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कोलकाता में भगवान (डॉक्टर) हड़ताल पर हैं और मरीजों की पहचान उनके हिंदू या मुसलमान होने को लेकर की जा रही है. जाहिर है कि हालात वैसे नहीं हैं, जैसे होने चाहिए थे. अपने समय के मशहूर डॉक्टर नीलरतन सिरकार के नाम पर कोलकाता के अति व्यस्त सियालदह इलाके में स्थित एनआरएस मेडिकल कॉलेज में सोमवार रात ममूली-सी बात पर बड़ा हंगामा हो गया और अब यह ‘टॉक ऑफ द नेशन’ बन गया है.
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन्हें काम पर लौटने या फिर कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार रहने का अल्टीमेटम दे चुकी हैं. डॉक्टरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है. उल्टे बंगाल की यह आग उत्तर और पश्चिम भारत के कई राज्यों तक फैल चुकी है.
पांच सितारा अस्पतालों और मेडिकल इंशोयोरेंस की कई स्कीम्स वाले अपने देश में डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने कोलकाता के डॉक्टरों के समर्थन में व्यापक आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर दी है.
डॉक्टरों की हड़ताल अभी कायम है. इस बीच दो राजनीतिक बयानों और एक राजनीतिक इवेंट की चर्चा भी जरुरी है. पहला बयान केंद्र में सत्तासीन बीजेपी के बंगाल प्रमुख दिलीप घोष का है. उन्होंने कहा, “एनआरएस मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों पर हुए हमले के पीछे एक समुदाय के असामाजिक तत्वों का हाथ है.”
दूसरा बयान बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के प्रवक्ता रह चुके एक नेता डॉ. अजय आलोक का है. उन्होंने अपने ट्विटर पर हड़ताल का समर्थन किया.
यह लिखने से एक दिन पहले उन्होंने जेडीयू के प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उनकी ही पार्टी ने बंगाल से संबंधित उनके बयान को उनकी निजी राय बता कर किनारा कर लिया था.
अब एक राजनीतिक इवेंट की चर्चा कर लेते हैं. टीएमसी की प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार की दोपहर कोलकाता से सटे काचरापाड़ा इलाके में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने ‘जय बांग्ला’ के नारे लगाए. कार्यकर्ताओं ने भी इसे दोहराया. उन्होंने जय हिंद और वंदे मातरम के नारे भी लगाए और लगवाए लेकिन उनका जोर ‘जय बांग्ला’ पर ज्यादा था.
उन्होंने वहां कहा कि मेडिकल कॉलेजों में हंगामा करने वाले डॉक्टर बाहरी हैं. इसलिए अब वे डोमिसाइल-ए और डोमिसाइल-बी के सर्टिफिकेट की समीक्षा करवाएंगी. यह देखना होगा कि अवैध तरीके से कोई बाहरी यहां के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई नहीं कर सके.
यह पूछना वाजिब है कि 'जय श्री राम' का नारा लगाने वाले ये लोग कौन हैं. ममता बनर्जी को रमजान में इफ्तार के वक्त सिर पर आंचल रखे देखने वाले लोगों ने काली पूजा और दुर्गा पूजा के वक्त घंटा बजाकर आरती करके हुए भी उतना ही देखा है. वे भी हिंदू हैं और परंपराओं में यकीन रखती हैं.
बहरहाल, बीजेपी के बंगाल प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष और बिहार के जेडीयू नेता डॉ. अजय आलोक के बयान और ममता बनर्जी के 'जय बांग्ला' नारे का विश्लेषण करें, तो सारी बातें अपने आप साफ हो जाएंगी. यह पता चलेगा कि बंगाल के डॉक्टर इतने आक्रोशित क्यों हो गए और अचानक से पूरा उत्तर भारत उनके समर्थन में कैसे खड़ा हो गया.
क्या डॉ. अजय आलोक यह बता सकेंगे कि रोहिंग्या कौन हैं, जिनकी चर्चा उन्होंने अपने ट्वीट में की है. इसी तरह दिलीप घोष को भी बताना चाहिए कि वह कौन समुदाय है, जिसके असामाजिक तत्व हिंसा के लिए जिम्मेवार हैं. इसको थोड़ा और क्लियर करते हैं. थोड़ी चर्चा उस घटना की, जिसके कारण यह सारा बवाल हुआ है.
इसमें कुछ डॉक्टर घायल हुए, तो कुछ आमलोगों को भी चोटें लगीं. एक फोटोग्राफर पर भी हमला हुआ. पुलिस ने दोनों तरफ की रिपोर्टें दर्ज की हैं और उपद्रव में शामिल पांच लोग गिरफ्तार किए गए हैं. इनमें मृत मरीज के परिजन भी शामिल हैं. यह ताजा मामला है. इससे पहले भी कई दफा मरीजों के परिजनों और डॉक्टरों के बीच विभिन्न अस्पतालों में हिंसक झड़पें हो चुकी हैं और अस्पतालों में कई प्रेस फोटोग्राफरों की पिटाई भी की जा चुकी है.
लेकिन, यह पहली बार हुआ है, जब किसी मरीज और उसके परिजन की चर्चा उसके धर्म को लेकर की जा रही है और इसका असर कई राज्यों की चिकित्सा व्यवस्था पर पड़ रहा है.
इधर, कलकत्ता हाईकोर्ट ने कुणाल साहा नाम के एक डॉक्टर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बंगाल सरकार को निर्देश दिया है कि वह डॉक्टरों को काम पर वापस लौटने के लिए राजी कराए. चीफ जस्टिस टीबीएन राधाकृष्णन और जस्टिस शुभ्रा घोष की खंडपीठ ने हड़ताल में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए राज्य सरकार को सात दिनों के अंदर जवाब देने को कहा है. राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी भी हमेशा की तरह सक्रिय हैं. उन्होंने भी डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की है.
(लेखक रवि प्रकाश कोलकाता के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनका टि्वटर हैंडल है @ravijharkhandi. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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Published: 14 Jun 2019,08:19 PM IST