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नयी दिल्ली में तबलीगी जमात इज्तेमा से कोविड 19 का संक्रमण इस्लामोफोबिया की आग को भड़काने का अवसर बन चुका है जो कुछ समय से इस देश को परेशान करता रहा है. जिहादी टीवी चैनल तबलीगी जमात पर ‘राष्ट्रविरोधी’ होने, ‘भारत को खतरे में डालने’ का दोष मढ़ रहे हैं और बीजेपी के आईटी सेल ने ट्वीट किया है कि यह ‘इस्लामिक विद्रोह’ का हिस्सा है.
ज्यादातर भारतीय इस बात से वाकिफ नहीं होंगे लेकिन तबलीगी जमात दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक आंदोलन है और उनका मुख्यालय निजामुद्दीन में है जो संसद भवन, नयी दिल्ली से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है. अगर आपने इस संगठन के बारे में नहीं सुना है तो इसकी वजह ये नहीं है कि ये बुरे लोग हैं, बल्कि इसलिए कि ये सीधे-सादे लोग हैं.
तबलीगी जमात की ओर से नेताओं से भी दूरी रखी जाती है. चूकि इस संगठन का कोई सार्वजनिक चेहरा नहीं है और इस संगठन की ओर से कोई आधिकारिक बयान या विचार प्रकाशित या घोषित नहीं किया जाता है, इसलिए किसी राजनीतिक दल के लिए इसकी वकालत करना या इस पर हमला करना संभव नहीं हो पाता है. यह सब उनकी अपनी इच्छा से है.
जब पूरे देश में लोक स्वास्थ्य का माहौल पहले से खराब था तो ऐसे में इज्तेमा का आयोजन करते समय तबलीगी जमात के नेतृत्व को समझदारी दिखानी चाहिए थी. प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर 10 मार्च को होली 2020 समारोह को सीमित कर देना पहले से महत्वपूर्ण फैसला था और लोगों ने इकट्ठा होने से बचना शुरू कर दिया था.
तबलीगी जमात की निन्दा की जानी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है कि वे जानबूझ कर कुछ ऐसा करने कोशिश कर रहे थे कि संक्रमण फैलाया जाए. आखिरकार सबसे पहले तबलीगी जमात के लोग और मुसलमान ही तो संक्रमित होंगे. ये लोग अकेले नहीं थे जिन्होंने अज्ञानतावश लापरवाही की. देश में कई और प्रभावशाली लोग जिनमें कनिका कपूर से लेकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और योगी आदित्यनाथ इज्तेमा के एक हफ्ते बाद भी भीड़ में शामिल नजर आए. अगर कोविड के खतरे से निपटने में हुई बड़ी लापरवाही की बात करें, तो शी जिनपिंग और डोनाल्ड ट्रंप जैसी बड़ी हस्तियां भी इसी कतार में नजर आएंगी.
जमात-ए-इस्लामी या जमायत उलेमा-ए-हिन्द से अलग तबलीगी जमात की सदस्यता गरीबों के बीच है, ये अंतर्मुखी होते हैं और भारत में तबलीगी जमात का मूल संदेश दुनिया से अलग-थलग होकर रहना है. तबलीगी जमात की निन्दा करने वाले कई लोग, जिनमें टीवी एंकरों की संख्या भी कम नहीं है, वास्तव में इस संगठन और देश में इसकी निभाई गयी भूमिका के बारे में नहीं जानते.
वास्तव में स्कॉलर योगिन्दर सिकंद ने कहा है कि दुनिया भर में इस संगठन का फैलाव इसलिए है क्योंकि इसने अपने अनुयायियों को धर्मनिरपेक्ष दुनिया के हिसाब से इस्लाम को व्यक्तिगत जीवन में उतारने को कहा. और इस तरह धर्म और राजनीति के बीच एक स्वाभाविक दूरी बना ली.
पश्चिमी खुफिया एजेंसियां लंबे समय से तबलीगी जमात को कट्टरवाद फैलाने का दोषी ठहराती रही हैं. 2005 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में जर्मन डोमेस्टिक इंटेलिजेंस ऑर्गनाइजेशन बीएफए ने दावा किया कि इसने खास तौर से सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबके के मुसलमानों के बीच कट्टरवाद की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसमें उनकी बहस और चर्चा की तकनीक महत्वपूर्ण रही.
एफबीआई तब और सावधान नजर आयी जब इसके प्रमुख रॉबर्ट मूलर ने सीनेट कमेटी ऑन इंटेलिजेंस से फरवरी 2005 को बताया, “तबलीग जमात जैसे वैधानिक संगठनों के सदस्यों को अलकायदा की ओर से लक्षित किया जा सकता है ताकि उनके नेटवर्क और संपर्कों का अमेरिका में इस्तेमाल किया जा सके.”
वास्तव में 2008 में शुरूआती विश्लेषण में यह बात रखी गयी थी कि तबलीगी जमात और वैश्विक जेहाद की दुनिया के बीच अप्रत्यक्ष संबंध है. यह कुछ ऐसा है जो तब पैदा होता है “जब समूह के गैर राजनीतिक कार्यक्रमों से तबलीगी असंतुष्ट हो जाते हैं तो वे संगठन के प्रभाव से बाहर निकल आते हैं और फिर हिंसक संगठनों से जुड़ जातें हैं.” निश्चित रूप से इसके स्वभाव को देखते हुए यह भक्तों का एक बड़ा पूल तैयार करता है जो जेहाद मशीन के लिए चारे का काम करता है.
जिया उल हक ने तबलीगी जमात को इस उम्मीद में आगे बढ़ाया था कि यह जमात-ए-इस्लामी के प्रभाव को संतुलित करेगा लेकिन समय के साथ-साथ देवबंदी की तरह तबलीगी भी देश में लड़ाके हो गये. उनमें से एक लेफ्टिनेंट जाविद नासिर आईएसआई के प्रमुख हो गये और दूसरे रफीक तरार जिनका तख्ता पलट कर मुशर्रफ राष्ट्रपति बने.
भारत के अधिकारियों ने तबलीगी जमात को इस्लामिक संगठन के तौर पर कभी नहीं देखा है और यह जमात-ए-इस्लामी की तरह नहीं है जिस पर आपातकाल के समय प्रतिबंध लगाया गया था. तबलीगी जमात पर कभी आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप नहीं लगा.
हालांकि तबलीगियों के ग्लोबल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए इंडियन मुजाहिद्दीन के रियाज भटकल उर्फ रियाज शाहबंदारी और इरफान भटकल ने दुनिया भर के मुसलमानों तक पहुंच बनाई थी.
लेकिन रूढ़ीवादी होने के बावजूद तबलीगी जमात जैसे शांतिप्रिय संगठन ही वो बड़ी वजह हैं जिनके कारण पिछले 40 साल में भारतीय मुसलमान हिंसक धार्मिक अतिवाद से दूर रहा, जिसने पूरी दुनिया को सताया.
इसका नेतृत्व मोटे तौर पर सतर्क रहा है. वो हमेशा सरकार के साथ रहा. अपनी इच्छा से यह राजनीति से दूर रहा है और रूढ़िवादी मुसलमान जिस बड़े जिहाद की बात करते हैं उस पर केंद्रित रहा है- विश्वास और पवित्रता के लिए मन के भीतर का संघर्ष.
(लेखक Observer Research Foundation, New Delhi में एक Distinguished Fellow हैं. आर्टिकल में दिए गए विचार उनके निजी विचार हैं और इनसे द क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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Published: 02 Apr 2020,10:21 PM IST