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खबरें कई हैं, उनके संदर्भ भी कई हैं, लेकिन कहीं न कहीं एक दूसरे से मिलती जुलती हैं. एक खबर फिनलैंड की है. वहां की प्रधानमंत्री सना मरीन देर रात तक पार्टी करने के चलते लोगों के गुस्से का शिकार हो रही हैं. दूसरी खबर भारत की है. यहां एक प्रोफेसर को अपने सोशल मीडिया पोस्ट के कारण लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी है.
फिनलैंड में प्रधानमंत्री सना मरीन का देर रात पार्टी करने और नाचने गाने का वीडियो वायरल हुआ तो देश की जनता बावली होने लगी. बहुतों ने कहा कि प्रधानमंत्री गैर जिम्मेदार हैं. पड़ोसी देश यूक्रेन में युद्ध चल रहा है, और वह नाचने गाने में लगी हैं. इससे पहले स्वीडन के साथ फिनलैंड नाटो गठबंधन में शामिल होने पर विचार कर चुका है.
कुछ लोगों ने यह अंदाजा लगाया कि सना ने ड्रग्स भी लिए होंगे. सना ने इसके लिए ड्रग टेस्ट करवाया जो नेगेटिव आया. इसके बाद दोस्तों की कुछ आपत्तिजनक फोटो पर पब्लिक से माफी भी मांगी. यूं बहुतों ने सना की तरफदारी की और पूछा कि सना के लिए पार्टी करना क्यों गलत है? क्या प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत जिंदगी कुछ नहीं होती?
इसके अलावा वह ‘ब्रेकफास्टगेट’ जैसे स्कैंडल भी झेल चुकी हैं, जिसमें कहा गया था कि वह और उनका परिवार बहुत अधिक कीमत के सब्सिडी युक्त नाश्ते खाते हैं, जो टैक्सपेयर की जेब पर भारी पड़ रहा है. इसके बाद प्रेस के शोर शराबे के बीच सना ने पूरे नाश्ते की कीमत अपने पल्ले से चुकाई.
प्रेस इस बात के लिए भी उनका मजाक उड़ा चुका है कि वह अपने सरकारी घर की साफ सफाई और लॉन्ड्री खुद करना पसंद करती हैं. यह वही फिनलैंड है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया का सबसे सुखी देश और महिलाओं के रहने के लिए तीसरी सबसे अच्छी जगह कहा है. कोई पूछ सकता है कि दुनिया के सबसे सुखी देश में भी किसी महिला से उसकी पर्सनल च्वाइस को कैसे छीना जा सकता है.
यह और कुछ नहीं, वर्कप्लेस एथिक्स का मुद्दा है. काम करने की जगह पर जिस व्यवहार की अपेक्षा की जाती है, उसी व्यवहार की उम्मीद निजी जिंदगी में भी की जाती है. आदर्श पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में एक जैसे नियम लागू किए जाते हैं. ऐसी ही उम्मीद भारत में एक अंग्रेजी की प्रोफेसर से की गई.
कोलकाता के एक मशहूर कॉलेज की एक प्रोफेसर को उस इंस्टाग्राम स्टोरी का खामियाजा भुगतना पड़ा जो उसने प्रोफेसर की नौकरी कबूल करने से पहले पोस्ट की थी.
सवाल यह भी है कि नैतिकता और उचित-अनुचित के मानदंड पर अक्सर औरतों को ही खरा उतरना पड़ता है. और अगर वे इसका उल्लंघन करती हैं तो पुरुषों के मुकाबले उन्हें अधिक कड़ी सजा का सामना करना पड़ता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया की एसोसिएट प्रोफेसर मैरी हंटर मैडोनल का पेपर ‘डज़ जेंडर रेज़ द एथिकल बार?’ में कहा गया है कि काम की जगह पर नैतिकता का उल्लंघन करने पर औरतों को अक्सर बड़ी सजा मिलती है. इसके लिए उन्होंने अपने दो कलीग्स के साथ अमेरिकन बार एसोसिएशन की अनुशासन संबंधी सजा को ट्रैक किया. 33 राज्यों के 500 मामलों का विश्लेषण किया जिसमें एसोसिएशन ने ऐसे वकीलों की पेशी की जिन्होंने तथाकथित अनुचित व्यवहार किया था. ऐसे मामलों में महिला वकीलों का लाइसेंस रद्द होने की उम्मीद 35% थी जबकि पुरुषों की 17%. इसका मतलब यह था कि महिला वकीलों के पुरुषों के मुकाबले लाइसेंस रद्द होने की 106% अधिक आशंका है.
यह आशंका इसलिए भी अधिक होती है क्योंकि औरतों को स्वाभाविक रूप से योग्य माना ही नहीं जाता. उन्हें इस लेंस से देखा जाता है कि वे मेहनत करके इस ओहदे पर नहीं पहुंची. यह उन्हें चैरिटी में मिला है. इसीलिए उस पद पर बने रहने के लिए उन्हें बार-बार साबित करना पड़ता है कि वे इस योग्य हैं, और अक्सर आचार-व्यवहार में शुचिता दर्शानी पड़ती है. अगर कहीं से इसमें कोई कमी आती है तो उसकी सजा भी भुगतनी पड़ती है. निजी जिंदगी की किरचें पेशेवर जिंदगी में खरोंच पैदा करने लगती हैं.
एक और शख्स हैं, जिन्हें पर्सनल लाइफ की च्वाइस के चलते सार्वजनिक जीवन में बहुत कटाक्ष झेलने पड़े हैं. वह हैं फर्राटा धाविका दुती चंद. उन्हें उन अड़चनों को तो झेलना ही पड़ा, जिनसे महिला खिलाड़ियों को दो-चार होना पड़ता है. लेकिन इसके अलावा अपने जेंडर से जुड़ी च्वाइस और अपनी एजेंसी का दावा करने के चलते शुरुआत में पेशेवर नुकसान भी उठाना पड़ा.
वह घोषित क्वीर हैं, और समाज के स्टीरियोटाइप्स से उनका इनकार रहा है. इसी के चलते 2014 में एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने उन्हें आखिरी मौके पर कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने के लिए ड्रॉप कर दिया था. उन पर पुरुष होने का आरोप लगा. बाद में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ऑफ स्पोर्ट्स ने उन्हें राहत दी. सवाल वही था, क्या समाज किसी पब्लिक फिगर को अपनी देह और सेक्सुएलिटी को रीक्लेम करने का हक नहीं देगा?
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