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द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) का दुबई में 30 नवंबर को शुरू हुआ कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज का 28वां सम्मेलन (COP28) 12 दिसंबर तक चलेगा.
दुनिया अभूतपूर्व जलवायु संकट का सामना कर रही है, ऐसे में COP विश्व नेताओं की भागीदारी वाला एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम बन गया है.
विश्व नेताओं का जमावड़ा पेरिस एग्रीमेंट (Paris Agreement) में तय किए गए वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और इसके लिए एक कार्य योजना बनाने की कोशिश है.
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत की भूमिका एक दर्शक से बढ़कर अब मजबूती से अपनी बात कहने और अगुवाई करने वाले नेता की हो गई है. 2028 में सम्मेलन की मेजबानी के दावे ने इसकी गंभीरता को सामने रखा है.
भारत 1992 से जलवायु परिवर्तन दायित्वों के सही बंटवारे का हिमायती रहा है. साल 1997 में इसने COP3 में क्योटो प्रोटोकॉल की अगुवाई की, जिसमें विकसित देशों के लिए अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने की अनिवार्यता की बात कही गई.
भारत ने पहल करने वाला रुख अपनाया है क्योंकि वह मानता है कि जलवायु परिवर्तन जल आपूर्ति पर भी महत्वपूर्ण रूप से असर डालता है, जिससे बाढ़ और सूखे की आशंका बढ़ जाती है. हाल के अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा असर यह होगा कि अरबों लोग नई जगहों पर बसने के लिए मजबूर करेंगे.
COP28 शुरू होने के बाद जलवायु वार्ता में भारत की बदलती भूमिका साफ हो जाएगी. दुनिया इस निर्णायक घड़ी में महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन में भारत के योगदान और ऐलान पर नजर रही है.
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के उपायों पर बातचीत, विकासशील देशों के अनुकूल योजना, इन देशों में क्लाइमेट एक्शन के वास्ते साथ को बढ़ावा देने के लिए फाइनेंशियल बातचीत, और जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और घाटे पर चर्चा करना सभी COP28 के एजेंडे में हैं. सम्मेलन में लो-कार्बन अर्थव्यवस्था में ईमानदार बदलाव का विचार, सरकार से इतर संगठनों की भूमिका और क्लाइमेट एक्शन के लिए नए तरीकों और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर भी बातचीत होगी.
COP28 में भारत की कुछ प्राथमिकताओं पर ध्यान देने की जरूरत है:
पहली बात, भारत सितंबर 2023 में स्थापित ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस (GBA) को सम्मेलन में बढ़ावा देने की योजना बना रहा है क्योंकि यह जोर पकड़ रहा है. एलायंस बायोफ्यूल्स (जैव ईंधन) को बढ़ावा देना चाहता है, जो ऐसा बाजार है जिसमें जबरदस्त बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है, मगर इसे OPEC+ सदस्यों का समर्थन मिलना आसान नहीं होगा.
दूसरी बात, एक बड़ी आबादी वाले देश में सही दाम पर कूलिंग की जरूरत को देखते हुए, भारत कूलिंग से जुड़े उत्सर्जन में कटौती की वैश्विक प्रतिबद्धता को मंजूर करने में हिचकिचाता है. COP28 के मेजबान देश संयुक्त अरब अमीरात और कूल कोएलिशन द्वारा किए गए वादे में वर्ष 2050 तक कूलिंग से जुड़े कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को 68 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है. इस वादे पर भारत के फैसले पर नजर रहेगी.
तीसरी बात, ग्लोबल वार्मिंग में भारत के असमान ऐतिहासिक योगदान को देखते हुए, क्लाइमेट फाइनेंस जरूरी है. संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण कार्यक्रम उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट भारत जैसे निम्न-मध्यम आमदनी वाले देशों को लो-कार्बन अर्थव्यवस्था में बदलने में आने वाली वित्तीय रुकावटों को सामने रखती है और उत्सर्जन में तेजी से और ज्यादा कटौती की वकालत करती है.
मीथेन पर वैश्विक सहमति [ग्लोबल मीथेन प्लेज (GMP)] और फॉसिल फ्यूल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने से बिजली आपूर्ति और कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता के साथ भारत के इन नीतियों का समर्थन करने को लेकर असमंजस है. COP28 एजेंडा में यह एक उल्लेखनीय बिंदु है, मगर भारत अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद GMP में शामिल होने को अनिच्छुक है.
अंतिम बात, जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित देशों की मदद के लिए घाटे और नुकसान के लिए फंड के संबंध में बातचीत चल रही है. अभी भी फंड के प्रशासन, संरचना और अमीर देशों के योगदान से जुड़ी समस्याएं मौजूद हैं. भारत और दूसरे देश कुछ उपायों का विरोध करते हैं, उनके पेश किए सुझावों को COP28 के दौरान शामिल किया जा सकता है.
भारत COP28 में ऊर्जा सुरक्षा और किसानों और मवेशियों की सुरक्षा के बारे में चिंताओं का हवाला देकर फॉसिल फ्यूल के इस्तेमाल में कटौती और मीथेन के निर्माण के वादे को खारिज करते हुए रक्षात्मक रुख अपनाने की तैयारी कर रहा है. शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एजेंडा फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता कम करने के लिए ग्लोबल बायो फ्यूल एलायंस (GBA) को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगा.
नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान ब्राजील के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत की अगुवाई में बायो फ्यूल को वैश्विक रूप से अपनाने में तेजी लाने के लिए GBA को पेश किया गया था.
सरकार के प्रतिनिधि का नजरिया शिखर सम्मेलन को उपलब्धियों को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देखने वाला है, खासकर 2030 तक रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता को तीन गुना करने, ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने और एनर्जी के बदलाव के लिए किफायती फाइनेंस हासिल करने का है. भारत की COP28 योजना इसकी G20 उपलब्धियों को आगे बढ़ाने की है.
ग्रीन हाइड्रोजन विकसित करने, देश की रिन्यूएबल ग्रीन कैपेसिटी को तीन गुना करने और एनर्जी ट्रांजिशन के लिए किफायती फाइनेंस हासिल करने के साथ-साथ GBA को बढ़ावा देना भारत की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है.
संक्षेप में कहें तो, भारत की COP28 रणनीति राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने, ग्रीन बार एसोसिएशन को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने और फॉसिल फ्यूल और मीथेन का इस्तेमाल करके जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए एक सर्वांगीण दृष्टिकोण पर जोर देने पर केंद्रित है.
भारत के COP28 एजेंडे में क्लाइमेट फाइनेंस पर जोर देना, कूलिंग से जुड़ी उत्सर्जन समस्याओं का समाधान करना, बायो फ्यूल को बढ़ावा देने, ग्लोबल मीथेन प्लेज पर अमल और फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल चरणबद्ध ढंग से खत्म करना और घाटे और नुकसान के लिए फंड पर बातचीत में सक्रिय रूप से भाग लेना शामिल है.
इस बैठक में लिए गए फैसलों का पृथ्वी ग्रह के लोगों की सेहत और इसके लोगों की भलाई पर दूरगामी असर पड़ेगा.
[अंजल प्रकाश भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (ISB) में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (रिसर्च) हैं. वह ISB में सस्टेनेबिलिटी पढ़ाते हैं और IPCC रिपोर्ट में हाथ बंटाते हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.]
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