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कैमरा- शिव कुमार मौर्या
वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज
जीरो की खोज करने वाले आर्यभट्ट के बिहार में 'जीरो' हेल्थ सिस्टम की एक बार फिर पोल खुल गई है. कोरोना जब अपने पांव पसार रहा था तब बिहार में टेस्टिंग कछुए की चाल से हो रही थी, लेकिन जब टेस्टिंग बढ़ाने की बात हुई तो ऐसा बढ़ाया कि कहां जीरो लगाना है और कहां नहीं यही भूल गए. देश में कोरोनावायरस के मामलों में कमी और टीकाकरण के बीच बिहार में कोरोना टेस्टिंग के आंकड़ों में गड़बड़ी सामने आई है. सरकारी अस्पतालों में दी गई कोरोना की टेस्ट रिपोर्ट के डेटा में मरीजों के मोबाइल नंबर, पता, नाम से लेकर रिपोर्ट की गलत जानकारी दर्ज की गई है.
अब सवाल ये है कि फिर कोरोना के दौरान 'सबसे कम पॉजिटिव केस' के नाम पर कॉलर खड़ा करने वालों की बयानबाजी पर कैसे यकीन किया जाए, इतने दिनों तक ये फर्जीवाड़ा होता रहा लेकिन सरकार क्यों नहीं जागी? इसलिए बिहार की जनता पूछ रही है, जनाब ऐसे कैसे?
बिहार में कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट में आंकड़ों में कथित गड़बड़ी को लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने एक इंवेस्टिगेटिव स्टोरी की है. इंडियन एक्सप्रेस के संतोष सिंह ने बिहार के जमुई, शेखपुरा और पटना के 6 PHCs (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों) के कोरोना जांच के डेटा की पड़ताल की. 16, 18 और 25 जनवरी के टेस्टिंग डेटा में जमुई में कुल 588 एंट्री दर्ज थीं, जिनमें कई एंट्रियां गलत थीं जिसके लिए फर्जी नाम और मोबाइल नंबर का इस्तेमाल किया गया था. आइए बताते हैं कि बिहार में कोरोना जांच के नाम पर फर्जीवाड़ा कैसे हुआ ? कहां पर क्या गड़बड़ी मिली?
25 जनवरी को 83 लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ, जिसमें 46 लोगों के रिकॉर्ड में मोबाइल नंबर की जगह दस बार जीरो लिखा गया है. वहीं जुमई जिले के ही एक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सदर में 16 जनवरी को 150 लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ, जिसमें 73 लोगों के रिकॉर्ड में मोबाइल नंबर की जगह दस बार जीरो लिखा मिला.
क्विंट ने भी आपको कोरोना काल में अपने इसी सीरीज जनाब ऐसे कैसे में बिहार में कोरोना की टेस्टिंग की रेंगती हुई स्पीड और खस्ताहाल इलाज को लेकर बताया था. कहीं ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत हुई तो कहीं अस्पताल के बाहर मरीजों को घंटो तड़पना पड़ा.
नीतीश सरकार के हेल्थ मिनिस्टर और बीजेपी नेता मंगल पांडे हर रोज अपने ट्विटर पर कोरोना जांच का आंकड़ा देते हैं.. उनके मुताबिक 11 फरवरी तक "बिहार में अभी तक कुल 2 करोड़ 18 लाख 12 हजार 681 जांच की जा चुकी हैं..."
अब जब मीडिया में फर्जावाड़े की कहानी समाने आई है तो सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं, "कोई भी दोषी पाया गया तो उसे छोड़ा नहीं जाएगा और उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी," वाले रटे रटाए बयान जारी हैं, लेकिन सवाल ये है कि ये फर्जीवाड़ा कोई पहले दिन नहीं हुआ है, फिर सरकार क्यों नहीं जागी? क्यों सरकारी तंत्र इन गड़बड़ियों को रोक नहीं पाए?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 11 फरवरी 2021 तक बिहार में 1521 लोगों की मौत कोरोना से हुई है, लेकिन इन फर्जीवाड़े के बाद ये इन आंकड़ों पर कैसे यकीन किया जाए? फिलहाल सिर्फ तीन जिले के कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की जानकारी सामने आ सकी है. क्या सरकार खुद हर जिले की गड़बड़ियां सामने लाएगी? और अगर नहीं तो बिहार पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?
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