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मुझे एक इकबालिया बयान देना है. मैं काफी दिनों से ये राज बताकर आत्मशुद्धि करना चाहता था. अब वक्त गया है कि मैं बता दूं. ट्रंप ने एक तरह से मान लिया है कि वो हार गए हैं.उन्होंने प्रशासन को कह दिया है कि वो जो बाइडन को सत्ता सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दें. यानी अब वो हट जाएंगे लेकिन मुझे उनका पद त्याग बहुत खलेगा. उनका मुझ पर बहुत बड़ा अहसान है. सच कहूं तो मैं असुरक्षित महसूस कर रहा हूं. आइ विल मिस हिम. हालांकि वो मेरी मदद की कोशिश करेंगे, लेकिन राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने मेरे लिए जो किया है वो अनमोल है.
कबूल कर रहा हूं. थोड़ा धीरज रखिए. मुझे पता है कि आपकी राय ट्रंप के बारे में बहुत खराब है. एक झूठा, मक्कार, अक्षम और गैर जिम्मेदार. खुदगर्ज और आत्ममुग्ध. दुराचारी और लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक. मेरी भी यही राय है. लेकिन मुझ पर उनका अहसान है तो मुझे मानना चाहिए. ईमानदार टाइप आदमी हूं, इसलिए बता रहा हूं.
ट्रंप की बात यानी तनाव मुक्ति का मार्ग. ट्रंप के बारे में बात, यानी ज्ञानवर्धन और मेडिटेशन एक साथ. योग निद्रा का नेक्स्ट लेवल का अनुभव देते हैं ट्रंप. ये मेरा रूटीन बन गया. ट्रंप का रियलिटी शो इतना लाजवाब था कि मुझे हाउस ऑफ कार्ड्स फीका लगने लगा. मैंने उसे देखना आधे में ही छोड़ दिया.
ट्रंप की उपचार पद्धति लाजवाब है. पहले जिज्ञासा, फिर कौतुहल, फिर कुछ ही मिनटों में सुन्न. सुन्न यानी - मन शांत, चित्त स्थिर और अपन गहरी नींद वाली अवस्था को प्राप्त. असरदार लोरी सुनाने की कोई प्रतियोगिता होती तो कोई भी महिला - मां, दादी, नानी - ट्रंप से नहीं जीत सकती.
क्या जादू था ट्रंप की बातों में. लीजिए सबूत. वो झूठ बोलते - कोरोना यूं छूमंतर हो जाएगा. केस बढ़ ही नहीं रहे. ब्लीचिंग पाउडर पी लो, वाइरस रफू चक्कर हो जाएगा. अब झूठ, अज्ञान और अनर्गल का ऐसा मिश्रण हो तो, तो कमबख्त दिमाग क्या करे. कितना भी गुमान हो अपने दिमाग को कि वो तीक्ष्ण है तो भी कैसे झेले इतना जटिल गणित. उसका दही की तरह जम जाना -फ्रीज हो जाना - वही तो निद्रा है, वही तो चाहिए, वही तो मंजिल है. उसी के लिए तो दिन भर मरते और खपते हैं हम - चैन की नींद.
मनोशांति के लिए कई लोग जिबरिश का इस्तेमाल सुझाते हैं. यह एक तरह की थेरेपी है जो मस्तिष्क की विचार शृंखलाओं को तोड़ देती है और मन को शांत करती है. जिबरिश हिंदी में बड़बड़िया और मराठी में लबाड. अब इस विधा में ट्रंप से कौन टकरा सकता है. एक दिन ट्विटर पर अचानक ले आए - कोवफेफे. शशि थरूर भी मैदान छोड़ दें ऐसा शब्द संसार.
आज के तनाव भरे युग में सत-चित्त-आनंद का इतना बड़ा स्रोत कोई हो ही नहीं सकता. ट्रंप के बाद बाइडन आएंगे. उनकी सौम्य और बोरिंग बातों में वो बात कहां होगी जो ट्रंप की बातों में है. इसलिए मैंने कहा कि ट्रंप से मेरे राजनीतिक मतभेद भले ही रहे हों, उन्होंने मनभेद नहीं रखा. हर दिन नींद दिलाने का कर्तव्य उन्होंने खूब निभाया. आजकल कौन इतना करता है, जबकि मैं तो उनका वोटर भी नहीं था अब वो सेंटर स्टेज पर नहीं होंगे लेकिन मुझे आशा है कि मुझ जैसे करोड़ों insomniacs के बारे में वो कुछ करेंगे जरूर. वो अब तक उनका साथ देने वाले फॉक्स न्यूज पर हमला कर रहे हैं यानी वो ख़द का चैनल ला सकते हैं. ट्रंप ब्राण्ड के समान बेच सकते हैं. एक टीवी सीरीज शुरू कर सकते हैं - आइ वॉन्ट टू बी री हायर्ड और 2024 का चुनाव लड़ सकते हैं.
ये मेरा सच्चा इकबालिया बयान है. आप लोग इस लेख को व्यंग्य ना समझें. प्री कोविड और पोस्ट कोविड काल में ट्रंप ने मेरे मानसिक स्वास्थ्य का बहुत ख्याल रखा.
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