advertisement
अब सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि चुनाव के नतीजो का जल्दी आना ज्यादा जरूरी है या फिर उसका पूर्णतः पारदर्शी होना? ‘लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुनाव की गुणवत्ता को जितना भी बढ़ाया जाए, वो कम है.’ संविधान ने चुनाव आयोग को कमोबेश इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए बनाया है. आयोग भी लगातार इसी उद्देश्य के लिए नये नियमों, तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाता रहा है.
इस लिहाज से हर चुनाव में कुछ न कुछ सुधार या नयापन हमेशा जुड़ता रहा है. इस बार VVPAT चोटी पर है. लेकिन इसकी मतदान पुष्टि पर्चियों के मिलान को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जो दलीलें दी हैं, उससे आयोग की मंशा पर शक होना स्वाभाविक है. आयोग की दलीलों की पड़ताल से साफ है कि उसमें सच्चाई कम और बहानेबाजी ज्यादा है.
21 राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट से फरियाद की है कि वो चुनाव आयोग को 50 फीसदी VVPAT यानी ‘वोटर वैरिफिकेशन पेपर ऑडिट ट्रेल’ की पर्चियों के मिलान का आदेश दें. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से उसका पक्ष पूछा. जवाब में आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि 50 फीसदी VVPAT पर्ची का मिलान करने में काफी वक्त लग सकता है. इससे चुनाव नतीजों के ऐलान में छह दिन तक की देरी हो सकती है. आयोग का ये भी कहना है कि हरेक विधानसभा में किसी एक मतदान केन्द्र के EVM और VVPAT की पर्ची के मिलान की उसकी मौजूदा नीति पर्याप्त है, क्योंकि इसे हमारे सांख्यिकी विशेषज्ञों ने नाकाफी नहीं बताया है.
सच: जिंदगी के किस क्षेत्र में, किसी भी करने लायक काम को हम इसलिए नहीं करते कि उसमें बहुत वक्त लगेगा? क्या अदालतों में लंबित उन मुकदमों को ‘स्वतः निरस्त’ या ‘Time Barred’ मान लिया जाता है, जिनका फैसला आने से पहले बहुत वक्त बीत चुका हो? क्या सर्जन उस सर्जरी से परहेज करते हैं, जिसमें उन्हें सारा-सारा दिन लग जाता है? क्या ट्रेनें इसलिए मंजिल पर जाना रोक देती हैं कि वो किसी भी वजह से बहुत लेट हो चुकी हैं? क्या बड़े-बड़े पोत इसलिए समुद्र की लहरें झेलने से परहेज करते हैं कि अब इंसान ने तेज गति वाले विमान विकसित कर लिये हैं? क्या बड़े-बड़े बांध, कारखाने वगैरह इसलिए नहीं बनाये जाते कि इसमें बहुत ज्यादा वक्त लगेगा?
‘वक्त की किल्लत’ की दलील को अगर हम गहराई से परखें तो पाएंगे कि चुनाव आयोग ने ‘वोटर पर्ची मिलान’ की चुनौतियों को देखते हुए दूरदर्शिता से काम नहीं लिया. छह साल पहले 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘EVM की खूबियां अपनी जगह पर हैं, लेकिन ये भी सच है कि EVM में मतदाता ये नहीं देख पाता है कि जिसे उसने वोट दिया है, वो उसी को मिला है या नहीं?
लिहाजा, ये तो पेपर ट्रेल (मतदाता पर्ची) की व्यवस्था कीजिए या फिर बैलेट पेपर पर वापस लौट जाइए’ इसके बाद चुनाव आयोग ने आनन-फानन में VVPAT तकनीक को विकसित करवाया और सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि भविष्य में यथासम्भव VVPAT का इस्तेमाल किया जाएगा और 2019 के आम चुनाव तक सभी EVM को VVPAT से जोड़ने लायक पर्याप्त क्षमता जुटा ली जाएगी.
ये भी पढ़ें- नौकरियां या राष्ट्रीय सुरक्षा: किस मुद्दे पर वोट करेगा देहरादून
2007 से भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) की ओर से भारत में बैंकों के चेक की ऑटोमैटिक क्लियरिंग की व्यवस्था को सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है. इस तकनीक के लिए देश भर के बैंकों का कम्प्यूटरीकरण अनिवार्य बनाया गया, इससे न सिर्फ क्लियरिंग के काम में बेहद तेजी आयी, बल्कि वो बेहद सुरक्षित होने के अलावा ऐसी भी हो गयी कि आज हम देश भर में किसी भी बैंक की, किसी भी शाखा या एटीएम से रोजमर्रा की बैंकिंग सेवाएं पा लेते हैं, इसी तकनीक की बदौलत अब बैंकिंग हर वक्त सुलभ है. ऑटोमैटिक क्लियरिंग की व्यवस्था में MICR यानी Magnetic Ink Character Reader और CTS यानी Cheque Truncation System वाले चेक का होना जरूरी है.
जिस तरह से बैंकों में लगाये गये CTS चेक को Super fast scanner के जरिये MICR के आधार पर छांटा जाता है, क्या वैसे ही VVPAT की पर्चियों को हरेक उम्मीदवार के हिसाब से अलग-अलग छांटकर उसे रुपये गिनने वाली मशीनों की बदौलत नहीं गिना जा सकता? ये बिल्कुल सम्भव है. बस, इसके लिए वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को वैसी ही गिनती वाली मशीनें तैयार करनी पड़ती जैसे उन्होंने EVM और VVPAT मशीनों को विकसित किया है. इसे भी वैसे ही Temper proof क्यों नहीं बनाया जा सकता, जैसा चुनाव आयोग EVM और VVPAT को लेकर दावा करता है. याद रहे कि ये कोई आयातित तकनीक नहीं, बल्कि पूर्णतः स्वदेशी है.
ये भी पढ़ें-
नीति आयोग की जगह फिर से योजना आयोग क्यों लाना चाहते हैं राहुल?
अब दुआ कीजिए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट इनकी दलीलों से गुमराह ना हो और वो देश को इस बात के लिए तैयार होने का संदेश दे कि नतीजों के ऐलान में चार-छह दिन की देरी से न तो आसमान नीचे गिरेगा और ना ही इतना झंझट बढ़ जाएगा कि देश उसे बर्दाश्त ना कर सके. कल्पना कीजिए कि अगर इस बार चुनाव के नतीजे 23 मई की जगह 28-29 मई को भी आया तो क्या आफत आ जाएगी? यदि ज्यादा वक्त लग भी गया तो यकीन जानिए कि अगली बार के लिए आयोग वोटर पर्चियों की गिनती करने वाली खास मशीनें भी बनवाने में सफल हो जाएगा. जिस दिन ऐसा हुआ उस दिन हमारे पास EVM और बैलेट दोनों की सुविधा एक साथ आ जाएगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined