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दिल्ली, केरल और यूपी ऐसे राज्य हैं जहां नवंबर महीने में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा 5 लाख से अधिक तक पहुंच गया है. दिल्ली और केरल में महज 15 दिन में एक लाख कोरोना के मरीज जुड़े हैं. खास बात यह है कि इस दौरान प्रति दिन टेस्टिंग में वृद्धि की औसत दर घट गयी है. टेस्टिंग घटने से ट्रेसिंग भी घटती है और इस वजह से संक्रमण तेजी से फैलने की आशंका रहती है. जो तथ्य सामने हैं उससे पता चलता है कि अगर टेस्टिंग की दर में सुधार नहीं हुआ तो कोरोना की स्थिति बेकाबू होती चली जाएगी.
3 नवंबर से 18 नवंबर के दौरान दिल्ली में एक लाख कोरोना के संक्रमण बढ़े. इस दौरान 7.69 लाख लोगों की टेस्टिंग हुई. यानी औसतन 48 हजार टेस्टिंग प्रतिदिन हुई. 3 नवंबर को दिल्ली में टेस्टिंग का आंकड़ा 48.2 लाख था जो 18 नवंबर को 55.9 लाख हो गया. इस तरह प्रतिशत रूप में बढ़ोतरी महज 15.95 फीसदी रही जबकि औसत दैनिक वृद्धि दर 1.06 रही जो चिंताजनक रूप से कम है.
6 जुलाई से 9 सितंबर के बीच के आंकड़ों से चलता है जब दिल्ली में कोरोना 1 लाख से 2 लाख के स्तर पर पहुंचा था, तब टेस्टिंग की औसत दैनिक वृद्धि दर 5.57 थी. साफ है कि टेस्टिंग में 5 गुणा से अधिक की कमी आयी है.
टेस्टिंग की दर में कमी के बीच नवंबर महीने में महज 15 दिन के भीतर एक लाख आंकड़े का जुड़ना बताता है कि दिल्ली में महामारी की स्थिति बेहद गंभीर है. 6 जुलाई को दिल्ली में कोरोना का संक्रमण 1 लाख पहुंचा था. 2 लाख होने में 34 दिन लगे. इस दौरान कोरोना की टेस्टिंग 189.59 फीसदी बढ़ गयी थी. मतलब ये कि 5.57 प्रतिशत की औसत रफ्तार से प्रतिदिन टेस्टिंग बढ़ रही थी.
केरल वह प्रदेश है जहां देश में सबसे पहले कोरोना का संक्रमण पहुंचा था. मगर, केरल ने कोरोना संक्रमण को काबू में रखा और दुनिया में यह उदाहरण बनकर पेश हुआ. मगर, नवंबर महीने में यहां भी हालात बेकाबू होते दिख रहे हैं.
केरल में भी दिल्ली की तरह महज 15 दिन में संक्रमण 1 लाख बढ़ गया. 27 अक्टूबर से 11 नवंबर के बीच कोरोना संक्रमण यहां 4 से 5 लाख हो गया. इस दौरान प्रतिदिन टेस्टिंग की वृद्धि दर में यहां भी गिरावट देखी गयी. हालांकि यह दर दिल्ली से थोड़ी बेहतर रही.
4 लाख और 5 लाख कोरोना संक्रमण के आंकड़े भी अगले 14 और 15 दिन में पहुंच गये. प्रतिदिन औसत टेस्टिंग गिरती हुई 1.42 प्रतिशत और फिर 1.27 प्रतिशत पर आ गयी. यह बात संतोष की जरूर है कि जहां 11 सितंबर को एक दिन में 34,880 लोगों की टेस्टिंग हुई थी, वहीं यह आंकड़ा 11 नवंबर को 64,192 तक पहुंच गया. मगर, यही आंकड़ा तब उत्साहजनक नहीं लगता जब हम यह देखते हैं कि 1 अक्टूबर को ही केरल ने 59,758 लोगों की टेस्टिंग का स्तर हासिल कर लिया था. कहने का अर्थ यह है कि टेस्टिंग की रफ्तार को बढ़ाया नहीं जा सका.
उत्तर प्रदेश में भी कोरोना के हालात बिगड़ रहे हैं. मगर, यहां दिल्ली और केरल से स्थिति बेहतर है. यहां संक्रमण का आंकड़ा 40 दिन में 4 से 5 लाख हुआ. इस दौरान प्रतिदिन टेस्टिंग की वृद्धि दर 2.76 प्रतिशत के स्तर पर है जो अगस्त के मुकाबले आधे से भी कम है. वैसे यूपी इस बात पर संतोष कर सकता है कि टेस्टिंग और कोरोना संक्रमण की रफ्तार के मामले में वह दिल्ली और केरल से बेहतर है.
मगर, जब आंकड़ा 2 से 3 लाख हुआ तब इस दौरान 17 दिन में कोरोना की टेस्टिंग धीमी देखी गयी. 26 अगस्त से 12 सितंबर के दौरान 24 लाख 16 हजार से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग हुई. मगर, औसतन दैनिक टेस्टिंग की वृद्धि दर 2.87 प्रतिशत पर आ गयी.
1 अक्टूबर को 3 से 4 लाख कोरोना संक्रमण का स्तर यूपी ने 19 दिन में हासिल किया और औसत दैनिक टेस्टिंग गिरकर 0.88 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी. मगर उसके बाद से उत्तर प्रदेश ने टेस्टिंग पर ध्यान दिया है और अब यह 10 नवंबर 2.76 प्रतिशत के स्तर पर आ चुका है. फिर भी यह अगस्त में प्रतिदिन टेस्टिंग की औसत दर के मुकाबले आधे के स्तर पर ही है.
दिल्ली, केरल और यूपी में कोरोना के हालात देखें तो एक बात स्पष्ट हो रही है कि तीनों ही राज्यों में टेस्टिंग में कमी आती गयी है और कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी होती चली गयी है. इससे पता चलता है कि टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट का जो फॉर्मूला था वही कारगर है. इस फॉर्मूले को छोड़ने का नुकसान हमें उठाना पड़ेगा. टेस्टिंग को तेज करके ही हम कोरोना संक्रमण को बेकाबू होने से रोक सकते हैं.
(प्रेम कुमार जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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