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उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 24 करोड़ है. किसी भी भारतीय राज्य के मुकाबले सबसे अधिक. विश्व के सिर्फ चार देशों की जनसंख्या उत्तर प्रदेश से ज्यादा है और कई यूरोपीय देशों की कुल जनसंख्या भी उत्तर प्रदेश से कम है.
राज्य ने कोविड से मुकाबला करने के लिए एक समन्वित रणनीति लागू की है. यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि राज्य में हर दिन 1.5 लाख सैंपल की जांच होती है, और अब तक 2.83 करोड़ से ज्यादा सैंपल की जांच हो चुकी है. महामारी के दौरान राज्य की पॉजिटिविटी दर पांच प्रतिशत से नीचे बनी रही है. सच्चाई तो यह है कि इस समय कोविड की मृत्यु दर 1.3 पर आ चुकी है, जबकि रिकवरी की दर लगभग 90 प्रतिशत है.
इस असाधारण लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्य ने बहुआयामी रणनीति अपनाई है जोकि स्वास्थ्य संरचना को बढ़ावा देने, बड़े पैमाने पर टेस्टिंग करने, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, सर्विलांस और आइसोलेशन पर आधारित है. इसके अलावा इस बात पर भी नजर रखी जा रही है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति का पालन किया जाए और हर व्यक्ति को टीका लगे. राज्य ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए कई नॉन फार्मास्यूटिकल कदम उठाए हैं. कड़ाई के लिहाज से हालांकि इनमें सभी का स्तर अलग-अलग है लेकिन वे सभी उपयोगी साबित हुए हैं.
विज्ञान की मदद से तत्काल जोखिम आकलन और समय पर सरकार की निर्णयात्मक पहल से कोविड-19 की रोकथाम में मदद मिली है.
सुदृढ़ स्वास्थ्य संरचना: सरकार ने जिस चतुराई से कोविड-19 का मुकाबला किया है, उससे पता चलता है कि राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली कितनी अच्छी है. फरवरी 2020 में उत्तर प्रदेश में जब एक मामला भी दर्ज नहीं हुआ था, तभी सरकार ने महामारी रोकथाम योजना लागू कर दी थी. अस्पतालों को इस स्थिति के लिए तैयार किया गया था कि मरीजों की भीड़ बढ़े तो उन्हें कैसे स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं. इसके अलावा सीमा नियंत्रण की नीतियां लागू की गई थीं ताकि महामारी के हमले को टाला जा सके. जब विश्व स्तर पर कुछ हजार मामले थे, तभी इन नीतियों को लागू किया गया जिससे सामुदायिक संचरण रुका. उत्तर प्रदेश सरकार ने मेडिकल स्टाफ को कोविड-19 के बारे में जागरूक किया. रोकथाम संबंधी प्रोटोकॉल, उपचार के फ्लो चार्ट, और दूसरे लॉजिस्टिक्स के बारे में प्रशिक्षित किया गया. सरकार की रणनीति बहुआयामी थी जिसमें वायरस की रोकथाम, संक्रमित मरीजों का इलाज, टेस्टिंग करना और शहरों से लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को रोजगार देना शामिल है.
टीम 11: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीम-11 बनाने का फैसला किया जिसमें विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे. इनका काम रोजाना कोविड-19 के प्रबंधन के लिए सरकारी कदमों की समीक्षा करना और उनमें समन्वय स्थापित करना था. हर अधिकारी को एक खास जिम्मा सौंपा गया था जिसे वह दूसरे अधिकारियों के सहयोग से पूरा करता था. देशव्यापी लॉकडाउन से पहले ही मुख्यमंत्री जी ने सुरक्षात्मक कदम उठाते हुए राज्य की अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को सील कर दिया था. स्वास्थ्य सेवाओं को जरूरी धनराशि मुहैय्या कराने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कोविड केयर फंड भी बनाया.
टेस्टिंग पर जोर: शुरुआत में उत्तर प्रदेश में टेस्टिंग की पर्याप्त सुविधा नहीं थी. राज्य में सिर्फ एक टेस्टिंग लैब थी और 22 मार्च को उसकी टेस्टिंग क्षमता सिर्फ 60 थी. यह इस पर निर्भर करता है कि आप उपलब्ध संसाधनों का कैसे उपयोग करते हैं. मार्च में टेस्टिंग और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की पूरी क्षमता न होने के कारण राज्य ने अपनी रणनीति पूरी तरह बदल दी: कड़ाई से लॉकडाउन का पालन. इससे सरकार को अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने का मौका मिला. नतीजतन, आज उत्तर प्रदेश मे 234 से ज्यादा लैब हैं जिनमें 131 लैब्स सरकारी हैं, जोकि हर दिन करीब 1.75 लाख सैंपल्स की जांच करती हैं.
शुरुआत में, थर्मामीटर, पल्स ऑक्सीमीटर्स और पीपीई किट्स जैसे मेडिकल उपकरणों की खरीद राज्य के बाहर से की गई थी, लेकिन अब राज्य में ही एमएसएमई विभाग के अंतर्गत इन्हें मैन्यूफैक्चर किया जा रहा है. इससे इनकी लागत कम हुई है और रोजगार सृजन भी हुआ है.
महामारी प्रबंधन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण कदम यह रहा कि रैपिड रिस्पांस टीम्स के जरिए राज्य में कोविड पॉजिटिव मरीजों के निकट संपर्क में आने वाले लोगों की तलाश और फिर उनकी टेस्टिंग की गई.
मरीजों के घरों, परिचितों और उनके संपर्क में आने वाले लोगों का सर्वेक्षण करने के लिए हजारों सर्विलांस टीम्स बनाई गईं. इंफ्लूएंजा लाइक इलनेस (आईएलआई)/गंभीर एक्यूट रेसपिरेटरी इंफेक्शन (सारी) के मरीजों को चिन्हित करने के लिए सर्विलांस किए गए. इसके लिए फ्रंटलाइन वर्कर्स घर-घर गए. इससे टेस्टिंग और इलाज, दोनों जल्दी हुए.
इन टीम्स ने अब तक राज्य की लगभग 24 करोड़ जनसंख्या में से 18 करोड़ से अधिक लोगों को कवर कर लिया है.
राज्य ने कोविड के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए विशेष कोविड अस्पतालों की घोषणा की. राज्य में अब कुल 674 कोविड अस्पताल हैं जिनमें से 571 स्तर एक के, 77 स्तर दो के और 26 स्तर तीन के अस्पताल हैं. इन अस्पतालों में बिस्तरों की कुल उपलब्धता 1.57 लाख हो चुकी है.
अब राज्य के सभी 75 जिलों में कम से कम एक अस्पताल स्तर दो का है जिसमें आईसीयू बिस्तर का मौजूद हैं.
इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के हर जिला अस्पताल में पोस्ट-कोविड केयर यूनिट है. यह सुविधा उन मरीजों के लिए है जो कोविड के बाद की समस्याओं से जूझ रहे हैं, जैसे सांस लेने में दिक्कत, मानसिक या शारीरिक परेशानियां.
यह स्पष्ट और सुव्यस्थित हिदायतों का ही नतीजा है कि एक मजबूत हेल्थ इकोसिस्टम तैयार हुआ जोकि सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी आपात स्थिति का आसानी से मुकाबला कर सकता है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य मुख्यालय पर रिलीफ कमीशनर के कार्यालय में एक एंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर (आईसीसीसी) बनाया. हर जिला मुख्यालय में ऐसी ही आईसीसीसी बनाई गईं जिन्हें संबंधित जिला अधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने संभाला.
इसके अलावा मुख्यमंत्री की हेल्पलाइन से लगातार कोविड मरीजों के साथ संपर्क किया गया. सभी मरीजों से व्यक्तिगत रूप से बात की गई और उसने उनका हाल चाल पूछा गया, यह भी पूछा गया कि अस्पताल में उन्हें कोई समस्या तो नहीं हो रही.
साथ ही कोविड के दौरान सरकार ने एंबुलेंस सेवाओं, ऑनलाइन ओपीडी सेवाओं, टेली-मेडिसिन और टेली-कंसल्टेशन की सुविधाओं सहित दूसरे लॉजिस्टिक्स को आसान और कारगर बनाया.
राज्य सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया कि ऑक्सीजन की सप्लाई चेन बनी रहे. महामारी के दौरान गाजियाबाद के मोदी नगर में नए ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन भी किया गया.
किसी भी सरकार के लिए करीब 45 लाख प्रवासियों और उनके पुनर्वास का काम करना बहुत मुश्किल था. योगी सरकार ने प्रवासियों को ट्रेन से वापस लाने का फैसला किया जो सही दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम था. देश के अलग-अलग हिस्सों से प्रवासियों को लाने के लिए करीब 1660 ट्रेनें दौड़ाई गईं. सरकार ने यह भी पक्का किया कि अपने अपने घर लौटने वाले लोगों को खाना और पानी जैसी बुनियादी चीजें उपलब्ध हों. कम्यूनिटी किचन शुरू किए गए जिन्होंने प्रवासी मजदूरों और दीन हीन लोगों की मदद की. लॉकडाउन के दौरान उनमें करीब 6.75 लाख फूड पैकेट्स बांटे गए.
इसके अलावा ग्रामीण इलाकों के करीब 53 लाख निर्माण मजदूरों, फुटपाथी दुकानदारों, ठेलेवालों और दिहाड़ी मजदूरों को डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) प्रणाली के जरिए 1,000 रुपए दिए गए. इंप्लॉयर्स को राजी करने के लिए कोशिशें की गईं कि वे लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को तनख्वाह देते रहें. इस तरह 50 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को वेतन मिला जिसका जोड़ 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा है.
सरकार ने प्रवासियों को उपयुक्त काम देने के लिए स्किल मैपिंग की. इनमें से लगभग 27.28 लाख प्रवासियों को छोटे और मंझोले दर्जे के करीब 11 लाख इस्टैबलिशमेंट्स में काम मिला. इसके अलावा प्रवासियों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) योजना के तहत भी काम मिला.
आठ लाख से ज्यादा एमएसएमईज़ को चालू किया गया जिनमें 51 लाख से ज्यादा मजदूर काम करते हैं. आत्मनिर्भर योजना के तहत 4.35 लाख औद्योगिक इकाइयों को 10744 करोड़ मूल्य के लोन्स बांटे गए. मजदूरों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए एक श्रम रोजगार कमीशन बनाया गया.
साथ ही, 8.53 लाख से ज्यादा नई इकाइयां शुरू की गईं और राज्य में बैंकों के सहयोग से 29428 करोड़ रुपए मूल्य के लोन्स बांटे गए, और 27 लाख से ज्यादा नौकरियों का सृजन हुआ.
(सिद्धार्थ नाथ सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और उनके मातहत एमएसएमई, निवेश और निर्यात, कपड़ा, खादी और ग्रामोद्योग विभाग हैं. वह भाजपा के आधिकारिक प्रवक्ता हैं. @SidharthNSingh पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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