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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 के बजट में एक तीर से दो शिकार किए. जहां तक संभव हो सकता था, उन्होंने फिस्कल डेफिसिट टारगेट के करीब पहुंचने की कोशिश की. साथ ही, ग्रामीण भारत के लिए बड़ी योजनाओं का ऐलान किया, जहां अधिक आबादी रहती है. इनमें सबसे खास योजना 50 करोड़ लोगों को मेडिकल इंश्योरेंस देने की है. इसका राजनीतिक असर मनरेगा की तरह होगा, लेकिन इकनॉमिक कॉस्ट अभी तक सामने नहीं आई है.
बजट में इस योजना के लिए फंड का प्रावधान नहीं किया गया है. यह भी हो सकता है कि स्कीम ब्यूरोक्रेसी के अड़ंगों में फंस जाए. ऐसा पहले कई योजनाओं के साथ हो चुका है. इस साल का बजट लोकलुभावन नहीं है और इसके लिए मोदी सरकार को बधाई दी जानी चाहिए. वह वित्तीय अनुशासन बनाए रखने पर यकीन रखते हैं.
मोदी ने कभी भी राजनीति के लिए सरकारी खजाने से समझौता नहीं किया है. इसके बावजूद उन्होंने बजट से अगले साल मई के लोकसभा चुनाव तक बीजेपी के उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार की खातिर काफी मसाला दे दिया है. इसीलिए बजट का पार्ट ए चुनावी घोषणापत्र जैसा लगा.
क्या लोकसभा चुनाव वास्तव में 14 महीने दूर हैं? क्या चुनाव उससे पहले हो सकते हैं? चुनाव के समय को लेकर अटकलें शुरू हो गई हैं. मेरे हिसाब से अगर मोदी सरकार अगले लोकसभा चुनाव में 75-100 से अधिक सीटें नहीं गंवाना चाहती, तो उसे सालभर पहले यानी इस साल मई में चुनाव करवाना चाहिए. इसकी तीन वजहें साफ दिख रही हैं.
चुनाव पहले कराने से विपक्ष हैरान रह जाएगा और वह एकजुट नहीं हो पाएगा. अगर मोदी चुनाव कराने में अधिक समय लगाते हैं, तो विपक्ष को साथ आने का मौका मिल सकता है.
वीपी सिंह के पास इतना समय था कि उन्होंने बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों को मिलकर काम करने के लिए मना लिया था.
खराब मॉनसून या सूखे के बाद केंद्र की कोई भी सरकार लगातार दूसरी बार नहीं चुनी गई है. 1967, 1980, 1989, 1996 और 2004 के चुनाव इसके गवाह हैं. हमें नहीं पता कि इस साल मॉनसून कैसा रहेगा. किसान वैसे भी नाराज चल रहे हैं. ऐसे में अगर बारिश कम होती है या सूखा पड़ता है, तो उनकी नाराजगी और बढ़ सकती है. इसलिए भी चुनाव सालभर पहले कराना ठीक होगा.
अगर चुनाव तय समय पर होते हैं, तो बीजेपी को करीब 100 सीटों का नुकसान हो सकता है. इसलिए पहले इलेक्शन करवाकर उसे इस नुकसान को कम करने की कोशिश करनी चाहिए. डिसीजन थ्योरी में इसे मिनीमैक्स कहा जाता है. थ्योरी यह कहती है कि जब बड़ा नुकसान होने की आशंका हो, तो उसे कम से कम करने की कोशिश करनी चाहिए.
यह रणनीति दो प्लेयर्स के लिए होती है. गेम इस बुनियाद पर खेला जाता है कि एक पार्टी को जो भी नुकसान होता है, उतना दूसरी पार्टी को फायदा होता है. जब अनिश्चितता ज्यादा हो, तब यह गेम खेला जाता है. यहां दूसरे प्लेयर (विपक्ष) की स्ट्रैटेजी को देखते हुए पहले प्लेयर (सरकार) के पास सबसे बेहतर संभावित नतीजे हासिल करने की गुंजाइश है.
इसमें रणनीति इस तरह बनाई जाती है कि दूसरे को अधिकतम फायदा न मिल पाए. चूंकि, इसमें एक को जितना नुकसान होता है, उतना ही दूसरे को फायदा होता है. इसलिए दूसरे का अधिकतम फायदा कम करके पहला प्लेयर अपना नुकसान कम करता है. बीजेपी को भी लोकसभा चुनाव को लेकर यही करना चाहिए.
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