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देशभर में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव, लोकसभा चुनाव के बाद BJP के लिए कड़ी परीक्षा

Assembly Bypolls 2024: 2024 के चुनावों ने विपक्ष को पुनर्जीवित कर दिया है और ये उपचुनाव विपक्ष की क्षमता का भी टेस्ट है.

सायंतन घोष
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>देशभर में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव</p></div>
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देशभर में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव

(फोटो: PTI)

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जैसा कि देशभर में आज सात राज्यों के 13 निर्वाचन क्षेत्रों में विधानसभा उपचुनाव (Assembly Bypolls 2024) हो रहे हैं, राजनीतिक परिदृश्य तनावपूर्ण के साथ-साथ संभावनाओं से भरे हुए हैं.

ये उपचुनाव 2024 के करीबी मुकाबले वाले लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) के बाद हो रहे हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 240 सीटें हासिल की हैं, जो पूर्ण बहुमत से कम थी और इस तरह सरकार बनाने के लिए उसे अपने सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा. इस नतीजे ने बीजेपी के लिए हर अगले चुनावी मुकाबले का महत्व बढ़ा दिया है, जिससे ये उपचुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गए हैं.

पश्चिम बंगाल में रायगंज, राणाघाट दक्षिण, बागदा और मानिकतला सीटें हैं; हिमाचल प्रदेश में देहरा, हमीरपुर और नालागढ़; उत्तराखंड में बद्रीनाथ और मंगलौर; पंजाब में जालंधर पश्चिम; बिहार में रूपौली; तमिलनाडु में विक्रवंडी; और मध्य प्रदेश में अमरवाड़ा. अलग-अलग राज्यों हो रहे इस चुनाव के जरिए सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों अपनी ताकत का परीक्षण करेंगे.

2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक को फायदा हुआ और सबसे पुरानी पार्टी ने गठबंधन की कुल 232 सीटों में से अकेले 99 सीटें जीत लीं. इस प्रदर्शन ने विपक्ष को पुनर्जीवित कर दिया है, जिससे ये उपचुनाव उसके लिए लिटमस टेस्ट बन गए हैं. गठबंधन की अपनी गति को बनाए रखने और प्रमुख राज्यों में बीजेपी के प्रभुत्व को चुनौती देने की क्षमता का टेस्ट है.

हिमाचल प्रदेश में सबकी नजर देहरा सीट पर है, जहां से मुख्यमंत्री की पत्नी कमलेश ठाकुर चुनाव लड़ रही हैं. बीजेपी उन पूर्व निर्दलीय विधायकों को मैदान में उतार रही है जिन्होंने राज्यसभा चुनाव में पार्टी का समर्थन किया था और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे. ये उपचुनाव बीजेपी के लिए राज्य में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर हालिया लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद.

यह चुनाव कांग्रेस के लिए रणनीतिक है, सत्ता में रहने के बावजूद पार्टी को आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ा है. हिमाचल की जिन तीन सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, उन पर पहले निर्दलीयों का कब्जा था, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.

राज्य सरकार में स्थिरता बनाए रखने के लिए कांग्रेस पार्टी के लिए यहां जीतना जरूरी है; खराब प्रदर्शन से इसके पतन का खतरा हो सकता है.

मध्य प्रदेश में बीजेपी अमरवाड़ा में अपनी स्थिति बचाती दिख रही है, यह सीट पारंपरिक रूप से पार्टी का गढ़ रही है. यहां जीत राज्य में बीजेपी के प्रभुत्व की पुष्टि करेगी और पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच मनोबल बढ़ाएगी.

कांग्रेस पार्टी और उसके दिग्गज नेता कमलनाथ के लिए यह करो या मरो की लड़ाई है. तीन बार के विधायक और नाथ के पूर्व सहयोगी कमलेश शाह का बीजेपी में जाना एक बड़ा झटका था.

सीट दोबारा हासिल करने के लिए कमलनाथ ने युवा आदिवासी नेता धीरन शाह इनावती को मैदान में उतारा है. क्षेत्र में नाथ परिवार के राजनीतिक प्रभाव को बहाल करने के लिए कमलनाथ के लिए यहां जीत महत्वपूर्ण है, खासकर लोकसभा चुनाव में उनके बेटे नकुलनाथ की हार के बाद. अमरवाड़ा जीतना कांग्रेस के लिए पुनरुत्थान का संकेत होगा और भविष्य के चुनावों से पहले पार्टी के मनोबल को बढ़ाएगा.
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उत्तराखंड में, बीजेपी को मंगलौर में एक अनोखी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो एक महत्वपूर्ण मुस्लिम और दलित आबादी वाला निर्वाचन क्षेत्र है, जहां वह पहले कभी नहीं जीती है. मंगलौर में जीत बीजेपी के लिए नई जमीन तैयार करेगी, जो उसके पारंपरिक मतदाता आधार से परे उसकी अपील को प्रदर्शित करेगी.

पश्चिम बंगाल की चार विधानसभा सीटें, यानी राणाघाट दक्षिण, बागदाह, रायगंज और मानिकतला, सिर्फ एक नियमित अभ्यास से कहीं अधिक हैं. वे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और विपक्षी बीजेपी दोनों के लिए अपनी ताकत दिखाने के लिए एक अहम इमतहान है. लोकसभा चुनाव में टीएमसी की शानदार जीत के बाद, ये उपचुनाव बीजेपी को अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने और राज्य में अपनी उपस्थिति फिर से बनाने का मौका दे सकती है. 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इनमें से तीन सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में उसके विधायक टीएमसी में शामिल हो गए.

ये उपचुनाव दिखाएंगे कि क्या बीजेपी फायदा उठा सकती है या नहीं. दूसरी ओर, टीएमसी अपने प्रभुत्व को मजबूत करने और यह साबित करने की कोशिश करेगी कि उसकी लोकसभा जीत तुक्का नहीं थी. नतीजे मटुआ संप्रदाय की राजनीतिक गतिशीलता से भी प्रभावित होंगे, टीएमसी ने बागदाह में संप्रदाय की प्रतिद्वंद्वी शाखा के सदस्य मधुपर्णा ठाकुर को मैदान में उतारा है. नतीजे पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हवाओं का एक अहम इंडिकेटर साबित होंगे, और दोनों पार्टियां इसपर बारीकी से नजर रखेंगी.

पंजाब में जालंधर पश्चिम का उपचुनाव आम आदमी पार्टी (आप) के लिए अहम है. लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, जहां उसने पंजाब की 13 सीटों में से केवल तीन सीटें जीतीं, आप फिर से अपनी पकड़ बनाना चाह रही है. मुख्यमंत्री भगवंत मान का जालंधर में शिफ्ट होना दोआबा क्षेत्र में एक आधार बनाने के रणनीतिक कदम का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य माझा में अपने गढ़ से परे AAP के प्रभाव को मजबूत करना है.

तमिलनाडु में, डीएमके को पीएमके और विक्रवंडी के लिए एनटीके के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें एआईएडीएमके का बहिष्कार एक बिखरे हुए विपक्ष का संकेत है. डीएमके की जीत से उसकी स्थिति मजबूत होगी और राज्य में बढ़त हासिल करने की बीजेपी की कोशिशों के खिलाफ एक मजबूत संदेश जाएगा.

बिहार में रूपौली विधानसभा उपचुनाव एक खास 'जंग' है जो राज्य की बड़ी राजनीतिक गतिशीलता को दर्शाती है. बीमा भारती के जेडीयू से इस्तीफा देकर आरजेडी में शामिल होने के कारण यहां चुनाव हो रहा है, जिससे यह दोनों पार्टियों के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है.

दोनों पार्टियों ने बिहार की राजनीति में जाति के महत्व को उजागर करते हुए प्रभावशाली गंगोटा जाति से उम्मीदवार उतारे हैं. उपचुनाव नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर एक जनमत संग्रह भी है जिसमें दोनों ने जोर-शोर से प्रचार किया है.

नतीजों का असर विधानसभा सीट से परे होगा, जो जनता के मूड और पार्टी मशीनरी के असर को बताएगा, और संभावित रूप से आने वाले राज्य चुनावों के लिए रणनीतियों को आकार देगा.

(लेखक, एक स्तंभकार और रिसर्च स्कॉलर हैं, सेंट जेवियर्स कॉलेज (स्वायत्त) कोलकाता में पत्रकारिता के छात्रों को पढ़ाते हैं. वह @sayantan_gh के हैंडल से ट्वीट करते हैं. यह एक ओपीनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही है उसी के लिए जिम्मेदार.)

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