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बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल पर हो रहे हैं ‘राजनीतिक इवेंट’

बंगाल से शुरू हुआ हंगामा अब ‘टॉक ऑफ द नेशन’ बन गया है

रवि प्रकाश
नजरिया
Updated:
कोलकाता में हड़ताल पर बैठे जूनियर डॉक्टर
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कोलकाता में हड़ताल पर बैठे जूनियर डॉक्टर
(फोटो: PTI)

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कोलकाता में भगवान (डॉक्टर) हड़ताल पर हैं और मरीजों की पहचान उनके हिंदू या मुसलमान होने को लेकर की जा रही है. जाहिर है कि हालात वैसे नहीं हैं, जैसे होने चाहिए थे. अपने समय के मशहूर डॉक्टर नीलरतन सिरकार के नाम पर कोलकाता के अति व्यस्त सियालदह इलाके में स्थित एनआरएस मेडिकल कॉलेज में सोमवार रात ममूली-सी बात पर बड़ा हंगामा हो गया और अब यह ‘टॉक ऑफ द नेशन’ बन गया है.

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बंगाल के विभिन्न अस्पतालों मे कार्यरत करीब 50 डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया है और दिल्ली समेत देश के कई राज्यों के डॉक्टर उनके समर्थन में हड़ताल पर हैं. कोलकाता के सभी अस्पतालों की इमरजेंसी सेवाएं ठप पड़ी हैं. मरीजों के परिजन धरती के भगवान (डॉक्टर) से हड़ताल तोड़ने की अपील कर रहे हैं.

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन्हें काम पर लौटने या फिर कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार रहने का अल्टीमेटम दे चुकी हैं. डॉक्टरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है. उल्टे बंगाल की यह आग उत्तर और पश्चिम भारत के कई राज्यों तक फैल चुकी है.

पांच सितारा अस्पतालों और मेडिकल इंशोयोरेंस की कई स्कीम्स वाले अपने देश में डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने कोलकाता के डॉक्टरों के समर्थन में व्यापक आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर दी है.

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस ताजा आंदोलन के लिए बंगाल की स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेवार ठहराया है. उन्होंने कहा है कि ममता बनर्जी को हड़ताली डॉक्टरों से सहानुभूतिपूर्वक बातचीत करनी चाहिए. अपनी बौद्धिक अय्याशी के आवरण में लिपटा बंगाल का भद्रलोक भी इस मसले पर बगैर मांगे अपनी राय रखने लगा है. मशहूर फिल्मकार अपर्णा सेन का ताजा बयान इसका प्रारंभिक उदाहरण है.

डॉक्टरों की हड़ताल अभी कायम है. इस बीच दो राजनीतिक बयानों और एक राजनीतिक इवेंट की चर्चा भी जरुरी है. पहला बयान केंद्र में सत्तासीन बीजेपी के बंगाल प्रमुख दिलीप घोष का है. उन्होंने कहा, “एनआरएस मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों पर हुए हमले के पीछे एक समुदाय के असामाजिक तत्वों का हाथ है.”
दूसरा बयान बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के प्रवक्ता रह चुके एक नेता डॉ. अजय आलोक का है. उन्होंने अपने ट्विटर पर हड़ताल का समर्थन किया.

वेस्ट बंगाल में एक डॉक्टर को 200 ‘रोहिंग्या’ पिटाई करते हैं तो ठीक लेकिन वेस्ट बंगाल के डॉक्टर इसके विरोध मे स्ट्राइक करें और समर्थन में पूरे देश के डॉक्टर आ जाएं तो क्या गलत. ये क्या है. सारे दलों को सांप सूंघ गया. एक डॉ. हर्षवर्धन के अलावा सब मौन हैं क्यों? एक डॉक्टर और नागरिक के नाते मेरा समर्थन है.
अजय आलोक

यह लिखने से एक दिन पहले उन्होंने जेडीयू के प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उनकी ही पार्टी ने बंगाल से संबंधित उनके बयान को उनकी निजी राय बता कर किनारा कर लिया था.

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राजनीतिक इवेंट की चर्चा

अब एक राजनीतिक इवेंट की चर्चा कर लेते हैं. टीएमसी की प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार की दोपहर कोलकाता से सटे काचरापाड़ा इलाके में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने ‘जय बांग्ला’ के नारे लगाए. कार्यकर्ताओं ने भी इसे दोहराया. उन्होंने जय हिंद और वंदे मातरम के नारे भी लगाए और लगवाए लेकिन उनका जोर ‘जय बांग्ला’ पर ज्यादा था.

उन्होंने वहां कहा कि मेडिकल कॉलेजों में हंगामा करने वाले डॉक्टर बाहरी हैं. इसलिए अब वे डोमिसाइल-ए और डोमिसाइल-बी के सर्टिफिकेट की समीक्षा करवाएंगी. यह देखना होगा कि अवैध तरीके से कोई बाहरी यहां के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई नहीं कर सके.

बकौल ममता बनर्जी, ऐसा हो जाने से बंगाल के मेडिकल कॉलेजों में बंगाली छात्रों को कम से कम 20 फीसदी ज्यादा सीटों का फायदा मिल सकेगा. उन्होंने कई और बातें कहीं. इससे पहले उस कार्यक्रम में शामिल होने जाते वक्त ममता बनर्जी के काफिले को देखकर बीजीपी समर्थकों ने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए. ममता बनर्जी उसे इग्नोर करते हुए आगे चली गईं. इस नारेबाजी को भी पूरे इवेंट का हिस्सा माना जाना चाहिए.

यह पूछना वाजिब है कि 'जय श्री राम' का नारा लगाने वाले ये लोग कौन हैं. ममता बनर्जी को रमजान में इफ्तार के वक्त सिर पर आंचल रखे देखने वाले लोगों ने काली पूजा और दुर्गा पूजा के वक्त घंटा बजाकर आरती करके हुए भी उतना ही देखा है. वे भी हिंदू हैं और परंपराओं में यकीन रखती हैं.

बहरहाल, बीजेपी के बंगाल प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष और बिहार के जेडीयू नेता डॉ. अजय आलोक के बयान और ममता बनर्जी के 'जय बांग्ला' नारे का विश्लेषण करें, तो सारी बातें अपने आप साफ हो जाएंगी. यह पता चलेगा कि बंगाल के डॉक्टर इतने आक्रोशित क्यों हो गए और अचानक से पूरा उत्तर भारत उनके समर्थन में कैसे खड़ा हो गया.

क्या डॉ. अजय आलोक यह बता सकेंगे कि रोहिंग्या कौन हैं, जिनकी चर्चा उन्होंने अपने ट्वीट में की है. इसी तरह दिलीप घोष को भी बताना चाहिए कि वह कौन समुदाय है, जिसके असामाजिक तत्व हिंसा के लिए जिम्मेवार हैं. इसको थोड़ा और क्लियर करते हैं. थोड़ी चर्चा उस घटना की, जिसके कारण यह सारा बवाल हुआ है.

क्यों हुई हिंसा?

एनआरएस मेडिकल कॉलेज में मोहम्मद सईद नाम के 74 साल के एक वृद्ध का इलाज किया जा रहा था. 10 जून की रात इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई और फिर राजा बाजार (सियालदह) इलाके के कई दर्जन लोगों ने अस्पताल में हंगामा शुरू कर दिया. तब अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों ने इसका विरोध किया और दोनों तरफ से हिंसा हुई.

इसमें कुछ डॉक्टर घायल हुए, तो कुछ आमलोगों को भी चोटें लगीं. एक फोटोग्राफर पर भी हमला हुआ. पुलिस ने दोनों तरफ की रिपोर्टें दर्ज की हैं और उपद्रव में शामिल पांच लोग गिरफ्तार किए गए हैं. इनमें मृत मरीज के परिजन भी शामिल हैं. यह ताजा मामला है. इससे पहले भी कई दफा मरीजों के परिजनों और डॉक्टरों के बीच विभिन्न अस्पतालों में हिंसक झड़पें हो चुकी हैं और अस्पतालों में कई प्रेस फोटोग्राफरों की पिटाई भी की जा चुकी है.

लेकिन, यह पहली बार हुआ है, जब किसी मरीज और उसके परिजन की चर्चा उसके धर्म को लेकर की जा रही है और इसका असर कई राज्यों की चिकित्सा व्यवस्था पर पड़ रहा है.

इधर, कलकत्ता हाईकोर्ट ने कुणाल साहा नाम के एक डॉक्टर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बंगाल सरकार को निर्देश दिया है कि वह डॉक्टरों को काम पर वापस लौटने के लिए राजी कराए. चीफ जस्टिस टीबीएन राधाकृष्णन और जस्टिस शुभ्रा घोष की खंडपीठ ने हड़ताल में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए राज्य सरकार को सात दिनों के अंदर जवाब देने को कहा है. राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी भी हमेशा की तरह सक्रिय हैं. उन्होंने भी डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की है.

(लेखक रवि प्रकाश कोलकाता के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनका टि्वटर हैंडल है @ravijharkhandi. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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Published: 14 Jun 2019,08:19 PM IST

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