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कोरोना संकट के बीच द.कोरिया में चुनाव,क्या बिहार में ऐसा संभव है?

लेकिन ऐसे माहौल में भी दक्षिण कोरिया ने चुनाव करा कर एक मिशाल पेश की है.

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:
कैसे कोरिया में चुनाव कराए गए?
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कैसे कोरिया में चुनाव कराए गए?
(फोटोः Altered By Quint)

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कोरोना ने जानें ली है, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है और शेयर बाजारों में कोहराम मचाया है. ये सारी बातें हम जानते हैं. एक बात जिसपर कम चर्चा हुई है वो यह है कि इसकी वजह से दुनिया के 47 देशों में अलग-अलग स्तर के चुनाव स्थगित हुए हैं जिनमें श्रीलंका, फ्रांस, यूके प्रमुख हैं.

लेकिन ऐसे माहौल में भी दक्षिण कोरिया ने चुनाव कराकर एक मिसाल पेश की है. और पीटीआई की एक खबर की मानें तो इस साल के आखिर में बिहार में विधानसभा चुनाव कैसे कराई जाए, इसपर इलेक्शन कमीशन कोरिया मॉडल का अध्ययन कर रहा है. हो सकता है कि जिस तरह से कोरिया में चुनाव कराए गए, उसी तरह बिहार में चुनाव कराए जाएं.

लेकिन क्या चुनाव कराने का नया कोरिया मॉडल बिहार में संभव है? जितना मैंने कोरियाई मॉडल को जाना है और जितना मैं बिहार को जानता हूं, उस हिसाब से इतना कह सकता हूं कि ईमानदारी से कोशिश की गई तो ऐसा संभव है लेकिन इसमें कई मुश्किलें आएंगी. हां, चुनाव के क्या परिणाम होंगे वो इस बात पर बहुत निर्भर करेगा कि बिहार की मौजूदा सरकार कोरोना त्रासदी को किस हद तक संभाल पाती है.

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चुनाव का ‘कोरिया मॉडल’ क्या है ?

जैसा हमें पता है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दक्षिण कोरिया की पूरी दुनिया में मिसाल दी जाती है. वहां का मूल मंत्र रहा टेंस्टिंग, आइसोलेशन और क्वॉरन्टीन. काफी मात्रा में संदिग्धों के टेस्ट हुए, और संक्रमण ना फैले इसके लिए संदिग्धों को आम लोगों से अलग रखा गया. जिनको इलाज की जरूरत थी उन्हें अस्पताल भेजा गया और जिनको क्वॉरन्टीनकिया गया, उनपर टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर खास निगरानी रखी गई कि वो इसका उल्लंधन ना करें. यही वजह है कि अब माना जाने लगा है कि कोरिया में इस महामारी को कंट्रोल कर लिया गया है.

ऐसे ही माहौल में बात उठी कि क्या देश में चुनाव संभव है. चुनाव प्रचार कैसे होंगे, वोटिंग के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का कैसे खयाल रखा जाएगा और किसी भी स्तर पर लापरवाही हुई तो इसका परिणाम क्या होगा? वहां की मौजूदा सरकार ने फैसला लिया कि चुनाव तय समय से होंगे और पूरी प्रक्रिया में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होगा.

सीएनएन, बीबीसी, अल जजीरा और वाशिंगटन पोस्ट की खबरों के मुताबिक पार्टियों को हिदायत थी कि प्रचार में हाथ मिलाने, गले मिलने से परहेज हो और सोशल डिस्टेंसिंग का किसी तरह से उल्लंघन ना हो.

  • चुनाव को तीन चऱणों में संपन्न किया गया. और हर चरण में करीब एक तिहाई वोटरों ने अपने वोट डाले.
  • पोलिंग बूथ, और देश में करीब 14,000 बूथ थे, पर एक-एक मीटर की दूरी पर लकीर खिंची गई ताकी लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकें.
  • नंबर आने पर वोटर को पहले सेनिटाइजिंग रूम में हैंड सैनिटाइजर दिए गए और फिर प्लास्टिक के दस्ताने पहनने को कहा गया. हर पोलिंग बूथ को पोलिंग से पहले सैनिटाइज किया गया.
  • वोटिंग करके बाहर आ रहे वोटर्स को दस्तानों को डस्टबिन में डालने को कहा गया. मतदान कराने वाले अधिकारियों को वही गियर दिए गए जो पूरी दुनिया में हेल्थ वर्कर्स को दिए जाते हैं.
  • सारे वोटर्स के तापमान मापे गए और जिनका शारीरिक तापमाण 99 डिग्री फैरनहाइट (जिससे यह संकेत मिले कि उनको बुखार है) से ज्यादा था उनको अलग बूथ पर ले जाकर वोटिंग कराया गया.
  • जिनको क्वॉरन्टीन किया गया, और इसकी तादाद 60,000 के आसपास थी, उनको शाम के 6 से 7 बजे के बीच वोटिंग करकेक्वॉरन्टीन सेंटर में वापस जाने का निर्देश दिया गया.
  • 15 अप्रैल को वोटों की गिनती हुई और परिणाम के मुताबिक सत्ताधारी पार्टी ने रिकॉर्ड बहुमत हासिल की.

खबरों के मुताबिक, इस साल जनवरी में जो सर्वे हो रहे थे उसके हिसाब से सत्ताधारी पार्टी की लोकप्रियता कम थी. अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत थे और घोटालों के आरोप भी लग रहे थे. लेकिन जिस तरह से सरकार ने कोरोनावायरस की रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाए और पूरी दुनिया में दक्षिण कोरियाई मॉडल की सराहना हुई, लोगों का मूड बदल गया.

बिहार में कोरियाई मॉडल अपनाना आसान नहीं होगा

कोरिया में वोटरों की संख्या करीब 4 करोड़ हैं. बिहार में भी करीब इतने ही वोटर्स हैं. हां, बिहार में पोलिंग बूथ की संख्या 2015 के विधानसभा चुनाव में 65 हजार से ज्यादा थे. कोरिया में पॉपुलेशन डेन्सिटी करीब 500 है जबकि बिहार में 2011 में ही ये आंकड़ा 1,100 से ज्यादा की थी. और अब उससे कहीं ज्यादा. कितने पोलिंग बूथ भी काफी भीड़ वाले इलाकों में होते हैं जहां सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना आसान नहीं होगा.

इसका मतलब यह हुआ कि कोरियाई मॉडल अपनाने के लिए नए सिरे से पोलिंग बूथ बनाने होंगे. चुनाव प्रचार में हुड़दंग मचते हैं, चुनावी रैलियों में ज्यादा जोर भीड़ जुटाने पर होता है. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिग का खयाल रखा जाएगा?अगर ऐसा होता है तो वो एक चमत्कार से कम नहीं होगा. चुनावी ड्यूटी में लगे सारे कर्मचारियों को हेल्थ वर्कर्स के लिए जरूरी सारे सुरक्षा के गियर देनें होंगे, ये मुश्किल लगता है. सारे 4 करोड़ से ज्यादा वोटर्स को दस्ताने और हैंड सैनिटाइजर दिए जाएंगे, फिलहाल तो मुश्किल ही लगता है. और इस सब पर काफी खर्च होगा. क्या चुनाव आयोग बिहार के चुनाव में इतना खर्च करने की हालत में होगा?

और सबसे बड़ा सवाल- चुनावी माहौल में बिहार जैसे शोरगुल वाले लोकतंत्र में सारे वोटर्स सख्त नियमों का पालन करेंगे और राज्य सरकार की मशीनरी की इतनी क्षमता है कि दूर दराज इलाकों में भी सारे कायदे कानून का पालन करवाए, मुझे तो फिलहाल इसका पूरा भरोसा नहीं है.

संभव है कि सितंबर-अक्टूबर तक कोरोना पर कंट्रोल हो जाए. ऐसे में चुनाव कराने में रिस्क कम होगा. नहीं तो कोरिया जैसी कार्यकुशलता बिहार में दिखे, मुझे फिलहाल इसपर शंका है.

हां, कोरिया के चुनाव का सबसे बड़ा सबक है कि कोरोना से लड़ाई में सरकार जितनी कार्यकुशलता दिखाती है, चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है. इसमें किसी तरह की कोताही, सत्ताधारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा सकती है.

(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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Published: 28 Apr 2020,06:27 PM IST

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