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Chandrayaan 3 Mission: असफलताएं हमें तकलीफ जरूर दे सकती हैं लेकिन वे हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं. जब सही अर्थों में आकाश ही सीमा हो तो आपको उस रास्ते में मिली बाधाओं को सम्मान के रूप में स्वीकार करना चाहिए.
जब 2001 में श्रीहरिकोटा से भारी-भरकम उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए भारत के GSLV स्पेस रॉकेट को लॉन्च किया गया था तो मैं वहां मौजूद था. यह हल्के वजन के उपग्रहों को ढोने में सक्षम PSLV वैराइटी के रॉकेट के बाद एक बड़ा कदम था. हम वहां जेहन में बड़ी आशाओं के साथ खड़े थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ. मैंने एक इंटरनेशनल न्यूज एजेंसी के लिए असफल टेक-ऑफ की खबर रिपोर्ट की. इसरो ने जल्द ही इस खोए मौके की भरपाई कर ली.
पिछले हफ्ते, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चंद्रयान-3 रॉकेट सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ तब, मुझे टीवी पर वह दृश्य देखने को मिला जो मैं 22 साल पहले नहीं देख पाया था. मेरे सामने से वो दो दशक गुजरे जिनमें ISRO का ट्रैक रिकॉर्ड कम से कम तीन बार खराब हुआ. लेकिन अंतरिक्ष में भारत के लिए ये दो दशकों की यात्रा कितनी उपलब्धि भरी रही है.
PSLV से लेकर GSLV, चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले रॉकेट से लेकर वास्तव में मंगल ग्रह पर उतरने वाले रोवर तक, ऐसा बहुत कुछ है जिस पर ISRO के मेहनती वैज्ञानिकों को गर्व हो सकता है.
आज से साठ साल पहले 1963 में भारत ने अपना पहला मामूली रॉकेट तत्कालीन त्रिवेन्द्रम से छोड़ा था. इससे एक साल पहले ही आधिकारिक रूप से भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम शुरू हुआ था. पहले रॉकेट लॉन्च के छह साल बाद एक डेवलॅापमेंट एजेंसी के रूप में इसरो का जन्म हुआ.
पहला भारतीय उपग्रह, आर्यभट्ट, अप्रैल 1975 में लॉन्च किया गया था. यह बात सच है कि अंतरिक्ष में भारत की यात्रा और अबतक साधे गए मील के पत्थरों के बीच इस रास्ते में आने वाली बाधाएं हमें नजर नहीं आती.
उत्सुक स्कूली बच्चों से मेल खाने वाले वैज्ञानिकों के चेहरे की मासूमियत उनकी क्षमताओं से एकदम विपरीत है. यह दृश्य उतना ही मनमोहक है जितना ठीक उसी समय विशाल रॉकेटों को अंतरिक्ष में पहुंचाने वाले क्रायोजेनिक इंजन की दहाड़ को देखना होता था.
हालांकि, 2019 में, चंद्रमा की सतह पर भारतीय तिरंगे झंडे को सफलतापूर्वक फहराने करने के बाद चंद्रयान -2 मिशन का अपने प्रज्ञान रोवर से संपर्क टूट गया. हम सांस रोककर इंतजार कर रहे हैं क्योंकि यह देखना बाकी है कि क्या चंद्रयान-3 वहीं से आगे की सफलता लिखेगा, जहां चंद्रयान-2 ने छोड़ा था.
हालांकि ISRO को मिल रही शानदार सफलताओं के बीच एक बड़े व्यावसायिक झटके पर भी विचार करना चाहिए, जिसमें इसरो की कमर्शियल आर्म- एंट्रिक्स कॉरपोरेशन भी शामिल है. 2001 में GSLV की स्टार्टअप विफलता और 2019 में चंद्रयान के खोए हुए रोवर के बीच, इसरो की कमर्शियल आर्म एंट्रिक्स एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी पचड़े में फंस गई, जो इसकी प्रगति पर बाधा बनी हुई है.
देवास मल्टीमीडिया और भ्रष्टाचार से घिरे एंट्रिक्स के बीच कोर्ट केस चला जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने एंट्रिक्स को आदेश दिया कि वह देवास को 562 मिलियन डॉलर का हर्जाना दे. इसके बाद 2023 की शुरुआत में, दिल्ली हाई कोर्ट ने देवास पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाते हुए इस हर्जाना राशि के खिलाफ एंट्रिक्स के पक्ष में फैसला सुनाया.
एंट्रिक्स का मानना है कि ICC ट्रिब्यूनल द्वारा थोपा गया हर्जाना भारतीय कानूनों और सार्वजनिक नीति सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. हालांकि, रिकॉर्ड पर, जैसा कि एंट्रिक्स के ऑडिटर्स ने पिछले साल बताया था, लगभग 6,400 करोड़ रुपये की यह लंबित मुकदमेबाजी उसे परेशान कर रही है.
देवास सौदा एक गड़बड़ था, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह इसरो और एंट्रिक्स के लिए अवसरों के रास्ते में खड़ा था. एंट्रिक्स, जिसका एक समय एक वैश्विक सेटेलाइट लॉन्च वेंचर के रूप में महत्वाकांक्षी इरादा था, अब अपने रास्ते में ही मौन हो गया है. हालांकि यह अभी भी विभिन्न स्पेस और सेटेलाइट वेंचर के अलावा मनोरंजन और टेलीफोनी जैसे क्षेत्रों में लाभप्रद रूप से सेवा दे रहा है.
एंट्रिक्स के घोटाले से घिरे वर्षों के दौरान भारत में सामने आये "यूनिकॉर्न" टैग वाले अरबों डॉलर के विज्ञान और तकनीकी स्टार्टअप की संख्या को देखते हुए, इसरो के इस कमर्शियल आर्म की महत्वाकांक्षाओं की राह में नौकरशाही दृष्टिकोण की पहाड़ को देखना निराशाजनक है.
एंट्रिक्स आगे चंद्रयान-3 से मेल खाती प्रेरणा देने वाली लिफ्ट-ऑफ की हकदार है. जिस तरह चंद्रयान-2 की असफलताओं ने इसरो के वैज्ञानिकों को विचलित नहीं किया, उसी तरह एंट्रिक्स को अपनी व्यावसायिक शाखा के नए लॉन्च के लिए मोदी सरकार से समर्थन की जरूरत है.
संभवतः इसे फाइनेंसियल इंजीनियरिंग और पुनर्गठन उपायों की आवश्यकता है जो एंट्रिक्स को अतीत में उसके केवल कुछ अधिकारियों द्वारा किए गए कामों का बोझ उठाने से बचाएंगे. ऐसे एंट्रिक्स भारत सेटेलाइट और स्पेस टेक्नोलॉजी का उपयोग करके एक वैश्विक लेवल पर डेवलॉपमेंट सर्विस प्रोवाइडर बन सकता है. मेरी समझ से, सेटेलाइट्स या रॉकेटों से संबंधित कुछ भी करने में एंट्रिक्स एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों के लिए इंफोसिस या विप्रो हो सकता है.
पश्चिमी देशों के पास एलन मस्क, जेफ बेजोस और रिचर्ड ब्रैनसन जैसे दिग्गज हैं जिन्होंने अंतरिक्ष पर्यटन जैसे ग्लैमरस मिशन पर ध्यान केंद्रित किया है. दूसरी तरफ एंट्रिक्स यह दिखाने के लिए एक काउंटर-ब्रांड हो सकता है कि ग्लोबल साउथ के आम लोग किस तरह भारत की क्षमताओं से लाभ उठा सकते हैं.
हो सकता है कि सरकार एक संप्रभु गारंटी के माध्यम से एंट्रिक्स के मुख्य संचालन को अपने हाथ में ले सकती है और/या किसी भारतीय कंपनी को कानूनी दबाव से बचाने के लिए अपने बढ़ते अंतरराष्ट्रीय राजनयिक प्रभाव का उपयोग कर सकती है. एक अन्य विकल्प है कि एंट्रिक्स के साथ मिलकर सरकार स्पेशल पर्पज व्हीकल बनाने के लिए पारदर्शी और नैतिक रूप से गठित ज्वाइंट वेंचर शुरू कर सकती है और उसके लिए प्राइवेट इक्विटी फंडिंग ला सकती है.
आगे का रास्ता जो भी हो, अब समय आ गया है कि एंट्रिक्स आकाश में अपनी बुलंदियों को छुए.
(लेखक एक सीनियर जर्नलिस्ट और टिप्पणीकार हैं. उन्होंने रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए काम किया है. उनसे ट्विटर @madversity पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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