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रोजाना बढ़ रहे कोरोना वायरस पॉजिटिव केस और लॉकडाउन में ढील देने के बीच संतुलन बनाना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल भरा काम साबित हो रहा है. एक ही उम्मीद है- कोरोना वायरस वैक्सीन. लेकिन अनलॉक की गाइडलाइन जारी करने से मुश्किल साबित होने वाला है वैक्सीन बनने के बाद उसको लोगों तक पहुंचाना.
वैक्सीन को रेगुलेटरी मंजूरी मिलने में जो दिक्कतें आएंगी, उन्हें छोड़ दें तो हमें लगता है कि वैक्सीन लोगों तक पहुंचाने में चार मुख्य चुनौतियां होंगी:
कोरोना वायरस की वैक्सीन अगर छोटी जनसंख्या तक ही पहुंच पाएगी तो इसका कोई मतलब नहीं है. हमारा सुझाव है कि कम से कम 80 फीसदी जनसंख्या को वैक्सीन दी जाए.
दुनियाभर में प्रोडक्शन कैपेसिटी में कमी की वजह से एक बार में ये कर पाना मुमकिन नहीं होगा. वैक्सीनेशन को कई चरणों में पूरा करना होगा. जिसका मतलब है कि कुछ लोगों को वैक्सीन दूसरों से पहले मिलेगी. हालांकि, वैक्सीन को रैंडम तरीके से दिया जाना सबसे अच्छी डिस्ट्रीब्यूशन तरकीब है, लेकिन इस महामारी के स्वाभाव को देखते हुए 'प्राथमिकता रणनीति' बनाना अच्छा रहेगा.
दो रणनीति बनाई जा सकती हैं:
इस ऐज ग्रुप में वैक्सीन के प्रभाव के बारे में जानकारी नहीं है और इकनॉमी को दोबारा चालू करने का असर सभी पर होगा, तो हम दूसरी रणनीति का सुझाव देते हैं.
मौजूदा दामों पर, भारत की 80 फीसदी जनसंख्या को वैक्सीन दे पाने में 50,000-250,000 करोड़ का खर्चा आएगा. ये 3 डॉलर की ऑक्सफोर्ड वैक्सीन या 10 डॉलर की मॉडर्ना वैक्सीन के आधार पर है.
भारत दुनिया में सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक है, लेकिन हमारी पूरी प्रोडक्शन कैपेसिटी अभी एक महीने में 12.3 करोड़ डोज बनाने की ही है.
अगर ऐसा माना जाए कि चुनी हुई वैक्सीन की दो डोज प्रभावी होंगी, तो हमारा अनुमान है कि 240 करोड़ डोज चाहिए होंगी और पूरी जनसंख्या को वैक्सीन देने में 20 महीने लग जाएंगे. इस समय को कम करने के लिए विदेशी मैन्युफैक्चरर से वैक्सीन खरीदी जा सकती है.
सिर्फ वैक्सीन देने से ही काम नहीं हो जाएगा. क्योंकि ज्यादातर वैक्सीन इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन के साथ आएंगी, इसलिए इनको दिए के बाद का सर्विलांस भी जरूरी है.
NHA एक डेटाबेस बना सकता है, जिसमें जिन लोगों को वैक्सीन दी गई है उसकी जानकारी होगी, मैन्युफैक्चरर, लॉट नंबर और वैक्सीन दिए जाने की तारीख नोट होगी.
इसके साथ ही आधार की जानकारी जोड़ी जा सकती है, जिससे कि व्यक्ति का सही पता लग सके और ओवरडोज न हो पाए. हेल्थ इमरजेंसी के अंत में ये सब डेटा डिलीट कर दिया जाए. या फिर मैन्युफैक्चरर पांच सालों का एक सर्विलांस पीरियड तय कर सकता है.
वैक्सीन पाना और मुहैया कराना हमारे जैसे बड़े देश में चुनौती भरा काम होगा. वैक्सीन दी जाने की रणनीति पहले से ही सोची जानी चाहिए. टेस्टिंग धीरे शुरू हुई थी, लेकिन ये गलती हम वैक्सीन देने के साथ नहीं दोहरा सकते.
(अमेया पलेजा एक मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट और ब्लॉगर हैं. वो कॉफी टेबल साइंस में जेनेटिक्स, माइक्रोब्स और टेक्नोलॉजी के भविष्य पर लिखती हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ameyapaleja है. ये एक ओपिनियन आर्टिकल है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं और क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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