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केंद्र सरकार (Union government) ने आईएएस (कैडर) नियमों (IAS (Cadre) Rules) में एक संशोधन का सुझाव दिया है. इस संशोधन के लागू से होने से केंद्र सरकार, राज्य सरकारों से चर्चा किए बिना आईएएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेज सकेंगी. सही मायने में देखें तो इस एक संशोधन के जरिये अखिल भारतीय सेवाओं (AIS) की प्रकृति को बदल दिया जाएगा और ये सेवाएं मूलत: केंद्रीय सेवाओं में तब्दील हो जाएंगी.
जब भारत एक राजनीतिक देश के रूप में गठित किया गया था, तब संविधान के संस्थापकों या निर्माताओं ने ये माना था कि काम कर रहीं केंद्रित ताकतें इस नए राष्ट्र को अलग कर सकती हैं. विभिन्न भाषाओं, खान-पान की आदतों, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों आदि के साथ रियासतों और तत्कालीन ब्रिटिश प्रांतों के समामेलन के रूप में देश को एक साथ रखना, केंद्र के लिए कठिन या असंभव होगा.
नतीजतन, उन्होंने एक एकीकरण उपकरण तैयार किया, जो देश की विविधता की गहरी समझ और ऐसी विविधता में एकता के निर्माण की कठिनाई से उत्पन्न हुआ था.
एक संघीय ढांचे में, जहां पर राज्यों को उनके लिए परिभाषित किए गए अधिकार क्षेत्र के भीतर कानूनों बनाने और उन्हें लागू करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी, इसके बाद राज्य के कानूनों के तहत जरूरी प्रशासनिक सेवाओं का गठन किया जाएगा. इसी तरह केंद्र भी अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली चीजों को प्रशासित करने के लिए सेवाओं का निर्माण करेगा.
हालांकि, संकीर्णता का मुकाबला करने और राज्य प्रशासन में बेहतर राष्ट्रीय दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए, एक ऐसी सेवा स्थापित करने की धारणा प्रस्तावित की गई थी, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की सेवा करेगी. इसे केंद्र और राज्यों के बीच एक "सेतु" की तरह भी देखा गया था.
राज्यों द्वारा "अधिकृत" होने के बाद ही केंद्र AIS बना सकता है और ऐसे अधिकारियों की भर्ती कर सकता है, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए काम करेंगे. इसलिए संविधान निर्माताओं ने AIS के गठन में राज्यों की सहमति को शामिल किया था.
भारत की संविधान सभा ने 8 सितंबर, 1949 को अनुच्छेद 282 (सी) पर बहस के लिए बैठक की, जो बाद में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 312 बन गया. संसद के ऊपरी सदन (राज्य सभा) को दी गई शक्ति और अखिल भारतीय सेवाओं के गठन के संबंध में निचले सदन (लोकसभा) को कोई शक्ति नहीं देने के मुद्दे पर एक लंबी बहस हुई.
संविधान सभा के सदस्यों को जवाब देते हुए डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा, "अनुच्छेद 282, इस प्रस्ताव को निर्धारित करते हुए आगे बढ़ता है कि केंद्र के पास उन सेवाओं के लिए भर्ती करने का अधिकार होगा जो केंद्र के अधीन हैं, और प्रत्येक राज्य उन सेवाओं की भर्ती और सेवा की शर्तें निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होगा, जो राज्य के अधीन हैं. इसलिए, हमने अनुच्छेद 282 के तहत पूर्ण अधिकार क्षेत्र प्रदान किया है. अनुच्छेद 282 द्वारा राज्यों को दी गई स्वायत्तता को अनुच्छेद 282 (सी) कुछ हद तक छीन लेता है. और जाहिर है अगर इस स्वायत्तता का उल्लंघन किया जाना है, तो ऐसा करने के लिए केंद्र को कुछ अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए. कहने के लिए, अनुच्छेद 282 ऊपरी सदन के सदस्यों के दो-तिहाई सदस्यों की सहमति सुरक्षित करना है. अनुच्छेद 282 में केवल ऊपरी सदन को एक निकाय के रूप में वर्णित किया गया है. पूर्व में जो परिकल्पना दी गई, उसके मुताबिक, ऊपरी सदन राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इसका संकल्प राज्यों द्वारा दिए गए अधिकार के बराबर होगा.”
यही कारण है कि इन शब्दों को अनुच्छेद 282 सी में शामिल किया गया है. भारत के संविधान में, अनुच्छेद 312 में कहा गया है, "(1) अध्याय 6 के भाग 6 या भाग 11 में किसी बात के होते हुए भी, अगर राज्यसभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा ये घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में ऐसा करना जरूरी या ठीक है, तो संसद, कानून द्वारा, एक या इससे अधिक अखिल भारतीय सेवाओं (AIS) को बनाने के लिए प्रावधान कर सकती है..."
अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951, अनुच्छेद 312 में संवैधानिक व्यवस्था को दर्शाता है. अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है, "(1) केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकारों से चर्चा करने के बाद... भर्ती के लिए नियम और सेवा की शर्तें बना सकती है..." अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 की प्रस्तावना में स्वीकार किया गया है कि "अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 की धारा 3 की उप-धारा (1) द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के परामर्श से निम्नलिखित नियम बनाती है…”
इन सेवाओं की अखिल भारतीय प्रकृति को बनाए रखने के लिए, ये निर्धारित किया गया था कि किसी राज्य के लिए भर्ती किए गए व्यक्तियों में से दो-तिहाई व्यक्ति उस राज्य के भीतर से नहीं होने चाहिए. नतीजतन, शीर्ष नौकरशाही और पुलिस अधिकारी अपने संबंधित राज्यों से नहीं होंगे, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था निष्पक्ष बनी रहे.
अगर केंद्र सरकार प्रस्तावित संशोधनों को आगे बढ़ाने में लगी रही, तो राष्ट्र-निर्माण के लिए डिजाइन किया गया एक शानदार प्रशासनिक आर्किटेक्चर, जो अभी भी अधूरा है, वो नष्ट हो जाएगा.
(लेखक भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव रह चुके हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट की इसमें सहमति जरूरी नहीं है.)
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