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Economic Survey 2024: पीएम मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल का पहला केंद्रीय बजट पेश कर रही है. ऐसे में भारत के आर्थिक ट्रेजेक्टरी या उसकी भावी चाल और उससे जुड़ें मैक्रो-बुनियादी सिद्धांतों की यथास्थिति की गहन जांच हो रही है.
बजट पेश होने के एक दिन पहले जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2024 ने देश के आर्थिक परिदृश्य का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया है. आर्थिक सर्वे का श्रेय मुख्य आर्थिक सलाहकार को जाता है.
6.5 से 7 प्रतिशत का मध्यम अवधि का अनुमान किसी भी तरह से भारत (या भारतीयों) को विकसित नहीं बनाने वाला है. मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने विकास के वर्तमान ट्रेंड और इसकी क्षेत्रीय संरचना के आधार पर आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को यथार्थवादी बनाए रखने के लिए सर्वेक्षण में अच्छा काम किया है.
जब हम विकास, महंगाई और देश के बदलते आर्थिक परिदृश्य के बीच के संबंध को गहराई से समझते हैं, तो कुछ दिलचस्प जानकारियां सामने आती हैं.
सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक ने कीमतों को स्थिर रखने के उपाय किए तो सरकार ने समय पर नीतिगत हस्तक्षेप किया- इन दोनों ने खुदरा मुद्रास्फीति यानी खुदरा महंगाई को 5.4 प्रतिशत पर सफलतापूर्वक बनाए रखा. यह कोरोना महामारी के बाद से सबसे निचला स्तर है, जो वस्तुओं और सेवाओं दोनों के लिए मुख्य मुद्रास्फीति में बड़ी गिरावट की वजह से है. वित्त वर्ष 2024 में मुख्य सेवाओं की मुद्रास्फीति घटकर नौ साल के निचले स्तर पर आ गई, जबकि मुख्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति घटकर चार साल के निचले स्तर पर आ गई.
खाद्य मुद्रास्फीति ही भारत में ओवरऑल महंगाई पर सबसे अधिक असर डालती है. यह वित्त वर्ष 2023 में 6.6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 7.5 प्रतिशत हो गई. जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मई 2023 में 4.31 प्रतिशत था वो मई 2024 में बढ़कर 4.75 प्रतिशत हो गया. इस बीच उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) मई 2023 में 2.96 प्रतिशत से बढ़कर मई 2024 में 8.69 प्रतिशत हो गया. मुख्य रूप से टमाटर, प्याज और आलू जैसी सब्जियों की कीमतें लू और बाढ़ सहित चरम मौसम की स्थिति के कारण बढ़ी हैं.
आर्थिक सर्वेक्षण 2024 का एक दूसरी हाईलाइट रोजगार के परिदृश्य में बदलाव है, यानी, बेरोजगारी दर में गिरावट देखी गई है और गिग रोजगार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय श्रम बल सर्वेक्षण डेटा के आधार पर नीति आयोग के अनुमान से संकेत मिलता है कि 2020-21 में, लगभग 7.7 मिलियन श्रमिक गिग अर्थव्यवस्था में लगे हुए थे. जबकि भारत में श्रमिक गैर-कृषि कार्यबल का 2.6 प्रतिशत और कुल कार्यबल (वर्कफोर्स) का 1.5 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं.
एक तरफ तो गिग अर्थव्यवस्था का विस्तार युवाओं, विकलांग व्यक्तियों और महिलाओं सहित विभिन्न समूहों के लिए रोजगार के नए अवसर प्रस्तुत करता है. लेकिन यह साथ ही में बड़ी चुनौतियां भी लाता है. एक बड़ी चिंता गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के प्रभावी सामाजिक सुरक्षा (सोशल सिक्योरिटी) के लिए पहल करना है. इस समस्या के समाधान के लिए एक मजबूत नौकरी-आधारित सामाजिक सुरक्षा सुरक्षा जाल विकसित करना होगा और उसके लिए टारगेटेड मध्यम से दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है.
यह सर्वेक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार तैयार करने की तत्काल आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है. बढ़ती वर्कफोर्स की मांगों को पूरा करने के लिए, भारत को 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में सालाना लगभग 7.85 मिलियन नौकरियां पैदा करनी होंगी. इसके अलावा, सर्वेक्षण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से जुड़ें संभावित संकट पर भी बात करता है, जिससे अगले दशक में रोजगार में भारी गिरावट आ सकती है. यह उभरते नौकरी बाजार के लिए वर्कफोर्स को तैयार करने के लिए कौशल विकास पर जोर देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है.
भारत में शुद्ध (नेट) FDI प्रवाह वित्त वर्ष 2023 में 42 बिलियन डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 26.5 बिलियन डॉलर हो गया. हालांकि, सकल (ग्रॉस) FDI प्रवाह में केवल मामूली गिरावट देखी गई, जो वित्त वर्ष 2023 में 71.4 बिलियन डॉलर से 0.6 प्रतिशत घटकर वित्त वर्ष 24 में 71 बिलियन डॉलर से कम हो गया.
आर्थिक सर्वेक्षण 2024 में यह भी सुझाव दिया गया है कि चीन के साथ मौजूदा तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, भारत को स्थानीय विनिर्माण और निर्यात बाजारों तक पहुंच बढ़ाने के लिए बीजिंग से FDI में वृद्धि की मांग करनी चाहिए. हालांकि, चीन के साथ बड़े व्यापार घाटे को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं. चीन से भारत का आयात 3.24 प्रतिशत बढ़कर 101.7 बिलियन डॉलर हो गया. इससे पिछले वित्तीय वर्ष में व्यापार घाटा बढ़कर 85 बिलियन डॉलर हो गया, जो वित्त वर्ष 2012-23 में 83.2 बिलियन डॉलर था.
अनुमान है कि सरकार पूंजीगत व्यय (कैपिटल एक्सपेंडिचर) बढ़ाने पर अपना ध्यान केंद्रित रखेगी. सरकार का पूंजीगत व्यय साल-दर-साल 12 प्रतिशत बढ़कर 15.8 लाख करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन खर्च की इस रणनीति ने हाल के वर्षों में निजी निवेश के स्तर को अभी तक काफी बढ़ावा नहीं दिया है. यह दृष्टिकोण राजस्व व्यय आवश्यकताओं की कीमत पर आया है.
2023-24 के बजट में, सामाजिक क्षेत्र पर व्यय कुल व्यय का 18 प्रतिशत रखा गया था, यह 2009 के बाद पहली बार 20 प्रतिशत से नीचे आ गया है. यह कटौती सरकार की पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देने को दर्शाती है, जिससे सामाजिक क्षेत्र के वित्त पोषण और समग्र निवेश गतिशीलता पर दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में सवाल उठते हैं.
इन मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, सरकार को संतुलित राजकोषीय नीतियों को लागू करना चाहिए, सामाजिक सुरक्षा उपायों को मजबूत करना चाहिए, कौशल विकास में निवेश करना चाहिए और रणनीतिक व्यापार और निवेश पहल को आगे बढ़ाना चाहिए. तात्कालिक चिंताओं का समाधान करने वाली दीर्घकालिक रणनीति महत्वपूर्ण होगी.
केंद्रीय बजट 2024 की भारत को सतत विकास, आर्थिक लचीलापन और सामाजिक समानता की दिशा में मार्गदर्शन करने में अहम भूमिका होगी. कम से कम, वित्त मंत्री को आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर राजकोषीय समेकन को प्राथमिकता देने, टैक्स के आधार को बढ़ाने, महंगाई को मैनेज करने और प्रत्यक्ष रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.
( दीपांशु मोहन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, डीन, IDEAS, ऑफिस ऑफ इंटर-डिसिप्लिनरी स्टडीज और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES), ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के निदेशक हैं. वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर हैं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एशियाई और मध्य पूर्वी अध्ययन संकाय के 2024 के फॉल एकेडमिक विजिटर हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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