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पूंजीपतियों के शोषण का शिकार हुए दलितों की लड़ाई लड़ते किसान

किसान आंदोलन की व्यापकता इसलिए भी बनी कि बड़े पूंजीपतियों के शोषण के शिकार तमाम सारे वर्ग हुए हैं

डॉ. उदित राज
नजरिया
Published:
किसान आंदोलन की व्यापकता इसलिए भी बनी कि बड़े पूंजीपतियों के शोषण के शिकार तमाम सारे वर्ग हुए हैं.
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किसान आंदोलन की व्यापकता इसलिए भी बनी कि बड़े पूंजीपतियों के शोषण के शिकार तमाम सारे वर्ग हुए हैं.
(फोटो: IANS)

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यह किसान आंदोलन अब तक हुए आंदोलनों से अलग है. इसके पहले जो आंदोलन हुए उनके आंदोलनकारियों की शिकायत सरकार से हुआ करती थी, लेकिन इस बार पूंजीपति भी दायरे में आए हैं. यही वजह है कि कई वर्गों का सरोकार वर्तमान आंदोलन से जुड़ गया है. जो काम विपक्ष न कर सका किसान आंदोलन ने करके दिखा दिया. शुरुआत में इसे बदनाम करने की कोशिश हुई और कहा गया कि पंजाब के ही किसान आंदोलन कर रहे हैं.

आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश

जब इस दुष्प्रचार से भी आंदोलन नहीं थमा तब खालिस्तानी संबंधों का तमगा लगा दिया. इसी दौरान हरियाणा और अन्य प्रदेशों के भी किसान जुड़ते गए. गोदी मीडिया और बीजेपी का आईटी सेल रात दिन जुटे रहे बदनाम करने के लिए कि ये तो पाकिस्तानी समर्थक आंदोलन है और फिर बीजेपी मंत्रियों ने कहा कि चीन और पाकिस्तान का हाथ है.

आदत पुरानी है कि जो भी सही मांग हो उसे हिन्दू-मुसलमान, विदेशी ताकत का षड्यंत्र , सनातन धर्म को बदनाम करने को आदि जैसे दुष्प्रचार करके दबाने की कोशिश होती है, इसमें सफल भी होते रहे हैं. लेकिन इस बार वैसा नहीं हो पा रहा है.

सरकारी कोशिश रही कि इनको थका दिया जाए और एक के बाद एक कई बैठकें रखी गईं. फिर भी आंदोलनकारी थकते हुए नहीं दिख रहे हैं. किसान आंदोलन की व्यापकता इसलिए भी बनी कि बड़े पूंजीपतियों के शोषण के शिकार तमाम सारे वर्ग हुए हैं.

मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां इतनी विध्वंशक रही हैं कि सरकार का खर्च चलाने के लिए आय के स्त्रोत सूखते गए. आय के स्त्रोत के विस्तारीकरण के बजाय पहले कि सरकारों ने जो सरकारी विभाग और उपक्रम स्थापित किये थे, उन्हें एक-एक करके बेचकर थोड़ा बहुत आय इकठ्ठा करने लगे. पहले की सरकारों ने राज्यों के चरित्र को कल्याणकारी बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन संघ और बीजेपी ठीक विपरीत काम करते हैं.

निजीकरण से दबाने की कोशिश

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी सरकारी विभाग और उपक्रम को खत्म करने के लिए विनिवेश मंत्रालय ही बना दिया था और औने–पौने दाम पर बहुत सारी सम्पत्तियों को बेच भी दिया. वास्तव में जो लड़ाई दलितों को लड़नी चाहिए थी वो किसान लड़ रहे हैं. अडानी और अंबानी के साम्राज्य से किसानों से कहीं ज्यादा दलित और आदिवासी का बुरा हुआ है. दलित-आदिवासी का अधिकार और भागीदारी सरकारी क्षेत्र में आरक्षण की वजह से ही संभव हुआ है. संघ की जो अघोषित सोच है कि इन्हें शूद्र बनाकर रखा जाए उसके लिए निजीकरण का ही तरीका सबसे ज्यादा सटीक बैठता है. ये लडाई दलितों को लड़नी चहिये थी, लेकिन बहुजन जागृति का जो प्रतिफल हुआ जैसे जाति के नाम पर राजनीतिक और सामाजिक संगठन के उभार और व्यक्तिगत अहंकार का पैदा होना, इसने पूरी एकता को ही बिखेर कर रख दिया.

मनुवाद का दर्शन की तरह बहुजन आन्दोलन भी चला, मनुवादी दर्शन में अगले जन्म में फल की प्राप्ति की बात की जाती है और उसी तरह से बहुजन आंदोलन ने वर्तमान की समस्या पर आंखें मूंदने और भविष्य में सत्ता प्राप्त करने की ओर लोगों का ध्यान खींच दिया. दलितों की आबादी 16 फीसदी है और वो भी सैकड़ों जातियों में बंटे हुए हैं. ऐसे में सत्ता प्राप्त को ही एकमात्र लक्ष्य निर्धारित कर देना आत्महत्या करने के बराबर है. वर्तमान में शिक्षा का निजीकरण आदि पर कोई ध्यान ही नहीं दिया.

बहुजन आंदोलन की एक धारा और है, जो ये कहते हैं कि हम मूलनिवासी हैं और सवर्ण बाहरी हैं इनसे सत्ता छीनकर इन्हें भगाना है. जबकि सच ये है कि खुद दलित- आदिवासी संशाधन और शासन- प्रशासन से निकाल दिए गए. इनका मुख्य कार्य है ब्राह्मणों को गाली देना और अपने लोगों को भावनात्मक पाठ पढ़ाते रहना .

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पुराने युग में वापस जाएगा देश

संघ पौराणिकता में जाना चाहती है न कि इतिहास में. इतिहास साक्षी है कि ये देश राजों और रजवाड़ों में बंटा हुआ था और उन्हीं के पास धन-संपत्ति हुआ करती थी. बाकी जनता, ट्रस्ट परेशान हुआ करती थी. तभी तो बाहर के आक्रमणकारी आते थे, तो जनता उनका स्वागत करती थी. जैसे-जैसे अंबानी और अडानी का साम्राज्य बढ़ेगा फिर देश पुराने युग में वापस चलता जाएगा.

ये लोग पौराणिकता में इसलिए जाना चाहते हैं ताकि चंद लोगों की हुकूमत रहे, और उसके लिए सत्ता एक साधन है. चुनाव जीतने के लिए अंबानी-अडानी जैसे पूंजीपतियों का पैसा जरुरी है. इससे मनुवादियों और पूंजीपतियों दोनों का ही हित सधता है.

पानी मुफ्त की चीज है, लेकिन जब बोतलबंद हो जाती है तो बीस रूपये और पांच सितारा होटल में तो सौ रूपये की हो जाती है. अडानी-अंबानी की तैयारी कृषि क्षेत्र के व्यापार पर कब्जा करने की मोदी जी की सांठ–गांठ से काफी दिनों से चल रही थी. इन्होंने व्यापार का पंजीयन, जमीनों की खरीद आदि पहले से कर ली थी यानी पच्चीस लाख करोड़ कृषि के व्यापार पर कब्जा. लगभग सभी व्यापारी घाटे और मंदी का शिकार हुए हैं. अडानी-अंबानी के धन में बेतहासा इजाफा कैसे हो रहा है? दुनिया के अमीरों की लिस्ट में दोनों ही काफी आगे पहुंच गए. इस आंदोलन को सभी लोगों को समर्थन इसलिए करना चाहिए कि सस्ते में अनाज खरीद करके महंगा बेचा जायेगा जैसे पानी. इससे सभी लोग प्रभावित होंगे, कोई नहीं बचेगा.

मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत गोदी मीडिया, पाखंड, आईटी सेल, झूठ, ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई और अकूत धन है. अब तो येह कह्ते हुये जुबान रुक जाती है कि सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं. अनुभव सीधा बताता है कि सत्य पराजित हुआ है. जो लड़ाई मजदूर संगठन, करोड़ों नौजवान , विपक्ष, कलमगार नहीं लड़ सके वो काम किसान करके दिखा रहे हैं. शेष कि सहानुभूति से काम नहीं चलेगा बल्कि किसानों के साथ खड़ा हो जाना चाहिए.

(लेखक डॉ उदित राज परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व लोकसभा सदस्य और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. इस लेख में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं.)

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