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‘संपूर्ण लॉकडाउन!’ 24 मार्च की रात 8 बजे प्रधानमंत्री मोदी की ओर से हुई यह घोषणा हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा धक्का थी. चार घंटों के भीतर सब कुछ बंद करना था, सबकुछ.
एयरलाइंस, डिपार्टमेंट स्टोर्स और शराब जैसी वाणिज्यिक प्रतिष्ठानें सदमे में चली गयीं, मानो उन्हें लकवा मार गया हो. इनके अस्तित्व के लिए रोज की आमदनी, ग्राहक और नकद प्रवाह जरूरी है. लेकिन, जब कभी इनका संकट गहरा हो जाता है तो ये किसी डूबते व्यक्ति जैसा व्यवहार दिखाने लग जाते हैं, जो खुद को बचाने के लिए किसी तिनके को भी पकड़ लेता है. धीरे-धीरे एक निर्दयी और हृदयहीन, मगर शायद इकलौती व्यावहारिक योजना आकार लेने लग जाती है.
दर्द धीरे-धीरे कम हुआ, या मैं कहूं कि आपको इजाजत मिल गयी कि अपना दर्द किसी और को हस्तांतरित कर दें. कर्मचारी, वेंडर्स, लैंडलॉर्ड्स, यूटिलिटी कंपनियां, बैंक और सरकार सबको यह राहत मिली. निश्चित रूप से आपकी आमदनी शून्य तक जा पहुंची, लेकिन आपकी लागत फिर से व्यवस्थित हुईं ताकि एयरलाइंस, डिपार्टमेंट स्टोर, शराब विक्रेता और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान कोमा की स्थिति से बाहर आ सकें. ये अब भी आईसीयू में हैं, लेकिन मूर्छित नहीं हैं.
24 मार्च 2020 को शुरू और 17 मई 2020 को खत्म हुई कहानी यही थी.
वाह! एक सामूहिक राष्ट्रीय कोरस गूंज उठा जिसकी गूंज वो क्या कहते हैं ना, कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काजीरंगा से कच्छ तक सुनाई पड़ी. अर्थव्यवस्था नियंत्रित तरीके से खुलने जा रही थी, एयरलाइंस दोबारा चलेंगी, विंडो शॉपर्स के साथ डिपार्टमेंट स्टोर्स खुलेंगे, और शराब बेचने वाले अच्छी चीजों की बहार लाएंगे. बुरे सपने खत्म हो चुके थे, अच्छे दिन फिर से लौट आए. इस तरह आनंद ही आनंद है! या कुछ इसी तरह हमने सोचा.
लेकिन, लेकिन, लेकिन. डिपार्टमेंटल स्टोर्स को नहीं पता कि उसे एयर कंडीशनिंग ऑफ रखनी है या ऑन. 45 डिग्री वाली भीषण गर्मी में. कई लोकल अथॉरिटी ने इस बात पर जोर दिया कि दुकानदार अपने स्टोर ऑड डे पर बंद रखें और इवन डे पर खोलें (क्या?). तब उन्होंने एक समय में केवल पांच दुकानदारों को इजाजत दी. इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनका फ्लोर एरिया 50 हजार वर्ग फीट वाला है या कि उनके बेचारे पड़ोसी के पास 5000 वर्ग फीट है. दोनों को एक ही नियम का पालन करना है. (हां इस तरह के मूर्खतापूर्ण ‘गाइडलाइन’ का आइडिया कोई बेचारा बाबू ही किसी लाचार दफ्तर में दे सकता था.) अब इन सजी दुकानों में उत्तर भारत की लू वाली गर्मी में मील भर लंबी कतार में शामिल होने जाए कौन, महज प्रवेश करने के लिए? खासकर तब जब कोई सामान खरीदना एक हो और दर्जन भर को छूने की अनुमति न हो (और बाकी ग्यारह पर कोविड के दाग छोड़ जाने की)? हालांकि मॉल्स बंद रहे जहां उनके फ्रेंचाइज स्टोर पर बड़ी मात्रा में अनपेड बिल इकट्ठा हैं. यह एक नामुमकिन वाली परिस्थिति थी.
शराब दुकानों की हालत और भी बुरी थी. सारे दयनीय नियमों से परे हटकर उनके उत्पाद पर एक दंडात्मक कर का थप्पड़ जड़ दिया गया था, जो ज्यादतर 50 फीसदी तक पहुंच रहा था. और कइयों को बेहद पुराने लाइसेंस नियमों के कारण अपने पुराने स्टॉक हटाने पड़े. ऐसे में बुद्धिमानी इसी में थी कि माल (स्टॉक) को अपने तस्कर मित्र के जरिए चुपके से हटा दिया जाए- “श्श्श... बस मुझे एमआरपी से 30 प्रतिशत ज्यादा कैश दे दो”-जो मजबूती के साथ इन्हें प्रीमियम पर काले बाजार में बॉर्डर पार करा सकते थे. आपने अभी क्या कहा? एक जिले से दूसरे जिले तक आवाजाही पर प्रतिबंध है तो कैसे तस्कर सीमा पार कर सकते हैं? ऐसी बातों से ऊपर उठिए. बॉर्डर पर गार्ड के लिए दोस्ताना उपहार है या फिर उसके आधे दर्जन मित्रों के लिए? यह सब एक दिन का काम है.
और रीओपेनिंग की इस कठिन कवायद के बीच डिपार्टमेंटल और शराब स्टोर के लिए किराया या फिर बिजली का बिल रोकना और इसी तरह सप्लायर के पेमेंट या टर्म लोन की किश्तें रोक पाना मुश्किल हो गया.
शायद कुछ अकल्पनीय हो रहा है. क्या सचमुच ऐसा है. मेरा मतलब है क्या वास्तव में लॉकडाउन में जो दुर्गति हुई उससे भी बुरा होगा? तब परिवर्तनीय लागत और आय दोनों करीब-करीब शून्य तक पहुंच गये थे. अब लागत लगना शुरू हो गया है लेकिन आमदनी अब भी शून्य है. धत्त!
उर्दू में एक मार्मिक दोहा है (कवि : अज्ञात) जो इस सदमे को सटीक बयां करता है- ना खुदा ही मिला, ना विसाले सनम- मतलब ये कि न तो मुझे मेरे ईश्वर मिले और ना ही प्रेमी.
आपने पूरी तरह हजमत से खुद को ढंंक रखा है, मास्क में चेहरे छिपे हैं, सैनिटाइजिंग टनल से होकर गुजरते हैं, उड़ान में सूखी बिस्किट पाते हैं, अपने ढंके चेहरे से होकर ओठों तक प्लास्टिक की बोतल नहीं ले जा सकते, यातनापूर्ण उड़ान के दो घंटे पहले और दो घंटे बाद सुरक्षा उपक्रमों के बीच आखिरकार जब आप अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ मिलने वाले होते हैं, जिनसे आप दो महीने से नहीं मिले हैं, तभी आपको बुरे तरीके से एक दयनीय क्वॉरंटीन सेंटर में 14 दिनों के लिए भेज दिया जाता है.
कौन ऐसी परिस्थितियों में यात्रा करे? केवल वही लोग जो संकट में हैं या बेचैन हैं और ऐसे लोगों की संख्या जल्द ही कम हो जाएगी. तब उड़ानों की क्षमता एकदम से 20 फीसदी तक आ गिरेगी. एयरलाइंस नुकसान में दिखेंगे चूंकि अभी किराए फिक्स तय किए गये हैं और परिवर्तनीय लागत भी जुड़ने वाली हैं. अविश्वसनीय तरीके से एयरलाइंस लॉकडाउन की आरामदेह छाया में लंबे समय तक रहना चाहेंगी, जब आमदनी शून्य रहेगी और लागत भी. अभी आमदनी शून्य से थोड़ा ऊपर है लेकिन लागत तेजी से बढ़ने वाली है.
तो एयरलाइन उर्दू दोहा की दूसरी पंक्ति गाएंगी- ना इधर के हुए, न उधर के हुए.
अर्थव्यवस्था को पहले की तरह सामान्य बनाने की जरूरत है, जल्द. सख्त नियमों को केवल कंटेनमेंट जोन तक सुरक्षित रखना चाहिए. लोगों को प्रशिक्षित करने की और व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों का पालन करने के लिए राजी करना होगा. खुद को सुरक्षित रखने की उनकी भावना को रोकना होगा. और सरकार को अपनी पूरी ऊर्जा अर्थव्यवस्था की निगरानी के बजाए वायरस से लड़ाई में लगानी होगी.
आखिरकार हमें बगैर अर्थव्यवस्था की जान लिए वायरस के साथ जीना होगा, उस पर जीत हासिल करनी होगी- खुदा, सनम, और बाकी सब.
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