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EVM-VVPAT पर सुप्रीम कोर्ट का 26 अप्रैल 2024 वाला फैसला चौंकाता नहीं है लेकिन कुछ सवाल जरूर छोड़ जाता है. पूरे फैसले को एक साथ पढ़ने पर फैसले के कुछ हिस्से दूसरे हिस्सों के विरोधाभासी लगते हैं. फैसले में कम से कम एक स्पष्ट तार्किक विसंगति भी है. आइए विसंगति से शुरुआत करते हैं.
फैसले में बड़ा हिस्सा यह बताने और दिखाने के लिए इस्तेमाल हुआ है कि EVM (बैलेट यूनिट)-VVPAT-कंट्रोल यूनिट वाली मौजूदा प्रणाली कितनी भरोसेमंद है, यहां तक कि “याचिकाकर्ता एसोसिएशन की नेकनीयती” पर भी सवाल उठाए गए हैं.
मौजूदा सिस्टम की खासियतों की तारीफ करने के बाद, फैसला भारतीय चुनाव आयोग के दो निर्देशों के साथ पूरा होता है. निर्देश देने वाले फैसले का वह हिस्सा यहां दोबारा पेश किया जा रहा है:
76. इसके बावजूद, इसलिए नहीं कि हमें कोई शक है बल्कि चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को और मजबूत करने के लिए, हम निम्नलिखित निर्देश जारी करना चाहते हैं:
01.05.2024 या उसके बाद VVPAT में सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने पर, सिंबल लोडिंग यूनिट्स को एक कंटेनर में सील और सुरक्षित किया जाएगा. उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मुहर पर हस्ताक्षर करेंगे. सिंबल लोडिंग यूनिट्स वाले सीलबंद कंटेनरों को नतीजों के ऐलान के बाद कम से कम 45 दिन के लिए EVM के साथ स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाएगा. जैसा EVM के मामले होता है, उसी तरह इन्हें भी खोला जाएगा, जांचा जाएगा और प्रक्रिया अपनाई जाएगी.
(b) EVM के 5% मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर को मतदान के लिए तैयार किए जाने के बाद संसदीय क्षेत्र के हर विधानसभा क्षेत्र/विधानसभा क्षेत्र में कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और VVPAT की जांच और सत्यापन EVM निर्माता के इंजीनियरों की टीम द्वारा किया जाएगा. नतीजों के ऐलान के बाद किसी भी छेड़छाड़ या बदलाव की उन उम्मीदवारों द्वारा लिखित शिकायत की जा सकेगी, जो अधिकतम वोट पाने वाले उम्मीदवार के बाद सीरियल नंबर 2 या सीरियल नंबर 3 पर हैं. ऐसे उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र या सीरियल नंबर से EVM की पहचान करेंगे. सभी उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के पास सत्यापन के समय मौजूद रहने का अधिकार होगा. ऐसा अनुरोध नतीजों के ऐलान की तारीख से 7 दिनों के अंदर किया जाना चाहिए. जिला निर्वाचन अधिकारी, इंजीनियरों की टीम की मदद से सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद फीड की गई मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर की प्रामाणिकता/अक्षुण्णता को प्रमाणित करेगा. इस सत्यापन के लिए असल लागत या खर्च भारतीय चुनाव आयोग द्वारा घोषित किया जाएगा, और ऐसी मांग करने वाला उम्मीदवार ऐसे खर्चों के लिए भुगतान करेगा. अगर EVM में गड़बड़ी पाई गई तो खर्च वापस कर दिया जाएगा.
ये दिशा-निर्देश, जो निश्चित रूप से “चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को और मजबूत करने के लिए” जारी किए गए हैं, सराहनीय हैं. हालांकि, एक सवाल उठता है कि जब सुप्रीम कोर्ट ये निर्देश जारी करता है तो "चुनाव प्रक्रिया की अखंडता” को और मजबूत करना एक जरूरी मकसद है, तो ऐसा क्यों है कि “याचिकाकर्ता एसोसिएशन” द्वारा की गई इसी तरह की मांग के नतीजे में उसकी नेकनीयती पर सवाल उठाए जाते हैं?
खासतौर से यह हिस्सा उलझन में डालने वाला बन जाता है क्योंकि फैसले का दूसरा पैराग्राफ कहता है:
2. शुरुआत में, हम रिकॉर्ड पर लेते हैं कि याचिकाकर्ताओं के वकील ने बिलकुल साफ कहा है कि याचिकाकर्ता भारत के चुनाव आयोग पर किसी भी मकसद या गलत नीयत का आरोप नहीं लगा रहे हैं या उस मामले के लिए यह दलील देते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें किसी उम्मीदवार या राजनीतिक दल का पक्ष लेने या नापसंद करने के लिए तैयार या कॉन्फिगर किया गया है. हालांकि, EVM में हेरफेर की संभावना को लेकर संदेह बना हुआ है...
30. मतदान की तारीख से करीब 10 से 15 दिन पहले, सिंबल लोडिंग यूनिट्स का इस्तेमाल करके सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी की जाती है. सिंबल को बिटमैप फाइल के रूप में VVPAT की फ्लैश मेमोरी में लोड किया जाता है, जिसमें राजनीतिक दल/उम्मीदवार का सिंबल, सीरियल नंबर और उम्मीदवार का नाम शामिल होता है. सिंबल लोडिंग एप्लिकेशन वाले एक लैपटॉप/पर्सनल कंप्यूटर का इस्तेमाल बिटमैप फाइल बनाने के लिए किया जाता है जिसमें सीरियल नंबर, उम्मीदवार का नाम और सिंबल शामिल होता है. यह फाइल सिंबल लोडिंग यूनिट्स का इस्तेमाल करके VVPAT यूनिट्स पर लोड की जाती है. निर्माताओं के अधिकृत इंजीनियर और जिला निर्वाचन अधिकारी सिंबल लोडिंग प्रक्रिया में शामिल होते हैं. पूरी प्रक्रिया उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होती है और एक मॉनीटर/टीवी स्क्रीन सिंबल लोडिंग प्रक्रिया को दर्शाता है.
इटैलिक फॉण्ट में लिखा “लैपटॉप/पीसी” एक “स्टैंड-अलोन” मशीन है या एक्सटर्नल डिवाइस से कनेक्ट की जा सकने वाली, यह फैसले में साफ नहीं है. यह मान लेना ठीक लगता है कि एक आम लैपटॉप/पीसी USB पोर्ट से एक्सटर्नल डिवाइस से कनेक्ट किया जा सकेगा.
अंतिम टिप्पणी याचिकाकर्ता एसोसिएशन की नेकनीयती से भी जुड़ी है. फैसले का यह हिस्सा ध्यान देने लायक है:
5 ... इस तथ्य के बावजूद कि अतीत में चुनाव सुधार में याचिकाकर्ता एसोसिएशन की कोशिशों का अच्छा नतीजा निकला है, इस मामले में दिया गया सुझाव समझ से परे लगा. तथ्यों और हालात के आधार पर “पेपर बैलेट प्रणाली” पर लौटने का सवाल न तो उठता है और न ही उठ सकता है. सिर्फ EVM में सुधार या उससे भी बेहतर प्रणाली हो सकती जिसकी लोग आने वाले सालों में आशा कर सकते हैं.
दायर की गई याचिका में ये मांगें की गई थीं जिन्हें नीचे दोबारा पेश किया जा रहा है:
“परमादेश (writ of Mandamus) या कोई दूसरी उचित रिट, आदेश या निर्देश प्रतिवादियों को जारी करें ताकि वे EVM के वोटों की गिनती को उन वोटों के साथ मिलान कर वेरीफाई कर सकें जिन्हें मतदाताओं द्वारा खुद VVPAT के जरिये ‘जिसको दिया, उसी के लिए दर्ज’ किया गया है;
यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिवादियों को परमादेश या कोई अन्य उचित रिट, आदेश या निर्देश जारी करें कि मतदाता VVPAT के माध्यम से यह वेरीफाई कर सकें कि उनका वोट ‘जिसको दर्ज हुआ, उसी का गिना गया है’;
चुनाव संचालन नियम, 1961 और भारत के चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया को इस सीमा तक असंवैधानिक घोषित करें कि वे VVPAT के माध्यम से यह प्रमाणित करने के मतदाताओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं कि उनका वोट ‘जिसको दिया, उसी के लिए दर्ज हुआ’ हो और ‘जिसको दर्ज हुआ, उसी का गिना गया है’;
“ऐसे अन्य आदेश या निर्देश पारित करें जो माननीय न्यायालय वर्तमान याचिका के तथ्यों और परिस्थितियों में जरूरी और ठीक समझें.”
यह सच है कि मामले की सुनवाई के दौरान विशिष्ट रूप से पूछे जाने पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने तीन विकल्पों का जिक्र किया. इसे फैसले में इस तरह दर्ज किया गया है:
“3. अदालत द्वारा पूछे गए एक सीधे सवाल पर, बिना किसी पूर्वाग्रह के वैकल्पिक रूप से, याचिकाकर्ता– एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से यह दलील दी गई कि अदालत को निर्देश देना चाहिए:
कागजी बैलेट पेपर सिस्टम पर लौटें; या
वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीन से निकली प्रिंटेड पर्ची मतदाता को सत्यापन के लिए दी जाए और गिनती के लिए मतपेटी में डाल दी जाए; और/या
कंट्रोल यूनिट से इलेक्ट्रॉनिक काउंटिंग के अलावा VVPAT स्लिप की 100% गिनती होनी चाहिए.
फैसले में जो करने की कोशिश की गई है उसे ज्यादा से ज्यादा मामूली सुधार कहा जा सकता है लेकिन इसने “चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को मजबूत करने” का एक मौका गंवा दिया है.
आशा है कि अदालत अपने खुद के बयान पर अमल करेगी “हमारा नजरिया सार्थक सुधारों को जगह देने के लिए साक्ष्य और कारणों से निर्देशित होना चाहिए. भरोसे और सहयोग की संस्कृति का पोषण करके, हम अपने लोकतंत्र की नींव को मजबूत कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सभी नागरिकों की आवाज और पसंद को महत्व दिया जाए और उनका सम्मान किया जाए,” और याचिकाकर्ताओं की नेकनीयती पर शक न किया जाए.
(जगदीप एस छोकर एक फिक्रमंद नागरिक हैं, और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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