advertisement
तमिलनाडु में हाल के विधानसभा चुनावों में पुरुषों के मुकाबले 5,68,580 अधिक महिलाओं ने अपना वोट दिया. राज्य के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा अंतर है. 2016 में पुरुषों वोटर्स के मुकाबले महिला वोटर्स की संख्या 3.70 लाख ज्यादा थी. तब इस जबरदस्त जनादेश का श्रेय अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे. जयललिता दिया गया था. इसके चलते तमिलनाडु में लगातार दूसरी बार उनकी सत्ता में वापसी हुई थी.
यही वह वोट था, यानी महिलाओं का वोट, जिसकी वजह से जयललिता को अपार लोकप्रियता मिली और महिलाओं के कल्याण के लिए नीतियां बनाई गईं. और इसी के चलते 2021 के चुनावों में भी अन्नाद्रमुक का सूपड़ा साफ होने से बच गया जिसका अनुमान एग्जिट पोल्स में लगाया गया था.
महिला वोटर्स ने अपनी बात रखी है और सिर्फ तमिलनाडु में नहीं. देश के चार मुख्य राज्यों के नतीजों से साफ पता चलता है कि महिलाएं अब ‘खामोश’ मतदाता नहीं रह गई हैं. वे स्वतंत्र वोट बैंक बनकर उभर रही हैं.
पश्चिम बंगाल में महिलाओं ने बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी के लिए वोट किया, और यह पक्का किया कि देश की अकेली महिला मुख्यमंत्री सत्ता में बनी रहे. यह पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं. महिलाएं उसका बड़ा वोट बैंक रही हैं. इससे यह भी तय हुआ है कि सरकार की नीति समावेशी बनी रहें, अक्सर महिला केंद्रित भी.
ममता बनर्जी की सरकार ने 200 से अधिक महिला केंद्रित योजनाओं को लागू किया है. इनमें कन्याश्री और रूपाश्री क्रमशः शादी और शिक्षा के लिए मदद देती हैं और सबसे अधिक लोकप्रिय हैं. उनकी सरकार ने सोबुज साथी नाम से एक योजना भी शुरू की है जोकि छात्राओं को साइकिल देती है और पढ़ाई के लिए लोन भी दिलवाती है.
2021 के घोषणापत्र में टीएमसी ने महिलाओं से कई वादे किए थे, जैसे घर तक राशन पहुंचाना और परिवारों की महिला मुखिया को हर महीने वजीफा देना.
असम में भी महिलाओं ने भारतीय जनता पार्टी को उसकी कल्याणकारी योजनाओं के कारण चुना. पार्टी की जीत के बाद इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में बीजेपी नेता हिमंत बिस्व शर्मा ने महिला वोटर्स का खास तौर से जिक्र किया.
आईएएनएस से बातचीत करते हुए सीवोटर्स के देशमुख ने कहा कि महिला वोटर्स के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा सुशासन होता है और उन्हें ‘किसी राजनीति दल के दूसरे राजनैतिक एजेंडा’ से कोई लेना-देना नहीं होता.
उन्होंने कहा, “धर्म या जाति के नाम पर ध्रुवीकरण से महिला वोटर्स के फैसले पर कोई असर नहीं होता. वे सिर्फ सुशासन और विकास के लिए वोट देती हैं और हाल के वर्षों में चुनावी नतीजों से यह साफ होता है.”
चुनावी विश्लेषण करने वाली एक दूसरी संस्था एक्सिस माइइंडिया के प्रमुख प्रदीप गुप्ता ने द हिंदू से कहा था कि हालांकि महिलाएं कोई होमोजीनियस कैटेगरी नहीं हैं, फिर भी राजनीतिक लामबंदी में कल्याणकारी योजनाएं बड़ी भूमिका निभाती हैं.
2014 के वोटिंग पैटर्न के आधार पर लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण से पता चलता है कि महिला राजनेता महिला वोटर्स को बेहतर तरीक से एकजुट करती हैं और इससे राजनैतिक दलों की स्थिति भी बेहतर होती है. उन्हें फायदा होता है.
तो, एक तरफ तो महिलाएं राजनैतिक दलों को सत्ता दिला रही हैं, दूसरी तरफ राजनैतिक दल महिलाओं को उम्मीदवारों के तौर पर उतारने में अब भी हिचक रहे हैं.
असम में सिर्फ छह महिला विधायक चुनी गई हैं, और विधानसभा में उनका हिस्सा सिर्फ 5% होगा. केरल में सिर्फ 11 महिला विधायक हैं और विपक्ष में सिर्फ एक. पुद्दूचेरी के 30 विधायकों में सिर्फ एक महिला है. तमिलनाडु में महिला विधायक सिर्फ 5% हैं. 234 विधायकों में सिर्फ 12 महिलाएं हैं.
एनजीओ शक्ति की प्रमुख तारा कृष्णास्वामी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, “सिर्फ एक मजबूत राजनैतिक नेता होने का यह मतलब नहीं कि तमिलनाडु की राजनीति में महिलाओं का स्वागत है. वोटर्स के लिए यह अजीब तो नहीं कि महिलाएं राजनीति में हिस्सा लेती हैं, लेकिन वे इसके आदी नहीं हैं. महिला नेताओं को खुद इस बदलाव के लिए काम करना होगा.” शक्ति राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए काम करता है.
हां, इन राज्यों में पश्चिम बंगाल का प्रदर्शन बेहतर है. यहां कुल निर्वाचित प्रतिनिधियों में 14% महिलाएं हैं. यहां कुल 40 महिला विधायक हैं जिनमें से ज्यादातर टीएमसी की हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined