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संसद की सियासत से कानून की अदालत तक मुकम्‍मल शख्सियत थे अरुण जेटली

एनडीए सरकारों में अहम पदों पर रहे जेटली BJP के बेहद अहम नेताओं में थे

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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली की वाक्पटुता के विरोधी भी कायल थे. चाहे संसद हो, बहस हो या फिर ब्लॉग, वह अक्सर अपने संवाद से अपने राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों को अपना मुरीद बना लिया करते थे.नेता विपक्ष से लेकर, केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में उनकी भूमिका और एनडीए सरकार में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रमुख सलाहकारों में से एक, जेटली एक मुखर और प्रभावशाली नेता थे.

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मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान, उन्हें एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती सौंपी गई थी. वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी निभाने के दौरान उन्होंने कई बड़ी चुनौतियों का सामना किया, जिनमें नोटबंदी जैसे सरकार के फैसले को लागू करने से लेकर, जीएसटी लागू करने और बढ़ती अर्थव्यवस्था पर इस तरह के कड़े फैसलों के प्रभावों का मुकाबला करना भी शामिल रहा.  

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आखिर में जेटली स्वास्थ्य कारणों के चलते मंत्रालय के कामकाज से दूर हो गए थे. उन्होंने पिछले साल मई में रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी कराई थी.

बीजेपी के लोकसभा चुनाव 2019 में बड़ा जनादेश हासिल करने और मोदी के बतौर प्रधानमंत्री दूसरा कार्यकाल शुरू करने के कुछ ही दिनों बाद कैंसर से जंग लड़ रहे जेटली का 66 साल की उम्र में निधन हो गया.

प्रारंभिक जीवन और राजनीति में दस्तक

जेटली ने साल 1973 में दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री पूरी की. इसके बाद साल 1977 में उन्होंने डीयू से ही कानून की डिग्री हासिल की.

इस दौरान वह हिंदुत्ववादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संपर्क में रहे और आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्य बन गए. वह डिबेट क्लब के सक्रिय सदस्य भी रहे.

इसके ठीक बाद, साल 1974 में वह दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (DUSU) के अध्यक्ष चुने गए. एक ऐसे दौर में जब कांग्रेस की छात्र राजनीति पर पूरी पकड़ थी, तब उनका छात्र संघ अध्यक्ष चुना जाना भारतीय छात्र राजनीति के लिए बेहद अहम माना गया.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की तरह ही जेटली भी कम उम्र में ही सक्रिय राजनीति में आ गए थे. DUSU अध्यक्ष के तौर पर शुरू हुआ जेटली का राजनीतिक सफर धीरे-धीरे मुख्य धारा की राजनीति की ओर बढ़ने लगा. आपातकाल के दौरान जेटली का राजनीतिक कद और भी मजबूत हुआ.

जेटली 1970 के दशक के मध्य में उभरे राजनीतिक नेताओं की श्रेणी में शामिल हैं, जब वे भारत की आजादी के बाद आपातकाल के रूप में आए सबसे 'काले दौर' में, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े थे.

जेटली साल 1973 में राज नारायण और जयप्रकाश नारायण द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किए गए आंदोलन के प्रमुख नेता थे.

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ये वो दौर था जब देश के कई बड़े नेताओं ने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. इनमें रविशंकर प्रसाद, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, सीताराम येचुरी और जेटली शामिल थे.

जेटली ने आपातकाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 19 महीने तक हिरासत में रखा गया. उन्हें एक सप्ताह के लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया और बाद में उन्हें अंबाला सेंट्रल जेल में ट्रांसफर कर दिया गया.  

जेटली ने लिखा है कि कैसे इस हिरासत से उनके जीवन और राजनीतिक करियर में नया मोड़ आया.

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रिहाई के बाद, साल 1977 में जेटली लोकतांत्रिक युवा मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक बने. उन्होंने उस साल चुनावों में जनता पार्टी के उम्मीदवारों के लिए सक्रिय होकर प्रचार किया.

साल 1980 में बीजेपी के गठन के बाद वह पार्टी में शामिल हो गए. बीजेपी में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते हुए वह जीवनभर पार्टी के सक्रिय सदस्य बने रहे.

बीजेपी में शामिल होने के ठीक बाद वह पार्टी की यूथ विंग के अध्यक्ष और दिल्ली इकाई के सचिव बने.

28 दिसंबर 1952 को जन्मे जेटली की परवरिश नई दिल्ली में वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और परोपकारी लोगों के परिवार में हुई थी. उन्होंने अपने पिता और जानेमाने वकील महाराज किशन जेटली के पदचिन्हों का पालन किया.

उनकी मां, रतन प्रभा, एक गृहिणी थीं, जो सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी रखती थीं. जेटली की दो बड़ी भी बहनें थीं. अरुण जेटली के माता-पिता बंटवारे के दौरान लाहौर से दिल्ली आकर बस गए थे.

जेटली के पीछे उनकी पत्नी संगीता जेटली और एक बेटी और एक बेटा रह गए हैं. जेटली के दोनों बच्चों भी पेशे से वकील हैं.

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कानूनी पेशा

जेटली ने बतौर वकील अपने करियर की शुरुआत दिल्ली से की थी. ट्रायल कोर्ट से लेकर, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने कई मुकदमे लड़े.

जनवरी 1990 में, वह सीनियर लॉयर बने और 37 साल की उम्र में वह भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बने.

बतौर वकील वह कई हाई प्रोफाइल मुकदमों से जुड़े रहे, जिनमें से एक बोफोर्स स्कैंडल केस भी है.

वह भारत सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में भी बतौर प्रतिनिधि शामिल हुए थे, जहां 1998 में ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित कानूनों को मंजूरी की घोषणा की गई थी.

साल 2009 में विपक्ष के नेता के रूप में अपनी नियुक्ति के बाद उन्होंने वकील के तौर पर अपनी प्रैक्टिस बंद कर दी थी.

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राजनीतिक सफर

साल 1991 में, वह बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए, जो पार्टी की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था है. साल 1999 के संसदीय चुनावों में उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया था.

बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार (1999-2004) में उन्होंने कई मंत्री पद संभाले, जिनमें लॉ, जस्टिस और कंपनी अफेयर्स और मिनिस्टर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री शामिल हैं.

उन्होंने कानून मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, सिविल प्रोसीजर और कंपनीज एक्ट में कई संशोधन किए. साल 2001 में उन्हें मिनिस्ट्री ऑफ शिपिंग का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया था.  

साल 2004 में एनडीए सत्ता से बाहर हो गई और केंद्र में यूपीए की सरकार बनी. इसके बाद जेटली को बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया.

जेटली पहली बार साल 2000 में गुजरात से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए. बाद में 2006 और 2012 में उन्हें फिर से चुना गया.

अपने कार्यकाल के दौरान, वह संविधान में संशोधन करा कर दलबदल-रोधी कानून लाने के लिए मशहूर हुए.

साल 2014 में उन्होंने अमृतसर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन मोदी लहर के बावजूद उन्हें कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा. मार्च 2018 में उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजा गया.

क्रिकेट में दिलचस्पी रखने वाले जेटली को बीसीसीआई का उपाध्यक्ष भी बनाया गया, लेकिन ललित मोदी-आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग घोटाले के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. दिसंबर 1999 और 2012 के बीच जेटली दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (DDCA) के अध्यक्ष भी रहे.
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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मिली बड़ी जिम्मेदारी

2014 के लोकसभा चुनाव में हारने के बावजूद अरुण जेटली को मोदी सरकार में डिफेंस, फाइनेंस और कॉर्पोरेट अफेयर्स जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

बाद में, उन्होंने डिफेंस मिनिस्टर की जिम्मेदारी छोड़ दी थी. इसके बाद मनोहर पर्रिकर डिफेंस मिनिस्टर बने. लेकिन साल 2017 में मनोहर पर्रिकर दोबारा गोवा के मुख्यमंत्री बने, जिसके बाद एक बार फिर डिफेंस मिनिस्ट्री की जिम्मेदारी अरुण जेटली को दी गई थी.

साल 2016 में वित्त मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल उस वक्त सुर्खियों में रहा, जब सरकार ने ब्लैक मनी और फेक करेंसी को खत्म करने के दावों के साथ 500 और 1000 के नोट चलन से बाहर कर दिए थे. इसके बाद साल 2017 में जीएसटी लागू करने को लेकर भी वह सुर्खियों में रहे. वित्त मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान लागू किए गए नोटबंदी और जीएसटी के फैसलों की वजह से उन्हें आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं.  
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विवाद

जेटली पिछले साल उस वक्त विवादों में घिर गए थे, जब शराब कारोबारी विजय माल्या ने आरोप लगाया था कि देश से भागने से पहले वह जेटली से मिला था. हालांकि, जेटली ने इन आरोपों का खंडन किया था.

साल 2016 में जेटली उस वक्त विवादों में घिर गए थे, जब उन्होंने बलात्कार की एक घटना को "छोटी सी घटना" कह दिया था. बाद में उन्होंने अपने बयान के लिए माफी भी मांगी थी.

जेटली ने साल 2012 में सीबीआई को चेतावनी देकर विवादों में घिर गए थे. जेटली ने कहा था कि गुजरात के राजनेताओं और शीर्ष पुलिसकर्मियों के खिलाफ “साजिश” में शामिल लोगों को भविष्य में जवाब देना होगा.  

डीडीसीए में वित्तीय अनियमितताओं में कथित संलिप्तता को लेकर भी जेटली विवादों में घिरे थे. जेटली 13 सालों तक डीडीसीए के अध्यक्ष रहे थे. हालांकि, बाद में जेटली और डीडीसीए लीडरशिप दोनों ने ही यह सुनिश्चित किया कि जेटली के कार्यकाल के दौरान कोई वित्तीय अनियमितता नहीं हुई थी.

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