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दिल्ली की 70 सीटों के लिए बीजेपी ने 57 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. लिस्ट में कोई धमाकेदार नाम नहीं है. तीनों मौजूदा विधायक (जगदीश प्रधान, विजेंद्र गुप्ता, ओपी शर्मा) लिस्ट में हैं और दो मेयर (रविंद्र गुप्ता और योगेंद्र चंदोलिया) भी. लेकिन नई दिल्ली से केजरीवाल के खिलाफ कौन लड़ेगा, अभी पार्टी तय नहीं कर पाई है. चुनाव जीते तो सीएम कौन होगा, बीजेपी ने ये भी नहीं बताया है. अभी तक बीजेपी के बड़े नेताओं की रैलियों का रेला भी नहीं आया है. तो लिस्ट से लेकर चुनावी गहगहमी में कमी देख सवाल पूछना तो बनता है. बीजेपी में इतना सन्नाटा क्यों है भाई? क्या बीजेपी दिल्ली में लड़ने के पहले ही हार मान चुकी है?
आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने बीजेपी की लिस्ट देख चुटकी ली है कि बीजेपी ने केजरीवाल के खिलाफ कोई चेहरा सामने ना लाकर उनकी पार्टी को वॉकओवर दे दिया है.
आम आदमी पार्टी के सियासी हमले को एक तरफ रख भी दें तो ये बात चौंकाती है कि बीजेपी को दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई नाम नहीं मिल रहा. कांग्रेस मुक्त भारत का लक्ष्य लेकर चलने वाली पार्टी के पास देश की राजधानी में तगड़ा चेहरा नहीं है तो ये वाकई चिंता की बात है. अगर आप लिस्ट को देखें तो कम से कम आधे ऐसे नाम हैं, जिनके बारे में उनके चुनाव क्षेत्र के बाहर किसी ने सुना नहीं होगा. ये भी याद रखना चाहिए जिन 57 सीटों पर उम्मीदवारों का फैसला हुआ है, उन्हें तय करने में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भी दखल रही. ऐसे में सभी सीटों पर उम्मीदवारों का फैसला न हो पाना काफी कुछ कहता है.
किन सीटों पर उम्मीदवार तय नहीं
जरा दिल्ली बीजेपी के बड़े चेहरों पर बात कर लेते हैं. विजेंद्र गुप्ता, विजय गोयल, हर्षवर्धन, मनोज तिवारी. विजेंद्र गुप्ता मैदान में हैं, लेकिन पार्टी को उन्हें सीएम उम्मीदवार के दौर पर पेश करना होता तो अब तक कर चुकी होती. डॉ. हर्षवर्धन केंद्र में मंत्री हैं. विजय गोयल भी संसद में बैठे हैं. यानी विजेंद्र गुप्ता को छोड़कर दिल्ली के हेवीवेट्स संसद में हैं. अगर पार्टी मनोहर लाल खट्टर, देवेंद्र फडणवीस या रघुवर दास जैसा प्रयोग दिल्ली में करती है, यानी बेंच से उठाकर किसी नेता को दिल्ली की कुर्सी पर बिठाने की रणनीति बनाती है तो इन तीन राज्यों में क्या हुआ, ये भी वो जरूर याद करेगी. अब बचे दिल्ली में इस वक्त बीजेपी का चेहरा मनोज तिवारी. लेकिन सीएम पद के लिए पार्टी इस नाम पर विचार करेगी, पक्के तौर पर कह नहीं सकते.
कोई कह सकता है कि बीजेपी अब पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ती है. अगर ऐसा है तो बीजेपी को ये जरूर देखना चाहिए उन राज्यों में क्या हश्र हुआ जहां वो पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ी. अब ये बात लगभग साबित हो चुकी है कि जब वोटर पीएम मोदी के लिए वोट करता है तो बीजेपी को तवज्जो देता है लेकिन जब राज्यों के चुनाव हों तो उसे लोकल मुद्दों पर जवाब चाहिए, लोकल चेहरा चाहिए. हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर के खिलाफ गुस्सा था, महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ जनमत था और झारखंड में तो खुद रघुवर दास चुनाव हार गए. तो ये समझना मुश्किल है कि आखिर क्यों बीजेपी एक बार फिर मोदी के नाम पर दांव लगाएगी?
आम आदमी पार्टी से आयात हुए कपिल मिश्रा का नाम बीजेपी की लिस्ट में है. गांधी नगर से भी बीजेपी ने AAP से आए विधायक अनिल वाजपेयी को उतारा है. शकूर बस्ती और तिमारपुर से पार्टी ने कांग्रेस से आए पूर्व विधायकों एसी वत्स और सुरिंदर सिंह बिट्टू को टिकट दिया है. लेकिन सच ये है कि हम झारखंड से महाराष्ट्र तक देख चुके हैं कि दलबदलुओं के प्रति वोटर का कोई खास प्रेम नहीं रहा है.
हालांकि ये बात आप आम आदमी पार्टी के लिए भी कह सकते हैं, क्योंकि वहां तो 5 ऐसे मामले हैं जिन्हें पार्टी ज्वाइन करने के 24 घंटे बाद ही टिकट दे दिया गया. इन नेताओं के नाम हैं राजकुमारी ढिल्लो, नवीन चौधरी, जय भगवान उपकार, विनय कुमार मिश्र और राम सिंह.
एक मुद्दा है जिसपर बीजेपी को वोट मिलने की उम्मीद हो सकती है. ये मुद्दा है दिल्ली की अवैध कॉलोनियों का मुद्दा. चुनाव से चंद महीने पहले केंद्र ने दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का ऐलान किया. दावा किया गया कि इससे दिल्ली के 60 लाख लोगों की जिंदगी आसान होगी. खुद पीएम मोदी ने 22 दिसंबर को अपनी रैली में इसका बढ़-चढ़कर बखान किया. लेकिन एक सवाल ये भी है कि जिन झुग्गियों, जिन पिछड़े इलाकों के बूते केजरीवाल बहुमत का जादुई आंकड़ा पाते आए हैं, वहां क्या इस एक काम से बीजेपी आम आदमी पार्टी को टक्कर दे पाएगी?
दूसरा मुद्दा हो सकता है नागरिकता संशोधन कानून-NRC. यानी राष्ट्रवाद और हिंदुवाद का कॉकटेल. लेकिन ये कॉकटेल झारखंड में काम नहीं आया. शायद इसकी वजह ये रही कि लोकल चुनाव में पब्लिक लोकल मुद्दों पर वोट कर रही है. CAA का मुद्दा अगर असर डालेगा भी तो संभव है बीजेपी के खिलाफ ही जाए क्योंकि जिस तरह से जामिया, जामा मस्जिद और जेएनयू में हिंसा हुई है उससे लोगों में गुस्सा है.
दिल्ली चुनाव पर आए एकमात्र सर्वे ने अनुमान लगाया है कि आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिल सकता है. सरकार बनाने के लिए चाहिए 36 सीटें लेकिन मिल सकती हैं 59 सीटें. तो सवाल घूम फिरकर वहीं आ जाता है कि क्यों बीजेपी दिल्ली में इतनी खामोश है? बीजेपी आखिरी वक्त में कोई धमाका करने वाली है? या पार्टी दिल्ली में लड़ने के पहले ही हार मान चुकी है?
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Published: 17 Jan 2020,09:12 PM IST