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पीएम का पोस्टर न लगा तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक डीएम को सबके सामने लगाई डांट!
बीजेपी सांसद की 'मनमानी' न मानी तो जिला उपायुक्त पर राजद्रोह का केस!
कुछ चीजें ऐसी होती हैं कि एकदम अविश्वसनीय लगती हैं.
लेकिन ये नए भारत का सच है.
पहली घटना तेलंगाना की है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वहां दौरे पर थीं. जन वितरण प्रणाली यानी सरकारी राशन की दुकान पर गई थीं. वहां प्रधानमंत्री का पोस्टर नहीं लगा था. ये बात उन्हें इतनी नागवार गुजरी कि सबके सामने कामारेड्डी के जिलाधिकारी जितेश वी पाटिल को फटकार लगाने लगीं. उन्हें समझाने लगीं कि ये जो सस्ता राशन मिलता है उसमें केंद्र सरकार कितना पैसा देती है और राज्य सरकार कितना.
क्या किसी ने कल्पना की थी कि इस देश में कभी ऐसा वक्त भी आएगा कि देश का वित्त मंत्री एक जिलाधिकारी को सार्वजनिक तौर पर डांट लगाएगा कि पीएम की फोटो क्यों नहीं लगी है? कामारेड्डी जिले के जिलाधिकारी को जब इस बात के लिए वित्त मंत्री फटकार लगा रही थीं तो क्या उन्होंने सोचा कि एक जिलाधिकारी को इस तरह से उनके कनिष्ठों के सामने सार्वजनिक फटकार लगाई जाएगी, तो वो कल को अपने जिले को कैसे चलाएंगे?
इस विवाद की अगली कड़ी भी देखिए. टीआरएस ने एक वीडियो जारी किया जिसमें गैस के सिलेंडरों पर पीएम की तस्वीर लगी है और उसपर दाम लिखा है 1105 रुपये. इस वीडियो के साथ टीआरएस ने ट्वीट किया- निर्मला जी आप पीएम की तस्वीर चाहती थीं, ये लीजिए.
इस लिहाज से देखें तो कोविड के टीके वाली सर्टिफिकेट से लेकर खाद की बोरियों तक पीएम की तस्वीर का प्लान बनाने के पीछे ब्रांडिंग की जो सोच है वो उलटी भी पड़ सकती है.
झारखंड का केस तो और भी अजीब है. देवघर का एयरपोर्ट अभी-अभी शुरू हुआ है. वहां से सूर्यास्त के बाद टेकऑफ या लैंडिंग की सुविधा नहीं है. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे, मनोज तिवारी समेत 9 लोगों पर आरोप है कि वो देवघर एयरपोर्ट के एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) में घुसे और जबरन अपने चार्टर्ड प्लेन के लिए कट ऑफ टाइम के बाद उड़ान की क्लीरेंस ली और देवघर से उड़े. जब इन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज हुई तो निशिकांत दुबे ने देवघर के डीसी मंजूनाथ और कुछ पुलिसवालों के खिलाफ दिल्ली में एफआईआर दर्ज करा दी. वैसे तो सरकारी काम में बाधा डालने समेत कई आरोप डीसी पर लगाए गए हैं लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि उनके खिलाफ राजद्रोह का आरोप भी लगाया गया है.
FIR में 'पब्लिक सर्वेंट' को अपना काम करने से रोकने के लिए बल प्रयोग, अनधिकृत प्रवेश, सबूत मिटाने, धमकी देने और साजिश रचने जैसी चीजें (अगर ये सही भी हैं तो) राजद्रोह कैसे हो गईं, ये समझ से परे है. क्या नेताजी को रोकना-टोकना, वो भी उन्हीं की सुरक्षा के लिए, राजद्रोह है? सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने वालों पर राजद्रोह का केस ठोंक देना अब आम हो चला है, लेकिन जिलाधिकारी राजद्रोही बताना नया है
डीसी मंजूनाथ ने अपने खिलाफ FIR दर्ज होने पर कहा-
निशिकांत दुबे का दावा है कि उन्होंने ATC में एंट्री की परमिशन ली थी. लेकिन ये भी गौर करने वाली बात है कि उनके और उनके साथियों के खिलाफ FIR एयरपोर्ट के सिक्योरिटी इन्चार्ज डीएसपी सुमन आनंद ने ही कराई है. देवघर एयरपोर्ट की सिक्योरिटी झारखंड पुलिस के पास है और उसने यहां सुमन आनंद को इन्चार्ज बनाया है तो फिर सवाल है कि दुबे ने किससे परमिशन ली थी?
ये भी गौर करने वाली बात है कि निशिकांत दुबे नंगे पैर ही ATC की तरफ लपके थे. उनके बेटे पीछे-पीछे उनकी चरण पादुका लेकर दौड़े थे. निशिकांत दुबे का कहना है कि उनके पास इतना भी वक्त नहीं था कि चप्पल पहन कर ATC जा सकें. यही बात थी या गुस्से के मारे चप्पल का ख्याल नहीं रहा? क्यों वक्त नहीं था? जब आप कटऑफ टाइम के बाद भी उड़ाने भरने की 'हैसियत' रखते ही थे तो टाइम की क्या परवाह? सवाल ये है कि अगर एटीसी उड़ान भरने की अनुमति नहीं दे रहा था तो किसकी सुरक्षा का ख्याल रख रहा था. जाहिर है निशिकांत दुबे और उनके सहयात्रियों की. आखिर इस देश में राजनीति से परे भी कुछ चीजें हैं या नहीं?
जानना जरूरी है कि इन दिनों झारखंड में चल रहा क्या रहा है?
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ पूर्व बीजेपी सांसद और मौजूदा राज्यपाल को फैसला सुनाना है. सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन आरोप लगा रहा है कि राज्यपाल जानबूझकर फैसला लटका रहे हैं ताकि बीजेपी को गठबंधन के विधायकों को खरीदने का मौका मिल जाए. विधायक टूट न जाएं इस डर से सोरेन ने अपने विधायकों को रायपुर भेज दिया है. इस बीच झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे सबसे ज्यादा मुखर हैं. वो लगातार ट्विटर पर सोरेन और गठबंधन पर निशाना साध रहे हैं. कुल मिलाकर झारखंड में सियासी पारा एकदम चढ़ा हुआ है. तो क्या ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इसी सियासी उबाल की गर्म बूदें ब्यूरोक्रेसी तक पहुंची है?
इस देश में नेता अफसरों को अपने सियासी सहूलियत के लिए हमेशा से हांकते आए हैं. लेकिन तेलंगाना और देवघर के केस बताते हैं कि सीमाएं टूट रही हैं.
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