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ED सिर्फ विपक्षी नेताओं के यहां ही क्यों रेड कर रही, सारे भ्रष्ट विपक्ष में हैं?

PMLA पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से ये साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में इसका इस्तेमाल और बेधड़क होगा

शुमा रहा
नजरिया
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ED सिर्फ विपक्षी नेताओं के यहां ही क्यों रेड कर रही, सारे भ्रष्ट विपक्ष में हैं?

फोटो- altered by quint  

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अगर बीजेपी (BJP) की अगुवाई वाली NDA सरकार के करीबी ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर जुबैर (Zubair) को बेल दिए जाने से सुप्रीम कोर्ट से निराश हुए थे, जिन्हें 24 दिनों तक एक पुरानी ट्वीट के लिए जेल में रखा गया था, तो अब उन लोगों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने काफी खुश होने का मौका दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को रिहा करने के आदेश देने के एक हफ्ते बाद ही प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 को बनाए रखने का फैसला दिया. जाहिर सी बात है ये मौजूदा सत्ता और उनके समर्थकों के लिए राहत की बात थी.

27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच जज ए म खानविल्कर, दिनेश माहेश्वरी, सी टी रविकुमार ने प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों और ED को गिरफ्तार करने के अधिकार को बरकरार रखने के पक्ष में फैसला दिया. इसमें ऐसे लोग जो कानून का गलत इस्तेमाल करते हैं उनकी संपत्ति जब्ती, तलाशी और गिरफ्तारी को कोर्ट ने सही बताया.

  • सुप्रीम कोर्ट ने PMLA के सख्त प्रावधानों को बरकरार रखा. यहां तक कि ED को मिले संपत्ति जब्त करने, तलाशी चलाने, और गिरफ्तार करने के अधिकार को भी सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया.

  • विपक्ष ने लगातार इस बात का आरोप लगाया है कि सरकार ने PMLA को विपक्ष को डराने और मिटाने का हथियार बना लिया है.

  • संसद के अपने रिकॉर्ड के हिसाब से ही ED ने 2004 से 2014 के बीच 112 छापे मारे और 2014 से 2022 के बीच में 3000 रेड किए हैं.

  • मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सिर्फ विपक्ष के नेताओं को ही पकड़ा गया है. BJP के नेताओं पर कोई मामला नहीं है.

  • ED के छापे को एक डंडे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके डर से नेताओं को पार्टी तोड़ने के लिए कहा जा रहा.

  • भ्रष्ट नहीं होने से आप महफूज रह सकते हैं लेकिन कितने भारतीय नेता हैं, चाहे वो इधर के हों या उधर के, इस बात का दावा कर सकते हैं कि वो भ्रष्ट नहीं हैं.

सत्ताधारी दल कर रहे हैं PMLA का दुरुपयोग

दरअसल इन कानूनों के तहत जो सख्त प्रावधान हैं उनके इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए देश भर से करीब 241 याचिकाएं दी गई थीं, जिनमें कुछ विपक्ष के नेताओं की थी. PMLA को चुनौती देने वालों में कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हैं. ये सभी इसके तहत मामलों का सामना कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन कानूनों के तहत जमानत के सख्त प्रावधानों को भी बनाए रखा, जिसमें सबूत पेश करने की जिम्मेदारी आरोपी पर ही है. यह सुप्रीम कोर्ट के अपने ही नंवबर 2017 के फैसले के खिलाफ है जिसमें उन्होंने जमानत की इस शर्त को ‘असंवैधानिक’ बताया था.

विपक्ष लगातार दावा करता रहा है कि PMLA कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है. सरकार ने इसे विपक्ष को परेशान करने का हथियार बना लिया है क्योंकि इस कानून के दायरे में आने के बाद जो कानूनी पचड़ा लगता है वो अपने आप में किसी सजा से कम नहीं है. सरकारी डाटा के हिसाब से अगर देखें तो पिछले 17 साल में PMLA के तहत जो केस किए गए हैं उनसे 0.5 परसेंट को ही सिर्फ सजा होती है. इसमें यह भी दावा किया गया है कि ED को जो अधिकार दिए गए हैं और PMLA में संशोधन किए गए हैं उनसे PMLA का लगातार दुरुपयोग किया जा रहा है.

विपक्षी नेता ED जांच की फांस में फंसे

सुप्रीम कोर्ट ने ED को दिए अधिकार को जब सही ठहराया तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जिस तरह के अधिकार जांच एजेंसियों को दिए गए हैं वो भारत के लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं और एक दिन इनका अंजाम बहुत बुरा होगा.

विपक्ष के आरोपों को आंकड़ों से भी दम मिलता है. संसद के अपने ही रिकॉर्ड पर गौर करें तो साल 2004 से साल 2014 तक में ED ने 112 रेड किए और वहीं 2014 से 2022 के बीच में 3000 छापे मारे.

इसका मतलब ये हुआ कि जब से बीजेपी सत्ता में आई है या तो भ्रष्टाचार, आय से ज्यादा संपत्ति और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में बहुत ज्यादा बढ़े हैं या फिर विपक्ष की इस बात में दम है कि सरकार अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल विपक्ष को डराने के लिए कर रही है. वित्त मंत्रालय के अंदर आने वाली इस एजेंसी का इस्तेमाल सरकार अपने विपक्षियों को ठिकाने लगाने के लिए कर रही है , खासकर जब चुनाव नजदीक हो तो सियासी तौर पर उनको परेशान किया जाता है.

विपक्ष के नेता जिनके ऊपर PMLA के तहत चार्ज लगाया गया है उनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पी चिदंबरम, कर्नाटक कांग्रेस नेता डीके शिव कुमार और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता संजय राउत, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और TMC सांसद अभिषेक बनर्जी, NCP नेता अजित पवार, नवाब मलिक, दिल्ली के हेल्थ मिनिस्टर सत्येंद्र जैन और कई दूसरे दिग्गज नेता हैं.

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क्या बीजेपी के पास वॉशिंग मशीन है?

यहां यह कहना बेकार ही होगा कि PMLA और ED की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट से बूस्टर मिलना विपक्षी नेताओं के लिए अच्छी खबर नहीं है. इतना ही नहीं दूसरे विपक्षी नेता भी जिनकी केंद्र से पटती नहीं है उनके लिए भी आने वाला समय अच्छा नहीं होगा. दिलचस्प बात यह है कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जितने भी नेता फंसे हैं वो सभी के सभी सिर्फ विपक्ष से हैं. सिर्फ बीजेपी के नेता ही हैं जो इससे बच पाए हैं.

हकीकत तो यह है कि वो नेता जिन पर आर्थिक अपराध के आरोप लगे थे जैसे हिमंता बिस्वा शर्मा, TMC के मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी, रहस्यमयी तरीके से जैसे ही ये बीजेपी में गए इनके ऊपर से सभी आरोप गायब हो गए.

इसलिए विपक्ष बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहता है कि जो भी बीजेपी में गया वो ‘वॉशिंग मशीन’ में धुल जाता है और भ्रष्टाचार के सभी आरोप उनके ऊपर से हट जाते हैं. हालांकि संसद में जिस पार्टी को भारी बहुमत है उनके ऊपर इस तरह के कटाक्ष से कोई फर्क नहीं पड़ता है .

हालांकि अभी कुछ भी कहना सिर्फ अटकलबाजी ही होगी कि क्या सुप्रीम कोर्ट के PMLA पर फैसले के बाद केंद्र सरकार ED जैसी एजेंसी का इस्तेमाल जांच पड़ताल करने को लेकर और ज्यादा बढ़ाती है या नहीं. इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से बढ़ता है या नहीं, अभी सिर्फ ये कयास है लेकिन इतना तो तय है कि बेधड़क और पूरी जोर शोर से आगे भी इन एजेंसियो का इस्तेमाल अपने सियासी मतलबों के लिए होगा.

कितने भारतीय नेता भ्रष्ट नहीं होने का दावा कर सकते हैं?

मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सख्त कानून और छापेमारी के फायदे बहुत ज्यादा है. आप बिना जमानत दिए विरोधी राजनेताओं को जेल में रख सकते हैं, पूछताछ के लिए चाहे जितना बार हो उन्हें बुला सकते हैं और उनके गुनहगार होने की संभावना को बढ़ाचढ़ाकर दिखलाकर ना सिर्फ आप उनकी राजनीतिक हैसियत खत्म कर सकते हैं बल्कि उनकी मानसिक ताकत को भी तोड़ सकते हैं.

इसके अलावा ED के छापे और कार्रवाई का डर दिखाकर आप उनको तोड़ भी सकते हैं और अगर वो अपनी पार्टी तोड़ने को तैयार नहीं होते तो कम से कम रेड करके परेशान तो कर ही सकते हैं.

कुछ महीने पहले शिव सेना के संजय राउत ने दावा किया था कि उन्हें तब सत्ता में रही पार्टी को छोड़कर यानि महाअघाड़ी सरकार को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के लिए कहा गया था. राउत ने बताया था, “ जिस दिन मैंने इससे इनकार किया ED के छापे मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों पर पड़ने लगे”.

अभी हाल में ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि उनके हेल्थ मिनिस्टर सत्येंद्र जैन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनाया गया है और इसी तरह का फर्जी केस अब डिप्टी मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के लिए किया जा रहा है.

अब यह समय ही बताएगा कि केजरीवाल का दावा कितना सच है ..लेकिन सुप्रीम कोर्ट से जांच एजेंसियों को इस तरह से समर्थन मिलने के बाद अब विपक्ष के नेताओं को थोड़ा ज्यादा सावधान होकर हालात पर नजर रखनी होगी.

भ्रष्ट नहीं होना आपके लिए फायदेमंद होगा लेकिन कितने भारतीय नेता, चाहे इधर के हों या उधर के, इस बात का दावा कर सकता है कि वो भ्रष्ट नहीं हैं ?

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