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बाइडेन नहीं लडेंगे US राष्ट्रपति चुनाव, कमला हैरिस को कमान- ट्रंप को रोकने के लिए काफी होगा?

कमला हैरिस की जातीय पृष्ठभूमि की अपील के अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी उम्मीदवारी के दो अन्य महत्वपूर्ण फायदे हैं.

सुमित गांगुली
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>जो बाइडेन नहीं लडेंगे US राष्ट्रपति चुनाव, कमला हैरिस को सौंपी कमान</p></div>
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जो बाइडेन नहीं लडेंगे US राष्ट्रपति चुनाव, कमला हैरिस को सौंपी कमान

(Photo- X)

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तारीख थी 31 मार्च 1968. अमेरिका के तात्कालिक राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को वियतनाम युद्ध को लेकर घरेलू स्तर पर व्यापक विरोध का सामना करना पड़ रहा था, खासकर तमाम यूनिवर्सिटीज के कैंपस में. इन सबके बीच इस दिन को राष्ट्रपति जॉनसन ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर आकर घोषणा की कि वह राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पार्टी के तरफ से उम्मीदवार बनाए जाने की मांग नहीं करेंगे.

उस साल डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन (DNC), जो शिकागो में आयोजित किया गया था, अराजक साबित हुआ. स्थानीय पुलिस ने कन्वेंशन के वेन्यू के बाहर युद्ध-विरोधी प्रदर्शनकारियों पर क्रूर हमला किया.

वेन्यू के भीतर ही पार्टी दो गुट में बंट गई. एक तरफ युद्ध-विरोधी उम्मीदवार सीनेटर यूजीन मैक्कार्थी के सपोर्टर थे तो दूसरी तरफ युद्ध-समर्थक उम्मीदवार, उपराष्ट्रपति ह्यूबर्ट हम्फ्री के सपोर्टर.

कन्वेंशन में शामिल हुए प्रतिनिधियों के बीच एक कड़वी, आंतरिक लड़ाई के बाद, हम्फ्री को राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के रूप में चुना गया. लेकिन उस नवंबर हुए चुनाव में उन्हें राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार रिचर्ड निक्सन से हार का सामना करना पड़ा. हम्फ्री ने फिर 1972 में राष्ट्रपति पद के लिए दूसरी बाजी लगाई लेकिन सीनेटर जॉर्ज मैकगवर्न से पार्टी का ही नामांकन हार गए. फिर से जीत रिपब्लिकन उम्मीदवार रिचर्ड निक्सन की हुई जिन्होंंने मैकगवर्न को मात दी.

इस बात की भविष्यवाणी करने का कोई तरीका नहीं है कि इस ऐतिहासिक मिसाल का राष्ट्रपति जो बाइडेन के अगले चुनाव नहीं लड़ने के फैसले पर कोई असर पड़ेगा या नहीं. दरअसल 21 जुलाई की दोपहर को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि वे अगले महीने शिकागो में होने जा रहे DNC में अपनी पार्टी की तरफ से कोई उम्मीदवारी पेश नहीं करेंगे.

राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने के साथ, उन्होंने उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को कमान सौंप दी है और उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी का उम्मीदवार बनाए जाने की बात की है.

राष्ट्रपति चुनाव में कमला का समर्थन

कमला हैरिस का समर्थन न करने से डेमोक्रेटिक पार्टी और विभाजित हो सकती थी. पार्टी में वैचारिक, पीढ़ीगत और अन्य दरारें हैं. कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनने से पहले कैलिफोर्निया से जूनियर सीनेटर थीं. कमला हैरिस की मां भारत से थीं और उनके पिता जमैका से थे.

उनकी मिश्रित वंशावली डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए बहुत अपील रखती है. अफ्रीकी अमेरिकी मतदाता, ज्यादातर उन्हें अपने में से एक के रूप में देखते हैं. वहीं भारतीय अमेरिकी, हालांकि संख्या में कम हैं, फिर भी प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों और राज्यों में उनका समर्थन करेंगे, ऐसी संभावना है. हैरिस की उम्मीदवारी से कई पेशेवर महिलाओं के भी पार्टी की तरफ आकर्षित होने की संभावना है.

चुनावी अपील के इन तीन जरियों को देखते हुए, इसकी संभावना कम है कि डेमोक्रेटिक खेमे से कोई और आगामी शिकागो कन्वेंशन में उनकी उम्मीदवारी को चुनौती देगा. ऐसा करने से इस समय पार्टी के भीतर और अधिक दरारें पैदा होंगी. इसके अलावा, अगर कोई कमला हैरिस की उम्मीदवारी को चुनौती देता भी है तो संभावना है कि उसे बाइडेन के चुनावी कैंपेन के लिए जमा हुआ फंड नहीं मिले और न ही उसे फंड के इस्तेमाल की राजनीतिक अनुमति नहीं मिलेगी.

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कमला हैरिस की जातीय पृष्ठभूमि की अपील के अलावा, उनकी उम्मीदवारी के दो अन्य महत्वपूर्ण फायदे हैं. बाइडेन के उपराष्ट्रपति के रूप में बाकि मोर्चे पर भले कमला हैरिस ने कमजोर प्रदर्शन किया, लेकिन गर्भपात (एबॉर्शन) के सवाल पर उनका स्टैंड स्पष्ट रहा है. उन्होंने एबॉर्शन के मुद्दे पर इस साल की शुरुआत में आए सुप्रीम कोर्ट के अत्यधिक विवादास्पद फैसले की आलोचना की है.

दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप ने अभी तक अपने चुनावी कैंपेन में बाइडेन की उम्र और उनकी सोचने-समझने की क्षमताओं में स्पष्ट गिरावट को मुद्दा बनाया है. लेकिन अब उन्हें अचानक राजनीतिक धरातल पर अप्रत्याशित बदलाव का सामना करना पड़ेगा. अब डेमोक्रेट, यदि चाहें तो, कैंपेन रैलियों में उल्टे ट्रंप की उम्र के साथ-साथ उनके विचित्र बयानों को उनकी अपनी शारीरिक और मानसिक दुर्बलताओं के संकेत के रूप में उजागर कर सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हैरिस ने एक सरकारी वकील के रूप में अपना पेशेवर करियर शुरू किया था और वह अगले राष्ट्रपति पद की बहस के दौरान ट्रंप को आसानी से परेशान कर सकती हैं. इससे ट्रंप की बकवास करने की प्रवृत्ति उजागर हो सकती है.

रनिंगमेट यानी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन

हैरिस के सामने अभी सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि वे अपना रनिंगमेट किसको चुनेंगी. रनिंगमेट यानी उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार. जब वह इस पर कोई निर्णय लेंगी, तो उसमें दो विचारों की भूमिका निभाने की संभावना होगी:

  • सबसे पहले, बाइडेन के विपरीत, कमला हैरिस के पास विदेश नीति का बहुत कम या कोई अनुभव नहीं है. नतीजतन, वह एक ऐसे डेमोक्रेटिक सीनेटर को अपना रनिंगमेट बना सकती हैं जो एक सुरक्षित सीट से आए और उसके पास विदेश नीति का कोई बैकग्राउंड हो.

  • दूसरा, वह एरिजोना, मिशिगन या पेंसिल्वेनिया जैसे तथाकथित "स्विंग स्टेट्स" में से एक से एक लोकप्रिय नेता को सेलेक्ट करना चाह सकती हैं. ऐसा नेता उस स्विंग स्टेट को राष्ट्रीय चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के पक्ष में ला सकता है. एक व्यक्ति जो इन दोनों मानदंडों को पूरा कर सकता है, वह सीनेटर मार्क केली हैं. मार्क केली एक पूर्व अंतरिक्ष यात्री, सैन्य अधिकारी और एरिजोना के वर्तमान जूनियर सीनेटर भी हैं. कमला हैरिस इन दो महत्वपूर्ण विचारों को कैसे संतुलित करती हैं, यह अगले कुछ हफ्तों में निश्चित रूप से देखने को मिलेगा.

अब कमला हैरिस अपने चुनावी कैंपेन के लिए तैयार हो रही हैं. ऐसे में अमेरिकी की अत्यधिक ध्रुवीकृत राजनीति और ट्रंप कैम्प के कई नेताओं के तिकड़म देखते हुए, यह लगभग अपरिहार्य है कि हैरिस को एक या अधिक तुच्छ मुकदमों से निपटना होगा. ट्रंप का खेमा चाहेगा कि कमला हैरिस बाइडेन के नाम पर जमा किए गए चुनावी चंदे का इस्तेमाल न कर पाए. लेकिन आखिर में ट्रंप खेमे की इस रणनीति के सफल होने की संभावना नहीं है.

एक सही रनिंगमेट को चुनने और इन संभावित राजनीतिक षडयंत्रों से निपटने के अलावा, हैरिस के सामने बड़ा काम अपनी उम्मीदवारी के लिए अलग-अलग तबके से आने वाले डेमोक्रेटिक मतदाताओं के बीच उत्साह बढ़ाना होगा. उस काम के अलावा, उनकी सबसे महत्वपूर्ण चुनौती लड़ाई को सीधे ट्रंप खेमे तक ले जाना होगा. ऐसा करते समय, उन्हें यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि उनकी विशाल चुनावी कैंपेन की मशीनरी पहले से ही अनुमान लगा रही थी कि राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की विरासत कमला हैरिस को ही मिलेगी. अगले कुछ हफ्तों में प्रचार अभियान और डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में उनके प्रदर्शन से इन विशेष बातों को समझने की उनकी क्षमता के बारे में हमें आइडिया मिलेगा.

(सुमित गांगुली के पास इंडियाना यूनिवर्सिटी, ब्लूमिंगटन में भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर टैगोर चेयर है और वो स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हूवर इंस्टीट्यूशन में विजिटिंग फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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