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किसान आंदोलन को लेकर ‘केंद्र Vs छत्तीसगढ़’ मॉडल

केन्द्र किसानों की बढ़ती संख्या रोकना चाहता है जबकि छत्तीसगढ़ जैसा मॉडल आंदोलन को हवा दे रहा है

अनिल चमड़िया
नजरिया
Updated:
केन्द्र किसानों की बढ़ती संख्या रोकना चाहता है जबकि छत्तीसगढ़ जैसा मॉडल आंदोलन को हवा दे रहा है
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केन्द्र किसानों की बढ़ती संख्या रोकना चाहता है जबकि छत्तीसगढ़ जैसा मॉडल आंदोलन को हवा दे रहा है
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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राज्यों में किसानों को उनकी फसल का समर्थन मूल्य देने से किसानों की तादाद बढ़ रही है, लिहाजा केंद्र सरकार को कोरोना महामारी जैसी आपदा को अवसर के रूप में इस्तेमाल करते हुए समर्थन मूल्य की व्यवस्था पर पानी फेर देने का फैसला करना पड़ा है?

किसान आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने किसानों के लिए एक पुस्तिका प्रकाशित की है जिसमें यह दावा किया गया है कि,

‘‘हमने किसानों को खुशहाल और कृषि को लाभकारी बनाने के लिए साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है. हम उनकी आमदनी के स्रोतों को बढ़ा रहे हैं और कृषि क्षेत्र में जोखिमों को कम कर रहे हैं. हम किसानों की आमदनी दोगुनी करने के उद्देश्य से चार तरह की रणनीति अपना रहे हैं.”
केंद्र सरकार

लेकिन छत्तीसगढ़ में बघेल सरकार ने विज्ञापनों के जरिये जो जवाब दिया है वो न छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य द्वारा केवल कांग्रेस की तरफ से किसान आंदोलनों के पक्ष में अकेले मोर्चा लेने के राजनीतिक मकसद को पूरा करता है बल्कि केन्द्र सरकार की पुस्तिका के मुकाबले भी भारी दिख रहा है.

केन्द्र सरकार किसानों की आमदनी दोगनी करने के अपने वादे पर जोर दे रही है, लेकिन उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वह आश्वासन सभी किसानों के लिए लागू होता है या फिर बड़ी तादाद में किसानों की संख्या को कम करके कुछ किसानों की आमदनी को दोगुना कर अपने वादे को पूरा दिखाने का इरादा है?

छत्तीसगढ़ से कैसे समझा जा सकता है किसान आंदोलन

छत्तीसगढ़ में किसानों की बढ़ती तादाद को उसे देश का एक छोटा राज्य होने की वजह से अनदेखा करने की कोशिश की जा सकती है, लेकिन देश में चल रहे किसान आंदोलन को समझने में इससे मदद मिलती है.

पूरे देश में किसान और किसानी पर लगातार संकट बढ़ा है, लिहाजा ज्यादातर किसान खेती की जिंदगी से बाहर निकलना चाहते हैं.

2001 की जनगणना के मुताबिक देश में 127,312,831 किसान थे. जो 2011 घटकर 118,708000 रह गए. इन 10 सालों में 86 लाख किसानों ने खेती छोड़ दी थी. यानी किसान 7.1 फीसदी कम हो गए थे, जबकि कृषि मजदूर 3.5 फीसदी बढ़ गए थे.

जबकि छत्तीसगढ़ में स्थिति थोड़ी बदली हुई है. छत्तीसगढ़ राज्य में समर्थन मूल्य पर इस साल धान बेचने के लिए 21 लाख 29 हजार 764 किसानों ने पंजीयन कराया है और महज पंजीकृत किसानों द्वारा बोये गए धान का रकबा 27 लाख 59 हजार 385 हेक्टेयर से अधिक है.

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पिछले दो सालों में धान बेचने वाले किसानों का रकबा 19.36 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 22.68 लाख हेक्टेयर और किसानों की संख्या 12 लाख 6 हजार बढ़कर 18 लाख 38 हजार हो गई है. रकबे में 3 लाख 32 हजार हेक्टेयर तथा किसानों की संख्या में 6.32 लाख बढ़ोत्तरी हुई है.

साल 2017-18 में छत्तीसगढ़ राज्य में समर्थन मूल्य पर 56.85 लाख मीट्रिक टन और 2018-19 में 15.71 लाख किसानों से 80.38 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की. साल 2017-18 में 76.47 प्रतिशत किसानों ने धान बेचा था जबकि 2018-19 में ये आंकड़ा 92.61 प्रतिशत हो गया है. बीते विपणन वर्ष 2019-20 में राज्य में 94.02 प्रतिशत किसानों ने समर्थन मूल्य पर धान बेचा था.

इस दौरान मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ी है. किसान खेती छोड़कर खेतिहर मजदूर बनने में ज्यादा फायदा देख रहे हैं. जनगणना के इन्हीं आंकड़ों के अनुसार 2001 खेतिहर मजदूरों की संख्या 106,775,330 थी जो 2011 में बढ़कर 144,388,00 हो गई.

बिहार से सबसे ज्यादा पलायन

छत्तीसगढ़ में राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत किसानी को प्रोत्साहित करने के फैसले के प्रचार का लाभ कांग्रेस उठा रही है. देशभर में खेती की भूमि के मालिकों में सबसे ज्यादा आदिवासी छत्तीसगढ़ में हैं. केंद्र की नई कृषि नीतियों का मकसद किसानी से लोगों को बाहर भेजना है. ये माना जाता है कि देश भर में सबसे ज्यादा पलायन बिहार से होता है. वहां न्यनूतम समर्थन मूल्य पर केवल एक प्रतिशत धान की ही खरीद की जाती है. बिहार में 2006 में ही कृषि उत्पादों के लिए बनी मंडी व्यवस्था निष्क्रिय कर दी गई थीं.

केंद्र ने स्किल इंडिया के लिए जारी दस्तावेज में भी ये दावा किया था कि खेती पर आधारित लोगों को 2022 तक 57 फीसदी से घटाकर 38 फीसदी पर लाएंगे.’ विश्व बैंक ने भी 1996 में भारत के लिए यह संदेश दिया था कि 40 फीसदी लोगों को खेती से निकालना होगा.

छत्तीसगढ़ की सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीददारी के साथ कृषि से जुड़े दूसरे कार्यों के लिए अपनी योजनाओं को खूब प्रचारित कर रही है. गोबर की खरीददारी इनमें एक हैं. गांव के गौठानों में ग्रामीणों, किसानों और गौपालकों से 2 रुपये किलो में एक आंकड़ें के अनुसार 26 लाख 76 हजार क्विंटल गोबर की खरीदी की गई और उन्हें 53.53 करोड़ की राशि का भुगतान किया गया है. बता दें कि पशुपालन देश के 3.7 फीसदी कृषि परिवारों के लिए आय का मुख्य स्रोत है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार का जोर मनरेगा की तरह की कृषि क्षेत्र के लिए दूसरी योजनाओं से कृषि कार्यों व गतिविधियों पर निर्भर उस आबादी को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने पर भी है जो कि कृषि उत्पाद की खरीद बिक्री की प्रक्रिया से अलग हैं.

(अनिल चमड़िया जाने-माने स्तंभकार और शिक्षक हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 21 Dec 2020,10:35 PM IST

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