96% वायरलेस ग्राहक थे; मार्च 2023 में यह घटकर 9.06% पर आ गया. 'रिवाइवल' के तीन वर्षों में, बीएसएनएल ने 1.2 करोड़ से अधिक ग्राहक और अपनी 10% छोटी बाजार हिस्सेदारी गंवा दी.
ब्रॉडबैंड टेलीकॉम का सबसे तेजी से बढ़ता सेगमेंट है. इसमें बीएसएनएल बहुत छोटा खिलाड़ी है- मार्च 2019 में ब्रॉडबैंड में इसका हिस्सा केवल 3.92% था, जोकि मार्च 2023 में गिरकर 3.0% से भी कम हो गया है.
यहां तक कि छोटे फिक्स्ड वायरलाइन बिजनेस सेगमेंट में भी, जिसने वर्षों से बीएसएनएल की रोजी-रोटी चलाई है, उसकी बाजार हिस्सेदारी मार्च 2019 में 51.6% से घटकर मार्च 2023 में सिर्फ 25% रह गई है. बीएसएनएल ने अक्टूबर 2022 में फिक्स्ड वायरलाइन सेगमेंट में नंबर एक का दर्जा गंवा दिया है और मार्च 2023 में तीसरे स्थान पर खिसक गया है.
एक सार्वजनिक उद्यम होने के नाते, बीएसएनएल सरकारी नियंत्रण के अधीन है, भले ही ये नीतियां उसके कारोबार में रुकावटें पैदा करती हों. पहले रिवाइवल पैकेज के दौरान बीएसएनएल से यह कहा गया था कि वह 4जी सेवाएं प्रदान करेगा. लेकिन साढ़े तीन साल तक बीएसएनएल अपनी 4जी सेवाओं को नहीं शुरू कर पाया. उस पर यह बाध्यता थी कि वह सिर्फ स्वदेशी स्रोतों से नेटवर्क उपकरण हासिल करेगा.
अब कुछ महीने पहले ही बीएसएनएल ने टीसीएस को एक लाख 4जी साइटों की तैनाती का ऑर्डर दिया है. पायलट 4जी कनेक्शन अब केवल तमिलनाडु के कुछ जिलों में ही उपलब्ध कराए जाएंगे. बीएसएनएल 4जी में तब दाखिल होगा, जब गाड़ी निकल चुकी होगी, वह भी सरकारी नीतिगत आदेश के कारण.
तीसरे रिवाइवल पैकेज में सरकार ने बीएसएनएल से कहा कि वह भारत की अपनी 4जी/5जी टेक्नोलॉजी स्टैक को इस्तेमाल करे, जोकि आत्मनिर्भर कार्यक्रम के तहत विकसित की गई है. अगर तर्जुबा रास्ता दिखाता है तो बीएसएनएल को स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक पर 5जी नेटवर्क लगाने और सेवाएं देने में कई साल लगेंगे.
लेकिन टेक्नोलॉजी और सेवाओं के संबंध में निजी ऑपरेटर से प्रतिस्पर्धा न कर पाने और बड़े पैमाने पर नाखुश 2जी/3जी ग्राहकों के साथ, यह लगभग तय है कि बीएसएनएल निजी कंपनियों के ग्राहकों को हासिल नहीं कर पाएगा.
सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम होने के नाते, सरकार को बीएसएनएल को सार्वजनिक धन देने में कोई परेशानी नहीं है.
ये तीनों पैकेज सरकार ने इक्विटी निवेश के जरिए स्पेक्ट्रम की लागत को पूरा करने के लिए दिए हैं. विडंबना यह है कि सरकार के राजकोषीय प्रबंधक इस खर्च को सही ठहराते हैं, वह भी इस तर्क के साथ कि यह सरकार के लिए कैश न्यूट्रल यानी नकद तटस्थता है. चूंकि स्पेक्ट्रम का भुगतान बीएसएनएल से सरकार को वापस मिल जाता है. इस प्रक्रिया में निवेश की कमर्शियल वायबिलिटी की सारी सख्ती मानो हवा में उड़ जाती है.
पहले पैकेज में BSNL और MTNL को 4जी सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन हेतु 20,140 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी दी गई. इसमें 3,674 करोड़ रुपये की जीएसटी राशि शामिल थी. दूसरे पैकेज में मौजूदा सेवाओं में सुधार और 4जी सेवाएं प्रदान करने के लिए इक्विटी निवेश के माध्यम से 44,993 करोड़ रुपये की लागत पर 900/1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन का भी प्रावधान किया गया. 87,048 करोड़ रुपये का तीसरा रिवाइवल पैकेज विशेष रूप से इक्विटी निवेश के माध्यम से बीएसएनएल के लिए 4जी/5जी स्पेक्ट्रम के आवंटन हेतु है.
BSNL को 4जी और 5जी स्पेक्ट्रम के लिए 1.5 लाख करोड़ से ज्यादा की इक्विटी मुहैया कराई जाएगी. निजी ऑपरेटरों को यह स्पेक्ट्रम भारी कीमत पर खरीदना पड़ता है. बीएसएनएल को यह लगभग मुफ्त और बिना किसी जवाबदेही के मिलता है. ऐसे में पूंजी कुप्रबंधन का इससे बड़ा मामला और कौन सा हो सकता है?
सरकारी नीतिगत बाधाओं और गैर पेशेवर प्रबंधन के कारण नॉन कोर एसेट्स की बिक्री या मुद्रीकरण नहीं किया जाता है.
पहले रिवाइवल पैकेज में यह फैसला किया गया था कि बीएसएनएल ऋण का मूल धन चुकाने, बॉन्ड्स की सर्विसिंग, नेटवर्क के अपग्रेडेशन और परिचालन के जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए अपने एसेट्स का मुद्रीकरण करेगा. ताकि धन जुटाया जा सके. लेकिन बीएसएनएल अपने किसी एसेट का मुद्रीकरण नहीं कर पाया है.
एयर इंडिया की ही तरह बीएसएनएल का कामकाज बहुत खराब और प्रबंधन बहुत लचर है. यह एक मृतप्राय सार्वजनिक उपक्रम है- और यह नजीर है कि सरकार को कारोबार में क्यों नहीं होना चाहिए.
(लेखक भारत सरकार के पूर्व वित्त और आर्थिक मामलों के सचिव हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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