मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019औरत और मर्द कभी समान थे, क्या वे फिर समानता की तरफ बढ़ रहे है?

औरत और मर्द कभी समान थे, क्या वे फिर समानता की तरफ बढ़ रहे है?

नई रिसर्च के मुताबिक खेती से पहले के दौर में औरत और मर्द का समाज में बराबर स्थान था.

गीता यादव
नजरिया
Updated:
 लैंगिक भेदभाव को लेकर नई बहस शुरू हो गई है.
i
लैंगिक भेदभाव को लेकर नई बहस शुरू हो गई है.
(Photo: iStock)

advertisement

अगर आप ये सोचती हैं कि महिला और पुरुष के बीच भेदभाव अब कम हो रहा है और महिलाओं के लिए ये इतिहास का सबसे अच्छा समय है, तो इस रिसर्च से आपकी सोच को झटका लगेगा. चीन में एक नई रिसर्च हुई है. इसने पूरी दुनिया को चौंकाया है. इस रिसर्च के बाद लैंगिक भेदभाव को लेकर नई बहस शुरू हो गई है.

अभी तक ये मान्यता थी कि आज से लगभग 12000 साल पहले नवपाषाण युग में जब धातु यानी मेटल का आविष्कार नहीं हुआ था और मनुष्य पत्थरों से शिकार करता था, तब भी मर्दों का दबदबा था. वे शिकार करते थे, यहां से वहां घूमते थे और महिलाएं खाना बनाती थीं और भोजन जुटाती थीं. चीन में हुआ नया रिसर्च साबित करता है कि नवपाषाण युग में औरत और मर्द एक जैसा खाते थे और इसका असर उनके शरीर पर होता था.

खुदाई में मिली उस दौर के औरतों और मर्दों की हड्डियों की स्टडी से पता चला कि दोनों ही उन दिनों मोटा अनाज और मांस खाते थे. इसलिए दोनों की हड्डियां समान रूप से शक्तिशाली होती थीं.

लेकिन यही स्टडी जब 4,000 साल पुराने कंकालों पर किया गया, तो हड्डियों की बनावट में फर्क नजर आया. इस समय पुरुषों की हड्डियों की स्टडी से पता चला कि वे अब भी मांस खाते थे, जबकि औरतों ने मांस खाना या तो कम कर दिया या छोड़ दिया. उनके भोजन में गेहूं की क्वांटिटी बढ़ गई थी.

ये इतिहास का वो दौर था, जब धातु यानी मेटल के उपकरण अस्तित्व में आ चुके थे. मानव सभ्यता शिकार और संग्रह के दौर से कृषि अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर चुकी थी. गांव बसने लगे थे और लोग खेती से मिले अनाज को लंबे समय तक रखना सीख चुके थे. इस दौर में युद्ध के जरिए राज और साम्राज्य बनाने की कोशिशें शुरू हो चुकी थीं. इसके साथ ही पुरुषों का समाज में दबदबा बढ़ने लगा. वे बेहतर खाना खाने लगे और औरतों को कम पौष्टिक भोजन से काम चलाना पड़ा. उस दौर की महिलाओं की हड्डियां इस बात की गवाही दे रही हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

एक दूसरे रिसर्च में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के एंथ्रोपॉलॉजिस्ट मार्क डायबल ने रिसर्चर्स की एक टीम के साथ मौजूदा समय के शिकार पर जीने वाले समुदायों का स्टडी किया तो वे भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि खेती से पहले के दौर में औरत और मर्द का समाज में बराबर स्थान था.

उन्होंने ये रिसर्च अफ्रीका के कांगो और एशिया में फिलिपींस के दो समूहों पर किया और पाया कि जब फैसला लेने की प्रक्रिया में औरत और मर्द दोनों की हिस्सेदारी होती है, तो समूह के अंदर ऐसे लोग ज्यादा होते हैं जो आपस में संबंधी न हों. वहीं, जब समूह में फैसले पुरुष लेते हैं तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि समूह में ज्यादातर लोग संबंधी हों.

मिसाल के तौर पर अगर समूह के फैसले पुरूष ले रहा है तो इस बात की संभावना होती है कि चार या पांच भाई एक साथ मिलकर संयुक्त परिवार की तरह रह रहे हों.

मार्क डायबल का निष्कर्ष है कि – ये गलत धारणा है कि शिकार युग में मर्दों का दबदबा था. हमारा मानना है कि मर्दों का दबदबा खेती के चलन के बाद बढ़ा है. जब समूहों में संग्रह करने की क्षमता बढ़ी, तो उसके साथ ही असमानता भी बढ़ी.

इस तरह से दो रिसर्च, दो अलग-अलग तरीके से एक समान नतीजे पर पहुंचे. एक रिसर्च ने इतिहास के दो दौर में मानव कंकालों की स्टडी करके बताया कि खेती के युग से पहले औरत और मर्द एक समान खाना खाते थे और काफी हद तक समान मजबूत होते थे. दूसरे रिसर्च ने एंथ्रोपॉलॉजी की टेक्निक से ये निष्कर्ष निकाला कि शिकार युग में औरत और मर्दों के अधिकार समान थे और कृषि युग में आकर असमानताओं का दौर शुरू होता है.

अब सवाल उठता है कि मैं साल 2018 में ये क्यों बता रही हूं कि आज से 12,000 साल पहले और 4,000 साल पहले क्या हुआ था और उस समय औरत और मर्द के अधिकार क्या थे और वे उस समय क्या खाते थे और क्या नहीं खाते थे?

ये बात इसलिए हो रही है कि अगर खेती के दौर के आने के बाद औरत और मर्द के बीच असमानता आई है, तो मानव इतिहास एक बार फिर उस दौर में जा रहा है जब खेती का महत्व बहुत तेजी से घट रहा है.

  • विश्व बैंक के जुटाए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 1991 में दुनिया की 41% आबादी खेती पर निर्भर थी.
  • ये संख्या 2017 में 28.7% रह गई है.
  • विकसित देशों में रोजगार में कृषि का योगदान लगभग खत्म हो गया है. ब्रिटेन में सिर्फ 1 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है, जबकि अमेरिका में सिर्फ 2 फीसदी आबादी खेती में लगी है.
  • पूरे यूरोप की बात करें तो सिर्फ 4 फीसदी आबादी खेतीबाड़ी में लगी है. कम विकसित इलाकों जैसे दक्षिण एशिया और सब-सहारा अफ्रीका में ही लगभग आधी आबादी खेती पर निर्भर है.

भारत में भी खेती से लोगों का नाता तेजी से छूट रहा है. 1991 में भारत की 62 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है.

  • 2017 में ये संख्या घटकर 42 फीसदी रह गई है.
  • इस साल के आर्थिक सर्वे में अनुमान जताया गया है कि 2050 तक भारत की सिर्फ 25 फीसदी आबादी ही खेती पर निर्भर रह जाएगी.

इसका महिलाओं के लिए क्या मतलब है?

अगर लिंग के आधार पर भेदभाव का स्रोत खेती और कृषि अर्थव्यवस्था है, तो कृषि अर्थव्यवस्था के पतन के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव भी कम और फिर खत्म हो जाना चाहिए. ये दरअसल हो भी रहा है. दुनिया में जेंडर गैप के इंडेक्स को देखें तो साफ नजर आता है कि जिन देशों में खेती पर लोगों की निर्भरता कम है, उन देशों में जेंडर गैप यानी लिंग भेद कम है. इस इंडेक्स में कुछ अपवाद हैं, लेकिन आम तौर पर जिन देशों की अर्थव्यवस्था खेती पर ज्यादा निर्भर है और जहां की ज्यादा आबादी खेती से रोजगार हासिल करती है, वहां लैंगिक भेदभाव ज्यादा है.

खेती और लैंगिक भेदभाव के अंतर्संबध पर दरअसल और स्टडी किए जाने की जरूरत है. अब तक के प्रमाण इस ओर इशारा कर रहे हैं कि खेती पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत खराब है. भारत में खेती पर निर्भर इलाकों में कन्या भ्रूण हत्या की ज्यादा घटनाएं भी इसी ओर संकेत कर रही हैं.

अगर भारत में खेती पर लोगों की निर्भरता कम हो रही है और सर्विस सेक्टर अब जीडीपी में योगदान करने वाला सबसे बड़ा सेक्टर बन चुका है, तो उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले दौर में भारत में भी जेंडर इक्वलिटी स्थापित होगी.

(लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

ये भी पढ़ें-

प्राणप्रिये, तुम मुझे किडनी दे दो... अंगदान का बोझ उठातीं महिलाएं

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 05 Feb 2018,10:29 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT