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दिल्ली जल संकट: पानी के लिए 'हाय-तौबा', लेकिन बात कहां बिगड़ी, अब समाधान क्या?

Delhi Water Crisis: वाटर सप्लाई नेटवर्क को मजबूत करने और पहुंच बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार जरूरी है.

अंजल प्रकाश
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>दिल्ली में चल रहे जल संकट के बीच लोग  विवेकानंद शिविर में गुरुवार, 13 जून को टैंकर से पीने का पानी लेते हुए.</p></div>
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दिल्ली में चल रहे जल संकट के बीच लोग विवेकानंद शिविर में गुरुवार, 13 जून को टैंकर से पीने का पानी लेते हुए.

(फोटो: PTI)

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दिल्ली में जल संकट (Delhi Water Crisis) गंभीर स्तर पर पहुंच गया है. निचले स्तर के 30 प्रतिशत निवासियों को भारी जल संकट का सामना करना पड़ रहा है. इसके साथ ही उन्हें पानी की खराब गुणवत्ता से भी जूझना पड़ रहा है. इसके अलावा भूजल स्तर खतरनाक दर से गिरता जा रहा है. औद्योगिक और कृषि गतिविधियों, अनुपचारित सीवेज और वाटर ट्रीटमेंट में इस्तेमाल किए जाने वाले कैमिकल से होने वाले प्रदूषण के कारण स्थिति और भी बदतर हालात में पहुंच चुकी है.

उत्तर-पश्चिम भारत में पड़ रही भीषण गर्मी ने इस क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव डाला है, जिससे जल उपलब्धता की मौजूदा चुनौतियां और बढ़ गई हैं. साथ ही पानी के इस्तेमाल के पैटर्न में भी बदलाव आया है. जैसे-जैसे तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच रहा है, पानी की मांग बढ़ रही है, जिससे पहले से ही कम हो रहे जल स्रोतों पर दबाव बढ़ रहा है.

निम्न सामाजिक-आर्थिक बस्तियों में रहने वाले लोगों को घटते जल भंडारों से जूझना पड़ रहा है, क्योंकि जलाशयों का पानी पुनः भरने की अपेक्षा तेजी से गायब हो रहा है, जिसकी वजह से साफ पानी के लिए संघर्ष बढ़ रहा है. एक तरफ भीषण गर्मी की वजह से जल संकट बढ़ रहा है और दूसरी तरफ जल प्रदूषण के खतरे ने स्थिति को और जटिल बना दिया है.

अत्यधिक गर्मी और जल की कमी ने मजबूत जल प्रबंधन रणनीति की तत्काल जरुरत को रेखांकित किया है, जिससे कि इस अभूतपूर्व जलवायु घटना के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके.

इस भयावह स्थिति के कारण पानी की सप्लाई में कटौती शुरू हो गई है, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ गई हैं, साथ ही स्वच्छ पानी तक पहुंच के लिए संघर्ष कर रहे समुदायों में गरीबी बढ़ गई है. वर्षा जल संचयन और उन्नत जल संसाधन प्रबंधन जैसी पहलों के बावजूद, शहर में संकट जारी है, जिसके लिए तत्काल और व्यापक उपाय आवश्यक हैं.

टैंकर माफिया और बुनियादी ढांचे में कमी का परस्पर संबंध

दिल्ली में 'टैंकर माफिया' का व्यापक प्रभाव और पानी के बुनियादी ढांचे में कमी ने मिलकर चुनौतियों का एक जटिल जाल बना दिया है, जिसके कारण शहर के 58% पानी को गैर-राजस्व जल के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अवैध पानी सप्लाई में संलिप्त टैंकर माफिया की नापाक गतिविधियां लंबे समय से राजधानी को त्रस्त कर रही हैं, जो वैध वितरण के लिए निर्धारित पानी में बड़े स्तर पर हेराफेरी करते हैं.

पानी की यह कालाबाजारी मांग को बढ़ती है, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और सार्वजनिक जल आपूर्ति प्रणाली की अखंडता को कमजोर करती है.

इसके साथ ही, दिल्ली के जल ढांचे की बिगड़ती स्थिति, जिसमें बड़े पैमाने पर रिसाव और अकुशलता शामिल हैं, समस्या को और भी जटिल बना देती हैं. पुरानी पाइपलाइनें, अपर्याप्त रख-रखाव और अनियंत्रित बर्बादी, पहले से ही खतरनाक जल स्थिति को और भी बदतर बना देती है. पानी का एक बड़ा हिस्सा गैर-राजस्व के रूप में वर्गीकृत है, जो जल प्रशासन में व्यापक सुधार, बुनियादी ढांचे के पुनरोद्धार और टैंकर माफिया के हानिकारक प्रभाव से निपटने के लिए कड़े उपायों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है.

दिल्ली में जल सुरक्षा बढ़ाने और सतत जल प्रबंधन के उपायों को बढ़ावा देने के लिए इन प्रणालीगत कमियों को दूर करना महत्वपूर्ण है.

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टिकाऊ समाधान

दिल्ली में जल संकट से निपटने के लिए लागू की गई रणनीतियों में से एक प्रमुख स्तंभ बारिश के पानी का संग्रहण (rainwater harvesting) है. भविष्य में इस्तेमाल के लिए बारिश के पानी को जमा करने वाली प्रणालियों को बढ़ावा देने और इसे लागू करने से जल संकट को कम करने की दिशा में एक स्थायी समाधान के तौर पर देखा जा सकता है. चेन्नई ने पहले ऐसा किया है, जिससे उसे फायदा हुआ है.

इसके अलावा, अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रियाओं में सुधार एक अन्य महत्वपूर्ण उपाय है. अपशिष्ट जल उपचार को बढ़ाने से न केवल प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि जल की गुणवत्ता भी बेहतर होगी, जो दिल्ली की जनता की भलाई सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है.

इस संकट से लड़ने में जल संसाधन प्रबंधन सर्वोपरि है, जिसके लिए अधिक कुशल और टिकाऊ तरीकों को अपनाने की जरूरत है. इसमें जल संसाधनों की बर्बादी रोकने और दीर्घकालिक व्यवहार्यता बढ़ाने के लिए सही तरीके से उपभोग और आवंटन शामिल है.

इसके समानांतर, जन जागरूकता और शिक्षा पहल जल संरक्षण की संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जल संरक्षण के तरीकों के बारे में जनता को शिक्षित करना, प्रदूषण को कम करना तथा जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित करना, व्यापक व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित करने के लिए अपरिहार्य है.

दिल्ली में मजबूत जल-तंत्र का निर्माण

जल वितरण नेटवर्क को मजबूत करने और स्वच्छ जल तक पहुंच बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार जरूरी है. दिल्ली की बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने और समान जल प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए पानी के बुनियादी ढांचे को विकसित और विस्तारित करना आवश्यक है. इन प्रयासों के पूरक के रूप में औद्योगिक और कृषि प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से नीतियां और नियम बनाए गए हैं. साथ ही पानी के सतत उपयोग के लिए आदेश दिए गए हैं.

दिल्ली के जल स्रोतों के गिरते स्तर को रोकने और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए जल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए आज के हिसाब से नियम बनाना बेहद जरूरी है.

इन बहुआयामी उपायों को अपनाने के बावजूद, संकट की गंभीरता, दिल्ली को घेरने वाली जल चुनौतियों से निपटने के लिए सतत और व्यापक प्रयासों की आवश्यकता की ओर इशारा करती है. यह स्पष्ट है कि बढ़ते संकट को रोकने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण, जिसमें विविध रणनीतियां शामिल हों और सरकारी, नागरिक और निजी हितधारकों की ओर से ठोस कार्रवाई आवश्यक है. दिल्ली के निवासियों के लिए जल-सक्षम भविष्य सुनिश्चित करने का दायित्व सामूहिक दृढ़ संकल्प और सहयोगात्मक प्रयासों पर है.

हालांकि, दिल्ली में जल संकट एक विकट चुनौती पेश कर रहा है, ऐसे में यह दृढ़ प्रतिबद्धता और नए समाधान के लिए एक आह्वान भी है. विविध रणनीतियों के क्रियान्वयन में दृढ़ता बनाए रखते हुए और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को सुदृढ़ बनाते हुए, दिल्ली इस संकट पर विजय प्राप्त कर सकती है. इसके साथ ही एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकती है, जहां स्वच्छ जल तक पहुंच एक विलासिता नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार बन जाएगा.

दिल्ली के जल प्रबंधन पर श्वेत पत्र की अनिवार्यता

निरंतर राजनीतिक कलह और मतभेद के बीच, दिल्ली में जल प्रबंधन पर एक व्यापक श्वेत पत्र की तत्काल जरुरत महसूस की जा रही है. प्रतिस्पर्धी हितों और सत्ता संघर्षों में टकराव के बीच, शहर की जल समस्याओं के समाधान के लिए जितना जल्द हो सके एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करने की दरकार है.

एक श्वेत पत्र के जरिए जल व्यवस्था, सतत प्रणाली और संसाधनों के आवंटन में आने वाली पेचीदगियों को सामने लाया जा सकेगा. इसमें राजनीतिक तकरार और नौकरशाही गतिरोध की वजह होने वाले उथल-पुथल की वजह भी सामने आएंगी.

ऐसा दस्तावेज स्पष्टता के एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करेगा, जो दिल्ली के जल संसाधनों, सामने आने वाली चुनौतियों और भविष्य की जल प्रबंधन पहलों के लिए एक रणनीतिक रूपरेखा प्रदान करेगा. दलीय विभाजन और संकीर्ण एजेंडे से ऊपर उठकर, दिल्ली में जल पर श्वेत पत्र में जल सुरक्षा और सतत विकास के लिए एक साझा दृष्टिकोण के तहत हितधारकों को एकजुट करने की क्षमता है.

राजनीतिक तूफान के बीच, श्वेत पत्र की यह मांग आशा का प्रतीक है, जो सही निर्णय लेने, सहयोगात्मक कार्रवाई और दिल्ली के सबसे महत्वपूर्ण संसाधन- जल की सुरक्षा की वकालत करती है.

[अंजल प्रकाश भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (रिसर्च) हैं. वह आईएसबी में स्थिरता विषय पढ़ाते हैं और आईपीसीसी रिपोर्ट में योगदान देते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.]

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