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बजट 2021: पुराने आइडिया और साहसी इरादे, अब अमल कीजिए!

याद रखना चाहिए कि ‘बिना कार्रवाई के, दुनिया के सबसे अच्छे इरादे, सिर्फ इरादों से ज्यादा कुछ नहीं हैं’

राघव बहल
नजरिया
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बिना कार्रवाई के, दुनिया के सबसे अच्छे इरादे, इरादों से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
-द वोल्फ ऑफ वॉल स्ट्रीट (2013)

मैंने उन्हें कल सुपरवुमन कहा था, जब उन्होंने अपने नो टैक्स बजट (बिना किसी नए टैक्स से बजट) से शेयर बाजार में बहार ला दी थी. एक दिन बाद मैं मानता हूं कि अमर अकबर एंथनी के एंथनी/अमिताभ बच्चन की तरह मैं "अपनी लफ्फाजी की अधिकता के नशे में था."

सच कहूं तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का नो-नॉनसेंस-नो-टिंकरिंग (बिना-बकवास-बिना-इधर-उधर की बात करने वाला) बजट एक बहुत ही राहत देने वाला था, क्योंकि इस बात का काफी डर था कि वो बड़े माइक्रोमैनेजिंग स्टेट के पुराने बहाने को दोहराएंगी. लेकिन सौभाग्य से ऐसा नहीं हुआ. 

बजट के गणित और वादों पर विचार करने के बाद, अब मैं कुछ दूरी और निष्पक्षता के साथ ज्यादा बेहतर मूल्यांकन कर सकता हूं. मैं ऐसा तीन भागों में करना चाहता हूं

नीरस, महामारी के बाद का अंकगणित

अगर आप सिर्फ बजट के आंकड़ों को देखें, तो वो साधारण हैं. इसे आसानी से समझा जा सकता है. आखिरकार सभी कोशिशों के बावजूद, अर्थव्यवस्था अगले साल (वित्त वर्ष 21-22) में पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 19-20) के आकार के बराबर होगी, साथ ही दोनों के बीच में मौजूदा वर्ष की गिरावट अशांत वी आकार की कड़ी बनाएगी:

  • केयंस के आर्थिक सिंद्धांतों को मानने वाले मौजूदा वित्त वर्ष में 9.5% वित्तीय घाटे की तेज वृद्धि की सराहना कर रहे हैं. लेकिन इस वृद्धि के लगभग दो फीसदी अंक सरकार द्वारा पहले के खर्चों को मान लेने से आए है जैसे एफसीआई को फूड सब्सिडी और फर्टिलाइजर कंपनियों को भुगतान न किया गया बिल. इस तरह की पारदर्शिता का स्वागत है लेकिन “हमने खर्च किया है, हमने खर्च किया है, हमने खर्च किया है” के दावों को कम करना चाहिए. हां, सरकार का खर्च बजट के 30 लाख करोड़ से बढ़कर इस साल 34 लाख करोड़ हो गया है लेकिन इसमें काफी कुछ पहले के खर्चों का भुगतान है.
  • बजट में “रक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिए जाने” की काफी चर्चा हो रही है लेकिन इस बात को ध्यान में रखते हुए कि रक्षा सामानों पर पूंजीगत खर्च चालू वर्ष में लगभग 20 फीसदी बढ़ाकर लगभग 1.15 लाख करोड़ रुपये से लेकर 1.37 लाख करोड़ रुपये तक हो गया, मुझे लगता है कि चीन के आक्रामक रूख के खिलाफ लामबंदी इसका बड़ा कारण हो सकता है. इसलिए अब, सरकार ने रक्षा पर पूंजीगत खर्च को अगले साल भी एक तरह से 1.37 लाख करोड़ के उसी बढ़े स्तर पर रखा है. हां, ये संशोधित आंकड़े के मुकाबले बराबर है लेकिन मौजूदा वर्ष के लिए जो अनुमान लगाया गया था उससे काफी ज्यादा है.
  • स्वास्थ्य पर खर्च को लेकर जो दिख रहा है वैसा साफ-साफ सबकुछ नहीं है क्योंकि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए बजट में दरअसल कमी की गई है. लेकिन कोविड 19 टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये का एक बार प्रावधान किया गया है. इसके अलावा इस साल जल और सफाई पर खर्च को स्वास्थ्य खर्च में दिखाया गया है. इन सब हिसाब-किताब के बाद भी कोई भी 1 लाख करोड़ से 2.2 लाख करोड़ की सम्मिलित वृद्धि को पहचान सकता है. बेशक, इसका नुकसान शिक्षा और मनरेगा को सहना पड़ा है लेकिन आप सभी को कैसे खुश कर सकते हैं?
  • बड़े स्तर पर निजीकरण की बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद विनिवेश से कमाई को लेकर भारी घबराहट है. सिर्फ एलआईसी के आईपीओ और बीपीसीएल की बिक्री से ही सरकार को बजट में बताए गए 1.75 लाख करोड़ रुपये मिल जाने चाहिए. लेकिन तब एयर इंडिया, कॉनकोर, शिपिंग कॉरपोरेशन, पवन हंस और बीईएमएल का क्या होगा? सरकार इनके विनिवेश को लेकर आश्वस्त क्यों नहीं है?
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गलतियां

मैं और भी कई उदाहरण दे सकता हूं, लेकिन ऊपर के उदाहरण ये साबित करने के लिए पर्याप्त होने चाहिए कि बजट में उत्साह स्पष्ट रूप से इसके लाचार और नीरस गणित से प्रेरित नहीं था. इससे भी बुरा कि कुछ गलतियां भी थीं:

  • एक नए डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन का गठन साफ तौर पर सरकार द्वारा निर्देशित-प्रदत्त ऋण व्यवस्था के पुराने बुरे दिनों की ओर लौटना है. मैं मानता हूं कि जनता की याददाश्त छोटी होती है, लेकिन हम भयंकर आईडीबीआई मामला या आईएफसीआई घोटाले को कैसे भूल सकते हैं. क्या हमने सोचा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की एक और विशाल संस्था बनाने में कितना समय लगेगा और और ये कितना अनावश्यक होगा? नई इमारतों को किराए पर लिया जाएगा, बुनियादी ढांचे की नकल की जाएगी, अधिकारी इसमें आने के लिए पैरवी कराएंगे- ये सब किस लिए? क्यों नहीं नेशनल इंवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) को मजबूत किया जाए? अल्ट्रा-लॉन्ग-टर्म-बॉन्ड्स के लिए गंभीर, लिक्विड मार्केट-मेकर बनाने के लिए सरकार की गारंटी और उपकरणों का उपयोग क्यों नहीं किया जाए? ताकि सरकार एक ईमानदार नियामक बनी रहे जो वास्तव में पेशेवर निजी संस्थानों को समर्थ करने वाली हो, बजाए आग में खुद कूदने के? ये बात क्यों न मान लें कि सरकार ऐसी कोशिशों में उतनी ही धीमी और भ्रष्ट है ?
  • इसी तरह, एक और “बैड बैंक” बनाने में क्यों कीमती समय और संसाधन खर्च करें जब व्यावसायिक/ निजी एआरसी/एएमसी (एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के द्वारा नियंत्रित एसेट रिकंस्ट्रक्शनन कंपनी) के तेजी से तैयार होते पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जो नए काम की मात्रा को आसानी से संभाल सकते हैं? एक बार फिर इमारतों को किराए पर देने और बुनियादी ढांचे की नकल के बजाए, सरकार को सिर्फ एक उभरते उद्योग के नियामक बनावट को मजबूत करने की जरूरत है बजाए इसके कि आग में खुद कूदने के.

लेकिन ये बजट बहुत ही रोमांचक है! सच.

ठीक है, ये काफी है! मुझे अपनी खुद की लफ्फाजी की नकारात्मकता के नशे में नहीं होना चाहिए.

ऐसा न हो कि हम भूल जाएं कि बजट 2021 रोमांचक है

इसके इरादे साहसी हैं, ये निजी उद्यम की गतिशीलता का जश्न मनाता है और इन तरीकों से ये धन सृजन के लिए मुक्त बाजार की शक्तियों को बढ़ावा देता है:

  • कम से कम दो सरकारी बैंक और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण
  • एलआईसी का आईपीओ लाना और आइडीबीआई बैंक, बीपीसीएल, एअर इंडिया, बीईएमएल, कॉनकर, पवनहंस आदि को बेचना
  • निवेश ट्रस्टों के माध्यम से मौजूदा सड़कों, रेलवे और तेल/गैस पाइपलाइनों को मुद्रीकरण करना, उन्हें शून्य कूपन बॉन्ड जारी करने और एफपीआई नकद लने की अनुमति देना, उन्हें टैक्स काटने और टैक्स दर से राहत देना
  • पुराने एयरपोर्ट और एसपीवी के जरिए अतिरिक्त जमीन बेचना
  • नए हाइवे बनाने में 1.18 लाख करोड़ निवेश कर, रेलवे की नई संपत्ति के लिए 1.1 लाख करोड़ खर्च कर
  • निवेश, निवेश, निवेश...विकास, विकास, विकास!

मैं अपनी बात वो एक सवाल पूछकर खत्म करूंगा जो समझदार निवेशक सभी नए निवेशकों से पूछते हैं:

“तो अगर सब कुछ अच्छा और बढ़िया है तो बताइए, ऐसा क्या है जो अभी भी आपको रातों में जगाए रखता है? सबसे बड़ा जोखिम क्या है जिससे आपको डर लगता है?”

मेरा जवाब आसानी से आता है:

“एक और सिर्फ एक चीज सर. इस महत्वाकांक्षी एजेंडा को लागू करने की हमारी सरकार की क्षमता. क्या हमारी अफसरशाही में इतनी क्षमता है कि वो इसे पूरा कर पाएंगे? या सरकार को इस काम को पूरा करने के लिए मार्केट, कॉरपोरेशन, यूनिवर्सिटी-सभी जगहों से असाधारण प्रतिभाओं को शामिल करना होगा. वरना ये एक और जज़्बाती लम्हा हो सकता है जो जड़ आदतों के सुनसान रेगिस्तान में खो सकता है. (पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए हर कोई रबींद्रनाथ टैगोर को उद्धृत कर रहा है. मैं भी वैसी ही स्वतंत्रता लूंगा).“

(राघव बहल क्विंटिलियन मीडिया के को-फाउंडर और चेयरमैन हैं, जिसमें क्विंट हिंदी भी शामिल है. राघव ने तीन किताबें भी लिखी हैं-'सुपरपावर?: दि अमेजिंग रेस बिटवीन चाइनाज हेयर एंड इंडियाज टॉरटॉइस', "सुपर इकनॉमीज: अमेरिका, इंडिया, चाइना एंड द फ्यूचर ऑफ द वर्ल्ड" और "सुपर सेंचुरी: व्हाट इंडिया मस्ट डू टू राइज बाइ 2050")

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