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टैक्सीवालों की नजर से ब्रांड मोदी: सपने जुड़ते और टूटते रहते हैं

ड्राइवरों की खासियत होती है कि अलग-अलग तरह के बहस से वो वाकिफ होते हैं

मयंक मिश्रा
नजरिया
Published:
टैक्सीवालों की नजर से ब्रांड मोदी: सपने जुड़ते और टूटते रहते हैं
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टैक्सीवालों की नजर से ब्रांड मोदी: सपने जुड़ते और टूटते रहते हैं
(फोटो: iStock)

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चुनावी माहौल में टैक्सी की सवारी हो तो नतीजों की भविष्यवाणी तो होनी ही है. बातचीत के बीच में टैक्सी चालक राज ने अचानक अपनी टिप्पणी दी- “मोदी जी को एक और टर्म मिलने दीजिए, देश पूरी तरह से बदल जाएगा.” उसने आगे कहा- “एक बड़े अफसर ने जानकारी दी है कि एक बड़े प्लान पर काम चल रहा है. आइडिया है कि जीएसटी की दर को 30 परसेंट कर दिया जाए. सरकार का टैक्स कलेक्शन काफी बढ़ जाएगा. और उससे सबके लिए एजुकेशन और हेल्थ की सुविधा फ्री कर दी जाएगी.”

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मेरे एक सहयोगी का तपाक से जवाब आया- “लेकिन 30 परसेंट जीएसटी लगी तो ढ़ेर सारे बिजनेस बंद हो जाएंगे. बिजनेस ही नहीं बचेंगे तो टैक्स की कहां से वसूली होगी और फिर फ्री एजुकेशन एजुकेशन और हेल्थ की सुविधा का क्या होगा.” टैक्सी वाले का जवाब आया- “बात तो सही है, लेकिन मोदी जी कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेंगे.”

टैक्सी ड्राइवर का कहना है कि 5 साल पहले दिल्ली के कीर्ति नगर में उसका अपना फर्नीचर का बिजनेस हुआ करता था. नोटबंदी और जीएसटी की ऐसी मार पड़ी कि बिजनेस बंद हो गया. उसका कहना है कि उस इलाके के सारे छोटे बिजनेसेस बंद हो गए. अब वो उबर की टैक्सी चलाते हैं. करियर में डिमोशन हो गया, आर्थिक तंगहाली काफी बढ़ी. कभी लोगों को नौकरियां देते थे लेकिन अब कस्टमर के इंतजार में घंटों गुजर जाते हैं.

लेकिन इनको लगता है कि मोदी है तो मुमकिन है. इनके भरोसे को जिंदा रखते हैं समय-समय पर फ्लोट होने वाले सपने जो इनको भरोसा देते हैं कि मुसीबत जाने वाली है और अच्छे दिन बस आने ही वाले हैं.

WhatsApp दिखा रहा है नए-नए सपने

राज मानते हैं कि पांच साल में कई मुसीबतें आईं. खाने के लाले नहीं पड़ते थे. अब पड़ते हैं. बच्चों की फीस समय पर जाती थी. अब डेडलाइन से डर लगता है. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के रिसर्च की भी खबर है जिसमें कहा गया है कि नोटबंदी के बाद देश में 50 लाख नौकरियां गई हैं. लेकिन परवाह नहीं, एक सपना पूरा नहीं होते दिखता है तो WhatsApp पर नए सपने आ जाते हैं और फिर से भरोसा जग जाता है कि कुछ तो हो रहा है.

पिछले 2 साल में, मैं सैकड़ों ड्राइवरों से मिल चुका हूं. कोई उत्तराखंड का मिला तो कोई बिहार का. कोई यूपी का है तो कोई हरियाणा से. सबको WhatsApp के जरिए नए सपनों की रेगुलर सप्लाई मिलती है. बहुत सारे एक सपने से दूसरे सपने में आसानी से ट्रांजिशन कर लेते हैं. ऐसे में सपने पूरे हुए या नहीं, इसका हिसाब लगाने का टाइम ही नहीं है. एक वादे से दूसरे में वैसा ही ट्रांजिशन हो जाता है जैसे फेसबुक से टिक-टॉक में हो जाता है.

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विदेश में 'बढ़ी' हैसियत से बने मोदी के मुरीद

“उत्तराखंड तो मोदीमय है, डिजिटल इंडिया ने तो राज्य की तस्वीर ही बदल दी है”, उत्तराखंड के एक ड्राइवर ने मुझे 3 महीने पहले बताया था. उसके हिसाब से डिजिटल इंडिया का मतलब है कि उसके मोबाइल में अब पेटीएम की एंट्री हो गई है. और क्या चाहिए. “विदेश में हमारी हैसियत काफी बढ़ गई है,” अगले दिन बिहार के एक ड्राइवर ने ये कहकर रौब जमाने की कोशिश की.

हैसियत बढ़ी है तो हमारा एक्सपोर्ट तेजी से बढ़ना चाहिए था. वो उल्टा घट ही गया है, और वो भी तब जब ग्लोबल ट्रेड और ग्रोथ दोनों पिछले पांच साल में ठीक रहा है. हमारे पड़ोसी देश हमारी धाक मानते. लेकिन यहां तो चीन और पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते और बिगड़ गए. नेपाल से दोस्ती में भी वो गर्माहट नहीं है. तो बढ़ी हैसियत का फायदा कहीं दिख रहा है क्या?

लेकिन इनके सपने तेजी से बदलते रहते हैं, बनने-बिगड़ने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती है. और उस पर से अपने धर्म पर गर्व होने की चाशनी अलग से. “हमारे जैसे लोगों को तो सच में फायदा हुआ है. इलाके के मुसलमान अब औकात में रहते हैं,” नोएडा निवासी एक ड्राइवर से गर्व के साथ अपना हाल-ए-दिल हमें बताया.

विश्लेशकों का कहना है कि सपनों की दुनिया के सहारे जीना एक पलायनवाद है, बिल्कुल धार्मिक हफीम की तरह, जो रोजमर्रा की दिक्कतों को नजरअंदाज करने का बल देता है. इसीलिए इसकी अपनी अपील रहती है. लेकिन इससे अलग हमें कई ऐसे टैक्सी ड्राइवर भी मिले जिनके लिए हकीकत की कड़वी सच्चाई के सामने रोज बदलते सपने टिक ही नहीं पाते हैं.

“प्रधानमंत्री संसद में उबर-ओला के ड्राइवरों का बखान करते हैं. उनको कभी लगा कि हमारी हालत कैसी है. प्रतिकिलोमीटर रेट जो हमें मिलता है वो ईंधन और गाड़ी के रखरखाव के लिए भी काफी नहीं है. उस पर से टैक्स का बढ़ता बोझ. उस पर से राष्ट्रीय सुरक्षा का ज्ञान परोसा जाता है. फेंकने की भी हद होती है. हमारी कौम तो तंग आ गई है,”
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का रहने वाले एक ड्राइवर

इनके जैसे कई ड्राइवर ऐसे मिले जिनकी शिकायतों की लंबी लिस्ट है—नोटबंदी ने बर्बाद कर दिया, जीएसटी के बाद किराएदार कम मिलते हैं, जन-धन से कुछ नहीं मिला, रसोई गैस महंगा मिलता है, पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े और लोगों ने उफ्फ तक नहीं की, जॉब मार्केट गायब हो गया है. और इस सबके बीच आक्रामक राष्ट्रवाद की घूंट कड़वी लगती है. “पुलवामा का हमला हमारी नाकामी थी. और उसके बारे में छाती पीट-पीटकर बातें हो रही है. हद हो गई,” उत्तर प्रदेश के हापुड़ के रहने वाले एक ड्राइवर ने डरते-सहमते अपनी बातें बताई.

ड्राइवरों की खासियत होती है कि अलग-अलग तरह के बहस से वो वाकिफ होते हैं. उनके इनपुट में विविधता होती है. उनकी बातचीत से तो यही लगता है कि ये ग्रुप भी प्रो और एंटी मोदी खेमे मे पूरी तरह से बंटा हुआ है. एक बात का अनुमान लगाना मुश्किल है- इनका वोट नित नए सपनों को समर्पित होगा या फिर रोटी-कपड़ा और मकान के नाम पर जाएगा.

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