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Elon Musk को समझना मुश्किल नहीं,बहुत मुश्किल है! क्या वो Twitter डील पर गंभीर थे

Elon Musk-Twitter डील का फेल होना पहले से तय लग रहा था, समझिए कैसे...

माधवन नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Elon Musk को समझना मुश्किल नहीं,बहुत मुश्किल है! क्या वो Twitter डील पर गंभीर थे</p></div>
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Elon Musk को समझना मुश्किल नहीं,बहुत मुश्किल है! क्या वो Twitter डील पर गंभीर थे

फोटो- क्विंट

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एलन मस्क (Elon Musk) के बारे में कुछ ऐसा है जिसका बिजनेस, टेक्नोलॉजी या आंत्रप्रेन्योरशिप से कोई लेना-देना नहीं है, हालांकि एक के बाद एक उद्यमी के रूप में उनकी कामयाबियां, जिन्होंने इलेक्ट्रिक व्हीकल क्रांति की शुरुआत की, नई तकनीक लाए और नई कंपनियां बनाने की अदभुत क्षमता दिखाई...किवदंती बन चुकी हैं.

उनके दिमाग में झांकिए, सिर्फ उनकी बोली को न सुनिए. उनकी खासियत को देखिए, उनकी बातों को नहीं. उनके बर्ताव को देखो, न कि उस व्यक्ति के तौर पर जो बड़े-बड़े काम करता है. इस सब से परे देखेंगे तो आपको ड्रामेबाजी और ध्यान खींचने के लिए दुस्साहस दिखाने वाला एक ऐसा शख्स दिखेगा जो जहां हवा चले वहां झुकना पसंद करता है.

शायद वह नाव पर सवार होना नहीं चाहते, बस उसे हिचकोले देना चाहते हैं. और यही करना उनको सबसे ज्यादा पसंद है. कम से कम, TESLA सीईओ पर यह मेरी "ड्रामा किंग" हाइपोथीसिस है. ट्विटर से उनके प्यार को देखते हुए भी माइक्रोब्लॉगिंग साइट को खरीदने की डील को रद्द करना यही बताता है. जबकि ट्विटर जनता का ध्यान खींचने के लिए इस वक्त सबसे शानदार प्लेटफॉर्म है.

  • Elon Musk ने हाल ही में माइक्रोब्लॉगिंग साइट Twitter का अधिग्रहण करने के लिए $44 बिलियन के सौदे से हाथ खींच लिया है.

  • इस रद्द डील को मस्क न पैसे, न इमेज बनाने के लिए कर रहे थे. डील को करने के पीछे उनका मकसद शायद राजनीतिक शक्ति पाना होगा.

  • सभी संकेत बताते हैं कि ट्विटर को लेकर मस्क कभी बहुत गंभीर नहीं थे. उनके व्यवहार से पता चलता है कि 'फर्जी खातों' का हल्लागुल्ला सिर्फ इस डील से बाहर निकलने का एक तरीका था.

  • अब आगे एक बड़ी लड़ाई छिड़ सकती है क्योंकि ट्विटर ने डील रद्द करने के लिए उनपर मुकदमा चलाने की तैयारी कर दी है.

मस्क को कभी भी पैसे या नई इमेज की जरूरत नहीं थी

ट्विटर के सीईओ भारतीय मूल के पराग अग्रवाल को डिजिटल युग का पोरस कहा जा सकता है जो आज के 'सिकंदर' मस्क के सामने गरिमापूर्ण और दोस्ताना रवैये के साथ खड़े हुए. उन्होंने मस्क का स्वागत भी किया और 'भाड़ में जाओ' वाला संदेश भी दिया. ऐसा लगता है कि ट्विटर के बोर्ड का भी यही रवैया रहा. हालांकि आधिकारिक तौर पर बोर्ड ने इस सौदे के लिए मस्क की पेशकश को स्वीकार किया था.

मस्क को समझने के लिए मनोविज्ञान के शोध पत्र हैं जो उन्हें तारीफ और पहचान का भूखा से लेकर उनके व्यक्तिव को अबूझ पहेली बताते हैं.

लेकिन मैं इन सबको बस इतने में समेटना चाहूंगा कि ये गुण उन्हें विरासत में अपनी मॉडल-न्यूट्रशिनिस्ट मां और इलेक्ट्रोमैकेनिकल इंजीनियर पिता से मिले हैं.

उनका मानसिक चित्र चाहे जो भी हो, आप उन्हें समझने में गलती ना करें. मस्क को ट्विटर की 44 बिलियन डॉलर की रद्द डील से पैसे नहीं चाहिए थे क्योंकि वो पहले से ही करीब 200 बिलियन डॉलर के मालिक हैं. वो इस साल दुनिया के सबसे अमीर आदमी हैं. उनको इस तरह का इमेज भी नहीं चाहिए कि वो तकनीकी लिहाज से दुनिया के सम्राट हैं. क्योंकि पहले से ही वो सब उनके पास है, चाहे वो सोलर पैनल हो, इलेक्ट्रिक कार हो या फिर रॉकेट्री या फिर फिनटेक जिन्होंने PayPal बनाया. पैसे और टेक्नोलॉजी .. नाम और प्रसिद्धि सब मस्क के पास हद से ज्यादा है. ये सिर्फ ताकत है, राजनीतिक किस्म की ताकत जो मस्क के लिए प्रेरणा रही होगी जिसके कारण उन्होंने नीली चिड़िया की सवारी करने का मन बनाया.

ट्विटर के लिए अपनी दिलचस्पी बढ़ाने की कोशिश में एलन मस्क 'फ्री स्पीच' लॉबी के विवादास्पद (दक्षिणपंथी) पक्ष से जुड़ गए क्योंकि उन्होंने एक ट्विटर पोल किया, जिसमें 70% प्रतिभागियों ने कहा कि माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ‘फ्री स्पीच’ का समर्थन नहीं करती है. मस्क ने जाहिर तौर पर कुछ भी बोलने की आजादी के लिए प्यार दिखाया. इससे हमें डॉनल्ड ट्रम्प की भी याद आई जो अपने असभ्य शब्दों के साथ व्हाइट हाउस की तुलना में ट्विटर से अपने महाशक्ति देश को चलाना पसंद करते थे. एलन मस्क चाहते थे कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ट्विटर पर फिर से लौट आएं.
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कमिटमेंट फोबिया?

सभी संकेत बताते हैं कि मस्क की ट्विटर में दिलचस्पी गंभीर नहीं थी. प्रतिभा को बनाए रखने के लिए प्रसिद्ध देश में उन्होंने वरिष्ठ ट्विटर अधिकारियों को निशाना बनाया और छंटनी की भी बात की, भले ही साइट की समस्या वास्तव में हेडकाउंट या तकनीक जैसी नहीं थी. ट्विटर में केवल मुनाफे की कमी की समस्या है. मस्क ने बोर्ड में आने से भी मना कर दिया, जो एक गंभीर दावेदार ने कभी नहीं किया होता. इन सबसे ऊपर, उन्होंने फर्जी खातों के बारे में डिटेल मांगी और उन्हें सब दिया भी गया फिर भी वो पीछे हट गए.

उनके तकनीक-प्रेम और क्षमता को देखते हुए, उम्मीद यही की जा रही थी कि कंपनी को संभालने के बाद मस्क तकनीकी परेशानी से आसानी से निपट लेंगे. यह सोचा जा रहा था कि मस्क समस्या दूर करने के लिए हैं ना कि समस्या बनने के लिए. लेकिन उनके व्यवहार से पता चलता है कि 'फर्जी खातों' का तमाशा सिर्फ डील से बाहर निकलने का एक तरीका था. कमिटमेंट फोबिया? शायद !

"फ्री स्पीच" योद्धा के रूप में मस्क की ईमानदारी और उद्देश्य पर सवाल उठते रहे हैं क्योंकि आलोचकों का मानना है कि उनकी तरह का स्वतंत्र भाषण केवल हेट क्राइम और LGBTQ एक्टिविस्ट को निशाना बनाने के लिए उकसाता है. याद रखने वाली मुख्य बात यह है कि ट्विटर भले ही एक टेक प्लेटफॉर्म है लेकिन ये पब्लिक के बारे में ज्यादा है. मस्क जैसे स्वामी आज्ञाकारी चीजें जो उनके कंट्रोल में रहें, उन्हें पसंद करते हैं जबकि लोकतांत्रिक किस्म के लोगों को संभालना काफी मुश्किल होता है.

यह भी याद रखना वाजिब होगा कि अप्रैल और जून के बीच, टेस्ला के शेयर (जिस पर मस्क की संपत्ति का बड़ा हिस्सा टिका हुआ है) एक चौथाई से अधिक गिर गए, और इसी तरह ट्विटर शेयरों का मूल्य भी गिर गया.

आप तर्क दे सकते हैं (हालांकि वे हाई इन्फ्लेशन और यूक्रेन युद्ध के कारण हुए थे) कि बाजारों ने डील को टेस्ला और ट्विटर दोनों के लिए बुरा माना. हालांकि मस्क ने जनवरी में चुपके से ट्विटर में 5% हिस्सेदारी खरीद ली थी, लेकिन उन्होंने ट्विटर को खरीदने की पेशकश अप्रैल में ही की. मस्क को समय पर अपने ट्विटर शेयर खरीद का खुलासा नहीं करने के लिए रेगुलेटर का भी सामना करना पड़ा. और ये सब बहुत अच्छा नहीं चला.

ड्रामेबाजी की कीमत चुकानी पड़ती है

यह अब साफ है कि वजह चाहे पैसा हो, लोग हों या राजनीति, मस्क ट्विटर की डील में अपने परिचित सिलिकॉन वैली-कम-वॉल-स्ट्रीट वाली पिच से अलग क्षेत्र में थे. अब आगे एक बड़ी लड़ाई हो सकती है क्योंकि ट्विटर उन पर डील रद्द करने के लिए मुकदमा चलाने को तैयार है. क्योंकि इस पूरे प्रकरण से प्लेटफॉर्म को धक्का पहुंचा है.

हालांकि, यह याद रखने वाली बात भी है कि भले ही ट्विटर बोर्ड ने मस्क को एक बोर्ड सीट और फिर पूरी कंपनी की पेशकश की थी, उन्होंने शेयरहोल्डिंग योजना के साथ एक 'poison pill' की स्ट्रैटेजी भी बनाई थी, जिसके तहत कंपनी के नए शेयरों को नियंत्रित करने के लिए अधिग्रहण करना काफी महंगा होता.

अगर लव-हेट डील स्टोरी को देखें तो लगता है कि इसका खत्म होना पहले से ही तय था किसी भविष्यवाणी की तरह.

ट्विटर डील को लेकर मस्क का मकसद और प्रेरणा दोनों ही संदेहास्पद हैं, हालांकि मैं कहूंगा कि 'मैं खुदा हूं' वाली मानसिकता के कारण उन्होंने इस डील के ऐलान से मिली सुर्खियों का पूरा मजा लिया होगा. अब ये देखना बाकी है कि इसकी उन्हें कीमत चुकानी पड़ती है या नहीं?

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