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अमेरिका में ट्रंप 'सरकार': राष्ट्रपति चुनाव में कमला हैरिस को कैसे मात दे गए मिस्टर डोनाल्ड?

US Election Result 2024: डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कमला हैरिस को हराकर दूसरा कार्यकाल हासिल कर लिया है.

दीपांशु मोहन, अंकुर सिंह & आर्यन गोपालकृष्णन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Donald Trump wins US Election 2024</p></div>
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Donald Trump wins US Election 2024

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिंदी)

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डोनाल्ड ट्रंप ने 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US Election Result 2024) में कमला हैरिस को हराकर राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल हासिल कर लिया है. ट्रंप की यह जीत अमेरिका में चल रही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के बीच रूढ़िवादी प्राथमिकताओं की ओर बदलाव का प्रतीक है.

अमेरिका में जैसे रात होती गई, चुनावी रूप से महत्वपूर्ण कुछ स्विंग स्टेट्स ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए. फ्लोरिडा ने ट्रंप को शुरुआत में ही जीत का गुलदस्ता थमाया और यहां से उन्होंने अपनी निर्णायक जीत में 30 इलेक्टोरल वोट हासिल कर लिए. दोनों पार्टियों के बीच झूलते रहने के इतिहास के साथ अपनी जनसांख्यिकीय विविधता के लिए जाना जाने वाला फ्लोरिडा, ट्रंप के चुनावी अभियान के लिए एक ऐसा राज्य था जो उन्हें कुर्सी पाने के लिए जीतना ही था. यहां ट्रंप की सफलता ने उनके आर्थिक संदेश की स्वीकृति पर मुहर लगाई है जहां कई लोग महंगाई और बढ़ती जीवन लागत का दबाव महसूस कर रहे हैं.

इसके बाद यह चुनावी रेस एरिजोना में शिफ्ट हो गई, जहां सीमा सुरक्षा पर ट्रंप का दृढ़ स्टैंड वोटरों के एक बड़े हिस्से को आकर्षित करता रहा. इमिग्रेशन से जुड़े जटिल मुद्दों वाले सीमावर्ती राज्य एरिजोना में कई वोटर ट्रंप के कट्टरपंथी नजरिए से जुड़ते दिखे.

इस बीच, जॉर्जिया में जनसांख्यिकीय बदलावों के बीच भी ट्रंप का प्रभाव मजबूत बना रहा. नॉर्थ कैरोलिना ने अपने 16 इलेक्टोरल वोट ट्रंप के खाते में जोड़ दिए, जिससे पूरे दक्षिणी अमेरिका में उनका समर्थन बढ़ गया और पारंपरिक रूप से रूढ़िवादी क्षेत्र पर उनकी पकड़ मजबूत हो गई.

लेकिन सबकी नजर पेन्सिलवेनिया के इर्द-गिर्द जमी थी, जहां के 19 इलेक्टोरल वोट राष्ट्रपति की कुर्सी के रेस में बड़े अहम हैं. मजदूर वर्ग के आधार और अलग-अलग समुदायों के वोटरों के लिए जाना जाने वाला पेन्सिलवेनिया एक कड़े मुकाबले का मैदान बन गया. यहां कमला और ट्रंप, दोनों खेमा इसके समर्थन के लिए जोर-शोर से प्रतिस्पर्धा कर रहा था. आखिर में ट्रंप ने इसे भी जीत लिया.

ट्रंप और कमला हैरिस: 2024 के चुनाव में स्विंग स्टेट्स में वोटिंग पैटर्न

जहा स्विंग स्टेट्स ने सुर्खियां बटोरीं, वहीं ट्रंप की व्यापक अपील जनसांख्यिकी और उन क्षेत्रों तक पहुंची जो आम तौर पर रूढ़िवादी उम्मीदवारों के साथ नहीं जाते थे. इसने ट्रंप के मजबूत प्रदर्शन में योगदान दिया. ट्रंप के चुनावी कैंपेन की बदौलत युवा वोटरों, ग्रामीण समुदायों और यहां तक ​​कि कुछ हिस्पैनिक और ब्लैक वोटर समूहों के बीच उन्हें बढ़त मिलता दिखा. इन वोटों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है या यह मान लिया जाता है कि इनका झुकाव तो डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर ही होगा.

युवा वोटरों के बीच ट्रंप को सफलता क्यों मिली, खास तौर पर टेक्सास, ओहियो जैसे राज्यों और यहां तक ​​कि कैलिफोर्निया की सेंट्रल वैली के कुछ हिस्सों में? दरअसल इसकी वजह है कि ट्रंप ने उनकी गंभीर चिंताओं को संबोधित किया, जैसे आर्थिक सुरक्षा, नौकरी की संभावनाएं और महंगाई. वहीं कमला हैरिस ने शहरी केंद्रों में कई युवा वोटरों को आकर्षित किया, पूर्व राष्ट्रपति के आर्थिक सुधार के वादे छोटे शहरों और उपनगरीय क्षेत्रों में गूंजते रहे, जहां तत्काल वित्तीय मुद्दों ने सामाजिक मुद्दों को मात दे दी है.

इंडियाना, केंटकी और टेनेसी जैसी जगहों पर भी ग्रामीण वोटरों की वोटिंग में बढ़ोतरी हुई. ऐसा लगता है कि आर्थिक स्थिरता, पारंपरिक मूल्यों और पुनर्जीवित कृषि क्षेत्र पर ट्रंप के फोकस ने कई ग्रामीण वोटरों को वोट डालने के लिए प्रेरित किया है. जबकि इन्होंने पिछले चुनावों में भाग नहीं लिया था. ट्रंप के सीधे दृष्टिकोण और रोजगार सृजन पर जोर ने इन समुदायों के साथ जुड़ाव पैदा किया होगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक वोटिंग हुई.

जॉर्जिया, नॉर्थ कैरोलिना और पेन्सिलवेनिया में 2020 और 2024 में हुई वोटिंग की तुलना

अप्रत्याशित रूप से, ट्रंप को हिस्पैनिक और ब्लैक वोटरों के वोटिंग पैंटर्न में शिफ्ट से मदद मिली, खासकर आर्थिक चुनौतियों से प्रभावित क्षेत्रों में. न्यू मैक्सिको और अलबामा जैसी जगहों पर, सामुदायिक सुरक्षा और रोजगार सृजन के बारे में ट्रंप के मैसेज ने लोकप्रियता हासिल की.

युवा, ग्रामीण और अल्पसंख्यक वोटरों के गठजोड़ ने ट्रंप को उन क्षेत्रों में पकड़ हासिल करने में मदद की, जिनकी चुनावी पंडितों को उम्मीद नहीं थी. यह बात ट्रंप की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा-केंद्रित चुनावी कैंपेन की दूरगामी अपील को रेखांकित करता है.

कमला हैरिस के लिए यह रास्ता किसी कठिन चढ़ाई से कम नहीं रही. चुनावी दौड़ की शुरुआत में, उनकी टीम ने नेवादा और मिशिगन जैसे राज्यों में मामूली बढ़त बनाए रखने पर बहुत ध्यान केंद्रित किया, जबकि युवा और शहरी वोटरों के बीच उच्च मतदान कराने के लिए काम किया. उनका चुनावी कैंपेन स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक न्याय और जीवन यापन की बढ़ती लागत पर केंद्रित था- ये सभी मुद्दे शहरी केंद्रों में गहराई से गूंज रहे हैं.

फिर भी, युवा मतदाताओं के बीच शुरूआती मजबूती दिखने के बावजूद, कमला हैरिस के हाथ से पेंसिल्वेनिया और जॉर्जिया जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में बढ़त फिसल गई. नॉर्थ कैरोलिना और मिशिगन जैसे राज्यों में, हार निर्णायक मोड़ साबित हुई. अंत में, हैरिस का शहरी और उपनगरीय वोटरों का गठबंधन उस शक्तिशाली ग्रामीण वोटरों के आगे नहीं टिक सका जिसने ट्रंप का साथ दिया.

इस साल के चुनाव का नक्शा एक चौराहे पर खड़े देश की कहानी कहता है. शहरी इलाके तो नीले (यानी डेमोक्रेट की जीत) पड़ गए, जबकि ग्रामीण अमेरिका का अधिकांश हिस्सा लाल (रिपब्लिकन पार्टी की जीत) हो गया. ट्रंप की जीत अमेरिकी राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत होगी, जो नए सिरे से रूढ़िवादी ऊर्जा और प्राथमिकताओं से प्रेरित होगी.

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भारत के बारे में क्या?

2024 में ट्रंप की जीत भारत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है. उनके "अमेरिका फर्स्ट" दृष्टिकोण से वैश्विक व्यापार तनाव बढ़ने और बाजार की गतिशीलता प्रभावित होने की संभावना है. हाई टैरिफ और संभावित रूप से अंतरराष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका के पीछे हटने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है, खासकर अगर चीन के साथ तनाव बढ़ता है.

आपूर्ति श्रृंखला में इस बदलाव से उत्पादन लागत बढ़ सकती है, आर्थिक विकास धीमा हो सकता है और तकनीक और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में श्रम (लेबर) की कमी पैदा हो सकती है, जो कुशल विदेशी श्रमिकों पर निर्भर हैं. यदि ट्रंप एच-1बी वीजा पर सीमा सहित इमिग्रेशन प्रतिबंधों को फिर से लागू करते हैं, तो भारत के आईटी और तकनीकी उद्योग संघर्ष कर सकते हैं, क्योंकि वे काफी हद तक कुशल श्रमिकों पर निर्भर हैं जिनकी अमेरिका तक पहुंच है.

हालांकि इसके साथ भारत को इन चुनौतियों में रणनीतिक अवसर मिल सकते हैं. जैसा कि ट्रंप चीन से अलग जाने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में भारत आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की चाहत रखने वाली अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित कर सकता है, अनुकूल नीतियों के साथ खुद को विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है. यह बात सही है कि आईटी सेवाओं और फार्मास्यूटिकल्स जैसे निर्यातों को प्रभावित करने वाले टैरिफ के कारण अमेरिका के साथ व्यापार में तनाव देखा जा सकता है, लेकिन दूसरी तरफ द्विपक्षीय रक्षा संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने से लाभ मिल सकता है.

इंडो-पैसिफिक में चीन का मुकाबला करने का साझा लक्ष्य हथियारों की बिक्री और टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर की संभावना के साथ मजबूत सैन्य सहयोग को बढ़ावा दे सकता है. भारत अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के लिए व्यापार और रक्षा में इन बदलावों का लाभ उठा सकता है.

(दीपांशु मोहन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, डीन, IDEAS, ऑफिस ऑफ इंटर-डिसिप्लिनरी स्टडीज और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES), ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के निदेशक हैं. वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर हैं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एशियाई और मध्य पूर्वी अध्ययन संकाय के 2024 के फॉल एकेडमिक विजिटर हैं. अंकुर सिंह ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज में रिसर्च असिस्टेंट हैं और इसके इन्फोस्फीयर पहल के एक टीम सदस्य हैं. आर्यन गोपालकृष्णन CNES में एक रिसर्च एनालिस्ट हैं और जिंदल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी से ग्रेजुएट हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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