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मोदी सरकार का कृषि सुधार: सोची समझी योजना क्यों हो जाती हैं बेकार

निजी बाजार को इजाजत देने और अनुबंध खेती को बढ़ाना देने वाले ये दोनों विधेयक वास्तव में स्वभाव से प्रगतिशील हैं

जी. चंद्रशेखर
नजरिया
Updated:
निजी बाजार को इजाजत देने और अनुबंध खेती को बढ़ाना देने वाले ये विधेयक स्वभाव से प्रगतिशील हैं
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निजी बाजार को इजाजत देने और अनुबंध खेती को बढ़ाना देने वाले ये विधेयक स्वभाव से प्रगतिशील हैं
(प्रतीकात्मक फोटोः Arnica Kala/ The Quint)

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बहुत मशहूर कहावत है चाहे जितनी बेहतर योजना बना लें, नियति या दुर्भाग्य से बचा नहीं जा सकता. कृषि बाजार में सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए हाल में लागू कानून इसका शानदार उदाहरण है कि किस तरह अच्छे इरादे के साथ लाया गया विधेयक भी मुखर विरोध की वजह बन सकता है. इसकी वजह है इन सुधारों की खराब मार्केटिंग और प्रभावित तबके से पर्याप्त सलाह मशविरा नहीं करना.

निजी बाजार को इजाजत देने और अनुबंध खेती को बढ़ाना देने वाले ये दोनों विधेयक वास्तव में स्वभाव से प्रगतिशील हैं और अच्छी तरह से लागू होने पर ये सही मायने में उत्पादकों के लिए फायदेमंद भी. तीसरे सुधार- पुराने पड़ चुके आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन- का मकसद अनाज, दाल, तेल और ऐसी ही चीजों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर लाना और इस तरह उसकी जमाखोरी पर रोक लगाना है.

निजी बाजार तैयार करना: किसानों को ‘अधिक आजादी’?

निजी बाजार तैयार करने से उत्पादकों को बाजार में अधिक आजादी मिलेगी. उत्पादक चाहे तो एपीएमसी बाजार जाएं या फिर निजी बाजार. इससे ‘एक देश एक कृषि बाज़ार’ की सोच को बढ़ावा मिलेगा. इतनी ही नहीं अनुबंध खेती को कानूनी दायरे में लाने का मकसद उत्पादक समूहों और उद्यमियों को एक अनुबंध के संबंध से जोड़ते हुए साथ लाना है जिससे उत्पादकों को उनके उत्पाद के लिए तैयार बाजार मिल सके और उद्यमियों को तैयार माल. चूंकि बहुत पहले तय हो जाता है कि क्या उत्पादन करना है उत्पादकों को बाजार के उतार-चढ़ाव का जोखिम नहीं उठाना होगा.

फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) बिल 2020 कृषि उत्पादों के लिए एक बाजार बनाता है और देश को एकजुट करता है क्योंकि यह एक राज्य से दूसरे राज्य और राज्य के अंदर भी प्रतिबंधों को खत्म करता है.

निजी बाजारों को तैयार कर यह किसानों को इस बात की भी आजादी देता है कि वे पहले से स्थापित परंपरागत कृषि उत्पाद बाजार व्यवस्था यानी मंडी से बाहर अपने उत्पाद बेच सकें. इन उपायों से किसानों के पास बाजार चुनने का विकल्प बढ़ जाता है और उन्हें अधिक आजादी मिलती है. इससे फसल उत्पादकों के लिए बाजार भी विकसित होता है.

ऐसा नहीं है कि देशभर में निजी बाजार मशरूम की तरह तुरंत पैदा होने जा रहे हैं. निजी क्षेत्र को परखना होगा और उसे एक बिजनेस मॉडल की तरह तैयार करना होगा जिससे उन्हें निवेश का फायदा मिल सके. निजी बाजारों को लेकर नियामक बनाए जाने की कमी बेशक चिंता का विषय है.

  • कृषि बाजार में सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए हाल में लागू कानून इसका शानदार उदाहरण है कि किस तरह अच्छे इरादे के साथ लाया गया विधेयक भी मुखर विरोध की वजह बन सकता है.
  • ऐसा क्यों है? क्योंकि इन सुधारों की मार्केटिंग खराब रही और प्रभावित तबके से पर्याप्त सलाह मशविरा नहीं किया गया.
  • फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) बिल 2020 कृषि उत्पादों के लिए एक बाजार बनाता है और देश को एकजुट करता है क्योंकि यह एक राज्य से दूसरे राज्य और राज्य के अंदर भी प्रतिबंधों को खत्म करता है.
  • कुछ तबके में यह मान्यता है कि एपीएमसी मंडी व्यवस्था खत्म होने जा रही है लेकिन यह सच्चाई नहीं है.
  • अगर ऐसा कुछ है भी तो वह यह कि निजी बाजार एपीएमसी बाजारों पर अधिक पारदर्शिता और कामकाज में क्षमता बढ़ाने के लिए दबाव डालेंगे.

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निजी बाजारों से MSP बाजारों पर पारदर्शिता और क्षमता बढ़ाने का दबाव होगा

कुछ तबके में यह मान्यता है कि एपीएमसी मंडी व्यवस्था खत्म होने जा रही है लेकिन यह सच्चाई नहीं है. अगर ऐसा कुछ है भी तो वह यह कि निजी बाजार एपीएमसी बाजारों पर अधिक पारदर्शिता और कामकाज में क्षमता बढ़ाने के लिए दबाव डालेंगे. पारदर्शिता में कमी के बावजूद एपीएमसी बाजारों की अपनी ताकत है और अपने सुव्यवस्थित ढांचागत सुविधाओं के जरिए वे इन निजी बाजारों से स्पर्धा कर सकते हैं.

एपीएमसी व्यवस्था में सुधार की दिशा में राज्य सरकारें अहम भूमिका निभा सकती हैं:

  • अलग-अलग समितियां बनाकर और उन्हें पहले से ज्यादा यूज़र या फार्मर फ्रैंडली बनाकर
  • एपीएमसी बाजारों को निजी बाजारों से स्पर्धा की इजाजत देकर, बाजार में लेन-देन पर टैक्स हटाया जा सकता है
  • राज्य सरकारें उन मंडियों का निजीकरण भी कर सकती हैं जो व्यावहारिक नहीं रह गयी हैं

राज्यों के बीच आवाजाही पर प्रतिबंध हटाना वास्तव में स्वागत योग्य कदम है जिससे ‘एक देश, एक बाजार’ का विचार मजबूत होता है. हालांकि राज्य के भीतर कारोबार को खत्म करने से राज्य के उस अधिकार का अतिक्रमण होता है जिसमें वह कृषि बाजारों के लिए नियामक तय करती है. इससे कानूनी टकराव की संभावना बनती है. केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ लगातार बातचीत करनी चाहिए और उन्हें इस कानून के फायदों को लेकर विश्वास दिलाना चाहिए.

अनुबंध खेती का कानूनी तानाबाना – और क्यों यह ‘दोनों पक्षों’ के लिए फायदेमंद है

फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज बिल 2020 ‘अनुबंध खेती’ का कानूनी ढांचा तैयार करता है. इसके तहत किसान या किसानों का समूह और उद्यमी एक समझौते से जुड़ जाते हैं जहां उद्यमी की जरूरत के मुताबिक उत्पादक फसल का उत्पादन करता है और उद्यमी पूर्व निर्धारित कीमत पर खेती की उपज खरीदने के लिए सहमत होता है.

यह व्यवस्था दोनों पक्षों के हितों को निश्चित रूप से आगे बढ़ाती है- उत्पादक (विक्रेता) के लिए तैयार खरीददार और प्रायोजक के लिए आपूर्ति को तैयार कच्चा माल.

अनुबंध खेती तब अधिक सफल हो सकती है जब फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेश्न्स (एफपीओ) इसमें शामिल हो. एफपीओ में सैकड़ों किसान सदस्य होते हैं और इसलिए उसे समूह का फायदा मिलता है. वे प्रायोजक की जरूरत के हिसाब से फसल की खेती करते हैं और एक समान गुणवत्ता को सुनिश्चित करते हैं.

कीमत विवाद का कारण हो सकती हैं लेकिन उत्पाद के दाम तय करने के लिए कई वैज्ञानिक तरीके हैं. फ्यूचर मार्केट से भी इसका अंदाजा मिल जा सकता है. 1960 के मध्य तक बाजार में ऑन-कॉल कॉन्ट्रैक्ट्स यानी ‘जरूरत पर अनुबंध’ का आधार प्रचलित था जिसमें अब सुधार किया जा सकता है. कीमत की पारदर्शी व्यवस्था से अनुबंध के दोनों पक्ष लाभ की स्थिति में होंगे.

विवाद की सूरत में जिला प्रशासन को इसका समाधान करने के उत्तरदायित्व से जोड़ा जाता रहा है लेकिन शायद विवादों का हल करने के लिए उनके पास आवश्यक अस्त्र-शस्त्र यानी अधिकार नहीं हैं.

एक अधिक मजबूत, स्वतंत्र और समय पर विवाद के समाधान की व्यवस्था की जरूरत है.

सुधार का मकसद मजबूत है लेकिन संबंधित पक्ष से विमर्श की जरूरत

आवश्यक वस्तु अधिनियम से कई वस्तुओँ को बाहर करने से उत्पादकों को फसल की बिक्री में आसानी होगी. इसकी प्रक्रिया से जुड़े लोग, निर्यातक और कारोबारी अब किसी कार्रवाई की आशंका के बगैर इसे बेच सकते हैं.

सुधारों का मकसद बहुत स्पष्ट और मजबूत है लेकिन इन सुधारों को लागू करने से पहले संबंधित लोगों से विमर्श किया जाना चाहिए.

उत्पादकों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और खरीद से जुड़ी चिंता को सुना जाना चाहिए. सरकार को लिखित में यह भरोसा देना होगा कि वो इसे खत्म नहीं करेंगे. कृषि बाजार सुधारों में जो प्रगतिशीलता है और संभावित फायदे हैं उसे देखते हुए इसका समर्थन जरूरी है.

(जी चंद्रशेखर इंडिपेंडेंट पॉलिसी कमेंटेटर और कमोडिटीज मार्केट स्पेशलिस्ट हैं. यहां उनके अपने विचार हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. उनसे gchandrashekhar@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

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Published: 23 Sep 2020,08:02 PM IST

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