मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019चीन वित्तीय संकट की तरफ बढ़ रहा है- क्या विश्व को एक और झटका मिलेगा

चीन वित्तीय संकट की तरफ बढ़ रहा है- क्या विश्व को एक और झटका मिलेगा

China 2008 के सबप्राइम संकट की पुनरावृत्ति की ओर बढ़ रहा है.

राकेश बोरार
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>चीन वित्तीय संकट की तरफ बढ़ रहा है- क्या विश्व को एक और झटका मिलेगा</p></div>
i

चीन वित्तीय संकट की तरफ बढ़ रहा है- क्या विश्व को एक और झटका मिलेगा

(फोटो- पीटीआई)

advertisement

ड्रैगन ने पहले से त्रस्त दुनिया में कदम रख दिया है. ऐसा लगता है कि चीन (China) के हालात विश्व अर्थव्यवस्था को बहुत बुरा झटका देंगे. जैसे चीनी मिट्टी की दुकान में किसी पगलाए सांड का घुस जाना. ऐसी स्थिति में नुकसान कितना बड़ा होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

पिछले साल से ये खबरें हैं कि सप्लाई में रुकावटें हैं और रियल एस्टेट डेवलपर्स डीफॉल्ट कर रहे हैं लेकिन दुनिया ने उन खबरों पर ध्यान नहीं दिया. वह रूस-यूक्रेन युद्ध और विश्वव्यापी मुद्रास्फीति में उलझी हुई है. इकोनॉमिस्ट्स और फंड मैनेजर्स अब तक अमेरिका और यूरोप में मंदी और छोटे देशों के ऋण संकट से परेशान हैं. लेकिन चीन एक जोरदार धक्का दे सकता है. वहां कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है और मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं.

  • इकोनॉमिस्ट्स अब तक अमेरिका और यूरोप में मंदी और छोटे देशों के ऋण संकट से परेशान हैं. लेकिन चीन एक जोरदार धक्का दे सकता है.

  • पिछले साल चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे जिस पर करीब 300 अरब डॉलर का कर्ज था, उसने अपने बॉन्ड रीपेमेंट्स में डीफॉल्ट किया. अब रियल एस्टेट पूरे देश को डुबो रहा है.

  • 2022 की पहली तिमाही में विदेशी निवेशकों ने 43 अरब डॉलर की निकासी की थी क्योंकि ब्याज अंतर बढ़ गया था. 'जीरो कोविड' नीति के साथ अर्थव्यवस्था सिकुड़ती रहेगी, जिससे कैपिटल आउटफ्लो बढ़ने का खतरा है.

  • पिछले हफ्ते से चीन के 91 शहरों में 300 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स में मकान मालिकों ने मार्गेज ईएमआई चुकाने से इनकार कर दिया है क्योंकि डेवलपर्स उन्हें मकान नहीं दे रहे. ऐसा लगता है कि चीन में 2008 की आर्थिक मंदी को फिर से दोहराया जा रहा है.

  • स्थानीय सरकारें तहस-नहस हो चुकी हैं. एक ट्रिलियन डॉलर की कमी के अलावा उनके सिर पर बकाया बॉन्ड और उधारियों के तौर पर सात ट्रिलियन डॉलर का उधार है.

  • चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ रहा है, जो उसके जीडीपी का 264% है (इसमें कॉरपोरेट और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं).

कैसे रियल एस्टेट ने अर्थव्यस्था को रौंद दिया है

पिछले साल चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे जिस पर करीब 300 अरब डॉलर का कर्ज था, उसने अपने बॉन्ड रीपेमेंट्स में डीफॉल्ट किया. अब रियल एस्टेट पूरे देश को डुबो रहा है. चीन की जीडीपी में रियल एस्टेट का हिस्सा 25% से ज्यादा है. वर्षों से चीन ने संरचनात्मक रूप से एक असंतुलित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया है जिसमें रियल एस्टेट को बहुत अधिक एक्सपोजर मिला है. घरेलू संपत्ति का 78% हिस्सा रियल एस्टेट होल्डिंग्स के रूप में है. परिवार मिलकर संसाधन जुटाते हैं और उससे घर खरीदते हैं, और इसलिए चीनी लोगों के लिए यह बहुत अहम है कि उनका अपना घर है. पिछले हफ्ते से चीन के 91 शहरों में 300 से ज्यादा प्रॉजेक्ट्स में मकान मालिकों ने मार्गेज ईएमआई चुकाने से इनकार कर दिया है क्योंकि डेवलपर्स उन्हें मकान नहीं दे रहे. ऐसा लगता है कि चीन में 2008 की आर्थिक मंदी को फिर से दोहराया जा रहा है.

रियल एस्टेट में बैंकों का कुल 9.2 ट्रिलियन डॉलर लगा हुआ है. मकान खरीदारों और डेवलपर्स के डीफॉल्ट से चीन में बड़ा बैंकिंग संकट खड़ा हो सकता है, जिसका असर विश्व स्तर पर पड़ेगा. कुछ महीने पहले हेनान के ग्रामीण बैंकों ने जनता की जमा राशि को फ्रीज कर दिया क्योंकि वह भुगतान करने में असमर्थ है. स्थानीय नेता फंड्स के डायवर्जन के आरोपों के बीच डीफॉल्ट करने वाले बैंकों को बचा रहे हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि बैंक ऑफ चाइना ने इन डिपॉजिट्स को 'निवेश उत्पाद' घोषित कर दिया है और इन्हें वापस नहीं लिया जा सकता है.

स्थानीय सरकारें तहस नहस हो गई हैं

चीन एक परंपरावादी समाजवादी अर्थव्यवस्था की तरह बर्ताव कर रहा है, जहां किसी के पास अपना कुछ नहीं है और सब कुछ राज्य का है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने उन लोगों को दूर रखने के लिए सड़कों पर टैंक तैनात किए हैं, जिनकी जमा राशि डिफॉल्ट करने वाले बैंकों ने फ्रीज की है. सेना और पुलिस मिलकर डीफॉल्ट करने वाले बैंकों और डेवलपर्स को उन नागरिकों से बचा रहे हैं जिनकी जिंदगी भर की कमाई लुटने की कगार पर है.

इससे बड़ी खबर यह है कि स्थानीय सरकारें तहस नहस हो चुकी हैं. एक ट्रिलियन डॉलर की कमी के अलावा उनके सिर पर बकाया बॉन्ड और उधारियों के तौर पर सात ट्रिलियन डॉलर का उधार है. सरकारों की तिजोरियां खाली हैं, चूंकि रियल एस्टेट, यानी भूमि उपयोग के अधिकारों की बिक्री, उनकी कमाई का मुख्य स्रोत था.

केंद्र सरकार मदद करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ रहा है, जो उसके जीडीपी का 264% है (इसमें कॉरपोरेट और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं). स्थानीय सरकारें 10% पर धन उधार ले रही हैं, जबकि बचत खातों के लिए बैंक दर 1% से कम है क्योंकि ये 10% ब्याज बॉन्ड जंक बॉन्ड के बराबर साबित होंगे.

क्योंकि भरोसा टूट गया है

चीन की ‘जीरो कोविड’ नीति लोगों और देश की अर्थव्यवस्था की मानसिक सेहत बिगाड़ रही है. लॉकडाउन बार-बार लगने की वजह से पिछली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर केवल 0.4% रही है. सप्लाई में रुकावट और प्रोडक्शन शेड्यूल में ब्रेकडाउन से उद्यमियों और कारोबार पर असर हुआ है. कोविड-19 के बाद कई ग्लोबल मैन्यूफैक्चरर्स चीन से चले गए हैं और दुनिया नए सप्लायर्स की तलाश में है. सेमीकंडक्ट की कमी के चलते विश्व स्तर पर ऑटो इंडस्ट्री को उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है.

और चीन, जिसे अगला सुपरपावर माना जा रहा है, उसे अभी लंबा रास्ता तय करना है. हालांकि उसने दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने लायक प्रदर्शन किया है और विश्व मंच पर उसकी मौजूदगी शानदार है. लेकिन दुनिया चीन पर भरोसा करने से कतराती है. कोविड-19 महामारी के बाद हालात और बुरे हुए हैं. उसे हमलावर की तरह देखा जा रहा है. अमेरिका के साथ उसका वह रिश्ता नहीं रहा, जो 35 साल पहले था. क्वाड सदस्य भी चीन के आर्थिक और सैन्य विस्तार को समेटने में तेजी से जुटे हुए हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
भारत ने हाल ही में बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी का हवाला देते हुए चीन की टेलीकॉम कंपनियों पर नकेल कसी है. भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में चीन के एफडीआई प्रस्तावों को भी खारिज किया है.

कोविड-19 महामारी के बाद से चीन-ऑस्ट्रेलिया व्यापार को भी नुकसान पहुंचा है. दूसरी तरफ ब्रिटेन में ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के समय अपने मेनिफेस्टो में चीन विरोधी रुख का खुलासा कर दिया था. वि-वैश्वीकरण यानी डी-ग्लोबालइजेशन और चीन विरोधी भावनाएं मध्यम अवधि में चीन के व्यापार और निवेश पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं.

चीन लोन दे रहा है, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था झटपटा रही है

चीन के उद्यमियों का साम्यवादी शासन से मोहभंग हो रहा है. कई करोड़पति देश छोड़ने की जल्दी में हैं. शी जिनपिंग सरकार पूंजीवादी उद्यमियों पर निशाना साध रही है. ऐसा लगता है कि राजनीतिक विचारधारा को लेकर भ्रम पैदा हो रहा है - क्या चीन को नंबर एक की आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में काम करना चाहिए या उसे अपनी कट्टर कम्युनिस्ट कार्यशैली पर वापस लौट जाना चाहिए? चीन की जनसंख्या उसके अनुकूल नहीं है क्योंकि उसकी श्रमशील आबादी सिकुड़ रही है. अगले 15 वर्षों में चीन की 45% आबादी 60 वर्ष से अधिक आयु की होगी, और इस प्रकार बढ़ती उम्र वाले लोगों पर सरकारी खर्च बढ़ता जाएगा.

सुस्त अर्थव्यवस्था को जगाने के लिए चीनी सरकार ने एक पैकेज की घोषणा की है. वह इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण गतिविधियों के लिए 200 अरब डॉलर दे रही है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि चीन पहले से ही भारी कर्ज में डूबा हुआ है और स्थानीय सरकार का ऋण संकट इस व्यवस्था पर और दबाव डाल रही है.

चीन फेड पॉलिसी से उलट अर्थव्यवस्था में फंड्स इंजेक्ट कर रहा है जिसे एक्सपेंशनरी मॉनिटरी पॉलिसी कहते हैं. यह दरों में कटौती कर रहा है, जबकि फेड पॉलिसी में ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं. डॉलर के मजबूत होने से भी युआन और रॅन्मिन्बी पर दबाव पड़ेगा. 2022 की पहली तिमाही में विदेशी निवेशकों ने 43 अरब डॉलर की निकासी की थी क्योंकि ब्याज अंतर बढ़ गया था. 'जीरो कोविड' नीति के साथ अर्थव्यवस्था सिकुड़ती रहेगी, जिससे कैपिटल आउटफ्लो बढ़ने का खतरा है.

चीन लगातार डी-डॉलराइजेशन पर काम कर रहा है, लेकिन ग्लोबल करेंसी मार्केट में एक उपयोगी भूमिका निभाने में उसे अभी लंबा समय लगेगा. 336.1 अरब डॉलर पर, ग्लोबल फॉरेक्स रिजर्व में युआन का हिस्सा सिर्फ 2.79% है.

चीन ग्लोबल एक्सपेंशनरी नीति पर काम करता है और छोटे देशों को लोन और अंतरराष्ट्रीय प्रॉजेक्ट्स की फंडिंग करता है. लेकिन घरेलू स्तर पर उसकी अपनी वित्तीय स्थिति डांवाडोल है. इसके अलावा, झटपटाते बैंक, धराशाई रियल एस्टेट, सप्लाई में अड़ंगा, कैपिटल आउटफ्लो, बढ़ता चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटा, देश की जनता में आक्रोश और तहस-नहस होती स्थानीय सरकारें- ऐसा लगता है कि चीन की कहानी का फिलहाल क्लाइमेक्स आ गया है.

क्या चीन इस झटके से उबरेगा?

उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में चीन की वृद्धि दर औसत से कम होगी. यह तो कोई नहीं जानता कि चीन का वित्तीय और राजनैतिक तनाव कितना गंभीर होगा, लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि यह विश्व अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका देने वाला है. दुनिया में मंदी लंबी चलने की आशंका है क्योंकि 100 ट्रिलियन डॉलर की विश्व अर्थव्यवस्था में शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं का हिस्सा 60% है (इन छह में भारत शामिल नहीं है). अब जब चीन में वृद्धि सपाट या नकारात्मक है, तो हालात धुंधले दिख रहे हैं. इसके अलावा कई देश गंभीर ऋण संकट से जूझ रहे हैं, जो बढ़ती ब्याज दरों और मजबूत डॉलर के साथ हालात बदतर होने की आशंका है. मुझे संदेह है कि क्या 2022 में विश्व 3.6% की अनुमानित वृद्धि हासिल कर पाएगा. अगले साल यह आंकड़ा और कम हो सकता है.

दुनिया पहले से ही मंदी के दौर से गुजर रही है. चीन के आर्थिक और बैंकिंग संकट ने नीम को और कड़वा किया है. वह कमोडिटी के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है, और चीनी मांग में गिरावट के साथ, दुनिया को एसेट्स और कमोडिटी की कीमतों में एक बड़ी अपस्फीति देखने को मिल सकती है.

(लेखक एल्क्विमी एडवाइजर्स में मैनेजिंग पार्टनर हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT