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मौलाना आजाद का ‘विजन’ 2019 के चुनाव में भी फिट

ये बहुत अफसोस की बात है कि मौलाना आजाद जैसे नेता भारत की राजनीतिक चेतना से गायब हो चुके हैं

राघव बहल
नजरिया
Published:
ये बहुत अफसोस की बात है कि मौलाना आजाद जैसे नेता भारत की राजनीतिक चेतना से गायब हो चुके हैं
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ये बहुत अफसोस की बात है कि मौलाना आजाद जैसे नेता भारत की राजनीतिक चेतना से गायब हो चुके हैं
(फोटो: द क्विंट)

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मौलाना अबुल कलाम आजाद ने देश में 2019 के ध्रुवीकरण वाले चुनाव में गलती से एंट्री की है. एक रैली में शत्रुघ्न सिन्हा की भूल की वजह से इन चुनावों में उनकी एंट्री हुई. सिन्हा ने गांधी, नेहरू, पटेल, इंदिरा और राजीव के साथ जिन्ना को भी ‘कांग्रेस परिवार के उन सम्मानित सदस्यों में शामिल कर लिया, जो राष्ट्र निर्माता रहे हैं.’ इससे बीजेपी को ‘कांग्रेस पाकिस्तान समर्थक है’ वाले प्रोपगेंडा के लिए ठोस जमीन मिल गई. जब पाकिस्तान के संस्थापक चहेते कांग्रेस के नेता रहे हैं, फिर तो बीजेपी क आरोप को गलत साबित करना असंभव है, क्यों है ना? खैर, सिन्हा को बयान वापस लेना पड़ा. उन्होंने कहा कि ‘जुबान फिसलने’ से उनके मुंह से जिन्ना का नाम निकल गया. असल में वह मौलाना आजाद का नाम लेना चाहते थे, पर जिन्ना को आजाद के साथ कन्फ्यूज करना करीब-करीब नामुमकिन है.

दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग राजनेता थे. सच पूछिए तो मुझे कई बार लगता है कि मौलाना आजाद की आज के राजनीतिक विमर्श में इतनी कम चर्चा क्यों होती है, जबकि उनके ही दौर के नेहरू, पटेल और बोस का नाम बार-बार लिया जाता है.

मौलाना आजाद अलग पाकिस्तान के ऐसे विरोधी थे कि प्रधानमंत्री मोदी को उनके नाम का इस्तेमाल भी राजनीतिक फायदे के लिए करना चाहिए था (ओह, मैं तो भूल ही गया कि वह मुसलमान थे. इसलिए भले ही पाकिस्तान पर उनकी सोच कितनी भी मिले, बीजेपी और आरएसएस का उनसे परहेज ही रहेगा).

जन्म के समय ही मौलाना आजाद 50 साल के थे!

मौलाना अबुल कलाम मोहिउद्दीन का जन्म सऊदी अरब के मक्का में 1888 में हुआ था. आजाद उनका उपनाम था और वह 1923 में 35 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने. वह 1947 से लेकर 1958 तक नेहरू की कैबिनेट में देश के पहले शिक्षा मंत्री रहे. उन्होंने आईआईटी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी जैसे जाने-माने संस्थान बनाए.

सरोजिनी नायडू ने आजाद की समझदारी और सूझबूझ की तारीफ करते हुए एक बार मजाक में कहा था, ‘मौलाना जब पैदा हुए, तभी वह 50 साल के थे.’ इस पर नेहरू ने जोड़ा कि ‘प्लेटो और अरस्तू तो उनकी अंगुलियों पर रहते हैं.’

1952 में जब भारत में पहला आम चुनाव होने वाला था, तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मौलाना को यूपी में रामपुर से चुनाव लड़ने को कहा. मौलाना ने हैरानी से पूछा, रामपुर ही क्यों? इस पर नेहरू ने कहा कि रामपुर मुस्लिम बहुत क्षेत्र है, इसलिए वह आसानी से चुनाव जीत जाएंगे. तब बेमिसाल मौलाना ने नेहरू की बात बीच में ही काटते हुए कहा था, ‘मैं भारत का नेता हूं, मुसलमानों का नहीं.’

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मौलाना ने पाकिस्तान के हिंसक अंजाम की सटीक भविष्यवाणी की थी

मैंने लाहौर की एक उर्दू मैगजीन ‘चट्टान’ के शोरिश कश्मीरी को दिया गया उनका एक दिलचस्प इंटरव्यू पढ़ा. यह इंटरव्यू 1946 अप्रैल में दिया गया था, जब देश का बंटवारा नहीं हुआ था. अलग पाकिस्तान बनाने का क्या अंजाम होगा, मौलाना ने तब उसकी सटीक भविष्यवाणी की थी. उन्होंने कहा था कि देश का बंटवारा होने पर पाकिस्तान के साथ युद्ध होगा. उन्होंने बांग्लादेश के अलग देश बनने का भी सही अंदाजा लगाया था. यहां मैं उन्हीं के शब्दों में इसे पेश कर रहा हूं (मैं फिर से याद दिला दूं कि तब पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान नहीं बना था):

पोस्ट स्क्रिप्ट नोटः जरा सोचिए, अगर यही लाइनें सरदार पटेल ने कही होतीं तो क्या होता. आरएसएस और मोदी हर जगह घूमकर ‘कमजोर नेहरू और कांग्रेस के समझौता करने पर’ उनकी आलोचना कर रहे होते और ‘इस पाकिस्तान विरोधी मजबूत दलील’ पर अपना हक जता चुके होते. खैर, यह सटीक भविष्यवाणी मौलाना आजाद ने की थी, इसलिए मोदी ने अभी तक इनका इस्तेमाल नहीं किया है.

मौलाना ने सरदार पटेल को बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराया

इतिहासकारों के बीच 3 जून 1947 को मौलाना की चुप्पी पर काफी बहस हुई है. उसी रोज माउंटबेटन ने देश को धार्मिक आधार पर बांटने की योजना पेश की थी: कांग्रेस कार्य समिति ने इस प्लान को पूरी तरह अपना लिया था. तब वहां मौजूद दो मुस्लिम नेताओं में से एक फ्रंटियर गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान ने कहा था, ‘आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है.’ कार्य समिति की बैठक में मौलाना आजाद ने कुछ नहीं कहा. बंटवारे के विरोधी दोनों मुस्लिम नेता अगर इसके विरोध में बैठक का बहिष्कार कर देते और बाहर निकल जाते तो भविष्य के इतिहासकार कार्य समिति के बाकी सदस्यों का किस तरह से विश्लेषण करते?

हालांकि अपनी आत्मकथा ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ में मौलाना आजाद, नेहरू को आगाह करने का जिक्र करते हैं: ‘हम जिन्ना की तुलना में बंटवारे के कहीं कट्टर समर्थक बनते जा रहे थे. मैंने जवाहरलाल को आगाह किया था कि आखिर में यही माना जाएगा कि भारत को मुस्लिम लीग ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने विभाजित किया.’ (मैंने आखिरी लाइन पर इसलिए जोर दिया है क्योंकि मौलाना की यह बात भी 70 साल बाद सच साबित हुई. आज आरएसएस, मोदी यह कहते नहीं थकते कि कांग्रेस ने पाकिस्तान तोहफे में दे दिया).

मौलाना ने एक और मिथक को ध्वस्त किया था, जिसका आज खूब जिक्र होता है. यह मिथक है कि सरदार पटेल भारत को बंटने नहीं देते, गर नेहरू ने हथियार न डाले होते. ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ की नीचे जो लाइनें दी जा रही हैं, उनमें मौलाना ने पटेल की कड़ी आलोचना की है:

बड़े अफसोस की बात है कि मौलाना आजाद जैसे नेता भारत की राजनीतिक चेतना से गायब हो गए हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि एक नेता की गलती से ही सही उनकी याद जिंदा हो और लोग जानें कि दिग्गज इंटेलेक्चुअल और राजनेता मौलाना आजाद की देश को लेकर क्या सोच थी. हमें आज मौलाना की नेक सलाह की कहीं अधिक जरूरत है.

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