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मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीसरी वीडियो कांफ्रेंसिंग में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अनुपस्थिति बहुत कुछ कहती है. यह बैठक की निरर्थकता जाहिर करती है, जिसमें सबकुछ एक-तरफा और पहले से तय होता है. बैठक में बुलाया तो सभी मुख्यमंत्रियों को गया था लेकिन बोलने का निमंत्रण सिर्फ 9 चुने हुए लोगों को मिला था.
इनमें से चार बीजेपी के थे (गुजरात के सीएम विजय रूपाणी, हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर, हिमाचल प्रदेश के जय राम ठाकुर और उत्तराखंड के त्रिवेन्द्र सिंह रावत), तीन एनडीए गठबंधन से (बिहार के सीएम नीतीश कुमार, मेघालय के कोनराड सांगमा और मिजोरम के जोरमथांगा), आठवें मुख्यमंत्री इतने दोस्ताना हैं कि उन्हें बीजेपी का साथी माना जा सकता है (ओडिशा के नवीन पटनायक). विपक्षी पार्टी से बोलने वाले सिर्फ एक वी नारायणसामी थे, जो कि पुड्डुचेरी जैसे छोटे राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
पिछले सप्ताह उद्धव ने पीएम मोदी को एक चिट्ठी भी लिखी जिसमें उन्होंने बिना केन्द्र की मदद के इन मजदूरों के खाने-पीने और रहने के इंतजाम में असमर्थता जताई.
प्रधानमंत्री इस मुद्दे को पूरी तरह टाल गए और इस बार उद्धव ठाकरे बैठक में बोलने वाले मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में नहीं थे, इसलिए वो इस मुद्दे को उठा भी नहीं सके. इस बार इस मसले पर बात करने की बारी नीतीश कुमार की थी, लेकिन उनका लहजा इतना घुमावदार रहा कि वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की आलोचना ही करते नजर आए.
नीतीश ने आपदा प्रबंधन कानून का वो प्रावधान पढ़ कर सुनाया जिसमें इन हालात में राज्यों के बीच लोगों और गाड़ियों की आवाजाही पर पाबंदी है. ‘अगर पांच लोग सड़क पर उतर आते हैं और अपनी मांगे सामने रखते हैं, तो क्या सरकार को झुक जाना चाहिए? क्या ऐसे सरकारें चल पाएंगी?’ जब उनकी बारी आई तो नीतीश ने कहा.
राज्यों के एक और अहम मुद्दे पर इस बार चुप्पी रही – शराब पर पाबंदी और पेट्रोल की बिक्री में भारी गिरावट की वजह से राजस्व में हो रहे नुकसान में बढ़ोतरी. राज्य सरकारों की कमाई में शराब और पेट्रोलियम पदार्थों का बड़ा योगदान होता है. 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा और शराब और तंबाकू उत्पादों पर पाबंदी से राज्यों के खजाने खाली होते जा रहे हैं. गाड़ियों की आवाजाही खत्म होने से पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री लगभग खत्म हो गई है.
बैठक में नारायणसामी ने यह मुद्दा उठाने की कोशिश की लेकिन पीएम ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया. पिछले सप्ताह, पंजाब में उनकी पार्टी के साथी, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इसी मुद्दे पर केन्द्र को घेरा. उन्होंने कहा कि शराब की पाबंदी की वजह से पंजाब को 6000 करोड़ का नुकसान हो रहा है और केन्द्र सरकार से उन्होंने इसकी भरपाई की मांग भी की.
इसके अलावा जो चिंताजनक मुद्दे हैं उनमें कोरोना के खिलाफ मोर्चे पर सबसे आगे खड़े स्वास्थ्यकर्मियों के सुरक्षा उपकरणों की कमी, पर्याप्त तादाद में जांच किट का ना होना या उनमें खामियां पाया जाना, वेंटिलेटर और अस्पतालों में बेड की जरूरत और महामारी से निपटने के लिए एक साफ मसौदा की कमी होना शामिल है.
राज्यों के पास फंड की भयंकर कमी है. GST रिफंड के तौर पर राज्यों के करीब 30,000 करोड़ रुपये बकाया हैं. कई बार हाथ फैलाने के बाद, केन्द्र सरकार ने करीब आधी रकम तो दे दी है लेकिन बाकी पैसे कब तक दिए जाएंगे इस बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है.
जहां शराब और पेट्रोल से राज्यों को होने वाली कमाई पर रोक जारी है, उन्हें बेरोजगार प्रवासी मजदूरों को खाने-पीने और रहने का खर्चा उठाने, कोविड मामलों के बढ़ने की हालत में उससे निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने और महामारी पर काबू पाने के लिए जरूरी दूसरी चीजों खरीदने करने के लिए कहा जा रहा है.
पीएम मोदी राज्यों की इन चिंताओं से बेपरवाह नजर आए. अपने आखिरी मन की बात एपिसोड की तरह वो लंबे समय तक बोलते रहे. अपने भाषण में वो बीच-बीच में ‘दो गज दूरी’ जैसे उपदेश भी देते रहे और भविष्य में मास्क पहनने को अपनी जीवन पद्धति बनाने की जरूरत की बात करते रहे.
ऐसा लगता है कि शाह ने आखिरकार पहली कतार में आने का फैसला कर लिया है. वो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान बोले और उंगली दिखाकर मुख्यमंत्रियों को अपने-अपने राज्यों में मौजूद रेड जोन में लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने को कहा.
लगता है उनका इशारा खास तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ था जो कि राज्य के कुछ हिस्सों में, मुख्यत: मुस्लिम बहुल इलाकों में, लॉकडाउन को लागू करने के लेकर गृह मंत्रालय के साथ जंग छेड़ चुकी हैं.
और इस बैठक में जो दूसरी रोचक बात निकल कर आई वो ये थी: ममता बनर्जी असाधारण तौर पर किसी तरह के उकसावे में नहीं आईं और उन्होंने अपना धैर्य बनाए रखा. शुरुआती रिपोर्ट में संकेत मिल रहे थे कि ममता, विजयन की तरह, वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं होंगी, लेकिन आखिरी मिनटों में उन्होंने बैठक में शरीक होने का फैसला लिया, इसके बावजूद कि इस बार उनके बोलने की बारी नहीं थी.
इस पूरी प्रक्रिया में निराशा और अनकही शिकायतों के बावजूद, केन्द्र और राज्य सरकारें एक बात पर जरूर सहमत नजर आईं. सभी मई महीने के आखिरी तक लॉकडाउन के जारी रहने पर सहमत दिखे. चरणगरत तरीके से इसे खत्म करने को लेकर दिखावे के लिए इसमें कुछ फेरबदल हो सकता है. लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारें साफ तौर पर किसी तरह का जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं हैं.
(लेखिका दिल्ली में रहने वाली वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेखिका के अपने विचार हैं और इससे क्विंट का सरोकार नहीं है.)
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