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चंद्रबाबू नायडू ने कैसे लिखी आंध्र फतह की कहानी? जगन अपने खेल में हारे- पवन कल्याण मैन ऑफ मैच

Andhra Pradesh Election results 2024: 40% वोट शेयर पाने के बावजूद YSR कांग्रेस को आंध्र प्रदेश में करारी हार का सामना क्यों करना पड़ा

के नागेश्वर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Andhra Pradesh Vidhan sabha Election 2024</p></div>
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Andhra Pradesh Vidhan sabha Election 2024

(Photo: Altered By Quint Hindi)

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Andhra Pradesh Election results 2024: आंध्र प्रदेश में एक अभूतपूर्व राजनीतिक सुनामी आई जिसने वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस को बहा दिया. मौजूदा सीएम कुर्सी से बहुत दूर चले गए और एन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जन सेना और बीजेपी का गठबंधन आंध्र प्रदेश में सत्ता में आ गया.

राजनीतिक पंडितों के साथ-साथ आम जनता भी इस बात से हैरान है कि तेलुगु देशम पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने इतना शानदार प्रदर्शन कैसे किया, वह भी जगन सरकार की रिकॉर्ड संख्या में कल्याणकारी योजनाओं के लाने के बावजूद.

आश्चर्य की बात नहीं है कि 4 जून को फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, जगन ने चुनावी जनादेश पर अपना संदेह व्यक्त किया. साथ ही स्वीकार किया कि उनके पास अपने संदेह को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है.

2023 के विधानसभा चुनाव में लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर ने ही कांग्रेस को पड़ोसी राज्य तेलंगाना में सत्ता में ला दिया था. लगभग इतना ही वोट शेयर पाने के बावजूद वाईएसआरसीपी को आंध्र प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा.

आंकड़ों के इस विरोधाभाष के पीछे की वजह राज्य की राजनीति है और वोट प्रतिशत को इसके माध्यम से समझा जाना चाहिए. तेलंगाना के विपरीत, आंध्र प्रदेश में युद्ध में उलझे दो खेमों के बीच ऐसा ध्रुवीकरण देखा गया जो पहले कभी नहीं हुआ. नतीजा यह हुआ कि एक बढ़ा वोट शेयर पाकर भी वाईएसआरसीपी की अपनी निराशाजनक हार को नहीं टाल सकी.

टीडीपी- जन सेना को जोड़ी असली गेम चेंजर

टीडीपी और जन सेना के बीच चुनावी गठबंधन असली गेम चेंजर था. इसने टीडीपी कैडर में ऊर्जावान फूंक दी और जगन के आलोचकों में आत्मविश्वास जगाया.

इसके वजह से स्विंग वोट में बदलाव आया. इस दुर्जेय गठबंधन के समीकरण ने 2019 में अपनी ऐतिहासिक जीत के कारण जगन के आसपास बनी अजेयता की इमेज को तोड़ दिया.

टीडीपी और जन सेना का एक साथ आना महज एक राजनीतिक गठबंधन नहीं था. इसने दो प्रमुख जातियों, कम्मा और कापू के बीच एक अप्राकृतिक सामाजिक गठबंधन की शुरुआत की, जो कई दशकों में अनसुना था. इस जातिगत समीकरण ने राज्य के तटीय क्षेत्र में राजनीतिक परिदृश्य को नाटकीय रूप से बदल दिया.

मैन ऑफ द मैच पवन कल्याण रहे

राजनीतिक मैथ के साथ-साथ एक मजबूत राजनीतिक केमिस्ट्री भी है जो लगातार नरैटिव सेट करने के साथ उपजता है. जन सेना के प्रमुख और एक्टर से नेता बने पवन कल्याण इस नए राजनीतिक गठजोड़ के मुख्य वास्तुकार थे और यह वाईएसआरसीपी के लिए घातक साबित हुआ.

कल्याण जगन विरोधी वोटों के बिखराव को रोकने की पहल करने वाले पहले शख्स थे. इसने एक मजबूत राजनीतिक नैरेटिव तैयार किया, जिससे टीडीपी-जन सेना के समझौते को वैधता मिल गई, बावजूद इसके कि दोनों पार्टियां पहले आमने-सामने थीं.

इसने दोनों पार्टियों और उनके नेताओं के बीच व्यक्तिगत और राजनीतिक दुश्मनी के बावजूद टीडीपी की एनडीए में वापसी को भी वैधता दी. दरअसल, कल्याण ने बीजेपी और टीडीपी को एक साथ लाने में अहम भूमिका निभाई थी. भगवा ब्रिगेड शुरू में टीडीपी को गले लगाने के लिए तैयार नहीं थी.

कल्याण ने एनडीए में रहते हुए भी टीडीपी के साथ गठबंधन करने के अपने फैसले की घोषणा की. इस घोषणा का समय और स्थान भी मायने रखता था. उन्होंने यह घोषणा राजमुंदरी सेंट्रल जेल के ठीक सामने की, जहां चंद्रबाबू नायडू कौशल विकास घोटाले में कैद थे.

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इससे टीडीपी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा, जो पार्टी सुप्रीमो की गिरफ्तारी के बाद निराश थे. इस तरह, कल्याण ने टीडीपी समर्थकों के दिलों में जगह बना ली. इसी वजह से दोनों के गठबंधन के बीच वोटों का पूरी तरह ट्रांसफर संभव हो पाया.

पवन कल्याण ने टीडीपी और जन सेना, दोनों के कार्यकर्ताओं और वोटरों को सफलतापूर्वक यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि यह साझेदारी दोनों के लिए फायदेमंद है. तब तक टीडीपी अपने दम पर जगन को हराने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास नहीं जुटा पाई थी क्योंकि उस समय वह अजेय लग रहे थे.

जन सेना समर्थकों और वोटरों को भी विश्वास हो गया कि विधानसभा में पार्टी की मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए टीडीपी के साथ गठबंधन जरूरी था. इस तरह, पवन कल्याण मैन ऑफ द मैच बनने के हकदार हैं क्योंकि यह उनकी रणनीति थी जिसने चुनावी मैथ और राजनीतिक केमिस्ट्री को जीत दिलाई.

इसके अलावा, टीडीपी और जन सेना की जोड़ी इतनी चतुर थी कि उसने बीजेपी को अपने साथ जोड़ लिया. भले ही बीजेपी का राज्य में वोट शेयर बहुत कम है लेकिन इस गठबंधन से दो तरह से मदद मिली.

चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने पुलिस महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) सहित कई अधिकारियों को बदल दिया. ऐसे समय में जब टीडीपी और जन सेना, जगन शासन की मजबूत रणनीति का सामना कर रही थी, उसे चुनावी फंडिंग और चुनाव मैनेजमेंट के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार के समर्थन की दरकार थी.

कल्याणकारी योजनाओं की सीमाएं

दूसरी तरफ, जगन की उम्मीदें पूरी तरह से अपनी सरकार की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (कल्याणकारी) योजनाओं पर टिकी थीं.बेलगाम कल्याणवाद एक अस्थिर अर्थशास्त्र है. लेकिन चुनाव में जगन के निराशाजनक प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि यह राजनीतिक रूप से भी अस्थिर हो सकता है.

जगन सरकार के असीमित कल्याणवाद ने राज्य के खजाने को अनिश्चित बना दिया और राज्य पर बढ़ता कर्ज उनके विरोधियों के लिए एक राजनीतिक हथियार बन गया.

इन कल्याणकारी योजनाओं के भारी बोझ ने सरकार को वित्तीय रूप से अक्षम कर दिया. इस वजह से विकास पर होने वाला व्यय कम हो गया. इस प्रकार, उच्च जाति, उच्च वर्ग, शहरी और युवा मतदाताओं के बीच व्यापक असंतोष विशेष रूप से स्पष्ट था, जो ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल गया लगता है. और इसे ही जगन अपना अभेद्य गढ़ मानते थे.

वाईएसआर कांग्रेस अभी भी वापसी की उम्मीद कर रही थी. हालांकि, लगता है कि बेरोजगारी और आर्थिक अवसरों में सुधार की कमी के कारण उनकी असंतुलित राजनीतिक रणनीति उलट गई. इस वजह से वोटरों का बड़ा वर्ग अलग-थलग पड़ गया.

साथ ही, कल्याणवाद के राजनीतिक समाजशास्त्र में बदलाव ने भी जगन की सत्ता बरकरार रखने में विफलता में योगदान दिया है. पहले वोटर कल्याणकारी योजनाओं के लिए सत्ता में मौजूद नेताओं के लिए कृतज्ञता का भाव रखते थे. अब, वोटरों में यह भावना देखी जा रही है कि चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो, कल्याणकारी योजनाएं तो बनी रहेंगी.

एक तरफ तो जगन ने अपनी पहले से मौजूद योजनाओं को बढ़ाने का वादा किया था, वहीं एक कदम आगे बढ़कर नायडू ने वादा कर दिया कि वो कल्याणकारी एजेंडे के एक संशोधित वर्जन लाएंगे- उन्होंने इसे 'सुपर सिक्स' कहा. चुनाव जीतने की कोशिश में, नायडू अपनी राजनीति के ब्रांड से दूर चले गए और एक महत्वाकांक्षी कल्याणकारी एजेंडा को अपनाया.

इसके अलावा, टीडीपी ने सफलतापूर्वक भूमि मालिकों के बीच एक अभूतपूर्व भय पैदा कर दिया कि अगर जगन फिर से सीएम बने, तो वाईएसआर कांग्रेस सरकार के भूमि स्वामित्व कानून से उनकी जमीनें छीन ली जाएंगी. जबकि, इस कानून का सुझाव नीति आयोग ने दिया था और राज्य विधानसभा में टीडीपी ने इसका समर्थन किया था.

जवाब में वाईएसआर कांग्रेस बचाव करने में विफल रही. भविष्य में होने वाले लाभ के लालच की तुलना में डर अधिक प्रभाव डालती है.

पार्टी और लोगों के बीच दूरी

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की योजनाओं ने सत्ताधारी पार्टी के जमीनी स्तर के राजनीतिक संगठन और वोटरों के बीच एक अलगाव पैदा कर दिया. मुख्यमंत्री की पार्टी नेताओं तक पहुंच न होने से स्थिति और भी गंभीर हो गई है. इस प्रकार, जगन ने अपने कदमों से पार्टी तंत्र को काफी कमजोर कर दिया.

अमरावती छोड़कर तीन राजधानी बनाने का त्रुटिपूर्ण और असफल विचार, नायडू की गिरफ्तारी और दुर्व्यवहार, विरोध के आवाजों को दबाना, वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं का कथित भ्रष्टाचार, मजबूत सत्ता विरोधी लहर और बहन वाईएस शर्मिला का विद्रोह- सभी ने आग में घी डालने का काम किया है.

जगन ने जिस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए कड़ी मेहनत के साथ पार्टी को मजबूत किया, वो ताश के पत्तों की तरह ढह गई.

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