मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019चुनाव 2019: पॉलिटिकल फिल्म के ‘इंटरवल’ में पते की 5 बातें

चुनाव 2019: पॉलिटिकल फिल्म के ‘इंटरवल’ में पते की 5 बातें

2019 लोकसभा चुनाव की 12 हफ्ते तक चलने वाली पॉलिटिकल फिल्म का अभी ‘इंटरवल’ चल रहा है

राघव बहल
नजरिया
Published:
2019 लोकसभा चुनाव की 12 हफ्ते तक चलने वाली पॉलिटिकल फिल्म का अभी ‘इंटरवल’ चल रहा है
i
2019 लोकसभा चुनाव की 12 हफ्ते तक चलने वाली पॉलिटिकल फिल्म का अभी ‘इंटरवल’ चल रहा है
(फोटो: अर्निका काला/क्विंट हिंदी)

advertisement

दर्शकों को बॉलीवुड की फिल्मों में ‘इंटरवल’ अच्छा लगता है. वे इस ब्रेक में पॉपकॉर्न-कोला खरीदते हैं और फिल्म की फटाफट समीक्षा कर डालते हैं. ‘इंटरवल के बाद क्या होगा’, वे इसका भी अंदाजा लगाते हैं. फिल्म देखने के बाद जब वे सिनेमाहॉल से निकल रहे होते हैं, तब अक्सर हमें यह भी सुनने को मिलता है, ‘अरे, इंटरवल तक मजेदार है, पर उसके बाद पिक्चर बंडल है.

2019 लोकसभा चुनाव की 12 हफ्ते तक चलने वाली पॉलिटिकल फिल्म का अभी ‘इंटरवल’ चल रहा है यानी इसके बारे में गॉसिप, पिछले अनुमान को दुरुस्त करने और ‘बैक 9’ के लिए टी-अप (मेरे बॉलीवुड और गोल्फ की उपमाओं को प्लीज बर्दाश्त करिए) करने का टाइम आ गया है. मैं हाफ-टाइम की पांच खास बातों का यहां जिक्र कर रहा हूं.

पहली: मोदी, मजबूत, मस्कुलर, हिंदुत्व के आइकॉन और एंटी-इंटेलेक्चुअल

2014 के विकास पुरुष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में खुद को बाहुबली में बदल डाला है. वह चुनाव प्रचार में पाकिस्तान पर बरस रहे हैं. आतंकवादियों का नामोनिशान मिटाने के वादे कर रहे हैं. वह सचाई का अपना वर्जन पेश कर रहे हैं, विरोधियों को ‘कमजोर और धोखेबाज, यहां तक कि गद्दार’ भी बता रहे हैं. मोदी बुद्धिजीवियों के प्रति अपनी नफरत छिपाने की कोशिश भी नहीं करते. मीडिया भी डर के मारे उनके सामने दंडवत है.

8 फरवरी, 2019 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में रैली को संबोधित करते पीएम नरेंद्र मोदी(फोटो: पीटीआई)
2014 में कई मध्यमार्गी और उदारवादी लोग उनके पक्ष में माहौल बना रहे थे, लेकिन अब वे मोदी का साथ छोड़ चुके हैं. इससे करीब 5 पर्सेंट वोट बीजेपी के हाथ से निकल सकता है. 2014 में पार्टी को 31 पर्सेंट वोट मिले थे. दूसरी तरफ, उन्होंने भक्तों (उनके धार्मिक और राजनीतिक प्रशंसक) के साथ गहरा रिश्ता बनाया है. इससे शोर-शराबा भले ही बढ़ा हो, लेकिन वोट शेयर में बहुत बढ़ोतरी नहीं होगी. यह बात सही है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के चलते गरीब तबके में उन्हें कुछ समर्थक मिले हैं, लेकिन बेरोजगार युवाओं, दलितों, मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय में उन्होंने आधार गंवाया है. इसमें भी शक नहीं है कि पहली बार वोट देने वालों के बीच वह काफी लोकप्रिय हैं.

सारे गुणा-भाग और जोड़-घटाव के बाद मुझे लगता है कि 2019 में बीजेपी का वोट पर्सेंटेज पिछले चुनाव जितना ही रहेगा या शायद यह बढ़कर 33 पर्सेंट तक चला जाए.

दूसरीः राहुल गांधी, राजनीति के बियाबां से बाहर निकले

पहले माना जाता था कि राहुल में आत्मविश्वास की कमी है. आज सत्ता पक्ष के साथ दो-दो हाथ करने में वह माहिर हो चुके हैं. उनकी छवि मोदी से बिल्कुल उलट है. राहुल देश की विविधता और यहां तक कि विरोध का भी सम्मान करते हैं. मोदी को जहां माइक्रो-मैनेजमेंट की आदत है और वह आंकड़ेबाजी पर जोर दे रहे हैं, वहीं राहुल का ध्यान बिग पिक्चर पर है. उनकी टीम का तैयार किया हुआ घोषणापत्र इसका गवाह है.

धीरे-धीरे राहुल फ्रेश टैलेंट को आकर्षित कर रहे हैं. उन बुद्धिजीवियों को बेअसर कर रहे हैं, जो कभी उनके प्रति अदावत रखते थे. इसके बावजूद संभावित सहयोगी दलों और दूसरी पार्टियों के समकक्ष नेताओं को लेकर उनके मन में एक झिझक है. मुझे लगता है कि उन्हें अपने ‘बैक चैनल स्किल्स’ पर काम करना होगा, जो राजनीति में सफल होने की एक शर्त है. अगर यह स्किल हो तो आप कभी भी फोन उठाकर अपने राजनीतिक दुश्मन-दोस्त से बात करके उनके साथ अच्छी केमिस्ट्री बना सकते हैं.
27 फरवरी, 2019 को नई दिल्ली में विपक्षियों की मीटिंग(फोटो: पीटीआई)

राहुल की हिंदी काफी बेहतर हुई है, लेकिन वह जमीन से जुड़ी भाषा में अभी भी संवाद नहीं कर रहे हैं. अंग्रेजी में वह शानदार ढंग से अनौपचारिक बातचीत करते हैं. चेन्नई के स्टेला मैरिस कॉलेज की छात्राओं से उनकी बातचीत देखिए, आपको इसका पता चल जाएगा. इसी वजह से दक्षिण भारत में उनकी अप्रूवल रेटिंग अधिक है और धीरे-धीरे पूरे देश में उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है. राहुल को अभी भी मोदी के खिलाफ par (फिर से गोल्फ की उपमा!) का दांव खेलना है, लेकिन वह उन्हें गंभीर चुनौती देने वाले राजनेता बन रहे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

तीसरीः बीजेपी एक शख्सियत से बंध गई है

एक समय था, जब बीजेपी आरएसएस की विचारधारा से बंधी हुई सामूहिक नेतृत्व वाली पार्टी हुआ करती थी. हैरानी की बात यह है कि आज वह मोदी-केंद्रित हो गई है. पार्टी पर उनकी शख्सियत हावी है. बीजेपी के अंदर किसी में मोदी को चुनौती देने की हिम्मत नहीं है. यहां तक कि परोक्ष रूप से भी उन्हें चैलेंज नहीं किया जा रहा है. जब आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और सुमित्रा महाजन जैसे बीजेपी के संस्थापकों को किनारे कर दिया गया तो अंदर से विरोध की एक आवाज भी नहीं उठी. वाजपेयी के दौर का चुटीला अंदाज भी आज की बीजेपी में नहीं दिखता. इन दिनों वह हमेशा नाराज, खीझ से भरी हुई, दूसरों का मजाक बनाने वाली मुद्रा में दिखती है.

मोदी जोशीले नेता हैं, लेकिन वह बांटने वाली सियासत कर रहे हैं. इस राजनीति में अमित शाह उनका साथ दे रहे हैं, जिनका ध्यान राजनीतिक योजनाओं को पूरा करने पर है. इससे दक्षिण भारत को छोड़कर बीजेपी का देश के हर कोने में विस्तार हुआ है. दक्षिण भारत में बीजेपी अभी भी संघर्ष कर रही है. जिन राज्यों में बीजेपी पर ‘दोहरी सत्ता-विरोधी लहर’ का बोझ नहीं है, वहां राष्ट्रवाद और विकास के उसके वादे जादू कर रहे हैं. खासतौर पर पश्चिम बंगाल और ओडिशा में. हालांकि, केंद्र के साथ जिन राज्यों में बीजेपी की सत्ता रही है, वहां के लोगों का पार्टी से मोहभंग हो रहा है.

बीजेपी ने इसकी तोड़ के लिए उकसाने वाले हिंदुत्व की शरण ली है. भोपाल में इसी वजह से प्रज्ञा ठाकुर को पार्टी ने टिकट दिया है और बेलगाम आदित्यनाथ इस एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं (माफ कीजिएगा, मैं उन्हें साध्वी और योगी कहने के झांसे में नहीं आने वाला. इन दोनों ही शब्दों का सहिष्णु हिंदू धर्म में बहुत सम्मान है). इन दोनों के साथ दर्जन भर कट्टरपंथी अजूबे बीजेपी के लिए भस्मासुर साबित हो सकते हैं.

18 अप्रैल, 2019 को भोपाल में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग में बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा(फोटो: पीटीआई)

चौथीः 25/25/100 की अहम पोजिशन तक पहुंचेगी कांग्रेस

2014 की शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस की ताकत बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट पर्सेंटेज घटकर 19 पर्सेंट के खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था. अगर वोट कुछ और कम हो जाता तो कांग्रेसमुक्त भारत का मोदी का सपना पूरा हो गया होता. करीब आधा दर्जन राज्यों में रिकवरी और कई उपचुनावों में अच्छे प्रदर्शन के बाद पार्टी ने लड़ने का हौसला दिखाया है. धर्मनिरपेक्ष हिंदू, हाशिए पर ढकेल दिए गए अल्पसंख्यक और दलितों का कोर वोट बैंक फिर से उसकी तरफ लौट रहा है.

मई 2019 के लिए यह रही मेरी भविष्यवाणीः कांग्रेस 25/25/100 के राजनीतिक तौर पर अहम माने जाने वाले मुकाम तक पहुंच सकती है, जिसे उसने 1996-2014 तक बरकरार रखा था- यानी देश भर में 25 पर्सेंट से अधिक वोट, विधानसभाओं में 25 पर्सेंट से अधिक विधायक और लोकसभा में 100 से अधिक सीटें. इससे पार्टी को अपना वजूद बचाने में तो मदद मिलेगी, लेकिन वह केंद्र की सत्ता तक नहीं पहुंच पाएगी. खैर, इससे 2024 में वह केंद्र में सरकार बनाने के करीब जरूर पहुंच जाएगी. मुझे लगता है कि 2009 की तरह 2024 में कांग्रेस को 200 से अधिक सीटें मिलेंगी.

पांचवीं: क्षेत्रीय दलों के मजबूत किले

उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में मोदी को क्षेत्रीय दल कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इन राज्यों में ज्यादातर सीटें उन्हें ही मिलेंगी. इससे मोदी उन्हीं राज्यों तक सीमित रह जाएंगे, जहां उनका मुकाबला कांग्रेस से है. इस मामले में एक अनोखी सचाई यह है कि क्षेत्रीय दल अपनी सीमाओं से बंधकर रह जाते हैं. मिसाल के लिए, तेलुगू देशम का तेलंगाना में वजूद नहीं है तो टीआरएस का आंध्र में नामोनिशान नहीं है.

अधिकांश क्षेत्रीय दल शायद मई में बनने वाली गठबंधन सरकार में कांग्रेस के संभावित सहयोगी हो सकते हैं, लेकिन आगे की सियासी लड़ाइयों में वे बीजेपी और कांग्रेस दोनों के स्वाभाविक दुश्मन होंगे. वहीं, राष्ट्रीय पार्टियां देश भर में अपना विस्तार करने की कोशिश करेंगी. खैर, इस बात को किसी और साल और किसी और चुनाव के लिए रहने देते हैं.

अभी तो यही लग रहा है कि चुनाव के बाद क्षेत्रीय दलों के सहयोग के मामले में कांग्रेस की स्थिति बेहतर है, बशर्ते वह 135-150 सीटें हासिल कर पाए. अगर बीजेपी को 180 से अधिक सीटें मिलती हैं तो कई क्षेत्रीय पार्टियों से ‘जादुई’ अंदाज में वह अपनी अदावत खत्म कर लेगी.

तो अब क्या होगा इंटरवल के बाद? अरे, आप भूल गए कि बॉलीवुड के एक दिग्गज सितारे ने कभी कहा था न- पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त. इसलिए दिल थामकर बैठे रहिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT